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CM YOGI – मुख्यमंत्री सामूहिक विवाह योजना हेतु 600 करोड़ रुपये की व्यवस्था प्रस्तावित – वित्तीय वर्ष 2021-2022 में इस 12 योजना के अन्तर्गत 31 लाख महिलाओं को लाभान्वित किया गया

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Lucknow UP – वृद्धावस्था पेंशन योजनान्तर्गत प्रत्येक लाभार्थी की पेंशन की राशि को बढ़ाकर 1000 रुपये प्रतिमाह की दर से लगभग 56 लाख वृद्धजन को पेंशन प्रदान की जा रही है। उपरोक्त योजना हेतु 7053 करोड़ 56 लाख रुपये की व्यवस्था प्रस्तावित है। निराश्रित महिला पेंशन योजनान्तर्गत पात्र लाभार्थियों को देय पेंशन की धनराशि 500 रुपये प्रतिमाह से बढ़ाकर 1000 रुपये प्रतिमाह कर दिया गया है। वित्तीय वर्ष 2021-2022 में इस 12 योजना के अन्तर्गत 31 लाख महिलाओं को लाभान्वित किया गया। वित्तीय वर्ष 2022-2023 के बजट में इस योजना हेतु 4032 करोड़ रुपये की व्यवस्था प्रस्तावित है।

मुख्यमंत्री सामूहिक विवाह योजना हेतु 600 करोड़ रुपये की व्यवस्था प्रस्तावित है। दिव्यांग भरण-पोषण अनुदान की धनराशि जो वर्ष 2017 के पूर्व मात्र 300 रुपये प्रतिमाह प्रति व्यक्ति थी, उसको बढ़ाकर 1000 रुपये प्रतिमाह कर दिया गया है। प्रदेश के 11 लाख से अधिक दिव्यांगजन इससे लाभान्वित हो रहे हैं। वित्तीय वर्ष 2022-2023 के बजट में योजना हेतु 1000 करोड़ रुपये की व्यवस्था प्रस्तावित है। कुष्ठावस्था दिव्यांग भरण-पोषण योजना के अन्तर्गत 3000 रुपये प्रति माह की दर से 34 करोड़ 50 लाख रुपये की व्यवस्था प्रस्तावित है। बुजुर्ग पुजारियों, सन्तों एवं पुरोहितों के समग्र कल्याण की योजनाओं के क्रियान्वयन हेतु बोर्ड के गठन हेतु 1 करोड़ रुपये की व्यवस्था प्रस्तावित है।

पंजीकृत निर्माण श्रमिकों के बच्चों एवं अनाथ बच्चों को कक्षा 6 से 12 तक गुणवत्तापूर्ण निःशुल्क आवासीय शिक्षा प्रदान किये जाने हेतु प्रदेश के 18 मंडलों में प्रत्येक मंडल में 1-1 अटल आवासीय विद्यालयों की स्थापना कराई जा रही है। इस हेतु 300 करोड़ रुपये की व्यवस्था प्रस्तावित है।

कामगारों एवं श्रमिकों को सामाजिक एवं आर्थिक सुरक्षा तथा उनके सर्वांगीण विकास के उद्देश्य को सुनियोजित ढंग से प्राप्त किये जाने हेतु “उत्तर प्रदेश कामगार और श्रमिक ( सेवायोजन और रोजगार ) आयोग ” का गठन किया गया है। शहरी स्ट्रीट वेण्डर को आत्मनिर्भर बनाने हेतु प्रधानमंत्री स्ट्रीट वेंडर्स आत्मनिर्भर निधि योजना के अन्तर्गत 8 लाख 45 हजार से अधिक स्ट्रीट वेंडर्स को ऋण वितरित कर उत्तर प्रदेश देश में प्रथम स्थान पर है। प्रदेश के 10 शहरों में 19 मॉडल स्ट्रीट वेंडिंग जोन्स का विकास किया जा रहा है। शहरी बेघरों के लिये आश्रय योजना के अन्तर्गत 130 शेल्टर होम क्रियाशील किये जा चुके हैं।

आजमगढ़ : मुठभेड़ में शातिर गौ तस्कर आमिर, जावेद, अब्दुल्लाह और मशरुफ गिरफ्तार, एक घायल

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UP -आजमगढ़ में सरायमीर थाना पुलिस की गौ तस्करी करने वाले तस्करों से बीती रात मुठभेड़ हो गई। इस मुठभेड़ में एक शातिर तस्कर घायल हुआ। जबकि उसके तीन साथियों को पुलिस ने गिरफ्तार किया है।आजमगढ़ में सरायमीर थाना पुलिस की गौ तस्करी करने वाले तस्करों से बीती रात मुठभेड़ हो गई। इस मुठभेड़ में एक शातिर तस्कर घायल हुआ। जबकि उसके तीन साथियों को पुलिस ने गिरफ्तार किया है। उनके कब्जे से भारी मात्रा में प्रतिबंधित मांस, तमंचा, कारतूस व बाइक बरामद किया। पुलिस ने घायल तस्कर को उपचार के लिए जिला अस्पताल में भर्ती कराया है।

सरायमीर थाना के थानाध्यक्ष रात्रि में क्षेत्र में अपने हमराहियों के साथ क्षेत्र भ्रमण कर रहे थे कि मिली सूचना के आधार पर उन्होंने रामराय का पुरा गांव पहुंचे। इसी दौरान गांव की तरफ से दो बाइक आती हुई दिखाई दी। पुलिस ने जब उनको रुकने का इशारा किया तो बाइक सवारों ने रफ्तार बढ़ते हुए पुलिस टीम पर फायरिंग की। पुलिस का जवाबी फायरिंग में एक आरोपी घायल हो गया, जबकि तीन व्यक्तियों को पुलिस ने घेराबंदी कर गिरफ्तार कर लिया है।

वहीं, एक व्यक्ति अंधरे का लाभ उठाकर भागने में कामयाब रहा। घायल व्यक्ति की पहचान शातिर गौ तस्कर आमिर निवासी शेरवां के रूप में हुई। जबकि उसके तीन साथी जावेद अख्तर, मो.अब्दुल्लाह और मशरुफ अहमद के रूप में हुई। पुलिस ने इनके कब्जे से दो तमंचा, कारतूस, दो बाइक, 140 किलोग्राम प्रतिबंधित मांस आदि सामान बरामद किया। पुलिस अधीक्षक अनुराग आर्य ने बताया कि बीती रात मुठभेड़ में चार गौ तस्करों को दबोचा है। इसमें एक पुलिस की गोली से घायल हुआ है, जिसे अस्पताल में भर्ती कराया गया है।

Modi Govt – २ – के आठ वर्ष आठ फैसले जिसने बदल कर रख दी भारत की तस्वीर ,पाकिस्तान की हेकड़ी खत्म कर लहराया विश्व में परचम

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New Delhi – भाजपा के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन ने 26 मई को सत्ता में आठ साल पूरे कर लिए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का कहना है कि उनका अब तक कार्यकाल देश के संतुलित विकास, सामाजिक न्याय और सामाजिक सुरक्षा के लिए समर्पित रहा है। पिछले हफ्ते भाजपा के राष्ट्रीय पदाधिकारियों को संबोधित करते हुए मोदी ने कहा: “इस महीने, एनडीए सरकार आठ साल पूरे करेगी। ये आठ साल संकल्पों और उपलब्धियों के रहे हैं। ये आठ साल गरीबों की सेवा, सुशासन और कल्याण के लिए प्रतिबद्ध हैं।” पिछले आठ वर्षों में, नरेंद्र मोदी सरकार ने वित्तीय, स्वास्थ्य देखभाल और सामाजिक सुरक्षा के मामले में समाज के विभिन्न वर्गों को सीधे लाभ पहुंचाने के लिए कई योजनाएं सफलतापूर्वक प्रदान की हैं।

सरकार ने अपने वादों को पूरा करने के लिए कई अहम फैसले लिए हैं जिन्होंने विपक्ष की आलोचना के साथ-साथ लोगों की तारीफ भी हासिल की है। चाहे वह स्वच्छ भारत मिशन हो जब खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी झाड़ू लेकर मैदान में कूद गए थे या फिर बुलेट ट्रेन प्रोजेक्ट की शुरुआत करना, रेलवे बजट को आम बजट के साथ जोड़ना और उज्ज्वला व जनधन योजना हो, इनके व्यापक प्रभाव ने लोगों के साथ-साथ दुनिया के नेताओं का ध्यान अपनी ओर खींचा। आज हम आपको मोदी सरकार के 8 साल के 8 बड़े फैसलों के बारे में बता रहे हैं।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार को आठ साल पूरे हो चुके हैं। इस दौरान सरकार ने कई ऐसे फैसले लिए हैं, जिनका जनता ने खुले दिल से स्वागत किया। कुछ फैसले ऐसे भी रहे, जिनके खिलाफ जमकर विरोध प्रदर्शन भी हुए। हम आपको सरकार के उन आठ फैसलों के बारे में बता रहे हैं, जिन्होंने बीते आठ वर्षों में आम लोगों की जिंदगी में सबसे ज्यादा असर डाला है।

    1. नोटबंदी
    क्यों और कब लिया: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 8 नवंबर 2016 की रात 8 बजे 500 और 1000 रुपये के नोटों को बंद करने का एलान कर दिया। प्रधानमंत्री के इस फैसले की चर्चा पूरी दुनिया में हुई।

आम आदमी पर असर: नोटबंदी के एलान के साथ ही एक झटके में 85 फीसदी करेंसी कागज में बदल गई। बैंकों में 500 और 1000 रुपये के पुराने नोट जमा हो सकते थे। सरकार ने 500 और 2000 के नए नोट जारी किए। इन्हें हासिल करने के लिए पूरा देश लाइन में लग गया। नोटबंदी के 21 महीने बाद रिजर्व बैंक की रिपोर्ट आई कि नोटबंदी के दौरान रिजर्व बैंक में 500 और 1000 के जो नोट जमा हुए, उनकी कुल कीमत 15.31 लाख करोड़ रुपये थी। नोटबंदी के वक्त देश में कुल 15.41 लाख करोड़ मूल्य के 500 और हजार के नोट चल रहे थे। यानी, रिजर्व बैंक के पास 99.3% पैसा वापस आ गया।

2. सर्जिकल स्ट्राइक-एयरस्ट्राइक
क्यों और कब लिया: 18 सितंबर 2016 को जम्मू कश्मीर के उड़ी सेक्टर में आतंकवादियों ने हमला किया। इसमें 19 जवान शहीद हो गए थे। 14 फरवरी 2019 को पुलवामा आतंकी हमले में सीआरपीएफ के 40 जवानों की जान गई। दोनों हमलों के बाद भारत ने दुश्मन की सीमा के पार जाकर उसे सबक सिखाया।

उड़ी आतंकी हमले के 10 दिन बाद 28 सितंबर 2016 को भारतीय सेना ने पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में घुसकर आतंकी ठिकानों को तबाह किया। पुलवामा हमले के 12 दिन बाद 26 फरवरी 2019 को, भारतीय वायुसेना के मिराज और सुखोई विमानों ने पाकिस्तान की सीमा में घुसकर एयरस्ट्राइक को अंजाम दिया।

भारतीयों पर असर: पहली बार ऐसा हुआ जब युद्ध की स्थिति नहीं होते हुए भी आतंकी घटनाओं का जवाब देने के लिए भारत ने अंतरराष्ट्रीय सीमा के पार जाकर आतंकियों को सबक सिखाया। सर्जिकल स्ट्राइक से भारत के आतंकवाद से लड़ने को लेकर दुनिया का नजरिया बदला। वहीं, एयरस्ट्राइक से एक बार फिर आतंकवाद के खिलाफ मोदी सरकार की छवि मजबूत हुई। 2019 के लोकसभा चुनाव में भी मोदी सरकार को बहुत फायदा हुआ और वह फिर से सत्ता में लौटी।

