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छत्तीसगढ़ के इस किसान ने निकाला यूरिया का देशी जुगाड़ गौ-मूत्र, दावा-पांच साल से प्रयोग, हर बार बेहतर पैदावार

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दुर्ग. यूरिया के संकट से प्रदेशभर के किसान जूझ रहे हैं। ऐसे में इसका देशी जुगाड़ सामने आया है। पाटन के ग्राम अचानकपुर के किसान रोहित साहू ने इसका विकल्प खोज निकाला है। किसान का दावा है कि यूरिया के विकल्प के रूप में गौ-मूत्र का उपयोग किया जा सकता है। पांच साल में दस फसलों पर प्रयोग के आधार पर किसान का दावा है कि इससे यूरिया की तुलना में बेहतर पैदावार हो रहा है। जैविक खेती में हाथ आजमाकर राज्य व राष्ट्रीय स्तर पर कई पुरस्कार प्राप्त कर चुके रोहित साहू बताते हैं कि उन्होंने खुद के खेतों में गौ-मूत्र के प्रयोग के साथ इसके प्रभावों को लेकर गहन अध्ययन किया। इसके आधार पर कब कितनी मात्रा में गौ-मूत्र का छिड़काव किया जाए यह तय किया है। इसमें तीन साल से ज्यादा समय लगे। अब वे यूरिया की जगह गौ-मूत्र के इस्तेमाल से ही धान और गेहूं की खेती कर रहे हैं। इसमें बेहतर परिणाम मिल रहा है। उन्होंने बताया कि फूल की स्थिति को छोड़कर गौ-मूत्र का प्रयोग कभी भी किया जा सकता है। यह सामान्य यूरिया से कहीं बेहतर व फायदेमंद है।

खुद झेला संकट, तब आजमाया हाथ
किसान रोहित बताते है कि उन्होंने यूरिया संकट का दुष्परिणाम झेला तब उन्होंने गौ-मूत्र के प्रयोग पर ध्यान केंद्रित किया। उन्होंने बताया कि यूरिया नहीं मिलने पर गेहूं की फसल में गौ-मूत्र डाला। इसमें बेहतर परिणाम आया। इसके बाद से उन्होंने यूरिया का उपयोग पूरी तरह बंद कर दिया है।जैविक खेती के लिए चला रहे मुहिम
रसायनिक कीटनाशकों के दुष्प्रभाव से चिंतित रोहित जैविक खेती को लेकर भी मुहिम चला रहा है। रोहित वर्ष 2013 में जैविक खेती शुरू की। तब जिले में एक-दो किसान ही प्रायोगित तौर पर जैविक खेती करते हैं। अब जिले के 2700 से ज्यादा किसान 8000 एकड़ से ज्यादा में जैविक खेती कर रहे हैं। इनमें से अधिकतर किसान ऐसे हैं जो रोहित की प्रेरणा से जैविक खेती से जुड़े हैं।गांव-गांव जाकर किसानों को प्रशिक्षण
रोहित किसानों को जैविक खेती का प्रशिक्षण भी देते हैं। वे किसानों के समूह के साथ खुद के खर्च पर सेमीनार, प्रशिक्षण, गोष्ठी आदि का आयोजन करते है। लोगों को जैविक खाद, कीटनाशक, बीज आदि भी उपलब्ध कराते हैं। उन्होंने बताया कि वे एक अभियान से जुड़कर पाटन के 20 गांवों के किसानों को जैविक खेती का प्रशिक्षण दे रहे हैं।यूरिया के विकल्प के रूप में गौ-मूत्र का इस तरह कर सकते हैं उपयोग
0 10 दिन की फसल में 700 एमएल/स्प्रेयर (15 लीटर पानी)
0 20 दिन की फसल में 1400 एमएल/स्प्रेयर
0 30 दिन की फसल में 2100 एमएल/स्प्रेयर
0 40 दिन की फसल में 3000 एमएल/स्प्रेयर
0 50 दिन या उससे अधिक में 3800 एमएल/स्प्रेयर
गौ-मूत्र के उपयोग से यह भी फायदे
0 सख्त हो चुकी जमीन को मुलायम करता है।
0 जमीन में केचुओं की संख्या में बढ़ोतरी होती है।
0 गोमूत्र छिड़कने के बाद पानी नदी-नाले में जाने से कोई प्रदूषण नहीं।
0 छिड़काव करने वाले के स्वास्थ्य पर कोई भी विपरीत प्रभाव नहीं।
0 दुर्गंध के कारण जंगली सूअर फसल को नुकसान नहीं पहुंचाता।
0 जहरमुक्त अनाज का उत्पादन, जो इम्यूनिटी पावर को बढ़ाता है।
0 जैव विविधता और पर्यावरण के लिए अत्यंत उपयोगी।

Cattle Smuggling Case: गौ तस्करी मामले में CBI कार्यालय में हाजिर हुए बांग्ला फिल्म एक्टर और TMC MP देव

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बांग्ला फिल्म अभिनेता और टीएमसी सांसद देव Bengali Film Actor Dev गौ तस्करी मामले (Cow Smuggling) में एक गवाह के रूप में पूछताछ के लिए मंगलवार की सुबह सीबीआई कार्यालय (CBI Office) निजाम पैलेस पहुंचे. उन्हें इस मामले में सीबीआई ने तलब किया था और उन्हें मंगलवार को पेश होने के लिए कहा गया था. हालांकि, चूंकि वह काफी व्यस्त रहते हैं, इसलिए यह सोचा जा रहा था कि वह हाजिर नहीं होंगे. इसके बजाय उनके वकील से मिल सकते हैं. हालांकि एक्टर मंगलवार को निजाम पैलेस में खुद नजर आए और फिलहाल सीबीआई के अधिकारी उनसे पूछताछ कर रहे हैं. सीबीआई ने पहले कहा था कि वह इस मामले में तृणमूल सांसद और अभिनेता दीपक अधिकारी उर्फ ​​देव से पूछताछ करना चाहती है.

केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) ने बुधवार को देव को इस आशय का नोटिस भेजा था. नोटिस में देव को 15 फरवरी को सुबह 11 बजे तक निजाम पैलेस स्थित सेंट्रल इंटेलिजेंस एजेंसी के कोलकाता कार्यालय में रिपोर्ट करने को कहा गया था. उन्होंने नोटिस का पालन किया और पेश हुए.

गौ तस्करी के मामले में सामने आया था देव का नाम

अभी तक यह स्पष्ट नहीं हो पाया है कि देव और पशु तस्करी मामले के बीच क्या संबंध है. सीबीआई के नोटिस में भी इस संबंध में कुछ नहीं कहा गया. हालांकि सूत्रों ने बताया कि पशु तस्करी मामले में विभिन्न गवाहों से पूछताछ के दौरान देब का नाम सामने आया था. हालांकि तृणमूल सांसद देव ने नोटिस पर कोई टिप्पणी नहीं की थी. सीबीआई सूत्रों का कहना है कि छह महीने पहले ही गौ तस्करी मामले में देव के शामिल होने की बात आई थी, लेकिन उसके पास कुछ ठोस प्रमाण नहीं थे. उसके बाद जांच के सिलसिले में इस मामले में देव के शामिल होने के प्रमाण मिले हैं. उसके बाद ही अभिनेता को तलब किया गया है.

