भगत सिंह कोश्यारी राजनीति में अपनी सादगी के लिए जाने जाते है. इस वजह से उन्हें उत्तराखंड में बच्चे से लेकर बुजुर्ग तक प्यार से भगत दा के नाम से पुकारते हैं. वह उत्तराखंड गठन के बाद बनी अंतरिम सरकार में मुख्यमंत्री की जिम्मेदारी संभाल चुके हैं.
‘भगत दा’. RSS प्रचारक से राज्यपाल तक का सफर कर चुके भगत सिंह कोश्यारी ने महाराष्ट्र में एक नई तरह की राजनीति की शुरुआत की है। आम तौर पर एक राज्यपाल एक रबर स्टैम्प की तरह से होता है मगर भगत सिंह कोश्यारी ने एक राज्यपाल की भूमिका की पूरी की पूरी पृष्ठ्भूमि ही बदल कर रख दी है। महानगर मुम्बई की तमाम स्वमसेवी संगठनों और संस्थाओ को पुनर्जीवित कर दिया है , हर दिन कुछ न कुछ सांस्कृतिक , सामाजिक कार्यक्रमों में मुख्य अतिथि के तौर पर भाग ले कर राजभवन से सामाजिक समरसता और समाज सेवा की प्रेरणा देने वाले भगत सिंह कोश्यारी आज महानगर मुम्बई ही नहीं सम्पूर्ण महाराष्ट्र की जनता के लाडले बन चुके है। भगत दा में एक जननायक की भूमिका में नजर आते है। जनता के बीच रहना उन्हें सामाजिक कार्यो की प्रेरणा देना , देश की सेवा में प्रेरक बनाना उनकी ख़ासियत है। आज भले ही महाराष्ट्र की तिकड़ी सरकार के साथ उनका विवाद समय – समय खुल कर सामने आते रहे हो मगर उनके सामने सभी ने मुँह की खाई है। अभी अभी ताजे विवाद को भी ले कर उन्होंने एक साधे हुए राजनेता के तौर पर ज़वाब दे कर विरोधी पार्टियों को आईना दिखा दिया है।
घटना क्रम के अनुसार , महाराष्ट्र (Maharashtra) के कई नेताओं ने राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी (Bhagat Singh Koshyari) की, समर्थ रामदास को छत्रपति शिवाजी महाराज (Chhatrapati Shivaji Maharaj) का गुरु बताने वाली टिप्पणी पर सोमवार को आपत्ति जताई. इन नेताओं ने भारतीय जनता पार्टी (BJP) के नेता एवं छत्रपति शिवाजी महाराज के वंशज उदयनराजे भोंसले का नाम भी शामिल है. उन्होंने कोश्यारी के बयान पर आपत्ति जताते हुए उनसे तत्काल इसे वापस लेने को कहा है. कोश्यारी ने रविवार को औरंगाबाद में एक कार्यक्रम के दौरान छत्रपति शिवाजी महाराज और चंद्रगुप्त मौर्य का उदाहरण देते हुए गुरु की भूमिका को रेखांकित किया था.
उन्होंने कहा था, ‘‘इस भूमि पर कई चक्रवर्ती (सम्राट), महाराजाओं ने जन्म लिया, लेकिन चाणक्य न होते तो चंद्रगुप्त के बारे में कौन पूछता? समर्थ (रामदास) न होते तो छत्रपति शिवाजी महाराज के बारे में कौन पूछता.’’ कोश्यारी ने कहा था, ‘‘मैं चंद्रगुप्त और शिवाजी महाराज की योग्यता पर सवाल नहीं उठा रहा हूं. जैसे एक मां, बच्चे का भविष्य बनाने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है, उसी तरह हमारे समाज में एक गुरु का भी बड़ा स्थान है.’’ खैर भगत दा के साथ विवादों का पुराना नाता है। वह राज्यपाल से ज्यादा एक नायक और जननायक की भूमिका में रहते है जिसे महाराष्ट्र की जनता बहुत प्यार करती है।
Shri Bhagat Singh Koshyari ji
देश की सियासत में भगत सिंह कोश्यारी (Bhagat Singh Koshyari) किसी पहचान के मोहताज नहीं है. राजनीति में अपनी सादगी के लिए पहचाने जाने वाले भगत सिंंह कोश्यारी को प्यार से ‘भगत दा’ के नाम से पुकारा जाता है. भगत सिंह कोश्यारी उत्तराखंड बीजेपी (Uttarakhand BJP) के दिग्गज और वरिष्ठ नेताओं में शुमार रहे हैं. उन्होंने राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (RSS) के प्रचारक से महाराष्ट्र के राज्यपाल तक का सफर तय किया है, लेकिन भगत दा का यह राजनीतिक सफर बेहद ही उतार- चढ़ाव भरा रहा है. राजनीति में आने से पहले वह कॉलेज में एक शिक्षक के तौर पर अपनी सेवाएं दे रहे थे. जिसके बाद वह राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (RSS) में पूर्णकालिक हो गए और अविवाहित रहते हुए RSS के स्वयं सेवक के साथ ही BJP की राजनीति में सक्रिय रहे.
एटा के इंटर कॉलेज में किया अध्यापन, RSS के संपर्क में आए और पूर्णकालिक हो गए
अंग्रेजी से परास्नातक करने के बाद भगत सिंह कोश्यारी ने अध्यापन के क्षेत्र में भविष्य बनाने का प्रयास किया. जिसके तहत उन्होंने 1964 में एटा के राजाराम इंटर कॉलेज में बतौर प्रवक्ता काम करना शुरू किया और कुछ वर्षों तक पढ़ाया. इसके बाद वह 1966 में RSS के संपर्क में आए और पूर्णकालिक हो गए. इसके बाद उन्होंने प्रवक्ता की नौकरी छोड़ कर पिथौरागढ़ की तरफ वापिस रूख किया और पिथौरागढ़ को अपनी कर्मभूमि बनाया.
पिथौरागढ़ के सरस्वती शिशु मंदिर की स्थापना के साथ ही यहीं पढ़ाया भी
पिथौरागढ़ लौटे भगत सिंह कोश्यारी ने 1977 में जिले के अंदर सरस्वती शिशु मंदिर की स्थापना की और लंबे समय तक इस स्कूल में अध्यापन का काम भी किया. इसके साथ ही उन्होंने पर्वत पीयूष नाम से साप्ताहिक समाचार पत्र का संपादन और प्रकाशन किया. जिसमें वह जनसरोकारों के मुद्दे उठाते रहे. वह आपतकाल के दौरान तकरीबन दो सालों तक फतेहगढ़ जेल में बंद भी रहे.
1997 में विधानपरिषद पहुंचे, 2001 में बने उत्तराखंड के मुख्यमंत्री
भगत सिंह कोश्यारी लंबे समय तक कुमाऊं विवि की कार्यकारी परिषद के सदस्य भी रहे. तो वहीं वह 1997 में पहली बार विधानपरिषद पहुंचे. इसके बाद जब 2000 में पृथक उत्तराखंड बना तो गठित पहली अंतरिम सरकार में उन्हें कैबिनेट मंत्री बनाया गया, लेकिन एक साल बाद ही वह अंतरिम सरकार के मुख्यमंत्री बनाए गए. इसके एक साल बाद 2002 में उत्तराखंड का पहला विधानसभा चुनाव आयोजित किया गया. इस चुनाव में भगत सिंह कोश्यारी कपकोट से विधानसभा पहुंचे, लेकिन बीजेपी को बहुमत नहीं मिला. इस दौरान भगत सिंह कोश्यारी ने नेताप्रतिपक्ष के तौर पर जिम्मेदारी संभाली.
दोबारा मुख्यमंत्री बनने से चूके तो राज्यसभा पहुंचे
2007 के चुनाव में बीजेपी को भगत सिंह कोश्यारी के नेतृत्व में सफलता मिली, लेकिन बहुमत का आंकड़ा प्राप्त कर लेने के बाद भी बीजेपी ने भगत सिंह कोश्यारी को मुख्यमंत्री नहीं बनाया गया. उनकी जगह पर केंद्र की राजनीति में सक्रिय भुवन चंद्र खंडूरी को मुख्यमंत्री बनाया गया. इसके बाद 2008 में भगत सिंह कोश्यारी को उत्तराखंड कोटे से राज्यसभा का सदस्य बनाया गया. वहीं इस दौरान भगत सिंह कोशियारी भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष भी रहे.
