डा. गोपाल नारायण आवटे-

गर्मी का मौसम चल रहा था और तेज धूप से धरती पर मानो आग लगी हुई थी, लेकिन मुकुल दास के बगीचे की
अमराईयों में कोयल मस्ती के साथ इस डाल से उस डाल पर फुदक रही थी और जब उसकी इच्छा होती पूरी ताकत
और जोश के साथ कूक रही थी।

ऐसी गर्मी में कूलर भी बेकार साबित हो रहे थे। लेकिन आम के वृक्षों तले तो प्रकृति ने मानों छांव की ठण्डक फैला रखी
थी। अनुराग ने लुंगी को घुटनों के ऊपर थोड़ा मोड़कर लपेट लिया और एक खटिया लेकर पीछे आम के पेड़ तले जा
पहुंचा। कल वह हाजीपुर में जाकर लड़की को पसंद कर आयेगा और फिर शादी होगी। शादी का सपना उसकी आंखों मे
ना जाने कितने बरसों से पल रहा था, लेकिन उसने ऐसे सपने को कभी भी आंखों में बसने नहीं दिया था। जब भी ऐसा
कोई विचार आया कि तुरंत स्वयम् को संयत कर लिया-अभी नहीं-पहले बबली की शादी हो जाये फिर वह विचार
करेगा। हमेशा ऐसे ही विचारों से स्वयम् को उसने परिपूर्ण रखा।

खटिया बिछाकर वह आंखे मूंद कर लेट गया। अतीत की स्मृतियां किसी सूखे पत्ते की तरह उस पर झरने लगी थीं।
कानों में कोयल का मधुर स्वर गूंज रहा था। परिवार में वह बड़ा पुत्र था और उससे छोटी तीन बहनें थीं। पापा चीनी
फैक्ट्री में लेखापाल का काम देखते थे, जब उसकी पढ़ाई पूरी हुई और एक शिक्षक की छोटी सी नौकरी उसकी झोली में
आई तो वह इसलिए प्रसन्न था कि पापा की हाड़ तोड़ मेहनत में वह सहयोगी हो जाएगा। अक्सर रात में जब उसकी
नींद खुलती थी तो वह पापा को बात करते या बड़बड़ाते पाता था कि-‘जल्दी से अनुराग की शादी कर दो और जो दहेज
मिलेगा उससे थोड़ा जोड़ कर दोनों बेटियों का विवाह कर देंगे, तीसरी अभी छोटी है तब तक ईश्वर कुछ न कुछ
व्यवस्था कर ही देगा।
वह अभी कुल जमा 23-24 वर्ष का ही तो हुआ था, अभी वह यह सारी झंझटों में पडऩा नहीं चाहता था परिणाम स्वरूप
उसने एक दिन मां से स्पष्ट कह दिया कि ‘पापा से कह देना मैं अभी शादी के झंझट में नहीं पडूंगा, पहले मेरी बहनों की
शादी होगी तब मैं विवाह करुंगा।
‘पागल हुआ है क्या? मां ने टोका था।
‘मां शादी के बाद पत्नी अगर खराब स्वभाव की आ गई तो मैं अपनी जिम्मेदारी कैसे निभा पाऊंगा?
‘पगले सब पति पर निर्भर करता है कि वह अपनी पत्नी को किस तरह मोड़कर रखे। वह तो नई आई हुई रहती है, पति
जैसा व्यवहार पति परिवार के सदस्यों से करेगा वह भी वैसा ही करेगी। मां ने समझाया।
‘नहीं मां-कभी नहीं मानी और हमने जबरदस्ती की तो दहेज का मामला लगाकर सबको जेल भेज देगी , उसने हंसते
हुए कहा।
‘अगर यही किस्मत में लिखा हो तो क्या किया जा सकता है।
‘मैंने कसम खा रखी है मां कि पहले तीनों बहनों की जिम्मेदारी से मुक्त होने के बाद ही विवाह करुंगा। कहकर वह
बाहर निकल गया था।