तस्करी के आरोपी इनामुल हक से गिफ्ट लेने का आरोप

बताते चलें कि पिछले दिनों मवेशी तस्करी मामले में मुख्य आरोपित इनामुल हक को सुप्रीम कोर्ट ने जमानत दे दी है. इनामुल मवेशियों की सीमा पार बांग्लादेश में तस्करी करने का मुख्य आरोपित है. मामले में एक बीएसएफ कमांडेंट को भी गिरफ्तार किया गया था. आरोप है कि तस्करी में घूस की रकम राजनीतिक दलों और स्थानीय अधिकारियों को दी जाती थी. सीबीआई ने मवेशी तस्करी मामले में पिछले वर्ष छह फरवरी और 21 फरवरी को चार्जशीट दाखिल की थी. बीएसएफ कमांडेंट समेत मामले के अन्य आरोपितों को जमानत मिल चुकी है. इनामुल हक तस्करी गिरोह का सरगना है।.इस मामले में बीएसएफ कमांडेंट, कस्टम्स आफिसर, स्थानीय पुलिस और अन्य लोग मवेशियों की सीमा पार तस्करी करवाने में संलिप्त हैं. सीबीआई के वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार अभिनेता देव ने 2017-18 में गौ तस्करी के मामले के मुख्य आरोपी इनामुल हक से कुछ लाख नकद और एक घड़ी सहित कई उपहार दिये थे. एनामुल होक ने सीबीआई को दिए एक बयान में यह बात कही थे. उस बयान के मुताबिक, देव को पूछताछ के लिए तलब किया गया है.

संत शिरोमणि रैदास जी : मेवाड़ की महारानी मीराबाई ने संत रविदास जी के पास गुरु दीक्षा ग्रहण की थी

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संत शिरोमणि रैदास जी :

“प्रभु जी तुम चंदन हम पानी,
जाकी अंग अंग बासी समानी

संत शिरोमणि रविदास जी का जन्म रवि वार के दिन होनेसे उनका नाम रैदास रखा है, संत रविदास जी का जन्म वाराणसी (बनारस) के नजदीकी गांव सिर गोवर्धन पुर में हुआ था, उनके दादाजी का नाम जास्साल था, और दादीजी का नाम लख पति था, रविदास जी के माता का नाम कलसीदेवी और पिताजी का नाम था संतो ख दास, असली रविदास रामायण के ग्रंथ के अनुसार उनके पिताजी का नाम रघु और माता का नाम कर्मा देवी था, विक्रम संवत 1433 के माघ मास में सूद पूनम के दिन 19 फरवरी को हुआ था, जब कि, विक्रम संवत 1584 मे राजस्थान के चीतोड़ गढ़ में उनका निर्वाण हुआ था, वो 151 साल तक जिए थे, महाराष्ट्र के संत तुकाराम संत रविदास जी से प्रभावित थे, सीखो के महान गुरु नानक देवजी ने कहा कि संत रविदास गोविंद रूप हे,, चार वर्ण के लोग रविदास जी के चरणों में वंदन करते हैं,
    मेवाड़ की महारानी मीराबाई ने संत रविदास जी के पास गुरु दीक्षा ग्रहण की थी, उनका सम्मान किया गया था,
“मेरा मन लगा गुरु सौ,
अब न रहूँगी अटकी,
मीरा के प्रभु ते ही स्वामी श्री रविदास गुरु तू”
            – – – – मीराबाई
संत शिरोमणि रैदास जी भक्ति युग के एक महान संत थे, वो कर्म कांड के विरोधी थे, डॉ धरम्वीर का कहना है कि, संत रविदास जी कबीर के बड़े भाई थे, ये दौनो दलितों के गुरु और सद्गुरु थे, वो मानते थे कि जातिवाद को खतम किए बिना दलितों का विकाश नहीं होगा, उन्होने जातिवाद और ब्राह्मण वाद परकड़ी आलोचना की है और तीखे वचन बोले थे, ये दौनो सामाजिक क्रांति के पथ दर्शक थे, भक्ति आंदोलन आज तक के इतिहास में सभी आंदोलनओ से सब से बड़ा आंदोलन था,
यदु जी की 28 वी पीढ़ियों में से एक सुर सेन हुए थे, और उनकी 17 वी पीढ़ी मे चंव र सेन हुए थे, चंवर सेन की 43 वी पीढ़ी मे हरि नंदन का जन्म हुआ था, हरीनंदन की शादी चित्र कौर नामक सुशील कन्या से करवाई गई थी, काशी (बनारस) के करीब गुणवान भक्त हरि नंदन वो चमार थे, उन्हे संतान नहीं होने से सुनंदन रूषि के आशीर्वाद से उनके यहा एक पुत्र का जन्म हुआ था उसका नाम रघु रखा गया था, ये रघु संत रविदास जी के पिता थे, और माता करमा देवी के पुत्र संत रविदास जी थे, उनकी शादी 16 साल की उम्र. में लोना देवी के साथ की गई थी, वो भी धार्मिक थी, संत रविदास जी घर में चप्पल बनाने का काम करते थे और उन्हें लीनादेवी मदद करती थी, संत शिरोमणि  रैदास जी का ब्राह्मण लोगो ने विरोध किया था और बताया गया था कि ये तो पाखंडी हे लेकिन राजा के सामने शास्त्रार्थ मे ब्राह्मण लोग की हार होनेसे राजाजी ने संत रैदास जी को सुवर्ण पालकी में बिठाकर काशी शहर में प्रदक्षिणा करवाने के लिए आदेश होनेसे संत रविदास जीको सुवर्ण पालकी में बिठाकर पूरे काशी नगर में घुमाए गए थे, संत रविदास जी के चरण छुए और उनसे क्षमा मांगी थी, संत रविदास जी के लिए हिन्दी, गुजराती, अंग्रेजी में बहुत सारा साहित्य लिखा गया है, पंजाब मे संत  जी को मानने वाले लोगों को रविदासइया कहा जाता है, गुजरात के गाँधी नगर मे सैक्टर 6 में बड़ा मन्दिर संत रैदास जी का बनाया गया है, उनके जन्म दिन पर पुष्पांजलि अर्पित करते हैं और उनके चरणों में सिर झुकाकर वंदन करते हैं.

संत रैदास ने संत रामानन्द के शिष्य बनकर उन्होंने आध्यात्मिक ज्ञान अर्जित  किया था, इन्हें स्वामी रामानंद जी को कबीर साहेब जी के कहने पर गुरु बनाया था, जबकि उनके वास्तविक आध्यात्मिक गुरु कबीर साहेब जी ही थे।उनकी समयानुपालन की प्रवृति तथा मधुर व्यवहार के कारण उनके सम्पर्क में आने वाले लोग भी बहुत प्रसन्न रहते थे। प्रारम्भ से ही रविदास जी बहुत परोपकारी तथा दयालु थे और दूसरों की सहायता करना उनका स्वभाव बन गया था। साधु-सन्तों की सहायता करने में उनको विशेष आनन्द मिलता था। वे उन्हें मूल्य लिये बिना जूते भेंट कर दिया करते थे। उनके स्वभाव के कारण उनके माता-पिता उनसे अप्रसन्न रहते थे। कुछ समय बाद उन्होंने रविदास तथा उनकी पत्नी को अपने घर से भगा दिया। रैदास पड़ोस में ही अपने लिए एक अलग इमारत बनाकर तत्परता से अपने व्यवसाय का काम करते थे और शेष समय ईश्वर-भजन तथा साधु-सन्तों के सत्संग में व्यतीत करते थे।