2014 में लोकसभा पहुंचे, 2019 में बने महाराष्ट्र् के राज्यपाल
भगत सिंह कोश्यारी उत्तराखंड की कपकोट विधानसभा सीट से 2 बार विधायक रह चुके हैं. वहीं उन्होंने 2014 में नैनीताल सीट से लोकसभा का चुनाव लड़ा. जिसमें उन्हें जीत मिली. इसके बाद 2019 के लोकसभा चुनाव से उन्होंने दूरी बनाई. 2019 जब दोबारा मोदी सरकार सत्ता में आई तो 31 अगस्त 2019 को सरकार ने उन्हें महाराष्ट्र का राज्यपाल नियुक्त किया.
महर्षि दयानन्द ,कखन जी भाई नमक औचित्य ब्राह्मण गुजरात के टंकारा गाँव मे करीबन 200 साल पहले जमादार थे।वे शिव भक्त थे,इन्हे मूलशंकर नामक पुत्र था मूल शंकर धर्म,श्लोक और सूत्र सीखाते थे।,सैट साल की उम्र मे इन्हे जनोई धरण करने सीखा दिया।यजुर्वेद भी पढ़ाया मूलशंकर ने व्याकरण वेद का अभ्यास कर लिया 14 साल की उम्र मे अर्थववेद संहिता सीख ली,21 साल की उम्र मे शादी करनी थी,उसे शादी देना चाहते थे उनके मातपिता , 1903 मे एक शाम को मूल शंकर ने गृह त्याग कर दिया
मूलशंकर लाला भगत की भूमि मे साला पहुचे।वहा ब्रह्मचर्य की दीक्षा ली,भगवा धारण कर लिया,वे सिध्ध्पुर मेले मे एक दिन पाहुच गए,वहा इनके पिताजी से भेट हुई ,मूलशंकर ने पिताजी के पेर पकड़ लिया वहा से अहमदाबाद,अहमदाबाद से बड़ौदा पहुच गए,वहा से चनोद करनाली जा पहुचे।पिताजी ने उसे समझाने के लिए दो पहरेदार रखे थे,वहा से वे सिध्ध्पुर से रात मे अंधेरे मे निकल पड़े,महाराष्ट्र के श्रुंगेरी मठ के परमानंद सरस्वती ने उन्हे ब्रह्मचारी सन्यासी की दीक्षा दी,यहा से इन्हे दयानन्द सरस्वती नाम प्राप्त हुआ.दयानन्द ने हरद्वार के कुम्भ के मेले मे योगियो से ज्ञान समागम किया,काँगड़ी गुरुकुल रम्या तपोवन मे गौरी कुंड मे जलस्रोत पर बैठकर एक माह अघोर तपस्या की त्रिस साल की उम्र मे विध्याचल घूमे।बतिस वे वर्ष मे दुर्गाकुंड मंदिर मे चंडालगढ़ पहुचे,वहा आननका त्याग किया और शुद्ध दूध हारी बने,
दयानन्द 1914 मे तैतीस साल की उम्र मे नर्मदा नदी के दर्शन को निकल पड़े,नर्मदाके मूल की शोध की त्रिस साल वे घूमते रहे,1917 मे विध्या प्राप्त की,बाद मे मथुरा पहुच गए॰अमरीका के कर्नल ओलकोट और ऋषि रमणी मेडम ब्लेवेरस्की थियोसोफ़िकल सोसाइटी के स्थापक थे,उनहो ने दयानन्द सरस्वती जी की बाते सुनी थी,थियोसोफ़िकल सोसाइटी ने उन्हे आर्य समाज का एक अंग बना दिया था,वे डौनो स्वामी जी के शिष्य बन गए।1937 मे मुजफ्नगर मे आर्य समाज मे दूसरे वार्षिकोत्सव मे उपस्थित होकर सरस्वती जी ने दो भाषण दिये,थियोसोफ़िकल सोसाइटी से सावधानी बरतने के संकेत दिये और मेडम ब्लेवस्की की सख्त आलोचना की,महर्षि का जीवन चरित्र विरतव की घटनाओ से भरा हुआ हे,मणिरत्न जेसे उनका जीवन प्रकाशित हे।मतभेद रखनेवालों सत्या की पहचान कराई हे।उन्होने एक साथ चालीस से पचास राजपूतो को यज्ञोपवीत दिया हे,स्त्रियो को गायत्री मंत्र पढ़ने का अधिकार मरशी दयानन्द सरस्वती ने दिलाया,मेरठ मे महाराज ने श्रद्धा का खंडन करने के लिए भाषण किया था।
दयानन्द जी को मूर्ति पुजा मे विरोध था,नौवि सदी मे विदेशी आक्रमण को रोकने मे भारत तददन निसफल साबित हुआ था,छोटे छोटे जमी के विभाजित राजाओ अपने को पृथ्वीपति मानने लगे थे,ज्ञाति प्रथा बढ़ रही थी,बल विवाह की रस्म सर्व सामान्य बन गई थी.विवाह करके पाँच साल मे विधवा बनी हुई पुत्री का दुख मात पिता के दिल को नहीं छु सका था,लिखने पढ़ने को सिख ले तो अभ्यास पूर्ण हो गया समझा जाता था।ब्रहमीन का लड़का क्रियाकन्द सीखने पाठशाला जाता था,व्याकरण न्याय वेदान्त विज्ञान और इतिहास का अभ्यास क्रम मे स्थान नहीं था,धर्म मे बिता समय और परमानंद के अनुसार संध्या वंदन ,पुजा पाठ देव दर्शन और कीर्तन किए जाते थे।
इस परिस्थिति मे परिवर्तन लाने वाले राजा राम मोहन राय इलाहि से प्राश्चर्यार्थ संस्कृति की अवर से जन्मा था,इस समय मे स्वामी नारायण ,महर्षि दयानन्द और राम कृष्ण परमहंस का उदभवस्वयं और इस देश की धर्म संस्कृति पर आधारित था,महर्षि दयानंद उज्ज्वल ज्योति पुंज थे,मूलशंकर से दयानंद मे परिवर्तन की कथा ,त्याग ,तपस्या ,लगन और ध्येय प्राप्ति की कथा उल्का मे तेजस्वी लाइन जेसे हे,जाती प्रथा तोड़ने की अन्य धर्म के लोगो को हद धर्म मे लानेकी कन्या पढ़ाई की महर्षि की बाते आज भी कम नहीं हुई हे,मूर्ति पुजा का विरोध किया था,उनके वक्तव्य के सामने पंडित भी अवाक बन जाते थे,उनका कार्य क्षेत्र पांचाल था,एक हजार साल से विदेशियों को रोकने वाले पंपावियों के धर्म ने क्रांति की चिंगारी उन्हे स्पर्श कर गई,थी,देश के विभिन्न प्रांतो मे उन्होने प्रवास किया था,अलवर के राजा उनसे प्रभावित हुए थे,और अपने साथ अलवर ले गए थे,किन्तु राजा के पास साई जा नहीं सकते थे,इस लिए अलवर छोड़ दिया,और मथुरा मे वेद पाठशाला की स्थापना की,वे प्रामाणिक ग्रंथ ही छात्रों को पढ़ाते थे,आगरा मे वे गीता कथा करते थे,एक माह तक वहा रहे थे,मूर्ति पुजा नहीं करना हे,यह बात सभी को वे समझाते थे,उनकी बाते सुनकर लोग मूर्तिया नदी मे फेंक आते थे,हरद्वार मे गए तो अंध श्रद्धा देखकर बहुत व्यथित हुये ,
वेद धर्म का गौरव बढ़े और युवाओ आगे बढ़े एसी उनकी सोच थी,विध्यालय बनाने और गुरुकुल चलाकरयुवाओ को तालिम देकर सशक्त बनाने की बात इनहो ने काही थी।
हिन्दी भाषी द्रष्टि कोण प्रचार के लिए प्रकाश डालते थे।हिन्दी भाषा मे लेख प्रकाशित करते थे,लोगो को समझाने के कम उन्होने किया हे,वे काशी गए थे,अंध विश्वास देखा डरने लगे,काशी नरेश के पंडित तैयार करो शास्त्रार्थ करने को कहा,वहा से वे कोलकाता गए,वहा के अग्रणी उनके पास जाते थे,केशव सेन के साथ बहुत चर्चा हीदी मे ही होती थी,कोलकाता से वे मुंबई हुगली नासिक मथुरा गए,गुजरात सारा और वहा से चितोड़ जोधपुर उड़ेपुर गए।उड़ेपुर के राजा जसवंत उनसे प्रभावित थे,वे वेदगन स्तुति संस्कृत मे करते थे,प्रार्थना के बाद हिन्दी मे गायत्री मंत्र करते थे। लोगो मे राष्ट्र भावना जताने ,देश भक्ति जताने के लिए कार्य करते थे,एक धर्म और एक भाषा हीदी का लक्ष रखकर देश की उन्नति की खेवना करते थे,महर्षि दयानन्द आज भी उनके विचारो से हमारे बीच जीवित हे,उनके चरणों मे कोटी कोटी वंदन करते हुए जन्म दिन अवसर पर पुष्पांजलि अर्पित करते हे।
