— देसी गौ पालन चुनौतीपूर्ण लेकिन सामायिक जरूरत :रमेश बाबा
आगरा:देसी गाय का दूध जनस्वास्थ्य को हमेशा से उपयोगी माना गया है और आज तो दबाओं के बढते प्रचलन दौर में इसकी प्रासंगिकता और बढ गयी है। यह मानना है उन अनुभवियों का जो वर्षों से ‘गौ संबर्धन और संरक्षण के काम में लगे हुए हैं। अमर होटल वैंकट हाल में आयोजित गौ सेवियों की संगोष्ठी को बरसाना(जनपद- मथुरा)रमेश बाबा ने कहा कि निश्चित रूप से गौ सेवा प्रारंभ में चुनौतीपूर्ण कार्य लगता है किन्तु जब एक बार इससे जुड जाने पर आनंद अनुभव होने लगता है।
प्रदेश की सबसे बडी गौशाला के संचालक के रूप में अपनी विशिष्ठ पहचान रखने वाले रमेश बाबा ने कहा कि बहुत बडे गौवंश परिवार के भरण पोषण में कभी भी उन्हें दिक्कतें नहीं आयीं,हां सामायिक समस्याओं का जरूर उन्हें सामना करना पडता
रहा है।वह मानते हैं कि देसी गाय का दूध मानव काय के लिये अमृत तुल्य और तमाम बीमारियों से मुक्ति दिलवाने वाला है।
प्रख्यात ब्यूरोक्रेट ,आगरा के पूर्व कमिश्नर राजीव गुप्ता ने लखनऊ से बर्चुअल भागीदारी करते हुए अपने संबोधन में गौ संबधन के कार्य में आने वाली चुनौतियों स्वीकारते हुए कहा कि अगर ध्रढता से प्रयास हो तो कामयाबी जरूर मिलती है।प्रदेश में मौजूदा गौ शलाओं के संचालन में अनवरत सुधार की जरूरत के साथ ही जहां भी अनुकूल स्थितियां हों नयी गौ शालाओं को शुरूआत करने पर बल दिया।
राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ -बृज प्रांत के गौ सेवा प्रकल्प के प्रमुख श्री रमाकांत ने कहा कि गौ वंश का संरक्षण हमारी संस्कृति का अभिन्न भाग है, गौ ग्रास निकालने का प्रचलन अब भी समाज में प्रचलित है।लेकिन बदलते हालातों के अनुकूल समझना होगा कि गऊ ग्रास के नाम पर ‘केवल एक छोटी रोटी ‘ निकालने से काम चलने वाला नहीं है।
उन्होंने समाज ,संस्कृति के अनुकूल और हित में गौ सेवा के लिये अधिक योगदान अपेक्षित किया।उन्होंने कहा कि उनके द्वारा लागों को गौ संरक्षण संबर्धन प्रयासों से जोडने का प्रयास किया जा रहा है। देसी गाय के दूध और जैविक खादों के प्रचलन को बढवाने के लिये वैज्ञानिक दृष्टिकोण आधारित जानकारियों को प्रचारित किया जा रहा है। संबोधनों में सबसे जानकारियां वैज्ञानिक डा डी के सडाना सचिव आई एल एस आई (पूर्व प्रमुख -राष्ट्रीय पशु अनुवाशिक संसाधन ब्यूरो) द्वारा दी गयी। उन्होंने कहा कि केवल गाय का दूध होना ही पर्याप्त नहीं है, देसी गाय के दूध की गुणवत्ता और इसमें निहित औषधिय गुणों को समझना होगा। उन्हों ने कहा कि देसी नस्लों में भी स्थानीय नस्लों का खास महत्व उस स्थान विशेष के लिये होता है, इस संबध में वैज्ञानिक द,ष्टिकोण को समझ कर अपनाना होगा। आगरा के परिप्रेक्ष्य में देसी नस्लों का खास तौर से चर्चा की।
पर्यावरण विद् और गौवंश संबर्धन को प्रवृत्त रहने वाले श्री रमन बल्ला ने कहा कि देसी गायों के दूध के प्रति समझ बढने के साथ ही समाज को इन गायों का पालन करने वालों के बारे में भी सोचना होगा। उन्हों ने कहा कि देसी गायों का पालन न केवल श्रमसाध्य बल्कि लागत की दृष्टि से भी अधिक व्यय साध्य होता है।फलस्वरूप देसी गायों के दूध पर जर्सी या अन्य क्रास ब्रीडिंग नस्ल के पुशुओं से उत्पादित दूध पर अधिक लागत आती है।लेकिन यह लागत या मूल्य अधिकता भी दबाओं के इस्तेमाल में कमी तथा रोगों से निजात मिलने का अहसास होने पर नहीं अखरती है।
संगोष्ठी और बर्चुआल वीडियों कांफ्रेसिग के मुख्य आयोजक श्री भरत गर्ग ने कहा कि देसी गौ पालन का उनका अनुभव आशा के अनुरूप रहा है। उन्हों ने कहा कि देसी गायों के पालने के लिये अनुकूल स्थितियां है किन्तु इसके लिये केवल निवेशक या प्रबंधक के रूप में ही नहीं ‘गौ पालक’ के रूप में प्रत्यक्ष भूमिका भी अपेक्षित होती है।उन्होंने पूर्व कमिश्नर राजीव गुप्ता , रमेश बाबा , संघ परिवार के प्रतिनिधियों सहित सभी सहभागियों का आभार व्यक्त किया।
गौपालन प्रबंधन दक्ष ‘भरत शर्मा’
गौपालन क्षेत्र में सक्रिय श्री भरत शर्मा शैक्षणिक दृष्टि से एम बी ए है, और बैंक मैनेजर की सर्विस छोड़कर इसमें प्रवृत्त हुए हैं।समाज के स्वास्थ्य, अर्थतन्त्र और संस्कृति को पुर्नस्थापित करना उनका स्व संकल्पित जीवन लक्ष्य है।श्री भारत शर्मा के परिवार में कोई उद्यम का कार्य नहीं किया। उनके पिताजी श्री श्याम शर्मा आगरा विश्वविद्यालय में कार्यरत थे, और उनकी माता जी श्रीमती सीता एक ग्रहणी है और उनकी बड़ी बहन निधि सर्विस में है स्वदेशी गोवंश की पुर्नस्थापना के कार्य में सम्पूर्ण परिवार का हृदय से सहयोग है।
पिछले 3 वर्षों में दो स्वदेशी गायों से काम प्रारंभ किया और आज उनके पास स्वदेशी 28 गौ वंश है। इनके माध्यम से स्वदेशी गोवंश की नस्लो,विशेषकर हरियाणावी, राठी, थारपारकर, साहीवाल, गिरि के सुधार के लिए प्रयास रत हैं ।शुरूआत दूध की बिक्री से की किन्तु अब उनकी पहचान स्वदेशी गाय का शुद्ध घी सुलभ करवाने वाले के रूप में बन चुकी है।