उसके लिए रिश्ते आना शुरु हो गए थे परिवार वालों ने उसे बहुत समझाया, दहेज भी अच्छा मिल रहा था, लेकिन
उसने मना कर दिया। पहले बहनों की शादी फिर मेरी। आखिर बड़ी बहन की शादी के लिए लड़का खोजा जाने लगा।
कहीं लड़का अच्छा था तो उसकी कीमत (दहेज) अधिक की मांग थी और जहां दहेज कम मांगा जा रहा था वहां लड़का
विशेष नहीं था। परिणाम स्वरूप एक ऐसे बिंदु पर सब पहुंच जाना चाहते थे जहां पर सब ठीकठाक हो। शक्कर मिल से
पापा ने अपने पी.एफ. से रुपये निकलवा लिये और कुछ जमा पूंजी थी। कुल 10 लाख में बड़ी बेटी का विवाह हो गया
था। लेकिन अभी दो शेष थीं। लगभग सब कुछ दांव पर लग चुका था। मंझली की किस्मत अच्छी थी उसको पसंद
करने वाले घर बैठे ही आ गए और कोई मांग उनकी नहीं थी। विवाह की तैयारी होने लगी थी, लेकिन परिवार जानता
था कि मंझली के विवाह में खर्च कम किया तो जीवन भर ताने सुनने को मिलेंगे। बाजार से उधार लेकर उसका विवाह
भी लगभग शान के साथ किया। पूरा परिवार आर्थिक बोझ से दब गया था।

तीसरी बेटी एम.ए. करके किसी प्राइवेट स्कूल में नौकरी कर रही थी। कुछ ट्यूशन भी कर रही थी जितनी आमदनी थी
उससे केवल ब्याज ही चुकाया जा रहा था। उसको देखने आते और जवाब देंगे कहकर जो जाते तो लौट कर ही नहीं
आते। धीरे-धीरे समय निकलते जा रहा था और छोटी बहन बड़ी दीदी की उम्र तक जा पहुंचने को तैयार थी। कहां से
दहेज जुटाएं? पूरा परिवार परेशान था। आखिर एक बैंक में कार्यरत क्लर्क से बात पक्की हुई तो उसकी मांग-कार और
नगदी की थी। इतना रुपये कहां से जुटा पाएंगे, क्योंकि अब घर में कुछ भी नहीं था। या तो घर बेच दें या फिर अनुराग
विवाह कर ले। लेकिन उसका वचन तो मर्द का था कि पहले बहनों की शादी हो। अब उधार लेने के लिए रिश्तेदार और
परिचित ही बचे थे। जीवन में मनुष्य अपने पूरे जीवन को सामान्य-साधारण तरीके से जी ले, किंतु कभी भी घनिष्ठ
मित्र या रिश्तेदार से उधार ना ले। उससे मित्रता भी चली जाती है और रिश्ता भी छोटा हो जाता है, लेकिन समय की
मांग थी कि रुपयों की व्यवस्था करना है- सो पूरा परिवार रुपयों की व्यवस्था में जुट गया। प्रत्येक रिश्तेदार से मांगे।
किसी ने हजारों दिये, किसी ने आश्वासन और किसी ने स्वयम् की आर्थिक स्थिति खराब होने की बात कही। विवाह
की तारीख पक्की हो गई थी। अभी कुछ लाख एकत्र करना शेष थे। उसने अपने शाला में शिक्षकों से मांगे और सब
जोड़-तोड़ करके इतने रुपये हो पाए कि विवाह किया जा सके।

बिदाई के बाद पूरा परिवार एक बड़े बोझ से मुक्त हो गया लेकिन उधारी के बोझ से दब गया था। अब एक ही कार्य था
किसी भी तरह से यह उधारी चुकाई जाये। मां ने अपने मंगलसूत्र को छोड़कर सब गहने बेच दिये। कुछ तो बोझ कम
होगा। उसने अपना पूरा वेतन पापा के हाथों में रखना शुरु कर दिया। उसने ट्यूशन भी शुरु कर दी थी। खर्च ऐसी
आदत है जो एक बार प्रारंभ हो जाता है तो फिर कम ही बार रुक पाता है। इस मध्य बड़ी बेटी प्रसव के लिए आ गई थी।

उसका भी खर्च था। खुशी अवश्य थी लेकिन महत्वपूर्ण खर्च को जुटाना भी था। कुछ खर्च से संभले तो अनुराग का
विवाह तय करें। उसकी उम्र भी 37-38 को छूने लगी थी। विवाह के जो सपने कभी रंगीन हुआ करते थे वह अब पूरी
तरह से ठोस शिलाखण्ड जैसे कठोर हो चुके थे जिसमें ऐसी कोई कोमल भावनाएं शेष नहीं बची थी यह देह का
आकर्षण ही था, लेकिन विवाह तो विवाह होता है। मर्द की निशानी है विवाह करे और बच्चों को पैदा करे। उसके लिए
दूर के रिश्ते से एक खबर आई थी। लड़की नौकरी में थी, अच्छा वेतन भी पा रही थी, दहेज भी बहुत मिलने का
आश्वासन बिचौलिए पंडित जी ने दिया था। उसने भी सोचा कर्ज भी पट जाएगा और जो वेतन आयेगा उससे उधारी
भी चुक जाएगी। आखिर उसके हिस्से में भी खुशियां आ ही रही थीं।