फिल्म समीक्षा : गंगूबाई काठियावाड़ीरिलीज डेट : 25 फरवरी 2022कलाकार : आलिया भट्ट, अजय देवगन, शान्तनु माहेश्वरी, विजय राज, सीमा पाहवा, इंदिरा तिवारी, जिम सरभ, वरुण कपूर और हुमा क़ुरैशी आदि।क्रिटिक्स रेटिंग : *** 3.5डायरेक्टर : संजय लीला भंसालीनिर्माता : संजय लीला भंसाली और जयंतीलाल गड़ाशैली : बायोपिकसंगीत : संचित बल्हारा , अंकित बल्हाराछायांकन : सुदीप चटर्जी
आलिया भट्ट की मोस्ट अवेटेड फिल्म ‘गंगूबाई काठियावाड़ी’ वेश्यावृत्ति पर आधारित है। भंसाली प्रोडक्शन की यह फिल्म हुसैन जैदी की किताब ‘माफिया क्वींस ऑफ मुंबई’ के अध्यायों का रूपांतरण है और इसमें आलिया मुख्य भूमिका में है। इस फिल्म के माध्यम से एक गंभीर मुद्दे को सरलता के साथ रखा गया है जो वाकई काबिले तारीफ है। आलिया भट्ट इस फिल्म में यकीनन अपने फिल्मी करियर का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन की है। इस फ़िल्म में अजय देवगन की उपस्थिति 10 मिनट की है।सीमा पाहवा ने अपने किरदार को बहुत सही तरीके से जीवंत किया है। अपने छोटे से रोल में विजय राज बहुत जंचते हैं । शांतनु माहेश्वरी ने अपनी अदायगी का अमिट छाप छोड़ है। उन्हें इस रोल के लिए पसंद किया जाएगा । वरुण कपूर ठीक हैं । जिम सरभ (पत्रकार अमीन फैजी) बेहतरीन हैं । इंदिरा तिवारी (कमली) जो आखिरी बार सीरियस मेन [2020] में नजर आईं थीं इस फिल्म में उनकी उपस्थिति एक सरप्राइज है । राहुल वोहरा (प्रधानमंत्री) ठीक हैं । मधु (गंगूबाई द्वारा बचाई गई लड़की), शौकत अब्बास खान, बिरजू, डेंटिस्ट आदि का किरदार निभाने वाले कलाकार अपने हिसाब से ठीक हैं। इनसे संजय लीला भंसाली और अच्छा काम ले सकते थे। ‘शिकायत’ गाने में हुमा कुरैशी अच्छी लगती हैं । संगीतकार संचित बल्हारा और अंकित बल्हारा का बैकग्राउंड स्कोर काफी बेहतर है । सुदीप चटर्जी की सिनेमेटोग्राफ़ी उम्दा है और कमाठीपुरा सेट के दृश्यों को खूबसूरती से कैप्चर किया गया है । सुब्रत चक्रवर्ती और अमित रे का प्रोडक्शन डिजाइन आंखों को भाता है और वास्तविक भी लगता है। शीतल इकबाल शर्मा की वेशभूषा आकर्षक है, खासकर आलिया द्वारा पहनी गई सफेद ड्रेसेस । शाम कौशल का एक्शन ठीक है । वीएफएक्स बढ़िया है । संजय लीला भंसाली की एडिटिंग कुछ जगहों पर और बेहतर हो सकती थी जो नहीं हो सकी। फिर भी ‘गंगूबाई काठियावाड़ी’ एक दमदार कहानी से सजी आलिया भट्ट के फिल्मी करियर की अब तक की सबसे असरदार अभिनय से सजी फिल्म है जिसमें कुछ मानवीय संवेदनाओं से जुड़े बेहद ही शानदार सीन्स हैं। उम्मीद की जा रही है कि बॉक्स ऑफ़िस की कसौटी पर खरी उतरेगी। समीक्षक : राज दीप पाण्डेय
मुंबई। मालाड के मालवणी में हिंदुओं पर हो रहे अत्याचार और उनके पलायन पर आधारित पुस्तक का विमोचन स्वातंत्र्यवीर विनायक सावरकर की पुण्यतिथि के अवसर पर शनिवार को किया गया। वर्ली स्थित सेंचुरी मार्केट के पास मुंबई शहीद स्मारक के पास आयोजित इस कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित महामंडलेश्वर परम पूज्य श्री विश्वेश्वरानंद गिरी जी महाराज ने ‘मुंबई सुरक्षिततेच्या उंबरठ्यावर’ पुस्तक का विमोचन किया।
कार्यक्रम को संबोधित करते हुए श्री विश्वेश्वरानंद जी महाराज ने कहा कि सत्ता के लिए संस्कृति से समझौता नहीं करना चाहिए। उन्होंने कहा कि मैं राजनीतिक व्यक्ति नहीं हूं लेकिन जब-जब हिंदू धर्म पर आंच आई तब-तब हमने उसके खिलाफ आवाज उठाने का काम किया। उन्होंने वीर सावरकर को याद करते हुए कहा कि आज उनकी पुण्यतिथि है इसलिए समस्त हिंदुओं को समाज की लड़ाई लड़नी चाहिए। पुस्तक के बारे में जानकारी देते हुए उन्होंने कहा कि यह मात्र एक पुस्तक नहीं बल्कि हिंदुओं पर हुए अत्याचार की सच्ची कहानी है इसलिए अगर हिंदू समाज को जिंदा रखना है तो हिंदुओं को जागरूक होना पड़ेगा। इसके साथ-साथ अपनी संस्कृति को बचाने के लिए हर लड़ाई लड़नी पड़ेगी। महाराज जी ने कहा कि मुंबई में एक ऐसा समाज है जिसके लाऊडस्पीकर से जनता परेशान है लेकिन कोई कुछ नहीं बोलता। लेकिन जब हमारे मंदिरों की घंटियां बजती हैं तो आसपास के लोग उसका विरोध करते हैं। महाराज जी ने कहा कि जो बालासाहेब ठाकरे हिंदुत्व और मराठी मानुष की विचारधारा पर आजन्म कायम रहे, आज उनके बेटे उन बातों और उनकी विचारधारा को भूल गए हैं। शिवसेना को इस पर विचार करना चाहिए।
धर्मरक्षा मंच की ओर से आयोजित इस पुस्तक विमोचन कार्यक्रम में उपस्थित भाजपा विधायक नितेश राणे ने कहा कि मुंबई की कानून व्यवस्था खराब हो गई है। राज्य की महाविकास आघाड़ी की सरकार में महिलाएं अपने आपको असुरक्षित महसूस कर रही हैं, विशेषकर हिंदू महिलाएं। साल 1993 में हुए बम धमाकों को याद करते हुए नितेश राणे ने कहा कि शिवसेनाप्रमुख बालासाहेब ठाकरे के कारण मुंबई सुरक्षित नहीं होती तो उस दौरान हिंदुओं का क्या होता, यह कोई बता नहीं सकता। लेकिन शिवसेनाप्रमुख बालासाहेब ठाकरे वाली शिवसेना अब रही नहीं क्योंकि जिस विचारधारा और दल का बालासाहेब ठाकरे विरोध करते थे, आज उसी दल और विचारधारा के साथ उनके बेटे सरकार चला रहे हैं। राणे ने कहा कि इस पुस्तक के माध्यम से हिंदुओं को जागरूक होना पड़ेगा, नहीं तो भविष्य में समाज पर एक विशेष समाज राज करना शुरू कर देगा। इस अवसर पर मुंबई भाजपा अध्यक्ष व विधायक मंगल प्रभात लोढ़ा, मुंबई भाजपा उपाध्यक्ष आचार्य पवन त्रिपाठी, मुंबई सचिव सचिन शिंदे और पुस्तक के लेखक प्रकाश गाडे सहित बड़ी संख्या में पदाधिकारी और कार्यकर्ता उपस्थित थे।
ज्ञात हो कि ‘मुंबई सुरक्षिततेच्या उंबरठ्यावर’
पुस्तक में मुंबई के हिंदुओं की सुरक्षा से लेकर मुस्लिम तुष्टिकरण तक कई आवश्यक व संवेदनशील मुद्दों को समाहित किया गया है। मुंबई की बस्तियों में भेदभाव, मालवणी में हिंदुओं की दशा से लेकर हिंदुओं के समग्र चिंतन को इस पुस्तक में प्रकाशित किया गया है।