3. जीएसटी लागू
क्यों और कब लिया: केंद्र सरकार ने एक जुलाई 2017 को गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स को लागू कर दिया। दरअसल, अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने 2000 में पूरे देश में एक टैक्स लागू करने का फैसला लिया था। इसके बाद मार्च 2011 में मनमोहन सिंह सरकार ने जीएसटी लागू करने के लिए जरूरी संविधान संशोधन विधेयक लोकसभा में पेश किया, पर राज्यों के विरोध की वजह से वह अटक गया।

2014 में नरेंद्र मोदी सरकार कई बदलावों के साथ फिर से संविधान संशोधन विधेयक लेकर आई। अगस्त 2016 में विधेयक संसद से पास हुआ। 12 अप्रैल 2017 को जीएसटी से जुड़े चार विधेयकों को संसद से पारित होने के बाद राष्ट्रपति की सहमति मिली। यह 4 कानून हैं- सेंट्रल GST बिल, इंटिग्रेटेड GST बिल, GST (राज्यों को कम्पेंसेशन) बिल और यूनियन टेरेटरी GST बिल। तब जाकर 1 जुलाई 2017 की आधी रात से नई व्यवस्था पूरे देश में लागू हुई।

भारतीयों पर असर: जहां पहले हर राज्य अपने अलग-अलग टैक्स वसूलता था। अब सिर्फ GST वसूला जाता है। आधा टैक्स केंद्र सरकार को जाता है और आधा राज्यों को। वसूली केंद्र सरकार करती है। बाद में राज्यों को पैसा लौटाती है। हालांकि, राज्यों की अतिरिक्त राजस्व की मांग को पूरा करने के लिए पेट्रोलियम पदार्थ और आबकारी अब भी जीएसटी के दायरे से बाहर हैं।

4. तीन तलाक
क्यों और कब लिया: तीन तलाक को लेकर भारत में बहस काफी पुरानी रही है। इसकी शुरुआत 1985 के सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले से होती है। तीन तलाक की बहस 2016 में फिर गर्म हो गई। तब सायरा बानो नाम की महिला ने तीन तलाक को लेकर सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल की थी। सायरा के पति ने 15 साल की शादी के बाद तीन तलाक बोलकर रिश्ते तोड़े थे। तब सुप्रीम कोर्ट ने तीन तलाक के खिलाफ फैसला सुनाया और सरकार को इस मुद्दे पर कानून बनाने का निर्देश दिया।

28 दिसंबर 2017 को मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) विधेयक 2017 लोकसभा में पेश किया गया। 2018 में सरकार ने अध्यादेश के जरिए इसे लागू कर दिया। 2019 में दूसरी बार अध्यादेश लाया गया। इसी साल सरकार ने एक बार फिर से लोकसभा और राज्यसभा में बिल को पेश किया। इसके बाद राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने नया कानून लागू करने का नोटिफिकेशन जारी कर दिया।

भारतीयों पर असर: मुस्लिम महिलाओं को तीन तलाक से छुटकारा दिलाने के इस फैसले पर बड़ी संख्या में लोगों का समर्थन मिला तो कुछ लोगों ने इसका विरोध भी किया। हालांकि, इसके कुछ सकारात्मक असर देखने को मिले। कानून के मुताबिक, कोई मुस्लिम पुरुष अपनी पत्नी को तीन बार तलाक कहकर संबंध खत्म करता है तो उसे तीन साल तक की सजा भुगतनी पड़ सकती है। इसकी वजह से तीन तलाक के केस घटकर 5%-10% रह गए हैं। हालांकि, इस कानून में एक कमी भी रह गई, जिसके तहत इन मामलों में शिकायतकर्ता खुद विवाहित महिला को होना होगा। कई मामले ऐसे सामने आए हैं, जहां महिलाएं पति या ससुराल के दबाव में शिकायत नहीं कर पा रहीं।

5. फैसला: जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 रद्द
क्यों और कब लिया: तीन तलाक की तरह ही अनुच्छेद 370 का मसला भी भारत की आजादी के साथ ही शुरू हुआ था। 1948 में जम्मू-कश्मीर के राजा हरि सिंह ने भारत में विलय से पहले विशेषाधिकार की शर्त रखी थी। जम्मू-कश्मीर भारत का हिस्सा होने के बाद भी अलग ही रहा। राज्य का अपना अलग संविधान बना। वहां भारत के कुछ ही कानून लागू होते थे। 2019 में चुनाव जीतने के बाद मोदी सरकार ने 5 अगस्त 2019 को अनुच्छेद 370 खत्म कर दिया।

भारतीयों पर क्या असर: अब जम्मू-कश्मीर में भी केंद्र के सभी कानून लागू होते हैं। मनरेगा, शिक्षा के अधिकार को भी लागू किया गया। हालांकि, इस कानून के लागू होने के कुछ शुरुआती नकारात्मक असर भी देखने को मिले। कुछ राजनीतिक पार्टियों ने इसका बहिष्कार किया। वहीं, लंबे समय तक राज्य में इंटरनेट भी बैन रखा गया।

6. कौन सा फैसला: सीएए लागू
क्यों और कब लिया: पड़ोसी देशों में प्रताड़ित हिंदू, सिख, बौद्ध और जैन अल्पसंख्यकों का मसला काफी लंबे समय से भारत में उठता रहा है। पहले इन देशों में प्रताड़ना का शिकार हुए अल्पसंख्यक शरणार्थियों को भारत में नागरिकता लेने के लिए 11 साल बिताने पड़ते थे। इससे पहले उन्हें देश में बुनियादी सुविधाएं तक नहीं मिलती थीं। इसे आसान बनाने के लिए जनवरी 2019 में इससे जुड़ा बिल लोकसभा से पारित कर दिया गया। राज्यसभा में पास होने से पहले ही 16वीं लोकसभा का कार्यकाल समाप्त हो गया। लोकसभा भंग होने के साथ ही यह बिल भी रद्द हो गया। 17वीं लोकसभा के गठन के बाद मोदी सरकार ने नए सिरे से इस बिल को पेश किया। 10 दिसंबर 2019 को ये बिल लोकसभा और 11 दिसंबर 2019 को राज्यसभा में पास हो गया। 10 जनवरी 2020 को इसे लागू कर दिया गया।

असर: कई साल तक शरणार्थी के तौर पर भारत में रहने वाले लोगों के लिए भारतीय नागरिकता पाने की राह आसान हुई। हालांकि, सरकार नियम बनाने में नाकाम रही है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह का कहना है कि वे कोरोना महामारी के खत्म होने के बाद इस कानून को तत्काल प्रभाव से नियम सहित लागू कराएंगे।
सीएए कानून के संसद में पारित होने से लेकर अब तक सरकार को सदन में विपक्ष ने तो सड़कों पर मुस्लिम समुदाय का विरोध झेलना पड़ा। विरोध करने वालों का कहना है कि यह संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है जो समानता के अधिकार की बात करता है।

7. डिजिटल इकॉनमी
क्यों और कब हुआ फैसला: 11 अप्रैल 2016 को यूनिफाइड पेमेंट इंटरफेस (यूपीआई) सेवा लॉन्च हुई। नोटबंदी के फैसले का इसे सबसे ज्यादा फायदा हुआ। देश में डिजिटल इकोनॉमी में तेजी से इजाफा शुरू हुआ।

भारतीयों पर क्या असर?: नोटबंदी के बाद सरकार का पूरा जोर डिजिटल करेंसी बढ़ाने और डिजिटल इकोनॉमी बनाने पर शिफ्ट हो गया। मिनिमम कैश का कॉन्सेप्ट आया। डिजिटल ट्रांजेक्शन में इजाफा हुआ। 2016-17 में 1013 करोड़ रुपए का डिजिटल ट्रांजेक्शन हुआ था। 2017-18 में ये बढ़कर 2,070.39 करोड़ और 2018-19 में 3,133.58 करोड़ रुपए का डिजिटल ट्रांजेक्शन हुआ। 2019-20 में यह आंकड़ा बढ़कर 5,554 करोड़ रुपये तक पहुंच गया। डिजिटल ट्रांजेक्शन में यह बढ़ोतरी कोरोनाकाल में भी जारी रही और 2021-22 में डिजिटल तरह से किए जाने वाले लेनदेन 33 फीसदी के इजाफे के साथ 7,422 करोड़ के आंकड़े को छू गए।

8. फैसला: राम मंदिर निर्माण
क्यों और कब हुआ फैसला: भारत की आजादी से पहले से चले आ रहे राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद का अंत 9 नवंबर 2019 को हुआ, जब सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या की विवादित जमीन पर रामलला विराजमान का हक माना। उधर मुस्लिम पक्ष को अयोध्या में ही 5 एकड़ जमीन देने का आदेश दिया गया।

राष्ट्रीय गौ रक्षक संघ महिला प्रकोष्ठ की जिला अध्यक्ष ने जहर खाकर दी जान

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शाहजहांपुर। राष्ट्रीय गौ रक्षक संघ महिला प्रकोष्ठ की जिला अध्यक्ष ममता तिवारी (40) ने मंगलवार रात जहर खा लिया। उन्हें मेडिकल कॉलेज में भर्ती कराया गया। जहां देर रात उपचार के दौरान उनकी मौत हो गई। शव को मोर्चरी में रखवा दिया गया। बुधवार सुबह पुलिस ने पंचनामा भरकर शव को पोस्टमार्टम के लिए भेजा। इस मामले में तिलहर थाना क्षेत्र की सिंह कालोनी निवासी रीना सक्सेना ने चौक कोतवाली में तहरीर दी। जिला अस्पताल के सामने नटराज मेडिकल स्टोर के स्वामी रामजी मिश्रा व आशा कार्यकत्री अनीता के खिलाफ धारा 306 के तहत रिपोर्ट दर्ज कराई। उन्होंने बताया कि मंगलवार रात करीब आठ बजे ममता तिवारी का रामजी मिश्रा व आशा कार्यकत्री से एक्सपायरी दवाई को लेकर विवाद हो गया था।

इसी बात को लेकर दोनों ने ममता की बेइज्जती कर पिटाई कर दी थी। इससे ममता तिवारी के स्वाभिमान को ठेस पहुंची। इसके बाद उन्होंने जहर खाकर जान दे दी। उन्होंने बताया कि मरने से पूर्व ममता तिवारी ने एक वीडियो में दोनों के खिलाफ नामजद बयान भी दिया है। मृतका आरसी मिशन के मोहल्ला रेती की रहने वाली थी। कटिया टोला में रह रही थीं। इंस्पेक्टर बृजेश कुमार ने बताया कि रीना सक्सेना की तहरीर पर रिपोर्ट दर्ज कर ली गई है। इस मामले से जुड़े हर पहलुओं पर जांच की जाएगी।
पोस्टमार्टम हाउस पर राष्ट्रीय गौ रक्षक संघ की सदस्य ने बताया कि ममता तिवारी जहर खाने के बाद फोन कर बुलाया। कहा हम जा रहे हैं। जल्दी आ जाओ। पहुंचे तो वह जिला अस्पताल के सामने पीपल के पेड़ के नीचे बैठी हुई थीं। उन्हें उल्टी हो रही थी। एक हाथ में पानी की बोतल थी। बोली जल्दी अंदर ले चलो। परिवार के लोगों ने बताया कि ममता तिवारी भाजपा सदर मंडल में सदस्य भी थीं। उनके दो बच्चे हर्ष तिवारी तथा उत्कर्ष तिवारी हैं। जिनका रो-रोकर हाल बेहाल हो गया। वहीं, संघ के सदस्यों ने परिवार के लोगों को दिलासा दिया। ममता तिवारी का मायका जिला हरदोई थाना पचदेवरा में हैं। ममता के शव को देख उनकी बहनें रोते-रोते बेहोश हो गईं।