इन्होंने बेगम पूरा की कल्पना की थी, ऎसा देश हो जहा कोई दुखी और भूखा न हो, रविदास. 15वीं शताब्दी के कवि. “मन चंगा तो कठौती में गंगा”, लिखा. और साफ़ किया कि भगवान और मंदिर की ज़रुरत इंसान को रोटी और मानवीयता से ज्यादा नहीं है. कई बातें और कई चीज़ें हैं. अपने लिखे में ईश्वर को मानने की बाध्यता और आडंबर से समाज को मुक्त किया. और देखते-देखते रविदास को संत रविदास कहा जाने लगा. बहुत से लोग उनके समर्थक हो गए. और समर्थकों को कहा गया रैदासी. यूपी, दिल्ली, हरियाणा और पंजाब तक रैदासियों की रिहाईश हुई. और हर साल देश भर से तमाम रैदासी रविदास जयन्ती के दिन उनके घर बनारस में जुटते हैं. रविदास ने आंदोलन के तहत कविताएं लिखीं. अभी बात उनके कुछ फेमस दोहों की-

ब्राह्मण मत पूजिए जो होवे गुणहीन,

पूजिए चरण चंडाल के जो होने गुण प्रवीण

अंतरराष्ट्रिय महा पीठ महा पीठ के द्वारा दिनांक :21 फरवरी 2021 को सुबह मे 11. 00 बजे विज्ञान भवन न्यू दिल्ली मे अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन  संपन्न हुआ है, इस कार्यक्रम का उद्घाटन आदरणीय राष्ट्रपति श्री राम नाथ कोविद के कर कमलों से किया गया था, जिसमें हम भी सहभागी बने हुए थे.संत रैदास के भक्ति काव्य का सामाजिक सरोकार 