“चालीस हजार शताब्दियों का हिन्दू इतिहास कोई ताड़ के पत्तों पर नहीं लिखा गया, जो हाथ से गिरते ही मिट जाएगा. हिन्दू धर्म ना ही कोई गोलमेज परिषद हैं बल्कि यह एक गौरवान्वित जाति का महान जीवन हैं जिसके सम्बन्ध में कहानियां नहीं बल्कि सदियों का पूरा इतिहास हैं” – वीर सावरकर
भारतीय वांग्मय में महर्षि दधीचि द्वारा विश्व कल्याण के लिए अपनी हड्डियां दान किये जाने का उल्लेख है ,दूसरा अभिलेख वीर विनायक दामोदर सावरकर ने अपने जीवनचरित से हमारे मानस पर टंकित कर दिया है। उन्होने देश को स्वतन्त्र कराने के लिए अपने तन -मन -धन का रेशा -रेशा मातृभूमि और यहाँ के लोगों के लिए लुटा दिया वह भी एक वर्ग विशेष की लगातार योजनाबद्ध लांछन से भी बिना किंचित विचलित हुए। विश्व के इतिहास में ऐसे बहुत कम उदाहरण हैं कि कोई व्यक्ति अपना सर्वस्व देश के लिए न्यौछावर करता रहे चाहे उसको इसके बदले में कुछ मान – सम्मान या अन्य लाभ मिलता हो अथवा नहीं। लेकिन ऐसे लोगों का विवरण तो दुर्लभ है जिनके बलिदानों को विवादित करने की लगातार कुचेष्टाओं के बाद भी कोई अपने समाज एवं देश के लिए उत्सर्ग दिन दोगुना रात चौगुना निरपेक्ष भाव से बढ़ाता रहे।वीर सावरकर उस राजर्षि का नाम है जिनकी दूरदर्शिता का कोई तोड़ नहीं, जिनकी स्पष्टवादिता का कोई विकल्प नहीं।
विनायक दामोदर सावरकर भारत के वीर स्वतंत्रता सेनानी और राष्ट्रवादी नेता थे। उन्होंने देश की आजादी के लिए अपना जीवन दांव पर लगा दिया था। उनका नाम भारतीय इतिहास में बहुत ही गर्व के साथ लिया जाता है।वीर सावरकर राष्ट्रवादी संगठन हिंदू महासभा के प्रमुख सदस्य रहकर भी अपने सभी कर्तव्यों को भलीभांति निभाते रहे। वे पेशे से तो वकील थे लेकिन अपने जीवन के अनुभव से वे एक महान शोधकर्ता सह लेखक के रूप में भी उभर कर सामने आए। उन्होंने दस हज़ार पंक्तियों से अधिक कविताओं और कई नाटकों के लेखन से मराठी साहित्य को समृद्ध किया। उन्होने भारतरत्न लता मंगेशकर के पिता दीनानाथ मंगेशकर के लिए भी एक नाटक लिखा था। उनके लेखन ने सदैव ही लोगों को हिंदुत्व और राष्ट्रवाद की प्रेरणा दी। अपने व्याख्यानों और विमर्शों से हमेशा ही लोगों को सामाजिक और राजनैतिक एकता के बारे में समझाते रहते थे। वीर सावरकर एक ऐसे नेता थे जिन्होंने राजनीति के साथ-साथ संस्कृति को भी अपने जीवन में महत्वपूर्ण स्थान दिया,यहां तक की हिंदुत्व की रक्षा के लिए उन्होंने स्वयं ही आत्मतर्पण करके अनुपम उदाहरण भारत के इतिहास में प्रस्तुत किया।
नाम – विनायक दामोदर सावरकर उपाख्य वीर सावरकर जन्म – 28 मई 1883 (जन्म स्थान – नासिक, मुंबई, भारत) व्यवसाय – वकालत , राजनीतिक कार्यकर्त्ता , सामाजिक लेखक और कार्यकर्ता जीवन लक्ष्य – भारत देश को हिंदुत्व की ओर ले जाना शैक्षिक योग्यता – वकालत पिता का नाम – दामोदर सावरकर माता का नाम – राधाबाई सावरकर पत्नी का नाम – यमुनाबाई बच्चे – विश्वास, प्रभाकर और प्रभात चिपलनकर भाई/ बहन – गणेश, मैनाबाई और नारायण मृत्यु – 26 फरवरी 1669
विनायक दामोदर सावरकर का प्रारंभिक जीवन,
नासिक जिले के भगूल में एक साधारण हिंदू ब्राह्मण परिवार में 28 मई 1883 को विनायक दामोदर सावरकर का जन्म हुआ था। बचपन से ही देश भक्ति का भाव उनके मन में भरा हुआ था। मात्र 12 साल की उम्र में ही विनायक सावरकर ने मुसलमान छात्रों के एक समूह को भगा दिया जिन्होंने पूरे शहर में अफरा-तफरी मचा रखी थी.उनके उस साहस और बहादुरी के लिए उनकी बहुत प्रशंसा हुई और उन्हें वीर विनायक दामोदर सावरकर कहा जाने लगा। बचपन से ही देश के लिए कुछ करने की लगन ने उन्हें क्रांतिकारी युवा बना दिया। इस काम में उनके बड़े भाई गणेश ने भी महत्वपूर्ण योगदान दिया और कालांतर में वे एक युवा खिलाडी के रूप में उभरे फिर धीरे -धीरे उन्होंने युवा समूह का आयोजन किया जिसे बाद में ‘मित्र मेला’का नाम दिया गया.
विनायक दामोदर सावरकर की १८५७ के विद्रोह पर लिखी किताब,
वीर सावरकर ने १८५७ के विद्रोह और उस समय के गुरिल्ला युद्ध का बहुत सूक्ष्म अध्ययन करके लन्दन में वकालत की पढ़ाई के दौरान उस पर एक पुस्तक लिखी “द हिस्ट्री ऑफ द वॉर ऑफ द इंडियन इंडिपेंडेंस”। इस पुस्तक ने अंग्रेजी सरकार की नींद लूट ली। अंग्रेजी सरकार ने इस पुस्तक पर प्रतिबंध लगा दिया।परन्तु यह पुस्तक न केवल क्रांतिकारियों तक देश भर में पहुंचाई गयी बल्कि लोगों ने छिप -छिपकर इसका सामूहिक वाचन भी किया। उन्होंने अपने दोस्तों के बीच इस पुस्तक को भी को बांट दिया। शीघ्र ही वीर सावरकर को राष्ट्रद्रोह के आरोप में अंग्रेजी सरकार ने गिरफ्तार किया।वीर सावरकर ने इसके अलावा अन्तजर्वाला,हिन्दू पद – पादशाही ,काला पानी ,हिन्दुत्व आदि पुस्तकें भी लिखीं।
सावरकर को काला पानी की सजा,
भारत लौटकर सावरकर ने अपने भाई गणेश के सहयोग से ” इंडियन कॉउन्सिल एक्ट 1909 (मिंटो- मोर्ली फॉर्म्स) “के विरोध में प्रदर्शन करना आरंभ किया। इससे ब्रिटिश पुलिस ने विनायक सावरकर को अपराधी घोषित करते हुए उनके विरुद्ध गिरफ्तारी वारंट जारी किया। उस गिरफ्तारी से बचने के लिए सावरकर पैरिस चले गए। सन 1910 में सावरकर को ब्रिटिश पुलिस द्वारा पकड़ लिया गया और उन्हें अपराधी ठहराते हुए उनके विरुद्ध अदालत में केस दर्ज कराया गया, जिस की सुनवाई के लिए उन्हें मुंबई भेज दिया गया। इस मामले में उन्हें 50 साल की सजा सुनाई गई और उन्हें 4 जुलाई 1911 को अंडमान निकोबार द्वीप समूह में कालापानी की सजा के तौर पर सेल्यूलर जेल में बंद कर दिया। उस सजा के दौरान लगातार उन्हें प्रताड़ना का सामना करना पड़ा लेकिन फिर भी उन्होंने हार नहीं मानी। वहां पर रहने वाले कैदियों को उन्होंने पढ़ाना -लिखाना शुरू कर दिया। कुछ समय पश्चात उन्होंने उस जेल के अंदर एक बुनियादी पुस्तकालय शुरु करने के लिए सरकार से अनुरोध किया और जेल में ही पुस्तकालय शुरु कर दिया गया.
