मकर संक्रांति
कई फलों का दाता है स्नान
इन्द्रकुमार जैन – विभूति फीचर्स
महाभारत के उद्योग पर्व में आया है- गुणा दश स्नानशीलं भजन्ते बलं रूपं स्वर वर्ण प्रशुद्धि:। स्पर्शश्च गंधश्च
विशुद्धता च श्री: सौकुमार्य प्रवराश्च नार्य:॥ ऐसा ही स्मृत्यर्थसार में लिखा है। तात्पर्य यह है कि स्नान से बल, रूप,

स्वर, वर्ण की शुद्धि, माधुर्य, सुगंध, विशुद्धता, श्री सौकुमार्य और सुन्दर स्त्री प्राप्त होती है। धर्मशास्त्रों में दो प्रकार
के स्नान वर्णित हैं। जल के साथ किया गया स्नान मुख्य और जलहीन स्नान गौण माना गया है। इनके भी तीन भेद
हैं। प्रतिदिन किया गया स्नान नित्य, विशेष अवसरों पर किया गया स्नान नैमित्तिक और किसी फल की इच्छा से
किया जाने वाला स्नान काम्य कहलाता है। मनुस्मृति और बोधायनसूत्र के अनुसार सभी लोगों को प्रतिदिन सिर से
पांव तक स्नान करना चाहिए। शरीर से निरंतर गन्दगी निकलती रहती है इसलिए प्रात: स्नान कर स्वच्छ हो जाना
चाहिए। कुछ जातियों के लिए मंत्र जाप करते हुए स्नान करने के निर्देश हैं।

नित्य स्नान शीतल जल से ही किया जाना चाहिए। साधारणत: गर्म जल का प्रयोग वर्जित है। कुछ वर्णों को दो बार,
ब्रह्मचारियों को एक बार और कुछ को तीन बार स्नान करना चाहिए। रात्रि स्नान वर्जित है। ग्रहण, विवाह, जन्म-
मरण या व्रत के समय रात्रि स्नान किया जा सकता है। धर्मग्रंथों के अनुसार गर्म जल या दूसरे के लिए रखे जल में
स्नान करने से सुन्दर फल नहीं मिलता। नैमित्तिक और काम्य स्नान प्रत्येक दशा में शीतल जल से ही किया जाता है।
स्नान के लिए नदियों, वापियों, झीलों, गहरे कुण्डों और पर्वत प्रपातों के स्वाभाविक जल का उपयोग किया जाना
चाहिए। कम से कम 8000 धनुष लम्बाई की नदी मानी गई है। इससे छोटे नदी नाले गर्त कहे गए हैं। श्रावण-भादो में
नदियां रजस्वला होती हैं। अत: उनमें स्नान वर्जित है मगर ऐसी नदियों में स्नान किया जा सकता है जो समुद्र में
मिलती हैं। उपाकर्म, उत्सर्ग, तथा ग्रहण के समय इन नदियों में भी स्नान करना चाहिए। विष्णु धर्म सूत्र के अनुसार
पात्र-जल, कुण्ड-जल, प्रपात-जल, नदी-जल, भद्र लोगों द्वारा प्राचीनकाल से प्रयुक्त जल और गंगा जल क्रमश:
अच्छा होता है।

विभिन्न सूत्रों, स्मृतियों एवं निबंधों में स्नान विधियों पर प्रकाश डाला गया है। प्रात: एवं मध्यान्ह स्नान की विधि
समान है। कात्यायन के स्नानसूत्र में स्नानविधि का विस्तार से वर्णन किया गया है। स्नान के उपरांत भीगे कपड़ों में
ही देवताओं और पितरों का तर्पण करना चाहिए। यदि कोई पूरा स्नान न करना चाहे तो उसे जल का अभिमंत्रण
आचमन, मार्जन और अद्यमर्षण करना चाहिए। जल के भीतर मल-मूत्र त्याग नहीं करना चाहिए। शरीर नहीं रगडऩा
चाहिए। जल को पैरों से नहीं पीटना चाहिए। प्राचीनकाल में स्नान के लिए पवित्र मिट्टी का प्रयोग किया जाता था।
एक ग्रंथ में बताया गया है कि आठ अंगुल नीचे की मिट्टी का प्रयोग किया जाना चाहिए। ब्रह्मचारियों को क्रीड़ा-
कोतुक के साथ स्नान वर्जित है।