Yasin Malik: टेरर फंडिंग मामले में यासीन मलिक को उम्रकैद की सजा, दिल्ली-एनसीआर में आतंकी हमले का अलर्ट

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अदालत ने टेरर फंडिंग मामले में दोषी ठहराए गए कश्मीरी अलगाववादी नेता यासीन मलिक को राहत प्रदान करते हुए दोहरी उम्रकैद की सजा सुनाई है। अदालत ने राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) द्वारा मलिक को मृत्युदंड देने की मांग को खारिज कर दिया। पटियाला हाउस स्थित विशेष न्यायाधीश प्रवीण सिंह ने खचाखच भरी अदालत में शाम 6 बजे के बाद सुनाए अपने फैसले में यासीन को दो धाराओं में उम्रकैद, एक में 10 वर्ष व एक में पांच वर्ष कैद की सजा सुनाते हुए उस पर जुर्माना भी लगाया है। अदालत के फैसले के अनुसार सभी सजाए एक साथ चलेगी। अदालत ने अपने फैसले में कहा कि दोषी ने स्वयं अपना अपराध कबूल किया है और उसे मृत्युदंड देने का कोई आधार नहीं है।

एनआईए ने मांगा मृत्युदंड - राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने कश्मीरी अलगाववादी नेता यासीन मलिक को मौत की सजा देने की मांग की। एजेंसी के वकील ने कहा कि दोषी कश्मीर में आतंकी घटनाओं को अंजाम देने में लिप्त रहा है और उसने आतंकियों को फंडिंग करने में अहम भूमिका निभाई। इन लोगों को उद्देश्य कश्मीर को भारत से अलग करने की मंशा थी। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान से पैसा आता था और यह पैसा आंतकी गतिविधियों में लिप्त व उनसे गठजोड़ करने वालों पर खर्च किया जाता था ताकि कश्मीर का माहौल खराब हो सके। यह देशद्रोह का मामला है ऐसे में उसे मृत्युदंड की सजा देना जरूरी है ताकि अन्य को सबक मिल सके। यासीन मलिक को विशेष अदालत ने पिछले हफ्ते आतंकी फंडिंग मामले में दोषी ठहराया गया था। वहीं, मलिक की सहायता के लिए अदालत द्वारा नियुक्त न्याय मित्र ने आजीवन कारावास की मांग की। उन्होंने कहा मलिक ने स्वयं अपना अपराध कबूल किया है और उसके साथ सहानुभूति बरती जाए। मलिक ने कहा कोई साक्ष्य नहीं दूसरी तरफ अपराध कबूल करने वाले मलिक का रवैया आज बदला हुआ था। मलिक ने अदालत से कहा कि अगर खुफिया एजेंसियां आतंकी गतिविधियों में उसके शामिल होने का सबूत देती हैं तो वह राजनीति से हट जाएंगे। मलिक ने यह भी कहा कि उन्होंने सात प्रधानमंत्रियों के साथ काम किया है और न्यायाधीश से कहा कि वह सजा की मात्रा तय करने के लिए इसे अदालत पर छोड़ रहे हैं। मलिक ने कहा उसके खिलाफ कोई भी साक्ष्य नहीं है, यदि वह आतंकी होता तो देश के प्रधानमंत्री उनसे बैठक क्यों करते। उसने कभी हिंसा का सहारा नहीं लिया। उसका एक लंबा राजनीतिक करियर है।

इससे पहले 19 मई को विशेष न्यायाधीश प्रवीण सिंह ने मलिक को दोषी ठहराया था और एनआईए अधिकारियों को उनकी वित्तीय स्थिति का आकलन करने का निर्देश दिया था ताकि लगाए जाने वाले जुर्माने की राशि का निर्धारण किया जा सके। अदालत ने मलिक को सुनवाई की अगली तारीख तक अपनी वित्तीय संपत्ति के संबंध में एक हलफनामा पेश करने का भी निर्देश दिया था।

मलिक ने अदालत को बताया था कि वह अपने खिलाफ लगाए गए आरोपों का मुकाबला नहीं कर रहा है, जिसमें धारा 16 (आतंकवादी अधिनियम), 17 (आतंकवादी अधिनियम के लिए धन जुटाना), 18 (आतंकवादी कृत्य करने की साजिश) और 20 (आतंकवादी गिरोह का सदस्य होने के नाते) शामिल हैं। या संगठन) यूएपीए की धारा 120-बी (आपराधिक साजिश) और आईपीसी की धारा 124-ए (देशद्रोह) है।
अदालत ने इससे पहले फारूक अहमद डार उर्फ बिट्टा कराटे, शब्बीर शाह, मसर्रत आलम, मोहम्मद यूसुफ शाह, आफताब अहमद शाह, अल्ताफ अहमद शाह, नईम खान, मोहम्मद अकबर खांडे, राजा मेहराजुद्दीन कलवाल, बशीर अहमद भट, जहूर अहमद शाह वटाली, शब्बीर अहमद शाह, अब्दुल राशिद शेख और नवल किशोर कपूर सहित कश्मीरी अलगाववादी नेताओं के खिलाफ औपचारिक रूप से आरोप तय किए थे। आरोप पत्र लश्कर-ए-तैयबा (एलईटी) के सरगना हाफिज सईद और हिजबुल मुजाहिदीन के प्रमुख सैयद सलाहुद्दीन के खिलाफ भी दायर किया गया था, जिन्हें मामले में भगोड़ा घोषित किया गया है। मलिक 2019 से दिल्ली की उच्च सुरक्षा वाली तिहाड़ जेल में है।

दरअसल, यासीन मलिक के खिलाफ यूएपीए कानून के तहत 2017 में आतंकवादी कृत्यों में शामिल होने, आतंक के लिए पैसा एकत्र करने, आतंकवादी संगठन का सदस्य होने जैसे गंभीर आरोप थे, जिसे उसने चुनौती नहीं देने की बात कही और इन आरोपों को स्वीकार कर लिया। यह मामला कश्मीर घाटी में आतंकवाद से जुड़े मामले से संबंधित हैं।

वर्ष 2017 में कश्मीर घाटी में आतंकी घटनाओ में बहुत इजाफा देखने को मिला था। घाटी के माहौल को बिगाड़ने के लिए लगातार आतंकी साजिशें रची जा रही थीं और वारदातों को अंजाम दिया जा रहा था। उसी मामले में दिल्ली की विशेष अदालत में अलगाववादी नेता के खिलाफ सुनवाई हुई, जिसमें यासीन ने अपना गुनाह कबूल कर लिया।

कड़ी सुरक्षा -यासीन मलिक की सजा निर्धारण को देखते हुए सुबह ही पटियाला हाउस कोर्ट को छावनी में तब्दल कर दिया गया। अदालत में आने वाले हर व्यक्ति की कड़ी तलाशी ली गई और हर स्थान की तलाशी भी ली गई। खेमचे वालों को बाहर निकाल दिया गया।

कैमरों का जमघट -कश्मीर में आतंकी घटनाओं व मामले की अहमियत को देखते हुए फैसले की कवरेज के लिए मीडियाकर्मियों का जमघट लगा रहा। हर पल की जानकारी के लिए सभी तैयार थे। अदालत ने करीब एक बजे जिरह पूरी होने के बाद 3.30 बजे फैसला सुनाना तय किया। इसके बाद चार बजे फिर 5 बजे तय हुआ, आखिर 5.30 बजे लॉकअप से मलिक को अदालत में लाया गया व अदालत ने अपना फैसला सुनाया।

मलिक के चेहरे पर दिखा खौफ -मलिक को सुबह जब अदालत में लाया गया तो वह सामान्य नजर आया। संभवत: उसे उम्मीद थी कि अपराध कबूल करने पर उसके साथ सहानुभूति बरती जाएगी। एनआईए द्वारा फांसी की सजा मांगने व जोरदार तर्क रखने पर मलिक के चेहरे पर खौफ नजर आने लगा, चेहरे पर घबराहट साफ झलक रही थी। शाम को जब उसे सजा के फैसले के समय पुन: अदालत में लाया गया तो मलिक ने स्वास्थ्य खराब होने का हवाला दिया। उसे अदालत में बैठने के लिए एक कुर्सी दी गई। अदालत द्वारा उम्रकैद की सजा मिलने पर यासीन के चेहरे पर कुछ राहत नजर आई।

फिल्म अभिनेता-निर्माता संजय सिंह की बहन की शादी के सिल्वर जुबली समारोह पर पहुंचे पूर्व केंद्रीय मंत्री उपेंद्र कुशवाहा और पूर्व मंत्री मुकेश सहनी

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बिहार की धरती से जुड़े बॉलीवुड के चर्चित अभिनेता और फिल्म मेकर संजय सिंह की बहन बबिता और बहनोई सुबोध जी को उनकी शादी की 25वीं सालगिरह यानि सिल्वर जुबली पर पटना में पिछले दिनों आयोजित संगीतमय कार्यक्रम में शामिल हो कर जदयू के राष्ट्रीय संसदीय बोर्ड के चेयरमैन सह पूर्व केन्द्रीय मंत्री उपेन्द्र कुशवाहा और बिहार सरकार के पूर्व मंत्री सह विकासशील इंसान पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मुकेश सहनी ने बधाई एवं शुभकामनाएं दी। इस कार्यक्रम में स्पाइस जेट पटना के मैनेजर अमित झा, सुप्रीम कोर्ट के वकील अंशुल, हाई कोर्ट के वकील अरुण कुमार, एक्टर राहुल श्रीवास्तव, कैमरा मैन अमरीश सिंह, सुनील सिंह मौजूद रहे, वहीं, बिहार सरकार के मंत्री नितिन नवीन, सांसद जनार्दन सिंह सिग्रिवाली, विधान पार्षद और भाजपा के संजय मयूख ने अभिनेता व निर्माता संजय सिंह की बहन बबिता को फोन कर उनकी शादी के 25वीं सालगिरह के लिए बधाई दी। इस संगीतमय कार्यक्रम में भोजपुरी कमेडियन अभिनेता राहुल श्रीवास्तव ने मेलोडियस गाने पर उनके लिए शानदार परफॉरमेंस दिया। विदित हो कि अभिनेता संजय सिंह 90 के दशक से ही बॉलीवुड में सक्रिय है और अपनी प्रतिभा के बदौलत अपनी विशिष्ट छवि कायम कर चुके हैं।

प्रस्तुति : काली दास पाण्डेय

घरवापसी और मंदिरों के पुनर्निर्माण को राजकीय दायित्व बतानेवाले शिवाजी का ‘हिंदवी -साम्राज्य’ आज भी राज-काज का आदर्श है

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Edited By – Rajesh Jha

कथ्य

शिवाजी का महत्त्व आज भी इसलिए बहुत अधिक है कि उन्होने बलपूर्वक मुसलमान बनाये गए लोगों को समारोहपूर्वक वैदिक रीति से पुनः हिन्दू बनवाया , मुगलों द्वारा तोड़े गए मंदिरों के पुनर्निमाण को राजकीय दायित्व के रूप में करने की परम्परा शुरू की और भाषा-शुद्धि द्वारा देश की संस्कृति की रक्षा में अमूल्य योगदान दिया। शिवाजी ने शासन को जनहितकारी बनाकर उसको ईश्वर की इच्छा की संज्ञा दी।’ दैहिक – दैविक -भौतिक तापा,रामराज कबहूँ नहीं व्यापा’ इसलिए रामराज को विश्व की सर्वोत्तम शासनप्रणाली कहा जाता है।बाल्यावस्था में ही रामायण और महाभारत की शिक्षा से समृद्ध हुए शिवाजी ने अपनी शासनप्रणाली को इसके अनुरूप ही गढ़ा और ‘ प्रजाहितकारी राजा ‘ यानी जाणता-राजा कहलाए।उनके द्वारा स्थापित हिंदवी- साम्राज्य का अनुकरण करके आज कोई भी राष्ट्र समृद्ध और शक्तिशाली बनाया जा सकता है।