विनायक दामोदर सावरकर द्वारा हिन्दू सभा का निर्माण,
वीर सावरकर 6 जनवरी 1924 को कालापानी की सजा से मुक्त हो गए।इसके बाद उन्होंने भारत में रत्नागिरी हिंदूसभा के गठन में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इस सभा का मुख्य उद्देश्य सामाजिक और सांस्कृतिक विरासत को पूरी तरह से संरक्षण प्रदान करना था। सन 1937 में विनायक सावरकर को हिंदू सभा के सदस्यों द्वारा उन्हें हिंदू सभा का अध्यक्ष बना दिया गया। उसी कालखंड में मोहम्मद अली जिन्ना ने कांग्रेस के शासन को हिंदू राज के रूप में घोषित कर दिया। पहले से ही हिंदू और मुसलमान के बीच देश में झगडे चल रहे थे, जिन्ना के इस आरोप ने उनके बीच चल रहे तनाव को और अधिक बढ़ा दिया। उनकी कोशिश सदैव यहीं थी कि वे एक हिंदू राष्ट्र का निर्माण करें, इसलिए विनायक सावरकर ने इस प्रस्ताव पर ध्यान दिया और इसके लिए उनके साथ कई सारे भारतीय राष्ट्रवादी भी जुड़ गए, जिनके बीच सावरकर की लोकप्रियता धीरे-धीरे बढ़ती जा रही थी.
विनायक दामोदर सावरकर गांधीजी के रहे विरोधी
वीर सावरकर भारत देश को हिंदुत्व की ओर ले जाना चाहते थे जबकि महात्मा गांधी और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस इसके घोर आलोचक थे इसलिए उन्होंने गांधी जी की नीतियों और गतिविधियों का विरोध किया जिनमें से भारत छोड़ो आंदोलन भी एक है। सावरकर कभी भी नहीं चाहते थे कि भारत को दो राष्ट्रों में बांट दिया जाए इसलिए वे विभाजन के पक्ष में कभी भी नहीं रहे। उनका मानना यह था कि एक देश में दो राज्यों के सह -अस्तित्व का प्रस्ताव रखा जाए ना कि एक राशि को दो राष्ट्रों में बाँटकर उसके टुकड़े कर दिए जाएं। उन्होंने खिलाफत आंदोलन के दौरान मुसलमानों के साथ तुष्टिकरण की महात्मा गांधी की नीति की आलोचना की. अपने कई लेखो में तो उन्होने गांधी जी को पाखंडी कहा है। वे गांधीजी के बारे में कहते थे कि वे एक अपरिपक्व मुखिया हैं, जिन्होंने छोटी सोच रखते हुए देश का सर्वनाश कर दिया.
वीर सावरकर की मृत्यु कैसे हुई,
वीर सावरकर ने अपने जीवन में इच्छा मृत्यु का प्रण ले लिया था इसलिए उन्होंने पहले ही सबको बोल दिया था कि वे अपनी मृत्यु तक उपवास रखेंगे अन्न का एक दाना भी मुंह में नहीं रखेंगे। अपने अंतकाल में लिए गए उपवास को लेकर उन्होंने यही कहा कि प्रत्येक व्यक्ति को अपने जीवन के उद्देश्यों को प्राप्त करने की पूरी अनुमति प्राप्त होनी चाहिए कि वह अपना जीवन कैसे समाप्त करना चाहता है और किस प्रकार अपने जीवन का वहन करना चाहता है इस बात की पूरी अनुमति उस व्यक्ति को मिलनी चाहिए। उन्होंने जैसे ही अपने प्रण के अनुसार उपवास आरंभ किए उस दौरान अपनी मृत्यु से पहले एक लेख लिखा जिसका नाम ‘यह आत्मह्त्या नहीं आत्मतर्पण है’ 1 फरवरी 1966 को सावरकर ने यह घोषणा कर दी थी कि आज से वह उपवास रखेंगे और भोजन करने से बिल्कुल परहेज करेंगे।उनकी यह प्रतिज्ञा थी कि जब तक उनकी मौत नहीं आएगी तब तक वह अन्न का एक दाना मुंह में नहीं रखेंगे। उनके इस प्रण के बाद लगातार वे अपने उपवास का पालन करते रहे और आखिरकार अपने मुंबई निवास पर 26 फरवरी 1966 में उन्होंने अंतिम सांस ली। सावरकर का घर और उन से जुड़ी सभी वस्तुएं अब सार्वजनिक प्रदर्शन के लिए संरक्षित रखी गई है.
विनायक दामोदर सावरकर के विचार,
1- ज्ञान प्राप्त होने पर किया गया कर्म सफलतादायक होता है, क्योंकि ज्ञान – युक्त कर्म ही समाज के लिए हितकारक है. ज्ञान – प्राप्ति जितनी कठिन है, उससे अधिक कठिन है – उसे संभाल कर रखना . मनुष्य तब तक कोई भी ठोस पग नहीं उठा सकता यदि उसमें राजनीतिक, ऐतिहासिक,अर्थशास्त्रीय एवं शासनशास्त्रीय ज्ञान का अभाव हो. 2- देशभक्ति का अर्थ यह कदापि नहीं है कि आप उसकी हड्डियाँ भुनाते रहें. यदि क्रांतिकारियों को देशभक्ति की हुडियाँ भुनाती होतीं तो वीर हुतात्मा धींगरा, कन्हैया कान्हेरे और भगत सिंह जैसे देशभक्त फांसी पर लटककर स्वर्ग की पूण्य भूमि में प्रवेश करने का साहस न करते. वे ए क्लास की जेल में मक्खन, डबलरोटी और मौसम्बियों का सेवन क्र, दो-दो माह की जेल –यात्रा से लौट क्र अपनी हुडियाँ भुनाते दिखाई देते. 3- इतिहास, समाज और राष्ट्र को पुष्ट करनेवाला हमारा दैनिक व्यवहार ही हमारा धर्म है. धर्म की यह परिभाषा स्पष्ट करती है कि कोई भी मनुष्य धर्मातीत रह ही नहीं सकता. देश इतिहास, समाज के प्रति विशुद्ध प्रेम एवं न्यायपूर्ण व्यवहार ही सच्चा धर्म है. 4- मन सृष्टि के विधाता द्वारा मानव-जाति को प्रदान किया गया एक ऐसा उपहार है, जो मनुष्य के परिवर्तनशील जीवन की स्थितियों के अनुसार स्वयं अपना रूप और आकार भी बदल लेता है.