हिन्दी भक्ति काव्य के सामाजिक सरोकारहिन्दी भक्ति काव्य मीराबाई, कबीर और संत रविदास ने रचे थे | वो शिक्षा में पारंगत न होने के बावजूद एक उमदा भक्ति काव्य समाज को दिया गया है | सामाजिक चेतना और आध्त्यात्मिकता की ओर ले जाने वाले ये हिन्दी भक्ति काव्य ने भारत में संस्कृति का सिंचन किया है | मीराबाई ने कृष्ण भाक्ति में लीन हो कर, राजा राणा के राज्य को तिलांजलि दे दी थी | राणाजी ने मीरा की परीक्षा के लिए जहर दिया था | वो कृष्ण के प्यार में झहर भी पी लेती है फिर भी, उसे कोई तकलीफ नहीं हुई थी | मीरा के पद समाज को श्री कृष्ण की भक्ति की ओर ले जाने में सफल हुए है | कबीरजी भी उतने ही धार्मिक थे | उनका साहित्य भी समाज के जीवन के साथ सरोकार रखता है | हिन्दी भक्ति काव्य के रूप में वाल्मिक रचित रामायण, हिन्दी महा भक्ति काव्य है | रामायण समाजीक जीवन कैसे जिया जाता है, पितृ प्रेम, मात्रु प्रेम, पत्नी प्रेम, भात्रू भाव, प्रजा प्रेम, मित्र प्रेम आदि की रीत समाज को दी है |महाभारत भी एक उमदा हिन्दी महा काव्य है | जिसकी रचना वेद व्यासजी ने की थी | रामायण और महाभारत दोनों पहले भारतीय धर्म भाषा, संस्कृत में लिखे गए थे, लेकिन उसका हिन्दी में संस्करण भी किया गया है | ये दोनों हिन्दी भक्ति ग्रन्थ सामाजिक जीवन में उन्नति लाते है | सामजिक जीवन की परिभाषा शिखाते है |इसी तरह, संत रैदास जी के द्वारा रचे गए भक्ति काव्य भी एक नयी दिशा देता है | उन्हों ने मांसाहार और नशे से दूर रहने की सीख दी है | वो कर्म कांड और मूर्ति पूजा के विरोधी थे | इरान की यात्रा मुलाकात दरम्यान, वो बेगमपुरा शहर की कल्पना करतें है | बेगमपुरा ऐसा होना चाहिए, जहाँ जात-पात में भेदभाव न हो, सब को अन्न मिले, सब सुख चेन से जिए और धर्म भावना के साथ अपना जीवन व्यतीत करे, ऐसी सुन्दर कल्पना संत रविदासजी ने ६०० साल पहले की है | संत रविदास के ४० भक्ति पद जो पंजाब में गुरु नानकजी के ‘ग्रन्थ साहिब’ में शामिल है | जो जन जीवन को एक नयी ऊर्जा प्रदान करता है | इसी तरह, हिन्दी भक्ति काव्य सामाजिक चेतना और संस्कृति के जतन के लिए एक उमदा हिन्दी भक्ति काव्य है | वो समाज जीवन से बहुत गहरा सरोकार रखता है |  हिन्दी भक्ति काव्यकी रचना संत रविदास, मिराबाई और संत कबीरने बहुत की है | संत रविदास का साहित्य हिन्दी, अंग्रेजी और पंजाबी में बहुत ही उपलब्ध है |संत रैदास की वाणी
जो तुम गिरिवर तो हम मोरा,जो तुम चन्द्र तो हम भये है चकोरा ||माधवे तुम न तोरो तो हम नहीं तोरी,तुम सो तोरी तो किन सो जोरी ||जो तुम दिवरा तो हम बाती,जो तुम तीरथ तो हम जाती ||रैदास राती न सोइए, दिवस न करिये स्वाद,अहिनिसी हरिजी सुमिरिए, छांड सकल अपवाद ||चित सुमिरन करो नैन अवलोकनों,श्रवण वाणी सौ जस पूरी राखौ ||मन सो मधुकर करो, चरण ह्रदय धरो,रसना अमृत सम नाम भाखो ||मेरी प्रीती गोविन्द खोजनी घेरे,मैं तो मोल महँगी लई लिया सतै ||साध संगत बिना भाव नहीं उपजे,भाव बिना भक्ति नहीं होय तेरी ||कहे रविदास एक बिनती हरी स्यो,पैज राखो राजा राम मोरी  ||
भारत वर्ष के इतिहास में मध्यकालीन युग में लोगों की मुसीबते ज्यादा थी, देश, प्रान्तों में बटा हुआ था | मुस्लिमोने विजय नहीं पाया लेकिन तबाही मचायी, मंदिर जो रविदास को प्रिय थे उसीको तोड़ते हुए संत रविदासजी ने देखा था | क्षुद्र को अछूत माना जाता था | मुस्लिम मूर्ति पूजा के विरोधी थे | धर्म परिवर्तन कराया गया | इस युग में पंजाब में गुरु नानक और पूर्व उत्तर मैं कबीर साहबने नइ परंपराओं को जन्म दिया |संत रैदास आध्यात्मिक सूर्य की आकाश गंगा थे | उनका जन्म राजस्थान में हुआ ऐसी लोक वायका है | लेकिन, वो पश्चिम भारत में ज्यादा रहे | वो काशी में रहते थे और मोची का काम करते थे | उनका जन्म १३९९ इस्वीसन और मृत्यु १५२७ में माना जाता है | उन्हों ने जाती प्रथा और मूर्ति पूजा और क्रिया कांड का विरोध किया था | वो सहिष्णु और सादगी से जीये थे | वो ब्राह्मिन नहीं थे | शास्त्रार्थ में पंडित को उन्हों ने पराजित किये थे | चितोड की रानी मीराबाई उनकी शिष्या बनी थी |गुरु शिष्य का सम्बन्धजो तुम गिरिवर तो हम मोरा,जो तुम चन्द्र तो हम भये है चकोरा ||माधवे तुम न तोरो तो हम नहीं तोरी,तुम सो तोरी तो किन सो जोरी ||
संत रैदास जी अपने गुरु के प्रति अपनी प्रीत का वर्णन करतें है | वो कहेतें है कि प्रभु, तुम जो पर्वत हो तो में मोरा हूँ | में आप के प्यार में पागल हूँ | मेरा प्रेम आप के प्रति चन्द्र और चकोर जैसे है | रैदास जी प्रभु को माधव कहके पुकारते है | उनका एक शेर है |आरजी सो अक्स था इके इल्तफाते दोस्त का,जिसको नादानी से ऐसे जाबिंदा समजा था में ||
प्रभु आपने जब आंख घुमा ली तब पता चला कि ये तो काँटों की सेज है | संत रैदास जी अपने गुरु के प्रति प्रेम व्यक्त करते कहेते हैं कि,“जो तुम दिवरा तो हम बाती,जो तुम तीरथ तो हम जाती” ||
वो कहते है की में बाती हूँ और तुम दिया हो | संत रविदासजी आदर्श शिष्य का जीवन कैसा होता है वो बताते है | सच्चे भक्त की पहचान कराते है | “रैदास राती न सोइए, दिवस न करिये स्वाद,अहिनिसी हरिजी सुमिरिए, छांड सकल अपवाद” ||तुम मेरे पास होते हो गोया, जब कोई दूसरा नहीं होता ||“मिटा दे अपनी हस्ती को अगर कुछ मरतबा चाहे कि दाना खाक में मिलकर गुले गुलजार होता है” || जब बीज मिटटी में मिल जाता है तब खुद का अस्तित्व खो देता है | वो फुल का रूप धारण कर लेता है | आध्यात्मिक मार्ग भी इसी तरह है | रैदास जी कहेते है कि सच्चा शिष्य रात में सोता नहीं है | शिष्य हंमेशा गुरु के साथ जुडा हुआ होता है |“हम अपने जजबाए बेदार को रुसवा नहीं करेती,शबे गम नींद से आँखों का आलूदा नहीं करेती” ||
ये संत दर्शनजी महाराज कहते है | आशिक अपनी प्रियतमा से नजर नहीं हटाता, वो आँखों को बदनाम नहीं करता | संत रविदासजी आगे कहते है कि “ए दिल बेकरार ओ, रो ले, तडप ले, जाग ले, नींद की फ़िक्र क्यों, अभी रात मिली है बेसहर” | वो कहेते है कि रात दिन हमें प्रभु को यही करना चाहिए | सब छोडकर उनका स्मरण करना चाहिए |आध्यात्मिकता और धर्म:चित सुमिरन करो, नैन अवलोकनो,श्रवण वाणी सौ जस पूरी  राखौ ||मन सो मधुकर करो, चरण ह्रदय धरौं,रसना अमृत राम नाम भाखौ ||मेरी प्रीती गोविन्द स्योंजनी घटै,मैं तो मोल महँगी लई लिया सटै ||साध संगत बिना भाव नहीं उपजै,भाव बिनो भक्ति नहीं होय तेरी ||कहे रविदास एक बिनती हरी सयों,पैज राखो राजा राम मोरी  ||–संत रैदास —इसमें संत रैदास आदर्श शिष्य के जीवन का वर्णन कर रहे है | आध्यात्मिकता का मार्ग है | प्रेममयी बने बिना कुछ मिलता नहीं है | गुरु और शिष्य में प्रेम होता जरुरी है | जिस तरह चरवाहा अपने गौआ बकरियां को पहचानता है, उसी तरह गुरु अपने शिष्य को, अपने  जीवो को इकठ्ठा करके प्रभु के पास ले जाते है | जन्म मरण दौउ में नाही जन परोपकारी आये,           जिया दान है भक्ति भावन हरि सयों लेन मिलाये |
शिष्य का जीवन भंवर जैसा होना चाहिए  | जैसे भंवर फुल के आसपास घूमता रहता है, वैसे गुरु के पास शिष्य को आगे पीछे घूमते रहना चाहिए |  शिष्य होना शरणागति है | रैदास जी प्रार्थना करते है, कि हमे संगत साधू की मिले | संगत से भाव पैदा होता है | प्रभु को याद करना अपने जीवन का लक्ष्य होना चाहिए | उनके मुख में प्रभु का ही नाम होता था | अपनी आँखों से प्रभु को ही देखना चाहते थे | संत रविदास और कबीर के गुरु स्वामी रामानंद थे | रविदासजी मांसाहार और नशा के विरोधी थे, जाती भेद का विरोध किया था | कर्म कांड के विरोधी थे, मद्य और पशु हिंसा के विरोधी थे | वो महेनत की कमाई से ही जीना चाहते थे |जाती पाती के फेरे में सुलज रह्यो सब लोग,मानवता को खात है रैदास जाती को रोग ||
संत तुकाराम ने संत रैदास जी को एक साखी में कहा था, निवृति ज्ञानदेव सोपान चंगाजी, मेरे जी के नामदेव, नागाजन मित्र , नरहरी सोनार, रविदास कबीर सगा मेरे |
शिखों के गुरु नानकदेवजी ने भक्ति काव्य में कहा है कि, 
“ रैदास चमारू उस्तुति करे, हर की रीती निमख एक गाई,पतित जाती उत्तम भया, चारो चरण पये जग गाई, रैदास हयाये प्रभु अनूप, नानक गोविद रूप” 
गुरु नानक कहते है कि चरों वर्णों के लोग संत रैदास के चरणों में नमन करते है क्यों कि वो ज्ञानी है |  मेवाड़ की महारानी भक्त कवियित्री मीराबाई ने गुरु दीक्षा ले कर उनका सन्मान किया था | मीराबाई एक भक्ति काव्य में कहती है कि,“मेरा मन लागो गुरु सौ, अब न रहूंगी अटके,गुरु मिलियो रोहिदासजी, दिन्ही ज्ञान के गुटकी,रैदास मोहे मिले सद्गुरु, दिन्ही सूरत सुरई की,मीरा के प्रभु ते ही स्वामी, श्री रैदास सतगुरुजी“
संत रैदास जी भक्ति युग के महान संत थे | गुरु संत रैदास जी के ४० पद “श्री गुरु ग्रन्थ साहेब” में समाविष्ट है | सोलह रागों में अपनी वाणी संत रैदास जी करते थे | रैदास जी कहते है कि,“रैदास ब्राह्मण मत पुजिये, जो होवे गुण हिन,पुजिये चरण चंडाल के जो होवे गुण परवीन”
६०० साल पहेले मुस्लिम बादशाह ने ईरान में संत रैदास को बुलाये थे | ईरान के आबादान शहर में वो गए थे | आबादान के नाम से पर उन्हों ने अपनी कल्पना का शहर “बेगमपुरा” कैसा होना चाहिए उसका वर्णन अपनी वाणी में किया है | बेगमपुरा शहर को नाउ, दुःख अन्दोहु नहीं तीही ठाउ,  ना तसविस खिराजू न मालू, खउकु न खता, न तरसु जवाळु, अब मोहि वतन गई पाई, ॐ हाँ खैरी सदा मेरे भाई || कायमु, दायमु सदा पाति साही, दोम न सेम एक सौ आहि || आबादानु सदा मशहूर, उहाँ गनी बसही मामूर || तिह तिह शैल करही, जिह भावै || महरम महन न को अटकावे || कवि रविदास खलास चमारा ||जो हम सहरी सु मितु हमारा || उनका भक्ति काव्य,
अब कैसे छूटे नाम रट लागी, प्रभुजी तुम चंदन हम पानी,जाकी अंग अंग बास समानी, प्रभुजी तुम घनबन हम मोरा,जैसे चितवत चन्द्र चकोरा, प्रभुजी तुम दीपक हम बाती,जाकी ज्योति बरै दिन राती, प्रभुजी तुम मोती हम धागा,जैसे सोन ही मिलत सुहागा, प्रभुजी तुम स्वामी हम दासा,ऐसी भक्ति करे रैदासा,  प्रभुजी तुम चंदन हम पानी ||