मूल कथा

अपनी माता जीजाबाई की गोद में बैठ रामायण और महाभारत का पारायण करते हुए बड़े होनेवाले छत्रपति शिवाजी ,उपलब्ध भारतीय इतिहास साहित्य
के सर्वाधिक लोकप्रिय राजा हैं जिन्होने; रामराज की नीतियों को अपनी शासन -व्यवस्था के मूल में रखकर ‘हिन्दवी साम्राज्य ‘ की नींव रखी और उसका सुसंचालन किया। उन्होंने १६४० में प्रमुख निंबालकर परिवार से साईबाई से शादी की । १६४५ की शुरुआत में किशोरवय के शिवाजी ने एक पत्र में हिंदवी स्वराज्य (भारतीय स्व-शासन) के लिए अपनी अवधारणा व्यक्त की।उन्होने ५०० प्रमुख सैन्य पदों में मात्र २ प्रतिशत ही मुसलमान रखे थे वह भी सिर्फ इसलिए कि मराठी सैनिक उनसे नौसैनिक -प्रशिक्षण प्राप्त कर सकें। वामपंथियों द्वारा शिवाजी को हिन्दू -मुसलमान एकता का पैरोकार बताया जाना बिलकुल गलत है।वे मुसलमानों को बिलकुल पसंद नहीं करते थे और यह बात उन्होने अपने सौतेले भाई को लिखे पत्र में भी कही है।
” यौवनारम्भघृतं मलेच्छमक्षयदीक्षा शिवाजी ” ( अर्थात यौवन के आरम्भ से ही जिसने मलेच्छों के नाश की दीक्षा ली है वैसे शिवाजी ) का श्रीशिवभारत के अद्याय १७ में उल्लेख है और आदिलशाही के अधिकृत फरमान ” शिवा – ए -मकहूर ” में १६ जून १६६९ को लिखा गया है कि इस्लाम की वृद्धि या विस्तार के लिए शिवाजी का क़त्ल आवश्यक है इसलिए अफजल खान को यह दायित्व दिया गया है।शिवाजी ने अपने सौतेले भाई वयंको जी को नवंबर १६७७ को भेजे पत्र में लिखा है कि” मेरे ऊपर श्री महादेव और श्री तुजे भवानी की विशेष कृपा है और मैं दुष्ट तुर्कों का संहार ही करता हूँ यह जानते हुए भी आपने मेरी सेना पर हमला किया ,आपकी सेना में मुस्लिम और तुर्क भरे पड़े हैं तो फिर आप मुझपर विजय कैसे पा सकते हैं ?” उनके पिता शाहजी भोंसले की सेना में मुसलमानों की संख्या अधिक थी जिसे उन्होने घटाते हुए २ प्रतिशत तक कर दिया तथा उनका कद छोटा बनाये रखा।

औरंगजेब ने सरदार नेतोजी पालकर को जबरन मुसलमान बनाकर उनका नामकरण मोहम्मद कुली खान कर दिया तो शिवाजी ने २४ जुलाई १६७६ को समारोहपूर्वक वैदिक रीति से उनको पुनः हिन्दू बनवाया। इसी तरह मुसकलमान बना दिए गए अपने साले निम्बालकर की भी उन्होने धूमधाम से घर-वापसी कराई थी। इन दोनों घटनाओं का उल्लेख औरंगजेब के द्वारा लिखवाये ‘जेरे शेखावळी ‘ में भी है।

शिवाजी ने नर्वे ( गोवा ) में मुगलों और पुर्तगालियों द्वारा मंदिर को ध्वस्त कर बनवाये गए चर्च को तोड़कर १३ नवंबर १६६८ को सप्तकेटेश्वर मंदिर का पुनर्निर्माण करवाया था। इसका शिलालेख उपलब्ध है। तत्कालीन कर्नाटक ( अब तमिलनाडु का अंश ) में सोणाचलपति मंदिर , श्रीमुषांवृद्धगिरि मंदिर और रूकमसमद्धि का पुनर्निर्माण कर शिवाजी ने वहां पूजा – पाठ फिर से शुरू करवाया।उनकी परम्परा पर चलकर शिवाजी के सरदार मल्हार होल्कर ने काशी के विश्वनाथ मंदिर के उद्धार के लिए ज्ञानवापी मस्जिद को गिराकर वहां मंदिर निर्माण के लिए कैम्प किया था। स्थानीय लोगों ने इससे होनेवाले भयावह नरसंहार की कल्पना कर पेशवा को १८ जून १७५१ को पत्र लिखा की वे मल्हार होल्कर को ऐसा करने से रोकें क्योंकि तब दिल्ली के सुलतान का कहर उनपर बरपेगा।

शिवाजी का जब पहली बार राज्याभिषेक हुआ तो उसमें फारसी शब्दों की भरमार थी।मराठी भाषा की शुद्धता के लिए आपने अमात्य रघुनाथ पंडित को ‘राज्य व्यवहार कोष ‘ की रचना का निर्देश दिया। शिवजी के सौजन्य से मराठी के लुप्त हो चुके १३८० शब्द पुनः चलन में आये।

छत्रपति शिवाजी महाराज का नाम लेते ही दिमाग में एक ऐसे साहसी पुरुष की छवि बनती है जो युद्ध कौशल में पूरी तरह से पारंगत हो। शिवाजी ने औरंगजेब जैसे शक्तिशाली मुगल सम्राट की विशाल सेना से कई बार टक्कर ली। उनकी विशेषता केवल युद्ध में ही नहीं थी बल्कि वह भारत के एक कुशल प्रशासक और रणनीतिकार के रूप में भी जाने जाते हैं। शिवाजी महान् विजेता होने के साथ-साथ एक कुशल प्रशासक भी थे। मध्यकालीन शासकों की तरह शिवाजी के पास भी शासन के सम्पूर्ण अधिकार सुरक्षित थे। शासन कार्यों में सहायता के लिए शिवाजी ने मंत्रियों की एक परिषद, जिसे ‘अष्टप्रधान’ कहते थे, की रचना की थी, पर इन्हें किसी भी अर्थ में मंत्रिमंडल की संज्ञा नहीं दी जा सकती। उनके मंत्री वास्तव में ‘सचिव’ के रूप में कार्य करते थे। वह प्रत्यक्ष रूप में न तो कोई निर्णय ले सकते थे और न ही नीति-निर्धारित कर सकते थे। उनकी भूमिका मात्र परामर्शकारी होती थी, किन्तु मंत्रियों से परामर्श के लिए शिवाजी बाध्य नहीं थे।

१६३९ में, शिवाजी के पिता शाहजी को बैंगलोर में तैनात किया गया था, जिसे उन नायकों से जीत लिया गया था जिन्होंने विजयनगर साम्राज्य के निधन के बाद नियंत्रण कर लिया था । उन्हें क्षेत्र को पकड़ने और बसने के लिए कहा गया था। शिवाजी को बैंगलोर ले जाया गया जहां उन्हें, उनके बड़े भाई संभाजी और उनके सौतेले भाई एकोजी प्रथम के साथ औपचारिक रूप से प्रशिक्षित किया गया। १६४५ में, १५ वर्षीय शिवाजी ने तोरणा किले के बीजापुरी सेनापति इनायत खान को किले का कब्जा सौंपने के लिए रिश्वत दी या राजी किया। चाकन किले पर कब्जा करने वाले मराठा फिरंगोजी नरसला ने शिवाजी के प्रति अपनी वफादारी का दावा किया और बीजापुरी के राज्यपाल को रिश्वत देकर कोंडाना का किला हासिल कर लिया गया। २५ जुलाई १६४८ को, शिवाजी को नियंत्रित करने के लिए, बीजापुरी शासक मोहम्मद आदिलशाह के आदेश के तहत शिवाजी के पिता शाहजी को बाजी घोरपड़े ने कैद कर लिया था ।

आदिलशाह,शिवाजी की सेना द्वारा किये गए नुकसान से अप्रसन्न थे, जिसे उनके जागीरदार शाहजी ने अस्वीकार कर दिया था। मुगलों के साथ अपने संघर्ष को समाप्त करने और जवाब देने की अधिक क्षमता रखने के बाद, १६५७ में आदिलशाह ने शिवाजी को गिरफ्तार करने के लिए एक अनुभवी जनरल अफजल खान को भेजा।’तारिख -ए -आदिलशाही ‘ में १६ जून १६६९ को लिखा है कि इस्लाम के विस्तार के लिए काफिर शिवाजी का क़त्ल बहुत जरूरी है।इसलिए यह काम अफजल खान को सौंपा जाता है। बीजापुरी सेना द्वारा पीछा किए जाने पर, शिवाजी प्रतापगढ़ किले में पीछे हट गए , जहां उनके कई सहयोगियों ने उन पर आत्मसमर्पण करने के लिए दबाव डाला। शिवाजी की घेराबंदी को तोड़ने में असमर्थ होने के साथ, दोनों सेनाओं ने खुद को एक गतिरोध में पाया, जबकि अफजल खान, एक शक्तिशाली घुड़सवार सेना के बाद भी किले पर अधिकार जमाने में असमर्थ था। दो महीने के बाद, अफजल खान ने शिवाजी के पास एक दूत भेजा, जिसमें दोनों नेताओं को किले के बाहर अकेले मिलने का सुझाव दिया गया।

१० नवंबर १६५९को प्रतापगढ़ किले की तलहटी में एक झोपड़ी में शिवाजी और अफजल खान मिले। तय हुआ था कि दोनों निहत्थे मिलेंगे और सहायता के लिए उनके साथ एक – एक अनुयायी ही होंगे । शिवाजी को संदेह था या तो अफजल खान उनको गिरफ्तार कर लेंगे या उस पर हमला करेंगे,इसलिए उन्होंने अपने कपड़ों के नीचे कवच पहना था, अपने बाएं हाथ पर एक बाघ नख (धातु “बाघ का पंजा”) छुपाया था, और उसके दाहिने हाथ में खंजर थी। अफजल ने शिवाजी को मारने की कोशिश की। अफजल खान के खंजर को शिवाजी के कवच ने रोक दिया, और शिवाजी के बाघनख ने अफजल की आंतें फाड़ दी। शिवाजी ने तब बीजापुरी सेना पर हमला करने के लिए अपने छिपे हुए सैनिकों को संकेत देने के लिए एक तोप चलाई। प्रतापगढ़ की लड़ाई 10 नवंबर 1659 को हुई जिसमें शिवाजी की सेना ने निर्णायक रूप से बीजापुर सल्तनत को पराजित कर दिया। बीजापुर सेना के ३,००० से अधिक सैनिक मारे गए और उच्च पद के एक सरदार, अफजल खान के दो पुत्रों और दो मराठा प्रमुखों को बंदी बना लिया गया।