सावरकर के जीवन से जुड़ी कुछ रोचक बातें,
1- वीर सावरकर ने खुद को नास्तिक घोषित कर दिया था, इसके बावजूद भी हिंदू धर्म को वे पूरे दिल के साथ निभाते थे. और लोगों को उसकी और बढ़ने के लिए प्रोत्साहित भी किया करते थे. क्योंकि राजनीतिक और सांस्कृतिक पहचान के रूप में वे खुद को हिंदू मानते थे और यदि कोई उनको हिंदू बुलाता था तो उन्हें बहुत ज्यादा गर्व महसूस हुआ करता था. 2- वे कभी भी हिंदुत्व को धर्म के रूप में नहीं मानते थे. बे अपनी पहचान के रूप में हिंदुत्व को देखा करते थे वही उन्होंने हजारों रुढ़िवादी मान्यताओं को खारिज कर दिया था जो हिंदू धर्म से जुड़ी हुई थी, लेकिन व्यक्ति के जीवन में उन मान्यताओं का कोई भी आधार नहीं था. 3- अपने जीवन का राजनैतिक रूप भी बखूबी निभाया, उन्होंने राजनैतिक रूप में मूल रूप से मानवतावाद, तर्कवाद, सार्वभौमिक, प्रत्यक्षवाद, उपयोगितावाद और यथार्थवाद का एक मुख्य मिश्रण अपने जीवन में अपनाया. 4- देश भक्ति के साथ-साथ भारत की कुछ सामाजिक बुराइयों के खिलाफ दोनों ने अपनी आवाज उठाई जैसे जातिगत भेदभाव औऱ अस्पृश्यता जो उनके समय में बह प्रचलित प्रथा मानी जाती थी. 5- उनका कहना था कि उनके जीवन का सबसे अच्छा और प्रेरित भरा समय वह था जो समय उन्होंने काला पानी की सजा के दौरान जेल में बिताया था. काला पानी की सजा के दौरान जेल में रहते हुए उन्होंने काले पानी नामक एक किताब भी लिखी थी जिसमें भारतीय स्वतंत्रता कार्यकर्ताओं के संघर्षपूर्ण जीवन का संपूर्ण वर्णन है.
विनायक दामोदर सावरकर के जीवन पर बनी फिल्में,
1- वीर सावरकर के जीवन पर सन 1996 में पहली फिल्म बनी थी जिसमें अन्नू कपूर मुख्य रोल में नजर आए थे. वह मलयालम और तमिल 2 भाषाओं में रिलीज हुई थी उसका नाम काला पानी था. 2- 2001 में फिर से सावरकर के जीवन पर वीर सावरकर नामक फिल्म बनाना शुरू किया गया जिसे बाद में रिलीज भी किया गया और बेहद पसंद भी किया गया।
भारत के स्वतंत्रता संग्राम के अग्रणी सेनानी वीर सावरकर एक वक्ता, विद्वान, विपुल लेखक, इतिहासकार, कवि, दार्शनिक और में कार्यकर्ता थे। वे विश्व के अबतक के अकेले व्यक्ति हैं जिनको एक ही जीवन में दो बार आजीवन कारावास का दंड अपने देश से अटूट प्रेम के कारण मिला। महात्मा गाँधी इनके त्याग , समर्पण और चतुराई के कायल थे। चालीस हजार शताब्दियों का हिन्दू इतिहास कोई ताड़ के पत्तों पर नहीं लिखा गया, जो हाथ से गिरते ही मिट जाएगा. हिन्दू धर्म ना ही कोई गोलमेज परिषद हैं बल्कि यह एक गौरवान्वित जाति का महान जीवन हैं जिसके सम्बन्ध में कहानियां नहीं बल्कि सदियों का पूरा इतिहास हैं।
वीर सावरकर के योगदानों को देखते हुए उनको भारतरत्न की उपाधि दी जानी चाहिए किन्तु कुछ हिन्दुविरोधी तथा गंदी राजनीति करनेवाले लोग आपत्तियां दर्ज करते रहते हैं। वीर सावरकर द्वारा अपने आजीवन कारावास को निरस्त करने की क्षमायाचना को महात्मा गाँधी ने स्वयं ” शिवाजी महाराज जैसी चतुराई” कहा है , वीर सावरकर के महान योगदानों को रेखांकित करने के लिए अपने प्रधानमंत्रित्वकाल में इंदिरा गाँधी ने डाक टिकट जारी कराया और उनको देश का सपूत कहा। भीमराव आंबेडकर ने वीर सावरकर को सच्चा हितैषी और दूरदर्शी नेता बताया किन्तु उन्हीं की छाँव में पनपे और बढे लोग जब सावरकर पर लांछन लगते हैं तो यह बरबस हे ये पंक्तियाँ जीवित हो उठती हैं -:
कोहनी पर टिके हुए लोग, टुकड़ों पर बिके हुए लोग! करते हैं बरगद की बातें, ये गमले में उगे हुए लोग !!
वीर सावरकर को ‘भारत रत्न ” देने के विषय को लेकर कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी में कई सालों से तलवारें खिंची हुई हैं। इसके शुरुआती दौर में ही स्वर कोकिला भारतरत्न लता मंगेशकर ने न सिर्फ वीर सावरकर का खुल कर समर्थन किया था, बल्कि विरोध करने वालों की अज्ञानता पर सवाल उठाते हुए उनको अज्ञानी तक कह दिया था। गत वर्ष 28 मई को सावरकर की जयंती के मौके पर लता ने ट्वीट किया था-” जो लोग सावरकर जी के विरोध में बोल रहे हैं वे नहीं जानते कि सावरकर जी कितने बड़े देशभक्त और स्वाभिमानी थे”।
सन्दर्भ :
लता सुर गाथा : यतीन्द्र मिश्र १९५७ का स्वातंत्र्य समर
यूक्रेन-रूस युद्ध से पैदा हुए संकट से दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र भारत (India) भी अछूता नहीं रह सकता. लिहाजा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) भी एक्टिव मोड में आ चुके हैं. उन्होंने बड़ी पहल करते हुए खुद रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन (Vladimir Putin) से फोन पर बातचीत की और शांति की दिशा में कदम बढ़ाने को कहा. पीएम मोदी और पुतिन के बीच करीब 20 मिनट तक बातचीत हुई. पीएम मोदी ने पुतिन से फोन पर क्या कहा? पीएम मोदी और पुतिन के बीच इस बातचीत में युद्ध शुरू होने के बाद के हालात पर चर्चा हुई. विदेश मंत्रालय की ओर से दी गई जानकारी के मुताबिक, इस बातचीत में राष्ट्रपति पुतिन ने पीएम मोदी को यूक्रेन से जुड़े हाल के घटनाक्रम के बारे में पूरी जानकारी दी. तो प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि रूस और नाटो समूह के बीच विवाद को सिर्फ ईमानदार बातचीत के माध्यम से ही सुलझाया जा सकता है.
प्रधानमंत्री मोदी ने हिंसा को तत्काल खत्म करने की अपील की और राजनयिक स्तर की वार्ता के रास्ते पर लौटने के लिए सभी पक्षों से ठोस प्रयास करने का आह्वान किया है. पीएम मोदी ने राष्ट्रपति पुतिन से जो बातचीत की, उसका आधार दिल्ली में यूक्रेन की ओर से की गई एक इमोशनल अपील भी थी, जिसमें यूक्रेन के राजदूत ने भारत और रूस के बेहतर संबंधों की याद दिलाते हुए पीएम मोदी से बातचीत करने और टेंशन खत्म कराने की अपील की. इसके कुछ घंटे बाद प्रधानमंत्री मोदी ने सीसीएस यानी कैबिनेट कमेटी ऑन सिक्योरिटी की बैठक की, जिसमें राष्ट्रपति पुतिन के साथ टेलीफोन पर बात करने का फैसला लिया गया.
पुतिन ने यूक्रेन में फंसे भारतीयों को बाहर निकालने का दिया भरोसा पीएम मोदी ने पुतिन से शांति बहाल करने की अपील की तो साथ ही यूक्रेन में भारतीय नागरिकों, खास तौर पर वहां फंसे छात्रों की सुरक्षा के संबंध में भी भारत की चिंताओं से पुतिन को अवगत कराया. इसके बाद पुतिन ने यूक्रेन में फंसे भारतीय छात्रों को सकुशल बाहर निकालने के लिए अपने अधिकारियों को आदेश जारी करने का भरोसा भी दिया है. दो नेताओं की इस बातचीत का ब्यौरा रूस की तरफ से भी दिया गया है. रूसी राष्ट्रपति भवन की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि रूस के राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन ने भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से फोन पर बात की.
राष्ट्रपति पुतिन ने पीएम मोदी को बताया कि यूक्रेन पर हमला क्यों करना पड़ा. पुतिन ने पीएम मोदी को बताया कि डोनबास के आम नागरिकों पर कीव से चलने वाली सरकार ने आक्रामक कार्रवाई की. मिंस्क समझौते का उल्लंघन भी किया गया और इसके अलावा यूक्रेन में अमेरिका और नाटो की मदद से सामरिक तौर पर जो गतिविधियां चल रही थीं. इन सबकी वजह से ही रूस को सैन्य कार्रवाई का फैसला लेना पड़ा.