कई बार दर्पण में उसके युवा चेहरे को प्रौढ़ होते देखकर उसके मन में ठेस लगी थी, लेकिन निर्णय उसी का था, वचन
का कितना पक्का था कि आखिर तीनों बहनों का विवाह हंसते-रोते किया और फिर उसने विवाह के लिए हामी भरी
थी।

सांझ घिर आई थी। हवा में अभी भी गर्मी की लहर थी। उसका ध्यान टूटा-कल हाजीपुर जाना है। साथ में पापा भी जा
रहे हैं। लड़की को देखकर वह इसी गर्मी में विवाह कर लेगा। कभी कभी देह की मांग को भी पूरा कर ही लेना चाहिए। मां
भी प्रसन्न थी कि आखिर अनुराग का विवाह होने जा रहा था-बस एक औपचरिकता थी कि लड़की देखकर आएं और
फिर मुहूर्त निकाल लें। मंझली दीदी भी आई हुई थी, उसका भी प्रसव होना था। वह भैया को खोजते हुए आम बगीचे में
आ गई-‘क्यों भैया यहां क्या कर रहे हो? ‘बहुत गर्मी थी-यहां काफी ठंडक है। ‘चलिए सब चाय के लिए इंतजार कर रहे
हैं मंझली ने कहा।

उसने खटिया खड़ी की और बगीचे से घर की ओर लौट गया। बीस मीटर दूर ही तो घर था। मां-पापा सब चाय की
प्रतीक्षा में बैठे थे। वह पहुंचा, चाय आई, अगले दिन जाने की चर्चा निकल आई। हाजीपुर घर से अधिक दूर नहीं था।
लड़की वालों पर प्रभाव डालने के लिए किराये की कार लेने पर सहमति बनी। कौन-कौन जायेगा? अनुराग के दो दोस्त
होंगे, मंझली ने जिद की वह भी जाएगी तो मां ने कहा हम भी चलेंगे। आखिर में सबके जाने पर सहमति हो गई।
अगला दिन आने के मध्य एक रात शेष थी। अनुराग रात में जब अपने बिस्तर पर लेटा था तो सामने दीवार पर एक
सुंदर फिल्मी युवती की फोटो लगी थी जो अभी अभी फिल्मों में आई थी और उसकी उम्र 18-20 के मध्य की थी,
लेकिन क्या गजब का अभिनय करती है।

अनुराग ने पूरी रात सपनों में उसी के साथ बिताई। सुबह नींद खुली तो खाली बिस्तर और सूना सूना कमरा था। उसे स्वयम् की नालायकी पर हंसी हो आई। लगभग नौ बजे कार दरवाजे पर आ गई थी। जब सब गाड़ी में बैठ गये तब पापा ने कहा-‘अनुराग एक दो महीनों के बाद अपनी भी कार होगी। सब हंस दिये थे। सब इस अभिप्राय को समझ रहे थे कि पापा क्या कहना चाह रहे हैं। जब हाजीपुर पहुंचे तब लगभग ग्यारह बज रहे थे। गर्मी बहुत अधिक थी। लड़की वालों का घर नहीं बल्कि बहुत बड़ा बंगला था। बंगले के बाहर आम, नारियल के वृक्ष लगे थे। लीची हल्की गुलाबी हो कर लटक रही थी। उनके परिवार ने बहुत सादर सत्कार किया। ठंडा लेकर वह आई जिसकी प्रतीक्षा अनुराग को पिछले 38 वर्षों से थी। उसने उसे देखा-लगा कि सब कुछ कृत्रिम है। युवा अवस्था को जबरदस्ती बांध कर रखा हुआ है। केश भी काले किए हुए थे। गहरे मेकअप से झुरियां दबाई गई थीं। दोनों  को कुछ देर बात करने के लिए एकांत दे दिया गया था। कुछ देर दोनों के मध्य चुप्पी रही। वह कुछ प्रश्न करना चाह रहा था लेकिन वह क्या कहे? लड़की (प्रौढ़) ने ही प्रश्न कर डाला-‘आप कैसे हैं?
‘ठीक हूं-आप क्या करती हैं?
‘एक कंपनी में सीईओ हूं।
‘एक प्रश्न करना चाह रहा था यदि बुरा ना मानें तो?
‘अवश्य पूछिए ना।
‘आपने विवाह क्यों नहीं किया?
दोनों के मध्य चुप्पी छा गई, फिर उसने संयत करके कहना प्रारंभ किया-‘मेरे दो छोटे भाई थे, मां का बचपन में निधन
हो गया था, उनको पांव पर खड़ा करने की जिम्मेदारी मेरी थी। शिक्षा, नौकरी और व्यवसाय में समय लगाते लगाते
कब उम्र हाथ से निकलती चली गई पता ही नहीं चला-ठीक आप की ही तरह।
‘मेरी तरह? मैंने आश्चर्य से पूछा।