इतिहासकार पी सी सरकार के अनुसार, १६४९ में शाहजी को रिहा कर दिया गया था जब जिंजी पर कब्जा करने के बाद कर्नाटक में आदिलशाह की स्थिति सुरक्षित हो गई थी। इन घटनाओं के दौरान, १६४९-१६५५ तक शिवाजी अपनी विजय में रुके और चुपचाप अपने लाभ को समेकित किया।अपनी रिहाई के बाद, शाहजी सार्वजनिक जीवन से सेवानिवृत्त हो गए।अपने पिता की रिहाई के बाद, शिवाजी ने फिर से छापा मारा, और १६५६ में, विवादास्पद परिस्थितियों में, बीजापुर के एक साथी मराठा सामंत चंद्रराव मोरे को मार डाला, और वर्तमान महाबलेश्वर के पास जावली की घाटी को जब्त कर लिया। इसी समयखण्ड में शिवाजी ने सावंत की सावंतवाडी , की घोरपडे मुधोल , निंबालकर की फलटन , शिर्के, माने और मोहिते आदि शक्तिशाली परिवारों को वश में करने के लिए विभिन्न रणनीतियाँ अपनाईं जैसे कि उनकी बेटियों से विवाह करना, देशमुखों को दरकिनार करने के लिए सीधे गाँव पाटिल से निपटना, या उनसे लड़ना आदि।

शिवाजी के शासन प्रबंध में उनकी मौलिक प्रतिभा दिखती है। वह एक विजेता एवं सैनिक प्रतिभा संपन्न ही नहीं थे बल्कि वह कुशल संगठनकर्ता तथा प्रशासक भी थे।उनके प्रशासन का क्रमिक विकास अनुभव के आधार पर हुआ था। शासन में नियुक्तियां योग्यता के आधार पर होती थी। पद वंशानुगत नहीं थे एवं जागीर प्रथा नहीं थी। कर्मचारियों को नगद वेतन दिया जाता था। राजस्व क्षेत्र में रैयतवाड़ी प्रणाली लागू की गई थी। करों का भार कम था। प्रशासन की इकाई दुर्ग थे जिनका जाल बिछा हुआ था। केवल धार्मिक उद्देश्य को छोड़कर भूमि का अनुदान नहीं दिया जाता था।

प्रशासनिक इकाइयां –

शिवाजी के राज्य को स्वराज कहा जाता था। यह महाराष्ट्र में ही सीमित था। जिन मुगल क्षेत्रों पर मराठों का वास्तविक आधिपत्य था, उन्हें मुगलाई कहा जाता था। स्वराज के नीचे संभाग था। संभाग प्रांतों (जिलों) में विभाजित थे। प्रांत का अधिकारी सूबा कहलाता था। प्रान्त महालों में बँटे हुए थे।महाल में कई ग्राम होते थे।

दुर्ग –

प्रशासनिक व्यवस्था का मुख्य आधार दुर्ग थे। राज्य की सुरक्षा दुर्गों पर ही निर्भर करती थी। उनके राज्य में लगभग 280 दुर्ग थे। किलो में रसद सामग्री तथा सैनिकों के बारे में कठोर नियम थे।

शाह जी ने जब अपनी पहली पत्नी जीजाबाई को पुणे भेजा था तो उनको आदिलशाह द्वारा दो बार जलाकर रख बना दी गयी पुना की जमींदारी देकर अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर ली थी।पुणे की जमीन पर गधे से हल चलवाकर आदिलशाह ने उसके बंजर हो जाने की मुनादी कर दी थी जिसको बारहवर्षीय शिवाजी द्वारा स्वर्ण के हल से जोतवाकर माता जीजाबाई ने हरितक्षेत्र बनाने की घोषणा कर दी थी। जो टोटका आदिल शाह ने आजमाया उसी के पीड़ित ने आदिलशाही की ताबूत में कील ठोंककर जब कहा कि यह श्री यानी ईश्वर की इच्छा से बना हिंदवी राज है तो जनता को अपना राजा मिला। जिस धरती पर अनाज का एक दाना नहीं उगता था उसको शिवाजी ने हरितक्षेत्र बना दिया। मानव संसाधन का प्रयोग इतना कुशल कि जो सैनिक थे वे ही किसानी भी करते थे। जो किसान थे वे सेना में शामिल रहते थे। ‘ जय जवान , जय किसान’ के नारे का जन्म संभवतः यहीं से हुआ और ‘राजतंत्रीय- लोकतंत्र’ की राजनीती का जन्म भी शिवाजी के शासन पद्धति से हुआ।

शिवाजी के शासन में (क) जनता का सम्मान (ख ) प्रतिभा को प्राथमिकता (ग) संसाधनों का न्यायपूर्ण वितरण (घ) मानव संसाधनों का सृजन तथा विकास (च) योजनाबद्ध कार्य (छ) लक्ष्य भेदने की तीव्रता (ज ) प्रशासन में अनुशासन (झ) धर्मानुकूल आचरण (ट) संसाधनों का अधिकतम उपयोग (ठ) सबको उन्नति का अवसर (ड) न्याय और उसका कठोरता से अनुपालन (ढ) सबका सम्मान ,सबको न्याय (ण) शत्रुशमन (त) ईश्वरीय कार्य मान न्यासी भाव से राजकाज करना जैसे तत्व थे जिनको अपनाकर आज भी विश्व का कोई भी देश समृद्ध -सुदृढ़ -और शक्तिशाली राष्ट्र बन सकता है।

शिवाजी महान् विजेता होने के साथ-साथ एक कुशल प्रशासक भी थे।शासन कार्यों में सहायता के लिए शिवाजी ने ‘अष्टप्रधान’ नामक प्रशासकीय सहयोगियों का समूह गठित किया था जिसके सदस्य शिवाजी के ‘सचिव’ के रूप में कार्य करते थे। वह प्रत्यक्ष रूप में न तो कोई निर्णय ले सकते थे और न ही नीति निर्धारित कर सकते थे। उनकी भूमिका मात्र परामर्शदाता की होती थी, किन्तु मंत्रियों से परामर्श के लिए शिवाजी बाध्य नहीं थे। ‘अष्टप्रधान’ में पेशवा का पद सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण होता था। पेशवा राजा का विश्वसीय होता था।

शिवाजी के अष्टप्रधान का संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है-

(क ) पेशवा – यह राज्य के प्रशासन एवं अर्थव्यवस्था की रेख-देख करता था तथा राजा की अनुपस्थिति में राज्य की बागडोर संभालता था। उसका वेतन १५००० हूण प्रतिवर्ष था।

(ख ) सर-ए-नौबत (सेनापति) – इसका मुख्य कार्य सेना में सैनिकों की भर्ती करना, संगठन एवं अनुशासन और साथ ही युद्ध क्षेत्र में सैनिकों की तैनाती आदि करना था।

(ग) मअमुआदार या अमात्य – अमात्य राज्य के आय-व्यय का लेखा जोखा तैयार करके उस पर हस्ताक्षर करता था। उसका वेतन १२००० हूण प्रतिवर्ष था।

(घ )वाकयानवीस – यह सूचना, गुप्तचर एवं संधि विग्रह के विभागों का अध्यक्ष होता था और घरेलू मामलों की भी देख-रेख करता था।

(च)शुरुनवीस या चिटनिस – राजकीय पत्रों को पढ़ कर उनकी भाषा-शैली को देखना, परगनों के हिसाब-किताब की जाँच करना आदि इसके प्रमुख कार्य थे।

(छ ) दबीर या सुमन्त (विदेश मंत्री) – इसका मुख्य कार्य विदेशों से आये राजदूतों का स्वागत करना एवं विदेशों से सम्बन्धित सन्धि विग्रह की कार्यवाहियों में राजा से सलाह और मशविरा आदि प्राप्त करना था।

(ज) सदर या पंडितराव – इसका मुख्य कार्य धार्मिक कार्यों के लिए तिथि को निर्धारित करना, ग़लत काम करने एवं धर्म को भ्रष्ट करने वालों के लिए दण्ड की व्यस्था करना, ब्राह्मणों में दान को बंटवाना एवं प्रजा के आचरण को सुधारना आदि था। इसे ‘दानाध्यक्ष’ भी कहा जाता था।

(झ) न्यायधीश – सैनिक व असैनिक तथा सभी प्रकार के मुकदमों को सुनने एवं निर्णय करने का अधिकार इसके पास होता था।

उपर्युक्त अधिकारियों में अन्तिम दो अधिकारी- ‘पण्डितराव’ एवं ‘न्यायधीश’ के अतिरिक्त अष्टप्रधान के सभी पदाधिकारियों को समय-समय पर सैनिक कार्यवाहियों में हिस्सा लेना होता था। सेनापति के अतिरिक्त सभी प्रधान ब्राह्मण थे। इन आठ प्रधानों के अतिरिक्त राज्य के पत्र-व्यवहार की देखभाल करने वाले ‘चिटनिस’ और ‘मुंशी’ भी महत्त्वपूर्ण व्यक्ति थे। शिवाजी के समय बालाजी आवजी चिटनिस के रूप में और नीलोजी मुंशी के रूप में बहुत सम्मानित थे। प्रत्येक प्रधान की सहायता के लिए अनेक छोटे अधिकारियों के अतिरिक्त ‘दावन’, ‘मजमुआदार’, ‘फडनिस’, ‘सुबनिस’, ‘चिटनिस’, ‘जमादार’ और ‘पोटनिस’ नामक आठ प्रमुख अधिकारी भी होते थे।

छत्रपति शिवाजी ने किसी भी मंत्री के पद को आनुवंशिक नहीं होने दिया। ‘अष्टप्रधान’ में पेशवा का पद सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण सम्मान का होता था। पेशवा राजा का विश्वसीय होता था। संभवतः अपनी अनुभव शून्यता के कारण शिवाजी पौरोहित्य एवं लेखा विभाग में हस्तक्षेप नहीं करते थे। शिवाजी ने रघुनाथ पण्डित हनुमन्ते के निरीक्षण में चुने हुये विशेषज्ञों द्वारा ‘राजव्यवहार कोष’ नामक शासकीय शब्दावली का शब्दकोष तैयार कराया था। संभवतः अपनी अनुभव शून्यता के कारण शिवाजी पौरोहित्य एवं लेखा विभाग में हस्तक्षेप नहीं करते थे। शिवाजी ने रघुनाथ पण्डित हनुमन्ते के निरीक्षण में चुने हुये विशेषज्ञों द्वारा ‘राजव्यवहार कोष’ नामक शासकीय शब्दावली का शब्दकोष तैयार कराया था।

सैनिक प्रशासन –

शिवाजी सैनिकों की नियुक्ति स्वयं करते थे। सैनिकों को योग्यता के अनुसार वेतन दिया जाता था। सेना के दो भाग थे-सवार तथा पैदल। सवार सेना के दो भाग थे- प्रथम, पागा या बारगीर अश्वारोही सैनिक जिन्हें घोड़े राज्य की ओर से दिए जाते थे। द्वितीय, सिलहदार सवार जो अपने घोड़े तथा अस्त्र-शस्त्र स्वयं लाते थे। पैदल सैनिकों को पाइक कहते थे। शिवाजी के अंगरक्षकों की टुकड़ी पृथक थी। पैदल कारभारी सैनिक तथा सिलहदार कृषि कार्य करते थे। कृषि कार्य समाप्त होने पर वह मुल्कगीरी के लिए सेना में सम्मिलित हो जाते थे।

राजस्व नीति –
राज्य के अधिकारियों को नगद वेतन दिया जाता था। किसानों से भूराजस्व राजा सीधे लेता था। उत्पत्ति के आधार पर लगान निश्चित किया गया था, जो उत्पादन का 2/5 होता था।प्राकृतिक आपदा के समय किसानों को तकावी दी जाती थी। कृषक नगद या अनाज में लगान दे सकता था।
राज्य को चौथ और सरदेशमुखी से भी आए होती थी। मुगल क्षेत्रों से शिवाजी राजस्व का 1/4 भाग की मांग करते थे, इसे चौथ कहा जाता था। यह सैनिकों के व्यय के लिए थी। सरदेशमुखी भी चौथ के साथ वसूल की जाती थी। यह राजस्व का एक 1/10 भाग था। शिवाजी स्वयं को सरदेशमुख मानते थे। चौथ तथा सरदेशमुखी के बदले मराठे उस क्षेत्र को सुरक्षा प्रदान करते थे।