आभार,डॉ गुलाब चंद एन. पटेल) कवि/लेखक/अनुवादक और   नशा मुक्ति अभियान प्रणेता‘हरिकृपा’, प्लोट नं.१२७/१,सेक्टर-१४,महात्मा मंदिर के पासगांधीनगर-३८२०१६गुजरात मो: ९९०४४ ८०७५३ईमेल: patelgulabchand19@gmail.comMo 8849794377          

झायनोव्हा शाल्बी अस्पताल में हृदय रोगियों के साथ वेलेंटाइन डे मनाया|

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मुंबई – वैलेंटाइन डे अपनों की संगति में बड़े ही उत्साह के साथ मनाया जाता है| वैलेंटाइन्स डे का संदेश है अपने प्रियजन का ख्याल रखना और किसी भी आपदा की स्थिति में उनका साथ देना है| इस खास दिन को उन्हीं डॉक्टरों ने मनाया, जिन्होंने दिल की बीमारियों के मरीजों का ऑपरेशन किया था।

हृदय शल्य चिकित्सा के छह से आठ महीने बाद, कुछ नागरिक थोड़ा असहज महसूस करते हैं, जिसका अर्थ है कि वे अपना ख्याल नहीं रखते हैं। इसीलिए दिल की समस्याओं वाले नागरिकों को उनके परिवारों के साथ परामर्श करने की आवश्यकता है| इसी उद्देश्य के लिए झायनोव्हा शाल्बी अस्पताल में कार्डियोलॉजिस्ट और सर्जनडॉ. चेतन शाह व डॉ. जितेश देसाई ने ,जिन नागरिकों की सर्जरी हुई थी और उनके रिश्तेदारों को वेलेंटाइन डे के लिए एक साथ बुलाया गया था।इस अवसर पर रेनी वर्गीज, चीफ एडमिन ऑफिसर, आशीष शर्मा, हेड ऑफ सेल्स एंड मार्केटिंग झायनोव्हा शाल्बी अस्पताल की नर्सें मौजूद थीं। २५ नागरिकोंनें दिल की सर्जरी करवाई है, जिन्होंने अपने प्रियजनों को गुलाब देकर वैलेंटाइन्स डे मनाया| आप इस दिन को माता-पिता, भाई-बहन, दोस्तों के साथ भी मना सकते हैं। दिल की सर्जरी करा चुके ८५ वर्षीय प्रीतम सिंह ने यह अहसास जताया कि अपने मन में वैलेंटाइन कोई भी हो सकता है।

मुंबई की लोकल ट्रेन में सफर करने वाले यात्री डिजिटल ऐप्स का लाभ ले पाएंगे

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सेंट्रल रेलवे (मुंबई डिवीजन) और दुनिया का पहला हाइपरलोकल एज क्लाउड प्लेटफॉर्म शुगरबॉक्स नेटवर्क्स के साथ लोकल ट्रेनों में यात्रियों को सफर के दौरान मनोरंजन उपलब्ध कराने के लिए हुये अनुबंध को मंजूरी मिल गई है। इसके लिए मध्य रेलवे ने शुगरबॉक्स कंपनी से हाथ मिलाया है, जो ट्रेनों में मनोरंजक कॉन्टेंट मुहैया कराएगी। रेलवे को यह कंपनी 5 साल में 8.17 करोड़ रुपये देगी। मध्य रेलवे की लोकल ट्रेनों में अब ऐसे डिवाइस लगाए गए हैं, जिससे यात्रियों का मनोरंजन होगा। यात्री अपने मोबाइल पर ही फिल्में, वेब सीरीज या सीरियल का लुत्फ बिना इंटरनेट का इस्तेमाल किए ही उठा सकेंगे।

मध्य रेलवे के यात्री अपनी पूरी ट्रेन यात्रा के दौरान मांग पर प्रचलित व प्रासंगिक डिजिटल ऐप्स का भी लाभ ले पाएंगे। शुगरबॉक्स नेटवर्क्स के को-फ़ाउंडर रोहित परांजपे के द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार ट्रेन के हर कोच में दो डिवाइस लगाए गए हैं, जो लोकल एरिया नेटवर्क के तौर पर काम करेंगे। ऐप पर लॉगिन करने के बाद यात्रियों को अपना  मोबाइल नंबर डालना पड़ेगा और ओटीपी मिलने के बाद उनका फोन कनेक्ट हो जाएगा। यात्रीगण कॉन्टेंट को डाउनलोड भी कर सकते हैं। मध्य रेलवे के महाप्रबंधक अनिल कुमार लाहोटी का मानना है कि यह साझेदारी आधुनिकतम प्रौद्योगिकी के ज़रिए अपने  यात्रियों को प्रदान किए जाने वाले सुविधाओं को बढ़ाने व मध्य रेलवे के भविष्य के लक्ष्यों को पूरा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी।

 प्रस्तुति : काली दास पाण्डेय

डॉ कृष्णा चौहान द्वारा तीसरे बॉलीवुड आइकॉनिक अवार्ड 2022 का शानदार आयोजन सम्पन्न

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संगीतकार अनु मलिक, एसीपी बाजीराव महाजन, सांसद डॉ सुनील बलीराम गायकवाड़, गजेंद्र चौहान, सुनील पाल, दीपा नारायण झा, एहसान कुरैशी, अरुण बख्शी, अली खान, सिंगर रितु पाठक को मिला अवार्ड