रूस और यूक्रेन के बीच बदतर हो चुके हालात के बीच रूस ने अमेरिका के तमाम आर्थिक प्रतिबंधों को दरकिनार कर दिया है, लेकिन लगता है अमेरिका के सामने दूसरा कोई रास्ता भी नहीं बचा है. दरअसल दोनों देशों के बीच चल रहे विवाद के बीच एक बार फिर बाइडन मीडिया के सामने आए. उन्होंने रूस के 4 बड़े बैंकों पर प्रतिबंध के साथ कई दूसरे आर्थिक पाबंदियों का एलान किया. इसके साथ ही अमेरिका में रूस के दूसरे नंबर के राजनयिक को भी देश छोड़ने का आदेश दे दिया गया है. माना जा रहा है कि रूस का हमला यूक्रेन पर हो रहा है, तबाही यूक्रेन में मच रही है, लेकिन दर्द अमेरिका को भी हो रहा है.
क्योंकि इस हमले ने अमेरिका के सुपर पावर वाली छवि को पुतिन ने बड़ा झटका दिया है. बाइडेन सरकार पर पुतिन के सामने बैकफुट पर जाने के आरोपों के बीच बीती रात अमेरिका राष्ट्रपति मीडिया से मुखातिब हुए. वह रूस के खिलाफ जमकर बोले और एक के बाद एक कई आर्थिक प्रतिबंधों का एलान करते चले गए. यूक्रेन में अमेरिका अपनी सेना तैनात नहीं करेगा इस हमले से अमेरिका पूरी तरह गुस्से में है. अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडन ने चेतावनी देते हुए कहा कि पुतिन ने युद्ध के रास्ते को चुना है और अब उनके कदमों की कीमत रूस के लोग चुकाएंगे. बाइडन ने इस वादे को दोहराया कि नाटो देशों के हर इंच की जमीन की रक्षा की जाएगी, लेकिन नाटो में शामिल होने के चक्कर में तबाही झेल रहे यूक्रेन में अमेरिका अपनी सेना तैनात नहीं करेगा. इसके अलावा बाइडन ने पुतिन से बात करने से साफ इनकार कर दिया है. कहा – मेरी कोई योजना नहीं है क्योंकि पुतिन फिर से सोवियत संघ बनाना चाहते हैं. लेकिन पत्रकारों के सवाल पर बाइडन ने जरूर भारत से चर्चा करने की बात कही और इसके कुछ देर बाद ही अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर से फोन पर बात की. नाटों देशों के साथ अमेरिका की बैठक हालांकि आज फिर दुनिया की निगाहें जो बाइडन पर होंगी क्योंकि उनके मुताबिक रूस-यूक्रेन युद्ध के हालात पर आज नाटो देशों के साथ अमेरिका की बड़ी बैठक है. रूस-यूक्रेन युद्ध के हालात पर आज नाटो देशों के साथ अमेरिका की बड़ी बैठक है.SHOW LESS
मेवात के फ़िरोज़पुर झिरका थाना क्षेत्र में हसीन नाम के गौ तस्कर के घर दबिश के दौरान पुलिस को दौड़ा लिया। पुलिस के ऊपर किये गए पथराव में एक होमगार्ड गंभीर रूप से घायल हो गया है। पथराव के कारण पुलिस की गाडी को भी काफी नुकसान पहुँचा है। पुलिस ने हसीन नाम के एक गौ तस्कर को गिरफ्तार कर लिया है।
हिन्दू धर्म में गौ माता को पूजा जाता है गाय को माता का दर्जा दिया गया है। लेकिन अभी भी कुछ राज्यों में गौ वंश की हत्या कर, गौ वंश के मांस की भारी मात्रा में तस्करी का सिलसिला जारी है। आए दिन कहीं न कहीं से गौ वंश के मांस की तस्करी का मामला सामने आता रहता है। ऐसी एक गौ तस्करी की खबर हरियाणा से सामने आ रही है। आपको बता दें कि हरियाणा के मेवात जिले में गौ तस्कर को पकड़ने गई पुलिस टीम पर गौ तस्करों ने हमला बोल दिया।
मेवात के फ़िरोज़पुर झिरका थाना क्षेत्र में हसीन नाम के गौ तस्कर के घर दबिश के दौरान पुलिस को दौड़ा लिया। पुलिस के ऊपर किये गए पथराव में एक होमगार्ड गंभीर रूप से घायल हो गया है। पथराव के कारण पुलिस की गाडी को भी काफी नुकसान पहुँचा है। पुलिस ने हसीन नाम के एक गौ तस्कर को गिरफ्तार कर लिया है।
एक रिर्पोट के मुताबिक पुलिस ने मुखबिर की सूचना पर तौफीक नाम के गौ तस्कर की घेराबंदी की। उसको साकरस से चितौड़ा जाने वाले रास्ते से गिरफ्तार किया गया। उसके पास से बाइक पर भारी मात्रा में बोरियों में बंद गौ वंश का माँस बरामद हुआ। तौफीक ने पूछताछ के दौरान एक अन्य आरोपी हसीन का नाम लिया। हसीन पर तौफीक को मीट बेचने का आरोप था। साथ ही पकड़े गए आरोपित ने मुन्ना, आमीन, सद्दाम और फारुख का भी नाम लिया। आपको बता दें कि पकड़े गए आरोपी की जानकारी के आधार पर पुलिस ने बाकी बचे आरोपितों को पकड़ने के लिए उनके घर पर दबिश दी।
दबिश के दौरान आरोपितों ने 8 से 10 अन्य साथियों के साथ मिल कर पुलिस पर जानलेवा हमला बोल दिया। हमले के दौरान एक पुलिस कर्मी गंभीर रूप से घायल हो गया। इस दौरान पकड़ा गया तौफीक मौका तलाश कर भागने में सफल रहा। पथराव के बीच पुलिस ने एक अन्य हसीन नाम के गौ तस्कर को दबोच लिया। वहीं थाना प्रभारी अरविन्द कुमार ने बताया कि एक आरोपित की गिरफ्तारी के साथ 1 बाइक और बोरियों में बंद गौ माँस बरामद किया गया है।
साथ ही लगभग 1 दर्जन से अधिक अन्य नामजद आरोपितों पर सरकारी काम में बाधा डालने, पुलिस पर जानलेवा हमला करने और CS एक्ट के तहत केस दर्ज किया गया है। फिलहाल फरार गौ तस्करों की तलाश की जा रही है।
( पुरुष नसबंदी की कम लागत और सुरक्षित प्रक्रिया के बावजूद, भारत की एक तिहाई से अधिक यौन सक्रिय आबादी में महिला नसबंदी को क्यों अपनाया जा रहा है ? पुरुष नसबंदी का विकल्प नगण्य-सा है। हमारे राष्ट्रीय परिवार और स्वास्थ्य सर्वेक्षण में इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि वर्तमान में 15-49 वर्ष की आयु की विवाहित महिलाओं के बीच गर्भनिरोधक के उपयोग में 10 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि हुई है। महिलाओं के प्रजनन अधिकारों और गर्भनिरोधक विकल्पों को नियंत्रित करने के लिए पितृसत्तात्मक दृष्टिकोण जारी हैं। )
-प्रियंका ‘सौरभ’
प्रजनन अधिकार कानूनी और स्वास्थ्य से संबंधित स्वतंत्रताएं हैं जो दुनिया भर के देशों में अलग-अलग हैं। महिलाओं के प्रजनन अधिकारों में कानूनी और सुरक्षित गर्भपात का अधिकार; जन्म नियंत्रण का अधिकार; जबरन नसबंदी और गर्भनिरोधक से मुक्ति; अच्छी गुणवत्ता वाली प्रजनन स्वास्थ्य देखभाल प्राप्त करने का अधिकार; और मुफ्त और सूचित प्रजनन के लिए शिक्षा और पहुंच का अधिकार शामिल है।
हालाँकि, हमारे देश में महिलाओं के यौन और प्रजनन अधिकारों की मान्यता अभी भी नगण्य है। महिलाओं के लिए एक सख्त एजेंसी की कमी सबसे बड़ी बाधा है। प्रजनन और यौन अधिकारों की अनुपस्थिति का महिलाओं की शिक्षा, आय और सुरक्षा नकारात्मक प्रभाव पड़ता है, जिससे वे “अपना भविष्य खुद बनाने में असमर्थ” हो जाती हैं।