समुद्री किले और नौसेना –
शिवाजी ने समुद्री किलों का निर्माण कराया था। इनकी रक्षा तथा तटों की पहरेदारी के लिए उन्होंने नौसेना का भी गठन किया था। उनके बेड़े में 700 जहाज थे, जो दो भागों में विभाजित थे। एक का अधिकारी दरिया सारंग था, दूसरे का अधिकारी मायनायक कहा जाता था।

धार्मिक सहिष्णुता –

शिवाजी हिंदू धर्म के रक्षक तथा उद्धारक थे लेकिन उनके प्रशासन का आधार धार्मिक सहिष्णुता थी। उन्होंने मुसलमानों को भी सेना व प्रशासन में स्थान दिया था।

राज्य का स्वरूप –

मराठा राज्य राजतंत्र था। इसे निरंकुश या स्वेच्छाचारी नहीं कहा जा सकता। राज्य को निरंतर युद्ध की स्थिति में रहना पड़ता था। इसलिए शिवाजी के नियम स्पष्ट और कठोर थे, जिससे अधिकारियों में स्वावलंबन की भावना उत्पन्न हो।

शिवाजी का भू-राजस्व प्रयोग

शिवाजी ने भू-राजस्व एवं प्रशासन के क्षेत्र में अनेक कदम उठाए. राजस्व व्यवस्था के मामले में अन्य शासकों की तुलना में शिवाजी ने एक आदर्श व्यवस्था बनाई। शिवाजी ने राजस्व व्यवस्था को लेकर एक सही मानक इकाई बनाया था जिसके अनुसार रस्सी के माप के स्थान पर काठी और मानक छड़ी का प्रयोग आरंभ करवाया। यह व्यवस्था काफी सुगम थी जबकि बीजापुर के सुल्तान, मुगल और यहां तक कि स्वयं मराठा सरदार भी अतिरिक्त उत्पादन को एक साथ ही लेते थे जो इजारेदारी या राजस्व कृषि की कुख्यात प्रथा जैसी ही व्यवस्था थी।

किसानों के लिए अनुदान

शिवाजी ने अपने प्रशासनिक सुधार में भूरास्व विभाग से बिचौलियों का अस्तित्व समाप्त कर दिया था। कृषकों को नियमित रूप से बीज और पशु खरीदने के लिए ऋण दिया जाता था जिसे दो या चार वार्षिक किश्तों में वसूल किया जाता था।अकाल या फसल खराब होने की आपात स्थिति में उदारतापूर्वक अनुदान एवं सहायता प्रदान की जाती थी। नए क्षेत्र बसाने को प्रोत्साहन देने के लिए किसानों को लगानमुक्त भूमि प्रदान की जाती थी।

जमींदारी प्रथा

शिवाजी महाराज के समय जमींदारी प्रथा अपने चरम पर थी. इस प्रथा ने भारत के किसान को गरीबी की ओर ढकेल दिया। लेकिन यह कह पाना कि शिवाजी ने जमींदारी प्रथा को समाप्त कर दिया था थोड़ा मुश्किल है। फिर भी उनके द्वारा भूमि एवं उपज के सर्वेक्षण और भूस्वामी बिचौलियों की स्वतंत्र गतिविधियों पर नियंत्रण लगाए जाने से ऐसी संभावना के संकेत मिलते हैं कि उन्होंने जमीदारी प्रथा को समाप्त करने के लिए कुछ काम किए थे।

सरदेशमुखी और चौथ

वैसे शिवाजी के शासन काल में भू-राजस्व के अलावा राज्य की आय के दो और स्रोत थे सरदेशमुखी और चौथ. यह एक तरह का सैनिक कर था जिसे अनाज के रूप में वसूला जाता था। सरदेशमुखी लोगों के हितों की रक्षा करने के बदले वसूला जाता था जबकि चौथ बाह्य शक्ति के आक्रमण से सुरक्षा प्रदान करने के बदले लिया जाने वाला कर था।

शिवाजी की प्रशासनिक व्यवस्था काफी सीमा तक दक्षिणी राज्यों की व्यवस्था पर आधारित थी साथ ही मुगलों की प्रशासनिक व्यवस्था की भी उस पर कुछ छाप थी। शिवाजी अपनी मां जीजाबाई के प्रति समर्पित थे , जो बहुत धार्मिक थीं। हिंदू महाकाव्यों, रामायण और महाभारत के उनके अध्ययन ने भी हिंदू मूल्यों की उनकी आजीवन रक्षा को प्रभावित किया। वे धार्मिक शिक्षाओं में गहरी रुचि रखते थे, और नियमित रूप से हिंदू संतों की संगति चाहते थे। इस बीच शाहजी ने मोहित परिवार की दूसरी पत्नी तुका बाई से शादी कर ली थी । मुगलों के साथ शांति स्थापित करने के बाद, उन्हें छह किलों का हवाला देते हुए, वह बीजापुर की सल्तनत की सेवा करने गए। वह शिवाजी और जीजाबाई को शिवनेरी से पुणे ले गए और उन्हें अपने जागीर प्रशासक दादोजी कोंडदेव की देखरेख में छोड़ दिया, जिन्हें युवा शिवाजी की शिक्षा और प्रशिक्षण की देखरेख का श्रेय दिया जाता है।

अपने जीवन के दौरान, शिवाजी मुगल साम्राज्य , गोलकुंडा की सल्तनत और बीजापुर की सल्तनत के साथ-साथ यूरोपीय औपनिवेशिक शक्तियों के साथ गठबंधन और शत्रुता दोनों में लगे रहे । शिवाजी के सैन्य बलों ने मराठा प्रभाव क्षेत्र का विस्तार किया, किलों पर अधिकार किया तथा ६ निर्माण कराया। उन्होने एक मराठा नौसेना का गठन किया । शिवाजी ने सुव्यवस्थित प्रशासनिक संगठनों के साथ एक सक्षम और प्रगतिशील नागरिक शासन की स्थापना की। उन्होंने प्राचीन हिंदू राजनीतिक परंपराओं और अदालती सम्मेलनों को पुनर्जीवित किया और मराठी भाषा के उपयोग को बढ़ावा दिया ।

भारतीय राजव्यवस्था में मिट्टी के बाँधों व तालाबों के निर्माण का विशेष महत्त्व है। पेयजल के लिये कुएँ बावड़ी और कृषि आधारित सभी कार्यों के लिये बड़े जलाशयों का निर्माण हर सुशासन में होता है। उस दौर में सैनिक भी शान्ति के समय खेती करते थे। उन दिनों किसानों से कुल उपज का ३३ फीसदी कर के रूप में लिया जाता था। बंजर भूमि पर यह दर कम थी। लेकिन कई ऐसे प्रसंग भी सामने आते हैं, जब अकाल या फसलें खराब होने पर उदारता से किसानों को अनुदान और सहायता दी जाती रही। इसके साथ ही खेती को नए क्षेत्रों में बढ़ाने के लिये किसानों को लगान मुक्त जमीनें भी बाँटी गई।केंद्रीय पर्यावरण राज्य मंत्री अनिल माधव दवे की पुस्तक ' शिवाजी एन्ड सुराज 'बताती है कि साढ़े तीन सौ साल पहले शिवाजी के राजकाज में उन्होंने पानी और पर्यावरण को बहुत महत्त्व दिया था। इस किताब में शिवाजी के कार्यकाल के दौरान किये गए पानी और पर्यावरण के साथ उन दिनों खेती की स्थिति और शिवाजी के शासन काल में हुए खेती के सुधारों पर भी विस्तार से बात की गई है।

    उनका राज्य छोटे से भू-भाग खासतौर से महाराष्ट्र तक उत्तर में सूरत से पूना, दक्षिण पश्चिम में समुद्र तटीय प्रदेश दक्षिण पूर्व में सतारा, कोल्हापुर, बेलगाँव और थारवार तक तथा दक्षिण में जिंजी और उसके आसपास कायम था। १६३० से १६८० के कुल ५० वर्षों के अपने जीवन में शिवाजी १६७० -८० यानी दस वर्ष तक ही अपने राज्य पर शासन कर सके। १६७४ में रायगढ़ में उनका राज्याभिषेक किया गया। लेकिन इस छोटे से समय में भी सुशासन और जन केन्द्रित शासन के कारण वे आज तक पहचाने जाते हैं। उन्होंने बरसाती पानी को रोकने और उसको सहेजने के लिये मिट्टी के बाँध और बड़े तालाब बनवाए और पेड़ काटने पर सख्त पाबन्दी लगाई। उनके शासन में ही पहली बार १६७० में अन्नाजी दत्तो ने व्यापक स्तर पर भू-सर्वेक्षण करवाकर उपज के अनुरूप भूकंडों को चार श्रेणियों में बांटकर कराधान के चार वर्ग निर्धारित किये गए जो किसानों के लिए अधिक सुविधाकारी थे । शिवाजी के शासन से पहले अकबर ने टोडरमल द्वारा भूमि सर्वेक्षण कराया था तो कुतुबशाह ने नीलांबर के द्वारा भू सर्वेक्षण कराया था ,लेकिन उन्होने कराधान की ऐसी व्यवस्था नहीं कराई थी जो शिवाजी ने सुस्पष्ट रूप में कराई।

शिवाजी से पूर्व के राजाओं ने भूमि का दान बिना किसी सोच के ही किया और जमींदारी -जागीरदारी प्रथा शुरू कर उसके द्वारा अपने ही शासितों में प्रतियोगिता पैदा की थी। शिवाजी ने स्वराज में जागीरी प्रथा को खत्म कर दिया या कम कर दिया था। वह धार्मिक व सामाजिक कार्य को छोड़कर अन्य किसी भी उद्देश्य से राज्य की भूमि को बाँटना उचित नहीं समझते थे। उनकी मान्यता थी कि भूमि तो राज्यलक्ष्मी है, उसका विभाजन कैसे हो सकता है। शिवाजी अपने राज्य में विभिन्न प्रकार की पैदावार का आग्रह करते थे।

शिवाजी ने ‘अष्ट प्रधान’ की व्यवस्था में किसानों पर ध्यान देने के लिये अलग से व्यवस्था की। ‘ शिवाजी एन्ड सुराज’ के पृष्ठ ६१ पर उल्लेख मिलता है कि शिवाजी के समय में कृषि की स्थिति पूरी तरह से बारिश आधारित थी। इसलिये हमेशा अतिवृष्टि और अल्पवर्षा का डर बना रहता था। भारत जैसे कृषि प्रधान देश का राजा कृषि के महत्त्व को समझें और उसके लिये योग्य दिशा में प्रयत्न करें यह अनिवार्य है। इतिहास मंडल के सचिव श्री पांडुरंग बलकवडे बताते हैं कि शिवाजी ने कृषि भूमि प्रबन्धन जल संग्रह और उसके विविध पक्षों पर गहन विचार कर व्यवस्थाएँ खड़ी की थी। बारिश का पानी रोका जाये, उसका उपयोग साल भर तक पशुपालन और खेती के विभिन्न कार्यों के लिये किया जाये इसका उनका सदैव आग्रह रहता था। महाराष्ट्र के पुणे शहर में स्थित पर्वती के नीचे अम्बील ओढा नामक झरने पर शिवाजी ने स्वयं बाँध बनवाया था, जिसे आज भी देखा जा सकता है। इसी प्रकार उन्होंने पुणे के पास कोंडवा में भी बाँध बनवाया था।भारतीय राजव्यवस्था में मिट्टी के बाँधों व तालाबों के निर्माण का विशेष महत्त्व है। पेयजल के लिये कुएँ बावड़ी और कृषि आधारित सभी कार्यों के लिये बड़े जलाशयों का निर्माण हर सुशासन में होता है। उस दौर में सैनिक भी शान्ति के समय खेती करते थे।