मुम्बई। बॉलीवुड फिल्म निर्देशक डॉ कृष्णा चौहान ने केसीएफ के अंतर्गत मुम्बई के जुहू में स्थित मेयर हॉल में 12 फरवरी को बॉलीवुड आइकॉनिक अवार्ड 2022 का शानदार आयोजन किया। यह इस अवार्ड का तीसरा साल रहा जहाँ ऑर्केस्ट्रा में बेहतरीन पुराने गीतों ने समां बांधा।
इस अवार्ड समारोह में प्रसिद्ध गायिका दिवंगत लता मंगेशकर को श्रद्धांजलि दी गई। संगीतकार अनु मलिक ने लता जी के साथ बिताए लम्हों को याद करते हुए कहा कि एक तरह से मैंने अपनी माँ को खो दिया हूँ। बचपन से मैं उनके साथ करीब रहा हूँ।
इस कार्यक्रम में एसीपी बाजीराव महाजन, सांसद डॉ सुनील बलीराम गायकवाड़, संगीतकार अनु मलिक, दीपा नारायण झा, कॉमेडियन सुनील पाल, एहसान कुरैशी, अरुण बख्शी, अली खान, अनिल नागरथ, गीतकार सुधाकर शर्मा, के के गोस्वामी, राजकुमार कनौजिया, श्यामलाल (फिल्म दबंग में भय्या जी स्माइल फेम), गायक दिनेश रहाटे, गीतकार ज़ीनत एहसान कुरैशी, डांसर शिरीन फरीद, निर्माता मुकेश गुप्ता और ब्राईट आउटडोर मीडिया के योगेश लखानी को डॉ कृष्णा चौहान ने ट्रॉफी देकर सम्मानित किया गया।
साथ ही जलेबी बाई गीत की गायिका ऋतु पाठक को भी बॉलीवुड आइकॉनिक अवार्ड से सम्मानित किया गया और रितु पाठक ने स्टेज पर गीत भी गाया।
बॉलीवुड आइकॉनिक अवार्ड 2022 समारोह में सिद्धिविनायक ट्रॉफीज के गणेश, आर राजपाल (पब्लिसिटी डिज़ाइनर), डांसर सीमा सूर्यवंशी, सोशल वर्कर सुंदरी ठाकुर, आयुर्वेदाचार्य प्रकाश टाटा, एडवोकेट अमित उपाध्याय, गायक डी सी मदाना, सिंगर मंगेश, बसंत भंडारी को भी सम्मानित किया गया।
पुरस्कृत सभी व्यक्तियों ने कृष्णा चौहान की तारीफ की और उनके हौसले व जज़्बे को सलाम किया।


इसी अवार्ड समारोह में प्रिंट, डिजिटल मीडिया से जुड़े कई पत्रकार भी बॉलीवुड आइकॉनिक अवार्ड 2022 से सम्मानित हुए जिनमें अवनींद्र आशुतोष, राजेन्द्र कुरील, संतोष साहू, कैलाश मासूम, शशिकांत सिंह, गाज़ी मोईन, देवेंद्र खन्ना, शमा ईरानी, दिलीप पटेल, दिनेश कुमार, पंकज पाण्डेय, एस. के. डे, नासिर तागले, शैलेश पटेल, सुंदर मोरे, प्रेस फोटोग्राफर बी के तांबे और राजेश कोरील का नाम उल्लेखनीय है।
इस मौके पर डॉ कृष्णा चौहान ने अपनी आगामी हिंदी फिल्म ‘आत्मा डॉट कॉम’ का भी प्रमोशन किया। यह एक हॉरर थ्रिलर फ़िल्म है, जिसके लेखक गाज़ी मोइन हैं। कृष्णा चौहान द्वारा निर्देशित इस फिल्म के डीओपी पप्पू के शेट्टी हैं।
इस अवार्ड समारोह के बाद डॉ कृष्णा चौहान 4 मई 2022 को अपने जन्मदिवस पर लीजेंड दादा साहेब फाल्के अवार्ड 2022 का भव्य आयोजन करने जा रहे हैं।
आपको बता दें कि बॉलीवुड फ़िल्म निर्देशक कृष्णा चौहान पिछले कई वर्षों से इंडस्ट्री से जुड़े हुए हैं। इन्होंने कई एड फिल्म्स, म्यूजिक वीडियो बनाया है और अब हिंदी फ़ीचर फिल्म आत्मा डॉट कॉम भी बनाने जा रहे हैं। डॉ कृष्णा चौहान अपने फाउंडेशन कृष्णा चौहान फाउंडेशन के अंतर्गत कई अवार्ड्स शो का आयोजन करते हैं। केसीएफ के अंतर्गत बॉलीवुड लीजेंड अवार्ड, बॉलीवुड आइकोनिक अवॉर्ड और लीजेंड दादासाहेब फाल्के अवॉर्ड का आयोजन सन 2019 से किया जा रहा है। इसके अलावा केसीएफ के द्वारा समाज सेवा, भोजन वितरण और भगवद गीता का वितरण किया जाता है। डॉ कृष्णा चौहान ने साल 2020 में कोरोना महामारी के बीच में कई जरूरतमंद लोगों को खाद्य वस्तुएं मुहैया कराई थी।
आपको बता दें कि डॉ कृष्णा चौहान गोरखपुर यूपी के रहने वाले हैं और पिछले 20 वर्षों से वे मुंबई में रह रहे हैं। अपने स्ट्रगल के दिनों में इन्होंने सहायक निर्देशक के रूप में भी काम किया है। इन्हें एक शार्ट फिल्म के लिए बेस्ट डायरेक्टर का अवार्ड भी मिल चुका है।

झायनोव्हा शाल्बी अस्पताल द्वारा मुंबई में 8000 लीटर सैनिटाइजर का नि:शुल्क वितरण

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मुंबई: हम कोरोना की तीसरी लहर का सामना कर रहे हैं, भले ही कोरोना का कहर थम गया हो. हालांकि कोरोना मरीजों की संख्या दिन-ब-दिन कम होती जा रही है, लेकिन हम अभी तक कोरोना महामारी पर पूरी तरह से विजय नहीं पा सके हैं।

कोरोना महामारी से निपटने के लिए नियमित रूप से मास्क, सोशल डिस्टेंसिंग और हैंड सैनिटाइजर का इस्तेमाल करना चाहिए। इसकी नैतीक जीमेदारी को निभाते हुये घाटकोपर स्थित झायनोव्हा शाल्बी हॉस्पिटल ने मुंबई नगर निगम (एन वार्ड) के सफाईकर्मियों, फीनिक्स मॉल और घाटकोपर पूर्व और पश्चिम निवासी संघों के साथ-साथ नेवल डॉकयार्ड में कर्मचारियों को मुफ्त 8 हजार लिटर हैंड सैनिटाइज़र वितरित किए गए। इस बारे में जानकारी देते हुए ज़्यानोवा शाल्बी हॉस्पिटल के हेड ऑफ सेल्स एंड मार्केटिंग आशीष शर्मा ने कहा, ‘निजी और सरकारी प्रतिष्ठान कोरोना की तीसरी लहर पर काम करने के लिए एक साथ आए हैं। जरूरत पड़ने पर हम और सैनिटाइजर मुहैया कराएंगे।’

औषधि उपयोग सीमित करने के लिये देसी गाय का दूध,घी ही विकल्प

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देसी गौ पालन चुनौतीपूर्ण लेकिन सामायिक जरूरत :रमेश बाबा

आगरा:देसी गाय का दूध जनस्वास्थ्य को हमेशा से उपयोगी माना गया है और आज तो दबाओं के बढते प्रचलन दौर में इसकी प्रासंगिकता और बढ गयी है। यह मानना है उन अनुभवियों का जो वर्षों से ‘गौ संबर्धन और संरक्षण के काम में लगे हुए हैं। अमर होटल वैंकट हाल में आयोजित गौ सेवियों की संगोष्ठी को बरसाना(जनपद- मथुरा)रमेश बाबा ने कहा कि निश्चित रूप से गौ सेवा प्रारंभ में चुनौतीपूर्ण कार्य लगता है किन्तु जब एक बार इससे जुड जाने पर आनंद अनुभव होने लगता है।
प्रदेश की सबसे बडी गौशाला के संचालक के रूप में अपनी विशिष्ठ पहचान रखने वाले रमेश बाबा ने कहा कि बहुत बडे गौवंश परिवार के भरण पोषण में कभी भी उन्हें दिक्कतें नहीं आयीं,हां सामायिक समस्याओं का जरूर उन्हें सामना करना पडता

