राम, राम जय राजा राम
आर.के. भारद्वाज – विनायक फीचर्स
कभी-कभी ऐसी घटनायें घटती हैं, जो प्रारंभ में कठिन और दु:खदायी प्रतीत होती हैं परन्तु परिणाम में उत्तम, श्रेष्ठ और सुखप्रद होती हैं। ऐसा ही राम वनवास के समय हुआ। जब राम को वनवास हुआ तो पूरी अयोध्या, प्रशासन और प्रजा सिवाय राम के बहुत दु:खी, व्यथित और परेशान हुई। लोगों ने आंसू बहाये और रोये। यह सब लोगों का राम के प्रति प्यार, आदर, मान-सम्मान व श्रद्धा के कारण हुआ। लोगों के इस जज्बे से राम के स्वभाव की सौम्यता, वाणी की मधुरता और उनके अनगिनत सद्ïगुणों की झलक मिलती है, इसलिये राम के वन जाने के लाभ और उपलब्धियों का बखान करने से पहले उनके गुणों पर प्रकाश डालना आवश्यक है।
नारदजी राम को जितेन्द्रिय, धैर्यवान, महाबलवान और कांतियुक्त बताते हैं। उनका अपने मन, इन्द्रियों पर संयम है। वह नीति को जानने वाले हैं और बुद्धिमान हैं। राम धर्म के रहस्य को जानते हैं तथा सदैव सत्य पर स्थित रहते हैं। उनमें शत्रुओं को समाप्त करने की सामथ्र्य है और वह सदैव प्रजा के हित में लगे रहते हैं। उनकी स्मरण शक्ति अद्भुत है और सभी शास्त्रों के पण्डित हैं। धर्म की रक्षा करने में वह ब्रह्मïा के समान हैं। विष्णु के समान बलवान हैं और उनका क्रोध मृत्यु की ज्वाला रूपी अग्नि के समान भयंकर है। उनकी सहन करने की शक्ति पृथ्वी के समान है और त्याग करने में कुबेर। सत्य का पालन करने में वह दूसरे धर्मराज हैं।
वाल्मीकि कहते हैं कि मीठे शब्दों में दूसरों का साहस बढ़ाना राम की विशेषता है। राम स्वभाव से शांतचित हैं। कोई उनको कठोर बात कह देता है तो वह उसका उत्तर सख्ती से नहीं देते। कोई उन पर एकबार उपकार कर दे तो वह उसको जीवन भर नहीं भूलते। सतपुरुषों की संगत और उनसे शिक्षा प्राप्त करने का उनको बहुत शौक है। उनमें घमण्ड नाम की बू तक नहीं है। बढ़े-बूढ़ों और ब्राह्मïणों का वह बहुत सत्कार करते हैं। राम के यह बहुत सारे गुण नि:संदेह उनकी वास्तविकता, ऐतिहासिकता को दर्शाते हैं, क्योंकि किसी काल्पनिक व्यक्ति के इतने गुणों का बखान हो ही नहीं सकता, जब तक कि जाना, समझा, देखा और परखा न जाये। राम के जन्मसिद्ध, गुणों, बुद्धि और प्रतिभा को संवारने, निखारने, सजाने तथा विस्तार देने में ऋषि-मुनियों का बड़ा योगदान रहा। यह सब बच्चों में हुआ। वन जीवन राम के लिये वरदान सिद्ध हुआ।
कुछ विद्वानों का मत है कि राम को वनवास भिजवाने में ऋषि-मुनि की चाह थी, कैकेयी तो एक माध्यम थीं। ऋषि-मुनि मुख्यत: वशिष्ठ, वाल्मीकि, भारद्वाज, विश्वामित्र, अगस्त्य, परशुराम आदि-आदि रावण की बढ़ती शक्ति, आतंक तथा अत्याचार से तंग आ चुके थे। लगभग आधे आर्यवर्त पर रावण और उसकी मित्र शक्तियों का शासन था। रावण का अन्त और नाश करने में राम से उपयुक्त कोई वीर शिरोमणि नहीं था।