    उन दिनों किसानों से कुल उपज का ६६ प्रतिशत तक कर के रूप में लिया जाता था, शिवाजी ने उसको घटाकर ३३ प्रतिशत कर दिया। बंजर भूमि पर यह दर कम थी।इसका परिणाम हुआ कि लोगों ने अधिक भूमि पर खेती शुरू कर दी जिससे दानों को मुंहताज शिवाजी द्वारा स्थापित ‘स्वराज'(जो आगे चलकर हिंदवी-राज कहलाया ) अगले पांच वर्षों में अनाज का निर्यातक भी बन गया और सरकारी खजाने का राजस्व भी ३०० प्रतिशत तक बढ़ गया। जिसके पास कभी पेशेवर सैनिकों को पैसे नहीं थे उस राजा की मृत्यु बाद कोषागार को खंगाला गया तो नौ करोड़ स्वर्ण मुद्राएं थीं – यह शिवाजी के इस दूरदर्शी कार्य का ही परिणाम था। कई ऐसे प्रसंग भी सामने आते हैं, जब अकाल या फसलें खराब होने पर उदारता से किसानों को अनुदान और सहायता दी जाती रही। इसके साथ ही खेती को नए क्षेत्रों में बढ़ाने के लिये किसानों को लगान मुक्त जमीनें भी बाँटी गई।किसानों को बीज, पानी और मवेशियों की जरूरत के लिये आसान ऋण भी मुहैया कराया जाता था। बड़ी बात यह है कि उन्होंने किसानों को जमींदारी और जागीरदारी के आतंक से मुक्त कराने के लिये रैयतवाड़ी व्यवस्था लागू की। दक्षिण और मुगलकालीन व्यवस्था की भी अच्छी बातों को उन्होंने अंगीकार किया।

प्रख्यात इतिहासकार डॉ मिलिंद दत्तात्रेय पराड़कर बताते हैं कि शिवाजी की पर्यावरण दृष्टि बहुत समृद्ध थी। शिवाजी ने शासकीय आज्ञा पत्र जारी कर प्रजा में यह आदेश पहुँचाया था कि जहाँ तक सम्भव हो सके, सूखे और मृत हो चुके पेड़ों के ही प्रयोग से विभिन्न कार्य पूरे किये जाएँ। नौसेना के लिये जहाज निर्माण हेतु ठोस व अच्छी लकड़ी की आवश्यकता होती है।स्वराज्य के जंगलों में सागौन के जो वृक्ष हैं, उनमें से जो अनुकूल हों, अनुमति के साथ काटे जाएँ। ज्यादा आवश्यकता होने पर अन्य राज्य या देशों से अच्छी लकड़ी खरीद कर लाई जाये।


उनका स्पष्ट निर्देश था कि स्वराज के जंगलों में आम व कटहल के पेड़ हैं, जो जलपोत निर्माण में काम आ सकते हैं; परन्तु उन्हें हाथ न लगाया जाये, क्योंकि यह ऐसे पेड़ नहीं है, जो साल-दो-साल में बड़े हो जाएँ। जनता ने उन पेड़ों को लगाकर अब तक अपने बच्चों की तरह पाल-पोस कर बड़ा किया है। ऐसे पेड़ काटने से उनके पालकों को कष्ट पहुँचेगा।किसी को दुखी कर दिया जाने वाला कार्य और उसे करने वाले थोड़े ही समय में समाप्त हो जाते हैं तथा प्रदेश के मुखिया को प्रजा पीड़ा की हाय झेलनी पड़ती है। वृक्षों को काटने से हानि भी होती है। इसलिये आम व कटहल जैसे फलदार वृक्ष कभी न काटे जाएँ। कोई एकाध पेड़ जो जीर्ण-शीर्ण या वृद्ध हो गया हो उसे उसके मालिक की आज्ञा से ही काटा जाये। साथ ही उसके मालिक को क्षतिपूर्ति की राशि भी दी जाये। जोर-जबरदस्ती बगैर अनुमति के कोई पेड़ न काटा जाये।

कृषि का उत्पादन बढ़ाने और शासन पर भार कम करने के लिये शिवाजी ने अपने सैनिकों को वर्षाकाल के समय कृषि कार्य में लगाने का प्रावधान किया। शान्ति के समय यह किसान किले के नीचे अथवा अपने-अपने गाँव में कृषि भूमि पर खेती करने जाते थे।वर्षा समाप्ति पर विजयादशमी के दिन सैनिक गाँव की सीमा का लंघन कर फिर से एकजुट होते और अगले सात-आठ महीने के लिये मुहिम पर चले जाते हैं। श्रम का कृषि में विनियोग और कृषि कार्य पूर्ण होने पर उसका रक्षा व्यवस्था में उपयोग का यह तरीका अपने आप में राष्ट्रीय श्रम प्रबन्धन का अनूठा उदाहरण था, क्योंकि भारतीय कृषि पूरी तरह वर्षा पर आधारित थी।

कीट पतंगों और अन्य प्रकार की प्राकृतिक आपदाओं के कारण कृषि उत्पादन प्रभावित होता था तो ऐसे अवसर पर राज्य की ओर से लगान वसूली में छूट दी जाती थी। यहाँ भी शिवाजी ने एक अभिनव व्यवस्था खड़ी की। उनके राज्य में किसानों को विभिन्न कारणों से हुए नुकसान की भरपाई नगद नहीं दी जाती थी, आक्रमणकर्ताओं के कारण हल बक्खर व बैलगाड़ी जैसे कृषि योजनाओं की टूट-फूट होने पर उधार के बदले औजार ही उपलब्ध कराए जाते थे। और इन सब का उद्देश्य होता था किसान की कृषि क्षमता को बनाए रखना।

स्वराज के शासक मानते थे कि नगद उपलब्ध कराई गई राशि का उपयोग व्यक्ति के द्वारा अन्य कामों में भी किया जा सकता है लेकिन सामग्री तो उपयोग के लिये ही होती है। इससे दोहरा नुकसान होता है, एक राज्य का खर्च होता है और दूसरा किसान कृषि पैदावार को यथावत रखने के या बढ़ाने में सक्षम नहीं हो पाता, अतः शासन को सहायता देने के साथ कृषि उत्पादन क्षमता बनाए रखने पर भी समान मात्रा में सोचना चाहिए। एक जैसी खेती फसल चक्र में असन्तुलन पैदा करती है। इस वैज्ञानिक दृष्टि को वे सूक्ष्मता से जानते थे। स्वस्थ भूमि – स्वस्थ उत्पादन व स्वस्थ पर्यावरण के लिये पैदावार में विविधता का आग्रह उनके समकालीन किसी अन्य शासन की राज्य कृषि व्यवस्था में देखने को नहीं मिलता। शिवाजी ने विशेष आदेश निकालकर फलदार वृक्षों को लगाने का आग्रह किया साथ ही यह सूचना भेजी कि फलों की बिक्री से पहले उसके ३० % फल राजकोष का भाग रहेंगे।

शिवाजी एन्ड सुराज’ किताब की प्रस्तावना में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सुशासन को लेकर काफी महत्त्व के मुद्दे उठाए हैं। वे लिखते हैं– ‘प्रजा केन्द्रित विकास ही सुशासन का मूल तत्व है इतिहास गवाह है कि जब-जब जन सामान्य को विकास का केन्द्र और साझीदार बनाया गया तब-तब उस राज्य ने सफलता और समृद्धि की ऊँचाइयों को छुआ है। प्रजा की भागीदारी के बिना किसी भी राज्य में प्रगति नहीं हो सकती हमारे सभी महानायकों ने इस तथ्य को अच्छी तरह से जाना और समझा। सदियों पहले ऐसे ही महानायक थे छत्रपति शिवाजी महाराज वह एक कुशल प्रशासक, सफल शासक थे। उन्होंने सुशासन के आधार पर समाज की स्थापना कर इस देश के इतिहास पर अपनी अमिट छाप छोड़ी।’ इस तरह यह किताब शिवाजी के स्वराज सुशासन के बहाने इस विषय को मजबूती से उठाती है कि एक शासक को अपने तई समाज के हित में किस तरह पानी और पर्यावरण जैसे समाज के बड़े वर्ग से वास्ता रखने वाले बिन्दुओं पर समग्र और दूरंदेशी विचार रखते हुए काम करने की महती जरूरत है।

अर्थव्यवस्था (राजस्व)
छत्रपति शिवाजी ने आय स्त्रोत को मजबूत बनाने के लिए भूमि- प्रबंध पर बड़ा बल दिया था। अर्थ व्यवस्था के सुधार हेतु उन्होंने निम्न कार्य किए

(१) जमींदारी प्रथा की समाप्ति – शिवाजी ने जागीरदारी प्रथा समाप्त कर दी थी क्योंकि जागीरदार शक्ति बढ़ाकर विद्रोह कर देते थे।

(२) ईमानदार अधिकारियों की नियुक्ति – लगान वसूल के लिए ईमानदार अधिकारी नियुक्त किये गये थे। घूसखोर तथा बेईमान अधिकारियों पर कड़ी कार्यवाही का प्रावधान था।

(३) जमीन की पैदाइश – जमीन की पैदाइश पर उसकी उन्होंने श्रेणियां बनवाई तथा लगान सुनिश्चित किया गया।

(४) ऋण व्यवस्था – अकाल के समय किसानों को ऋण सुविधाएं प्राप्त थी वे उसे आसान किश्तों में अदा कर सकते थे।

(५) ठेके की व्यवस्था – लगान वसूल करने वाले अधिकारियों पर कठोर नजर रखी जाती थी

स्वाभिमानी , स्वाबलंबी और सबके लिए पारदर्शी तथा सुलभ न्यायवाले एवं प्रतिभा प्रथम -सम्बन्ध व सिफारिश हाशिए पर जैसे सिद्धांतों कठोरता से गढे गए हिंदवी साम्राज्य के संस्थापक शिवाजी द्वारा निर्धारित शासकीय -आचरण को अपनाकर हम भारत को पुनः सुखी -समृद्ध – समुन्नत राष्ट्र बना सकते हैं। साथ ही मार्गदर्शन दे विश्व को सँवारनेवाला गुरु पद पुनःउपलब्ध प्राप्त करके ‘सर्वे भवन्तु सुखिनः , सर्वे भवन्तु निरामया ‘ के उद्घोषक संसार की स्थापना कर सकते हैं।भारत ही नहीं विश्व के सभी देश ‘हिंदवी साम्राज्य’ की नीतियों पर चलकर विश्व को सबके लिए अनुपम निवास स्थान बना सकते हैं। शिवाजी जी के पहले विक्रमादित्य तथा चन्द्रगुप्त मौर्य ने रामराज के नियमों का अनुपालन कर चक्रवर्ती साम्राज्य स्थापना की और शिवाजी ने उसको हिंदवी – साम्राज्य का नाम देकर उसे ईश्वरीय इच्छा का फल बताया। विक्रमादित्य ने ग्रह -नक्षत्रों और जीवन -विज्ञान के क्षेत्र में अतुलनीय कार्य कर स्वयं को चक्रवर्ती सम्राट से ऊपर स्थान दिलाया तो चाणक्य के शिष्य चन्द्रगुप्त ने मौर्य राजवंश नींव रखी। गुरु से विद्रोह ने चन्द्रगुप्त के पत्नी मोह को राजकाज से अधिक महत्वपूर्ण सिद्ध कर उनके राजकीय चरित्र कलुषित किया। लेकिन शिवाजी ने अपने राज को ‘हिंदवी साम्राज्य ‘ का नाम देकर अपने शासन में साम -दाम -दंड -भेद के केंद्र की धुरी ‘राष्ट्र और राष्ट्रहित’ को ही रखा। अन्य राजाओं ने जहां गढ़ (किले) से राज किया वहीं शिवाजी ने गढों का उपयोग साम्राज्य की स्थापना में किया – यह भी उनकी विशिष्टता है।