रहा है।वह मानते हैं कि देसी गाय का दूध मानव काय के लिये अमृत तुल्य और तमाम बीमारियों से मुक्ति दिलवाने वाला है।
प्रख्यात ब्यूरोक्रेट ,आगरा के पूर्व कमिश्नर राजीव गुप्ता ने लखनऊ से बर्चुअल भागीदारी करते हुए अपने संबोधन में गौ संबधन के कार्य में आने वाली चुनौतियों स्वीकारते हुए कहा कि अगर ध्रढता से प्रयास हो तो कामयाबी जरूर मिलती है।प्रदेश में मौजूदा गौ शलाओं के संचालन में अनवरत सुधार की जरूरत के साथ ही जहां भी अनुकूल स्थितियां हों नयी गौ शालाओं को शुरूआत करने पर बल दिया।

राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ -बृज प्रांत के गौ सेवा प्रकल्प के प्रमुख श्री रमाकांत ने कहा कि गौ वंश का संरक्षण हमारी संस्कृति का अभिन्न भाग है, गौ ग्रास निकालने का प्रचलन अब भी समाज में प्रचलित है।लेकिन बदलते हालातों के अनुकूल समझना होगा कि गऊ ग्रास के नाम पर ‘केवल एक छोटी रोटी ‘ निकालने से काम चलने वाला नहीं है।
उन्होंने समाज ,संस्कृति के अनुकूल और हित में गौ सेवा के लिये अधिक योगदान अपेक्षित किया।उन्होंने कहा कि उनके द्वारा लागों को गौ संरक्षण संबर्धन प्रयासों से जोडने का प्रयास किया जा रहा है। देसी गाय के दूध और जैविक खादों के प्रचलन को बढवाने के लिये वैज्ञानिक दृष्टिकोण आधारित जानकारियों को प्रचारित किया जा रहा है। संबोधनों में सबसे जानकारियां वैज्ञानिक डा डी के सडाना सचिव आई एल एस आई (पूर्व प्रमुख -राष्ट्रीय पशु अनुवाशिक संसाधन ब्यूरो) द्वारा दी गयी। उन्होंने कहा कि केवल गाय का दूध होना ही पर्याप्त नहीं है, देसी गाय के दूध की गुणवत्ता और इसमें निहित औषधिय गुणों को समझना होगा। उन्हों ने कहा कि देसी नस्लों में भी स्थानीय नस्लों का खास महत्व उस स्थान विशेष के लिये होता है, इस संबध में वैज्ञानिक द,ष्टिकोण को समझ कर अपनाना होगा। आगरा के परिप्रेक्ष्य में देसी नस्लों का खास तौर से चर्चा की।

पर्यावरण विद् और गौवंश संबर्धन को प्रवृत्त रहने वाले श्री रमन बल्ला ने कहा कि देसी गायों के दूध के प्रति समझ बढने के साथ ही समाज को इन गायों का पालन करने वालों के बारे में भी सोचना होगा। उन्हों ने कहा कि देसी गायों का पालन न केवल श्रमसाध्य बल्कि लागत की दृष्टि से भी अधिक व्यय साध्य होता है।फलस्वरूप देसी गायों के दूध पर जर्सी या अन्य क्रास ब्रीडिंग नस्ल के पुशुओं से उत्पादित दूध पर अधिक लागत आती है।लेकिन यह लागत या मूल्य अधिकता भी दबाओं के इस्तेमाल में कमी तथा रोगों से निजात मिलने का अहसास होने पर नहीं अखरती है।

संगोष्ठी और बर्चुआल वीडियों कांफ्रेसिग के मुख्य आयोजक श्री भरत गर्ग ने कहा कि देसी गौ पालन का उनका अनुभव आशा के अनुरूप रहा है। उन्हों ने कहा कि देसी गायों के पालने के लिये अनुकूल स्थितियां है किन्तु इसके लिये केवल निवेशक या प्रबंधक के रूप में ही नहीं ‘गौ पालक’ के रूप में प्रत्यक्ष भूमिका भी अपेक्षित होती है।उन्होंने पूर्व कमिश्नर राजीव गुप्ता , रमेश बाबा , संघ परिवार के प्रतिनिधियों सहित सभी सहभागियों का आभार व्यक्त किया।

गौपालन प्रबंधन दक्ष ‘भरत शर्मा’

गौपालन क्षेत्र में सक्रिय श्री भरत शर्मा शैक्षणिक दृष्टि से एम बी ए है, और बैंक मैनेजर की सर्विस छोड़कर इसमें प्रवृत्त हुए हैं।समाज के स्वास्थ्य, अर्थतन्त्र और संस्कृति को पुर्नस्थापित करना उनका स्व संकल्पित जीवन लक्ष्य है।श्री भारत शर्मा के परिवार में कोई उद्यम का कार्य नहीं किया। उनके पिताजी श्री श्याम शर्मा आगरा विश्वविद्यालय में कार्यरत थे, और उनकी माता जी श्रीमती सीता एक ग्रहणी है और उनकी बड़ी बहन निधि सर्विस में है स्वदेशी गोवंश की पुर्नस्थापना के कार्य में सम्पूर्ण परिवार का हृदय से सहयोग है।

पिछले 3 वर्षों में दो स्वदेशी गायों से काम प्रारंभ किया और आज उनके पास स्वदेशी 28 गौ वंश है। इनके माध्यम से स्वदेशी गोवंश की नस्लो,विशेषकर हरियाणावी, राठी, थारपारकर, साहीवाल, गिरि के सुधार के लिए प्रयास रत हैं ।शुरूआत दूध की बिक्री से की किन्तु अब उनकी पहचान स्वदेशी गाय का शुद्ध घी सुलभ करवाने वाले के रूप में बन चुकी है।

Tikamgarh News: टीकमगढ़ में गौशाला में सैकड़ों गायों की हुई मौत, मृत गायों को जंगलों में फेंका गया

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टीकमगढ़ जिले के जैन अतिशय क्षेत्र पपोरा जी में संचालित गौशाला में सैकड़ों गायों की हुई मौत, गौशाला प्रबंधन द्वारा मृत गायों को छिपाने के लिए गौशाला से करीब 2 किमी दूर जंगल में शव फिकवा दिए.

Tikamgarh News: मध्य प्रदेश के टीकमगढ़ जिले के जैन अतिशय क्षेत्र पपोरा जी में संचालित गौशाला में सैकडों गायों की हुई मौत, गौशाला प्रबंधन द्वारा मृत गायों को छिपाने के लिए गौशाला से करीब 2 किमी दूर स्थित रमन्ना के जंगल में मृत गायों के शव फिंकवा दिये गये हैं. जहां अब इन मृत गायों को जंगली जानवर व कुत्ते नोच-नौचकर खा रहे हैं, वही पूरे जंगल में जगह-जगह समूहों में गायों के मृत शरीर व कंकाल ही कंकाल पड़ें नजर आ रहे हैं, जिससे साबित होता है कि इन्हें एक साथ लाकर यहां फेंका गया है. वहीं स्थानीय लोगों व जंगल में मवेशी चराने वाले लोगों की माने तो गौशाला में गायों की मौतों का यह सिलसिला लंबे समय से चला आ रहा है, लेकिन पिछले दो तीन माह में करीब 400 से अधिक गायों की मौत ठंड व भूख से हुई है. वही अब जिला प्रशासन इस मामले में जांच कर कार्रवाई की बात कर रहा है.