चौदह वर्ष वनवास से पहले भी राम ने वन जीवन का अनुभव प्राप्त कर लिया। जब वह और लक्ष्मण महर्षि विश्वामित्र के साथ उनके यज्ञ में रक्षार्थ गये थे। उस दौरान विश्वामित्र ने प्रसन्न होकर राम को अनेक अस्त्र दिये, जिनमें कुछ के नाम है- दिव्य दण्डचक्र, धर्मचक्र, कालचक्र, विष्णुचक्र, वृहत इन्द्रास्त्र, वज्रास्त्र, ब्रह्मïशिर अस्त्र, दो शुभ गदायें मोदकी और शिकरी, धर्मपाश, कालपाश, वरुणपाश, शुष्क एवं आद्र दो बिजली के अस्त्र, पिनाक अस्त्र, नारायण अस्त्र, आग्नेय अस्त्र, दो शक्ति अस्त्र हयशिर और कौञ्च, कंकाल, मूसल, घोर कपाल किंकिरणी, नन्दन अस्त्र आदि-आदि। इन अस्त्रों के प्रयोग का अवसर राम को राक्षसों के विरुद्ध लड़ाइयों में मिल गया। उन दिनों राक्षसों ने लूटमार व हत्या का कहर मचा रखा था, जिससे लोग भयभीत व आतंकित थे। राम ने बलवान और खूंखार राक्षसों जैसे ताड़का और सुबाहु को मार भगाया और ताड़का पुत्र मारीच को घायल कर दूर फैंक दिया। इस प्रकार राम ने आसपास के लोगों को न केवल राक्षसों के अत्याचारों से मुक्ति दिलाई, बल्कि अपने सैन्य बल व युद्ध कौशल का भी परिचय दिया।
इसी काल में राम ने जनकपुर जाते हुए रास्ते में गौतम ऋषि की पत्नी अहिल्या जो इन्द्र द्वारा धोखे से बलात्कार किये जाने के पश्चात दु:ख, पीड़ा, तनाव के कारण शिलावत हो गई थी, का उद्धार किया। राम ने अहिल्या को सांत्वना दी और बलात्कारी इन्द्र की घोर भत्र्सना की। महामुनि विश्वमित्र का राम को अपने साथ ले जाने का मुख्य उद्देश्य केवल राम का विवाह ही था। ताड़का आदि का वध तो एक बहाना था। आदि कवि बाल्मीकि ने विवाह, वनवास, सीताहरण और बालि वध इन्हीं चार मुख्य घटनाओं का रामायण में सविस्तार वर्णन किया है। इन्हीं घटनाओं का ही सीधा संबंध रावण के मारे जाने से है।
जनकपुर में राम ने बड़े अद्भुत शिव धनुष रत्न जिसकी प्रत्यंचा महाबली राजा और राजकुमार भी न चढ़ा सके, बीच से पकड़कर लीलापूर्वक उठा लिया और खेल-सा करते हुए उस पर प्रत्यंचा चढ़ा दी। धनुष भंग कर राम ने अपनी शक्ति और शौर्य का परिचय दिया। इससे राम की वाह-वाही हुई, सब लोगों ने इनकी जय-जयकार की। राम की कीर्ति और यश दूर-दूर तक फैल गया। यह सुनकर परशुराम जी आश्चर्य से चकित हो राम की परीक्षा लेने एक वैसे ही बड़े धनुष के साथ जनकपुर आ धमके। उस उत्तम धनुष और बाण की भी प्रत्यंचा चढ़ा दी। इस कृत्य से प्रसन्न होकर परशुराम ने राम को आशीर्वाद दिया। राम जैसे सर्वगुण सम्पन्न देव पुरुष जिसे रामायण में ‘सर्वविद्याव्रत स्नात:Ó कहा गया है और सीता सम गुरुवान, बुद्धिमान, विषुधी देवी के विवाह से दोनों के जीवन में निखार आ गया, बहार आई तथा यह दोनों के लिये सोने पे सोहागा था।