महाराजा विक्रमादित्य हमारे वह पुण्यतीर्थ हैं जिन्होने राजकाज के हर पक्ष की नीतियां बनाकर राष्ट्रजीवन को दिशा दी लेकिन शिवाजी वह गौरवपुंज हैं जिन्होने रामराज को विक्रमादित्य के अनुशासन से बंधकर जीवन में उतारा।विक्रमादित्य दैवत्व प्राप्त पूर्वज हैं जिनके आगे मस्तक स्वतः श्रद्धा से नत हो जाता है तो शिवाजी हमारे अद्यतन इतिहास का वह ऊर्जाकेंद्र है जो शक्ति का संचार कर राष्ट्र के नवनिर्माण में स्वयं को होम कर देने का बल देते हैं। विक्रमादित्य अपने कार्यों से किंवदंती बन चुके हैं और शिवाजी अभी हाल की सदियों में बीता जीवन है जिसकी यादों का पन्ना इतिहास में आज भी कच्चा ही है। विक्रमादित्य राजा के रक्तीय उत्तराधिकारी थे जबकि शिवाजी राजवंशीय होते हुए भी राजपुत्र नहीं थे। उनके पिता शाह जी भोंसले सैन्य टुकड़ी के अधिपति थे और शिवाजी ने पिता को मिली जागीर को साम्राज्य की ऊंचाइयां दी।उनके द्वारा स्थापित हिंदवी- साम्राज्य हमारे जीवन -नक्षत्र का वह तारा है जो हमसे सबसे नजदीक है। शिवाजी की किरणों से तेज़ पाना अधिक व्यावहारिक और प्रेरणादायी है।

सन्दर्भ
(१ ) महाकाव्य श्रीशिवभारत (लेखक शिवाजी के दरबारी कवि परमानन्द )
(२) राजा शिवछत्रपति (पूर्वार्ध और उत्तरार्ध ) लेखक : बाबासाहेब पुरंदरे
(३) SHIVAJI & SURAJ by Anil Madhav Dave (४) ज़ेर – ए -शेखावली
(५) श्रीशिवराज्याभिषेक कल्पतरु
(६) राज्य व्यवहार कोश
(५ ) श्री पांडुरंग बलकवडे तथा डॉ मिलिंद दत्तात्रेय पराड़कर ,श्रीसत्येन वेलणकर ,श्री रुपेश पवार एवं श्री केदार फाड़के से बातचीत

अमरीका के टेक्सास स्थित एक स्कूल में अंधाधुंध फायरिंग

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अमरीका से एक बेहद दुखद खबर आ रही है। यहां टेक्सास स्थित एक स्कूल में अंधाधुंध फायरिंग (Firing in Texas School) से पूरे अमरीका में हड़कंप मच गया है और राष्ट्रपति के आदेश से 28 मई तक शोक मनाने के आदेश जारी हो गए है। बताया जा रहा है कि अमरीका में एक 18 वर्षीय हमलावर ने स्कूल में घुसकर ताबड़तोड़ फायरिंग की है, जिसमें मरने वाले बच्चों की संख्या अब बढ़कर 18 और शिक्षकों की संख्या 3 (America Texas School Firing Many students killed) हो गई है। वहीं आरोपी भी पुलिस और सुरक्षाकर्मियों की जवाबी कार्रवाई से नहीं बच सका और मारा गया। टेक्सास के गवर्नर ग्रेग एबॉट ने प्राथमिक स्कूल के अंदर हुई इस सनसनीखेज घटना की जानकारी दी है। उन्होंने बताया कि हमलावर की उम्र महज 18 साल थी।

रॉब एलिमेंट्री है प्राथमिक स्कूल का नाम
टेक्सास के जिस प्राथमिक स्कूल में फायरिंग की दिल दहला देने वाली वारदात हुई उसका नाम रॉब एलिमेंट्री स्कूल है। टेक्सास के गवर्नर ने इस बात की जानकारी दी है। हमलावर 18 साल का युवक था जिसने ताबड़तोड़ फायरिंग कर स्कूल के 14 मासूम छात्रों और एक टीचर की जान ले ली। टेक्सास के गवर्नर ग्रेग एबॉट के मुताबिक, पुलिस की जवाबी कार्रवाई में हमलावर भी मार गिराया गया।
स्कूल का ही पुराना छात्र है हमलावर
वहीं पुलिस के एक अधिकारी ने बताया कि हमलावर शख्स स्कूल का ही पुराना छात्र है। वारदात सैन एंटोनियो के 80 किमी (50 मील) पश्चिम में एक छोटे से इलाके उवाल्डे की है। हमलावर शख्स ने घटना से पहले अपनी गाड़ी स्कूल के बाहर ही छोड़ दी। फिर स्कूल में घुसने के साथ अपनी बंदूक से अंधाधुंध फायरिंग शुरू कर दी। पुलिस के मुताबिक, उसके पास एक हैंडगन भी थी। अमेरिका के राष्ट्रपति जो बिडेन ने घटना पर शोक जताया है। साथ ही अधिकारियों को मामले में कई जरूरी निर्देश भी दिए हैं।

टेक्सास में पहले भी हो चुकी है स्कूल में फायरिंग की वारदातें
अमरीका के स्कूल में फायरिंग का अकेला मामला नहीं है। इससे पहले दिसंबर 2012 में भी टेक्सास के एक स्कूल के अंदर गोलीबारी की ऐसी ही घटना को अंजाम दिया गया था। जब सैंडी हुक स्कूल में फायरिंग की गई थी, जिसमें 26 लोगों को जान चली गई थी। अब टेक्सास में स्कूल के अंदर फायरिंग का दूसरा बड़ा मामला सामने आया है। इस दुखद घटना को लेकर गवर्नर ने बताया कि स्कूल में ऐसी वारदात कैसे हुई इसकी जांच की जा रही है। आखिर हमलावर कैसे गन के साथ स्कूल में पहुंचा?
पहले भी अमरीका के स्कूल में होती रही हैं ऐसी Shooting की वारदातें
इससे 23 साल पहले 20 अप्रैल, 1999 को भी अमरीका के इतिहास में स्कूल में गोलीबारी की दर्दनाक घटना हुई थी। जब हाईस्कूल में पढ़ने वाले दो छात्र अपने साथ राइफलें, पिस्तौलें और विस्फोटक लेकर स्कूल में दाखिल हुए थे और अंधाधुंध गोलियां चलाकर अपने 12 सहपाठियों की जान ले ली थी। इस दौरान 21 लोग घायल भी हुए थे।

भोजपुरी फिल्म ‘हर हर गंगे’ की शूटिंग वाराणसी में जारी

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भोजपुरी फिल्मों के स्टार पवन सिंह और स्मृति सिन्हा जल्द ही यशी फिल्म्स के बैनर तले बन रही दो फिल्मों में नजर आएंगे जिसकी शूटिंग लंदन में हुई है और कुछ मुम्बई में होने वाली है। स्मृति सिन्हा इन दिनों चंदन उपाध्याय के निर्देशन में बन रही फिल्म ‘हर हर गंगे’ के शूटिंग में व्यस्त हैं । फ़िल्म की शूटिंग वर्तमान समय में वाराणसी के विभिन्न रमणीय लोकेशनों पर की जा रही है। कहा जाता है कि पवन सिंह और स्मृति सिन्हा स्टारर इस फिल्म की कहानी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के स्वच्छ गंगा अभियान से प्रेरित है। पवन सिंह का रोल इस फ़िल्म में उनके फैंस के लिए सरप्राइज पैकेज होगा वहीं स्मृति अपने किरदार को लेकर भी काफी उत्साहित है। फ़िल्म मनोरंजक होने के साथ साथ एक जरुरी सन्देश भी देती है। अदाकारा स्मृति सिन्हा बैक टू बैक पवन सिंह के साथ काम कर रही हैं। दोनों की केमिस्ट्री और जुगलबंदी दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर रही है। इन दिनों पवन सिंह के साथ स्मृति सिन्हा का गीत ‘साड़ी से ताड़ी’ यूटयूब पर ट्रेंडिंग नंबर वन सांग बना हुआ है जिसे मात्र छः दिनों में 10मिलियन से ज्यादा दर्शकों का प्यार मिल चुका है।
स्मृति सिन्हा ने जब से भोजपुरी इंडस्ट्री में पवन सिंह के साथ कमबैक किया है, उनके प्रोजेक्ट्स वायरल हो रहे हैं।अब इनकी जोड़ी एक बार फिर से बड़े पर्दे पर धमाल मचाने के लिए तैयार है।
प्रस्तुति : काली दास पाण्डेय

दूल्हा पक्ष लाया आर्टिफिशियल कानों के झुमके , दुल्हन ने ससुराल जाने से किया मना , पुलिस ने करवाया समझौता , ससुराल जाते ही दूल्हा देगा असली झुमके पोलिस ने रखी शर्त

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Kanpur Bride: उत्तर प्रदेश के कानपुर से एक अजीबोगरीब मामला सामने आया है, जहां एक दुल्हन ने विदाई के समय सिर्फ इसलिए ससुराल जाने से मना कर दिया क्योंकि दूल्हा पक्ष उसके लिए जो कानों के झुमके लाया था, असली नहीं बल्कि आर्टिफिशियल थे। शादी तो धूमधाम से हुई लेकिन विदाई के समय इस बात पर झगड़ा हो गया। झगड़ा इतना बढ़ गया कि, पुलिस को बुलाना पड़ा। मौके पर सूचना मिलते ही पुलिस पहुंची और दोनों पक्षों के बीच विवाद को शांत कराकर दुल्हन को उसके ससुराल रवाना किया। हालांकि, दुल्हन को ससुराल ले जाने के लिए दूल्हा पक्ष को एक शर्त के लिए हामी भरनी पड़ गई।

मिली जानकारी के अनुसार, यह मामला कानपुर के साढ़ थाना इलाके का है। जहां संतोष यादव की बेटी की शादी हुई। शादी में सब रस्में काफी अच्छे तरीके से पूरी हुई। दूल्हा पक्ष जोरशोर से बारात लेकर पहुंचा, फिर जयमाल और फेरे भी ठीक से हुए। लेकिन विदाई के समय दुल्हन बिफर गई। दरअसल, दूल्हा पक्ष की ओर से जो गहने दुल्हन के लिए आए थे, उनमें सब असली था, बस कानों के झुमके नकली निकले। जिसके बाद दुल्हन काफी भड़क गई और अपने घर से विदाई के लिए इनकार कर दिया। काफी समझाने के बाद भी दुल्हन नहीं मानी।

दोनों पक्षों में हो गया विवाद
पहले दोनों पक्षों ने इस मामले को बातचीत से सुलझाने की कोशिश की लेकिन धीरे-धीरे मामला विवाद में बदल गया। दुल्हन बिल्कुल साफ कर चुकी थी कि, वह विदा होकर ससुराल नहीं जाएगी। इसके बाद विवाद और ज्यादा बढ़ता चला गया और इतना बढ़ गया कि, ठीक-ठाक शादी के माहौल में पुलिस को एंट्री लेनी पड़ी। पुलिस ने शादी स्थल पर पहुंचकर दोनों पक्षों से बातचीत की, दुल्हन को भी समझाया और बड़ी मुश्किल से दोनों पक्षों को राजी कराया। आखिरकार दोनों पक्षों में एक शर्त पर समझौता हो गया कि, विदाई होने के बाद ससुराल पहुंचते ही दूल्हा अपनी दुल्हन के लिए असली झुमके लाकर देगा।