शंख-स्मृति, अग्नि-पुराण तथा कतिपय अन्य ग्रंथों में जल स्नान छह श्रेणियों में विभक्त है- नित्य, नेमित्तिक,
काम्य, क्रियांग, मलापकर्षण (अभ्यंग) और क्रिया स्नान। दैनिक नित्य स्नान की चर्चा हो चुकी है। पुत्रोत्पत्ति,
यज्ञान्त, मरण, ग्रहण, रजस्वला स्पर्श, शव-चाण्डाल स्पर्श, उल्टी, दस से ज्यादा बार शौच, दु:स्वप्न देखने, संभोग के
बाद, बाल कटाने पर, श्मशान जाने पर, मानव अस्थि छू लेने पर, कुत्ता काटने पर या कुछ पक्षियों के छू जाने पर
स्नान किया जाना चाहिए। उक्त सभी स्नान नैमित्तिक हैं। पुण्य प्राप्ति या इच्छा पूर्ति के लिए काम्य स्नान किया

जाता है। माघ और वैशाख में पुण्य के लिए प्रात: स्नान किया जाता है। कूप-मंदिर, वाटिका तथा अन्य
जनकल्याणकारी निर्माण-कार्य के पूर्व क्रियांग स्नान किया जाता है। तेल और आंवला लगाकर मलापकर्षक का
अभ्यंग स्नान किया जाता है। सप्तमी, नवमीं और पर्व की तिथियों में आमलक प्रयोग वर्जित है। तीर्थयात्रा में फल
प्राप्ति के लिए किया गया स्नान क्रिया स्नान कहलाता है।

बीमार व्यक्ति गर्म जल से स्नान कर सकता है। यदि ऐसा न हो सके तो उसका शरीर पोंछ देना चाहिए। इसे कपिल
स्नान कहते हैं। यदि रोगी का स्नान आवश्यक हो तो कोई अन्य व्यक्ति उसे छूकर दस बार स्नान कर सकता है।
इससे रोगी पवित्र हो जाता है। यदि रजस्वला नारी चौथे दिन रोग-ग्रस्त हो जाए तो कोई अन्य स्त्री दस-बारह बार
वस्त्रयुक्त स्नान कर उसे शुद्ध कर सकती है। इसके बाद रजस्वला स्त्री की साड़ी बदल दी जाती है। जब रोगादि
कारणों से साधारण स्नान करने में कठिनाई हो तो सात प्रकार के गौण स्नानों की शास्त्रीय व्यवस्था है। जल द्वारा
किया गया स्नान 'वारूण स्नान’ कहलाता है। अन्य गौण स्नानों में मंत्र स्नान, भोम स्नान, आग्नेय स्नान, वायव्य
स्नान, दिव्य स्नान और मानस स्नान सम्मिलित हैं। कहीं-कहीं मंत्र स्नान को ब्राह्म स्नान लिखा गया है। वृहस्पति
ने सारस्वत स्नान का वर्णन किया, जिसमें कोई विद्वान व्यक्ति आशीर्वचन कहता है। मंत्र स्नान में मंत्र बोलकर
जल छिड़का जाता है, भौम स्नान में भुरभुरी मिट्टी शरीर पर पोती जाती है, आग्नेय में पवित्र राख से शरीर स्वच्छ
किया जाता है, वायव्य में गौ-खुरों से उठी धूल से स्नान किया जाता है सूर्य की किरणों के रहते वर्षाजल से स्नान दिव्य
और भगवान विष्णु का स्मरण मात्र मानस स्नान है। वर्तमान में काक स्नान की काफी चर्चा होती है मगर संभवत:
यह कपिल-स्नान या मंत्र-स्नान का पर्यायवाची है। पुरातन ग्रंथों में काक स्नान का उल्लेख नहीं मिलता। (विभूति
फीचर्स)

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