दूसरी ओर अयोध्या के कर्म परायण और न्यायप्रिय राजा दशरथ और मिथिला के विद्वान और आध्यात्मवादी राजा जनक की मैत्री तथा संबंध से दोनों राज्यों की न केवल शक्ति बढ़ी, बल्कि ख्याति भी दूर-दूर तक फैल गई। चौदह वर्ष वनवास काल में राम को भारत की चप्पा-चप्पा धरती, नदी-नालों, पहाड़, पशु-पक्षी, जंगल तथा वन में रहने वालीं विभिन्न जाति व उनकी समस्याओं को निकट से देखने का अवसर मिला। उनके जीवन की प्रमुख घटनाएं व उपलब्धियां वन से जुड़ी हुई हैं। यदि वह वन नहीं जाते तो केवल अयोध्या के राजा ही रह जाते और हो सकता है कि उनकी सीता से शादी भी न होती। राम को इतना आदर, मान-सम्मान, यश और कीर्ति न मिलती, जितनी उनको वन जाने से मिली। वन जाने से इनकी शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक शक्तियां जो उनमें पहले से थीं और ज्यादा उन्नत व विकसित हो गईं। वन के कठोर जीवन से उनका शरीर और पुष्टï हुआ। ऋषि-मुनियों विशेषकर भारद्वाज, अत्रि, शरभंग, अगस्त्य के प्रवचनों और उपदेशों से मानसिक शक्ति में और वृद्धि हुई।
वन के शान्त, एकान्त वातावरण में प्रार्थना, उपासना से आध्यात्मिक शक्ति में भी बढ़ोतरी हुई। ऋषि-मुनियों विशेषकर विश्वमित्र और अगस्त्य ने जो नये-नये प्रभावकारी और अचूक अस्त्र राम को प्रदान किये थे, उनका राक्षसों के विरुद्ध लड़ाइयों में प्रयोग करने का अवसर मिल गया। इन अस्त्रों के बल पर राम ने कई क्रूर व अत्याचारी राक्षसों को बड़ी आसानी से मार गिराया और तपस्वियों, मुनियों तथा वनवासियों को भयमुक्त कर सुख पहुंचाया। महाबली खर, उसके बलवान सेनापति दूषण और चौदह हजार शक्तिशाली सैनिकों को भी राम ने मार गिराया। इस विजय से राम के सैन्यबल और युद्ध कौशल की बड़ी प्रशंसा हुई और लोगों को राक्षसों के अत्याचारों से मुक्ति मिली।
वन में रहते हुए राम ने निषाद राजगूह को गले लगाया, स्वर्ण मृग के वेश में आये मारीच को सुगमता से मार गिराया, मरणासन्न जटायु को सुख पहुंचाया और शबरी भीलनी के भक्तिवश झूठे बेर खाये और उसका उद्धार किया। अत्याचारी बालि को मारकर सुग्रीव को गद्दी पर बैठाया और वानरों को भयमुक्त कर उनसे मित्रता स्थापित की। इन सब कार्यों से राम ने आपसी भाईचारे का संदेश दिया और बताया कि आदमी जन्म से नहीं, कर्म से बड़ा होता है। इससे राम की दयालुता व उदारता की झलक मिलती है किन्तु राम का सबसे बड़ा काम व उपलब्धि रावण जैसी महाशक्ति को हराना थी। इसका अवसर रावण द्वारा सीता हरण से मिल गया। लंका विजय, राम ने बिना अयोध्या से सैनिक सहायता लिये जनजाति-वानर आदि सैनिकों के बल पर प्राप्त की। रावण और उसकी राक्षसी सत्ता के अंत से लोगों ने चैन की सांस ली और राम का यश दूर-दूर तक फैल गया।
राम की शूरवीरता, युद्ध कौशल, सैन्य संचालन जिसमें समुद्र पर पुल बनाना भी शामिल है तथा अन्य अनेक गुण लोगों के सामने उजागर हुए और उनकी प्रशंसा व जय-जयकार होने लगी। यह राम के जीवन का चर्मोत्कर्ष था। राम विश्व के प्रथम सम्राट बन गये। (विनायक फीचर्स)