‘आपके विषय में पंडित जी ने मुझे सब विस्तार से बताया। इस जमाने में कोई बिरला ही होता है जो अपनी बहनों के
सुखों की इतनी चिंता करे।

‘निश्चित रूप से त्याग के मामले में मुझसे अधिक तो आप हैं। मैंने उसका सम्मान रखने हुए कहा।

‘आपकी शिक्षा कितनी है? मैंने ही प्रश्न किया। ‘मैंने पी.एच.डी. की है और उसके साथ ही कई छोटे छोटे एक वर्षीय
कोर्स भी किये हैं। एम.बी.ए. तो बहुत बाद में किया। मुझे कई पुरस्कार और सम्मान भी मिले।कहकर वह उत्तर की
प्रतीक्षा किए बिना उठकर अंदर गई और एक मोटी फाइल को उठा लाई जिसमें मार्कशीट, प्रमाण पत्र, सम्मान पत्र,
फोटो, पेपर कटिंग लगी थी। उसने बहुत उत्साह से सब देखा। उसे जो देखना था वह उसने देख लिया था।
तब ही मां-दीदी-पापा सब आ गऐ और बातें वहीं समाप्त हो गईं। पापा उसके चेहरे की ओर देख रहे थे कि उसने क्या
निर्णय लिया है, लेकिन वह मौन था। उसका एक दोस्त भी बैठा था, उसने भी इशारे से पूछा। उसने इशारे में कहा-‘कुछ
देर बात घर जाकर बताऊंगा।

नाश्ते के बाद भोजन आदि के बाद सबकी नजर उस पर ही थी। वह कुछ भी नहीं कह रहा था। वह मन ही मन सोच रहा
था कि इसके परिवार में आने से कितना लाभ मिलेगा। ‘घर जाकर बताते हैं कहकर वे जब लौट रहे थे तब आंखों ही
आंखों में उन दोनों ने एक दूसरे को देखा और इजाजत ली। रात को घर पहुंचे। सब जान लेना चाह रहे थे कि इतने
अच्छे रिश्ते को तुरंत हां कर देना चाहिए। सब उसके रंग, रुप, शिक्षा की प्रशंसा कर रहे थे। बस उसके हां करने की देर
थी। उसके मन में अचानक एक बात आई-पूरा जीवन ही परिवार के सुख और जिम्मेदारियों में बिता दिया। अपने लिए
दो पल सुख के मैं खोज नहीं पाया। विवाह एकदम निजी मामला है। इसमें भी वह परिवार का सुख-अपना कर्ज, अपना
लाभ देख रहा है- जबकि वह जिसे वह देखने गया वह कहां से युवती लग रही थी? उसकी मार्कशीट में उसकी जन्म
तारीख देखी थी, वह तो 40 को छूने जा रही है। उसके लिए तो जीवन बसंत नहीं पतझड़ हो चुका होगा। शायद उसके
जीवन के बहुत झरने तो सूख कर मरुस्थल में बदल चुके होंगे? वह परिवार में कहां संतान दे पायेगी? वह पुरुष है-
उसको अंतिम निर्णय लेना है बिना भावुकता से। यदि विवाह के लिए हां कर दिया तो शेष जीवन संतान की लालसा में
भटकता ही रहेगा। मां, दीदीयां सब तानें कसती रहेंगी-क्या यह उचित होगा? अपने जीवन में इस तरह पतझड़ का
स्वागत् करके पूरे परिवार को वह भले ही सुखी कर दे, लेकिन अपना जीवन नर्क कर लेगा-नहीं-बिलकुल नहीं- वह
अपने लिए कुछ व्यक्तिगत सुख के लिए जीना चाहता है। उसने निर्णय ले लिया कि-‘कमरे में प्रतीक्षा कर रहे परिवार
के सदस्यों से कह दूंगा कि मैं उससे विवाह नहीं करुंगा। इस सोच को दृढ़ निश्चय का रूप देकर वह उन्हें उत्तर देने के
लिए जा पहुंचा। (विभूति फीचर्स)

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