पपौरा जी में ठंड और भूख से गई गायों की जान
अमानवीयता की सारी हदें पार करने की ये तस्वीरे मध्य प्रदेश के टीकमगढ़ जिले से निकल कर आई है जहाँ जैन सम्प्रदाय के प्रसिद्ध तीर्थ स्थल पपौरा जी में दयोदय गौशाला के नाम से संचालित गौ शाला में ठंड और भूख से हुई गायों की मौत छिपाने मृत गायों के क्रूरता पूर्ण तरीके से कान काटकर जंगलों में फेंक दिया गया. गायों के कान पहचान छिपाने की नियत से काटे गए, ताकि गायों के कान में गौ शाला में लगाये गए टैग से इसकी पुष्टि ना हो सके, क्रूरता की सारी हदें पार कर गायों के सैकड़ों की संख्या में मृत शरीर रमन्ना के जंगलों में फेंके गए है जो वहां अब सड़ रहे है और जंगली जानवरों के साथ-साथ कुत्ते उन्हें नौच-नौच कर खा रहे हैं.

प्रत्यक्ष दर्शियों और गांव के लोगों की मानें तो गौ शाला में गायों की मौतों का यह सिलसिला लंबे अरसे से चला आ रहा है. गायों की मौत होने पर इसी प्रकार से गौशाला के संचालक मृत गायों के शवों को जंगलों में फिंकवाते आये है. पर इस बार इतनी बड़ी तादाद में गायों की मौत ने इनकी पोल खोल कर रख दी है. इस पूरे घटनाक्रम का सबसे दुःखद पहलू यह है कि अहिंसा परमो धर्मा का पाठ पढ़ाने वाले जैन धर्मावलंबियों द्वारा सुप्रसिद्ध जैन तीर्थ स्थल पपौराजी में वर्ष 2000 से दयोदय गौशाला के नाम से गौशाला संचालित की जारही है. वही अगर हम बजट और पैसों की बात करे तो इस गौशाला के संचालन में केंद्र व राज्य सरकार द्वारा लाखों रूपया का अनुदान सहायता के रूप में तथा लाखों रूपये निजी तौर पर भी संचालकों द्वारा लोगो से जनसहयोग से एकत्रित किया जाता है.

गायों की नहीं की जा रही है देखभाल
गौशाला का यह हाल है कि गौ माता को विशेष दर्जा देने वाली भाजपा की ना केवल केंद्र बल्कि राज्य में सरकार है फ़िर भी प्रदेश में गौ माता और गौशालाओ के नाम पर संस्थाएं अनुदान राशियां तो ले रही है. पर गायों की कितनी देखभाल और सेवा कर रही है उसका अंदाजा गौशाला में पल रही गायों के कमजोर शरीर व खाने में सूखा भूसा को देखकर एवं टीकमगढ़ जिले में हुई एक ही गौशाला में पिछले तीन चार माह में इतनी बडी संख्या में गायों की मौतों से ही जाहिर हो जाता है. टीकमगढ़ जिला प्रशासन आज भी इन गायों की मौतों को छिपाने में इन क्रूर गौ शाला संचालकों का साथ देने में लगा है.

जबकि इस मामले में उप संचालक पशुपालन विभाग का कहना है कि गौशालाओं में मृत गायों को इस तरह खुले में फेंकना कतई उचित नही है, नियमानुसार मृत गायों के शवों को जमीन में गड्ढा खोदकर समाधि खाद आदि डालकर दफनाना चाहिये.

 वहीं इस मामले में एसडीएम का कहना है कि दयोदय गौशाला पपौरा में बडी संख्या में हुई गायों की मौतों के मामले में जांच के लिए टीमें गठित की गई है जिनकी जांच रिपोर्ट आते ही दोषियों के खिलाफ कडी कार्यवाही की जायेगी

क्रिकेट खेलने के दौरान दिल का दौरा पड़ने से मौत का खतरा बढ़ गया

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ठाणे रायगढ़ – कोरोना प्रसार में गिरावट के कारण नवी मुंबई और रायगढ़ में क्रिकेट कवरेज तेज हो गया है। स्वास्थ्य क्षेत्र के एक आंकड़े के मुताबिक, महाराष्ट्र में 2020-21 में 30 से 40 युवाओं की क्रिकेट के मैदान पर मौत हो चुकी है, इसलिए युवाओं को क्रिकेट खेलते समय सावधान रहना जरूरी है। चिकित्सा पेशे का मत है कि क्रिकेट या कोई अन्य प्रतिस्पर्धी खेल खेलते समय मेडिकल कोच या पर्यवेक्षक होना आवश्यक है।

इसके बारे में अधिककामोठे स्थित क्रिटिकेयर लाइफलाइन अस्पताल के हृदय रोग विशेषज्ञ डॉ. अविनाश गुठे ने कहा, ”हम सभी कोरोना महामारी से उबर रहे हैं. पिछले दो साल से हम घर पर ही फंसे हुए हैं और युवाओं समेत कई लोगों को कोरोना हो गया है. पालघर के पास के शहरों में क्रिकेट खेलने वाले लोग हैं. 18 से अधिक वर्षों से सीधे इसमें शामिल हैं. खेलते समय निर्जलीकरण के कारण चक्कर आना, गिरने के कारण चोट लगना और उच्च रक्तचाप के कारण चक्कर आना मैदान पर आम हैं, ऐसे में तत्काल उपचार आवश्यक है। कई बार चक्कर आने पर खिलाड़ी को छाया में बैठने या टेंट में आराम करने के लिए कहा जाता है लेकिन ऐसा करना गलत है।

दिल की बीमारी आज की उम्र के युवाओं में बढ़ रही है और इसके पीछे के कारण आज की असंगत जीवनशैली में पाए जाते हैं। शारीरिक और मानसिक तनाव, खाने और सोने के पैटर्न में नाटकीय बदलाववृद्धि का कारण बनता है। बदली हुई जीवनशैली से हृदय रोग का खतरा बढ़ जाता है जब मधुमेह और उच्च रक्तचाप चुपके से शरीर में प्रवेश कर जाते हैं। जब खेल की शुरुआत में प्रतिस्पर्धी माहौल के कारण उच्च रक्तचाप से पीड़ित व्यक्ति की दिल की धड़कन अनियमित, उच्च या निम्न रक्तचाप हो तो चिकित्सकीय सलाह लेना बहुत जरूरी है।” दिन भर काम करते-करते थक चुके शरीर को आराम की जरूरत होती है, यह आराम नींद के जरिए होता है।

नहीं मिल रहा है। इसका मतलब है कि नींद शरीर को स्वस्थ रखने में अहम भूमिका निभाती है; लेकिन कुछ लोगों को हर रात बहुत ज्यादा नींद आती है और कुछ लोगों को कम नींद आती है, जिसका असर उनकी सेहत पर पड़ता है। संयुक्त राज्य अमेरिका में जॉर्जिया में एमोरी विश्वविद्यालय के शोध से पता चला है कि जो युवा रात में सात घंटे से कम सोते हैं, उनके बूढ़े होने की संभावना अधिक होती है। लगातार मानसिक तनाव, खराब वित्तीय गणना, रिश्तों मेंक्रिटिकेयर लाइफलाइन हॉस्पिटल के कार्डियोलॉजिस्ट डॉ. कृष्ण कुमार के मुताबिक, दूरी और सोशल मीडिया के कारण भविष्य में हृदय रोग बढ़ने की संभावना है। अविनाश गुठे ने व्यक्त किया।