वर्तमान में 15-49 वर्ष की आयु की विवाहित महिलाओं में गर्भनिरोधक के उपयोग में 10 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि हुई है यानी 2015-16 में 53.5% से 2019-20 में 66.7% हो गई है। कंडोम के उपयोग में उल्लेखनीय उछाल देखा गया है, जो 5.6% से बढ़कर 9.5% हो गया। भारत में परिवार नियोजन की अवधारणा की स्थापना के कई वर्षों बाद भी केवल महिला नसबंदी सबसे लोकप्रिय विकल्प बनी हुई है। पुरुष नसबंदी का विकल्प नगण्य-सा है।
कम उम्र में शादी, जल्दी बच्चे पैदा करने का दबाव, परिवार के भीतर निर्णय लेने की शक्ति की कमी, शारीरिक हिंसा और यौन हिंसा और पारिवारिक संबंधों में जबरदस्ती के कारण शिक्षा कम होती है और बदले में महिलाओं की आय कम होती है। अपने प्रजनन अधिकारों पर कमी के कारण लगातार बच्चे पैदा करने से वह ज्यादातर एक गृहिणी बन गई है, जिससे वह वित्त के लिए जीवनसाथी पर निर्भर हो गई है। पितृसत्तात्मक मानसिकता और बच्चों के बीच उचित दूरी के बिना अपेक्षित संख्या में बेटे पैदा होने तक बच्चे को जन्म देना उसे शारीरिक रूप से कमजोर बनाता है और उसके जीवन को खतरे में डालता है। समाज में बेवजह ये डर कि शिक्षित महिलाओं को पति और उसके परिवार द्वारा नियंत्रित नहीं किया जा सकता है, उसके शिक्षा अधिकारों को कही न कही कम कर देता है।
पुरुष नसबंदी की कम लागत और सुरक्षित प्रक्रिया के बावजूद, भारत की एक तिहाई से अधिक यौन सक्रिय आबादी के साथ महिला नसबंदी सबसे व्यापक प्रसार विधि है। भारत में प्रजनन अधिकारों को बाल विवाह, कन्या भ्रूण हत्या, लिंग चयन और मासिक धर्म स्वास्थ्य और स्वच्छता के मुद्दों जैसे चुनिंदा मुद्दों के संदर्भ में ही समझा जाता है।
महिलाओं की स्वास्थ्य संबंधी जरूरतों, उनके पोषण की स्थिति, कम उम्र में शादी और बच्चे पैदा करने के जोखिम पर ध्यान देना चिंता का संवेदनशील मुद्दा है और अगर महिलाओं की स्थिति में सुधार करना है तो इस पर तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है। साथ ही बड़े स्तर पर जागरूकता कार्यक्रम के माध्यम से जमीनी स्तर तक स्वास्थ्य देखभाल की जानकारी उपलब्ध कराने की आवश्यकता है। भारत में महिलाओं के प्रजनन अधिकारों के प्रचार और संरक्षण को संबोधित करने और पहचानने के लिए उचित कानूनी ढांचे की आवश्यकता है।
महिलाओं के लिए उपयुक्त, सस्ती और गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य देखभाल सुविधाओं और संबंधित सेवाओं तक पहुंच की आवश्यकता है। स्वास्थ्य कार्यक्रमों में प्रजनन स्वास्थ्य सहित महिलाओं के स्वास्थ्य पर अधिक ध्यान देना चाहिए। महिलाओं के प्रजनन अधिकारों की रक्षा और बढ़ावा देने और महिलाओं के प्रजनन स्वास्थ्य के सभी मुद्दों की देखभाल करने के लिए प्रजनन अधिकार अधिनियम के रूप में कानून बने चाहे वह चिकित्सा सुविधाएं प्रदान करने या जागरूकता पैदा करने के संबंध में हो या महिलाओं से संबंधित स्वास्थ्य नीतियां और कार्यक्रम का।
इसलिए, यह समय की मांग है कि नीति और व्यापक स्तर पर यौन और प्रजनन स्वास्थ्य को प्राथमिकता दी जाए। बेहतर और स्वस्थ प्रजनन व्यवहार को बढ़ावा देना जो लड़कियों और युवाओं को जीवन रक्षक यौन और प्रजनन स्वास्थ्य सेवाओं की आवश्यकता को पूरा करें। सार्वजनिक बहस और मांगों में इन मुद्दों को लाने के लिए नागरिक समाज की जिम्मेदारी है।
पिछले कुछ वर्षों में, महिलाओं ने लैंगिक अंतर को कम करने में उल्लेखनीय प्रगति के साथ कई क्षेत्रों में काफी प्रगति की है। फिर भी महिलाओं और लड़कियों की तस्करी, मातृ स्वास्थ्य, हर साल गर्भपात से होने वाली मौतों की वास्तविकताओं ने उन सभी विकासों के खिलाफ कड़ा प्रहार किया है।
जैसा कि स्वामी विवेकानंद के शब्दों में, “जब तक महिलाओं की स्थिति में सुधार नहीं होगा, तब तक दुनिया के कल्याण के बारे में सोचना असंभव है। एक पक्षी के लिए केवल एक पंख पर उड़ना असंभव है।” –प्रियंका सौरभ रिसर्च स्कॉलर, कवयित्री, स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार,उब्बा भवन, शाहपुर रोड, सामने कुम्हार धर्मशाला, आर्य नगर, हिसार (हरियाणा)-125003 (मो.) 7015375570 (वार्ता+वाट्स एप) facebook –https://www.facebook.com/PriyankaSaurabh20/twitter-https://twitter.com/pari_saurabh
Mumbai – राष्ट्रवादी कांग्रेस के नेता व मंत्री नवाब मलिक को अंडरवर्ल्ड से उनके कनेक्शन के आरोप में प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने गिरफ्तार किया है। देश में आतंकी कार्रवाइयों को अंजाम देनेवाले लोगों से संबंध रखनेवाले आरोपियों पर कार्रवाई सर्वथा उचित है।
ये दुर्भाग्य है कि गौरवशाली इतिहास रखनेवाले महाराष्ट्र राज्य के एक मंत्री को अंडरवर्ल्ड से संबंध व आर्थिक व्यवहार के कारण गिरफ्तार किया गया है। आतंकवादी गतिविधियों में लिप्त लोगों से संबंधित आरोपियों को किसी भी हालत में नहीं छोड़ा जाना चाहिए और उनके खिलाफ कड़ी से कड़ी कार्रवाई की जानी चाहिए।
मुंबई बम ब्लास्ट में जिन आतंकवादियों ने 257 निर्दोष मुंबईकरों की जान ली तथा हजारों लोगों को घायल किया, उन आतंकवादियों से नवाब मलिक ने रिश्ता रखा तथा उनके साथ व्यवसाय किया, ऐसे नवाब मलिक को देशवासी कभी माफ नहीं करेंगे ।
यह देश की सुरक्षा से जुडा मुद्दा है , इस विषय में सभी दलो को राजनीति छोड़कर केंद्रीय एजेंसियों का सहयोग करना चाहिए ।
बॉलीवुड की चर्चित अदाकारा हुमा कुरैशी की फिल्म ‘वलीमई’ 24 फरवरी को रिलीज होगी। फिलवक्त हुमा कुरैशी इस फिल्म के प्रमोशन के लिए बैंगलोर, हैदराबाद और चेन्नई इन शहरों के चक्कर लगा रही है। ‘वलीमई’ के रिलीज़ के दिन चेन्नई में आयोजित किए गए मॉर्निंग फैन शो में हुमा कुरैशी उपस्थित रहेंगी। प्राप्त जानकारी के अनुसार ‘वलीमई’ की एडवांस बुकिंग पूरे देश में शुरू हो गई है। साउथ सुपरस्टार अजित कुमार और हुमा कुरैशी अभिनीत फिल्म ‘वलीमई’ सिर्फ एक एक्शन फिल्म नहीं है बल्कि एक फैमिली एंटरटेनर है जो सामाजिक मुद्दों पर भी बात करती है। इस फिल्म में पहली बार हुमा एक पुलिस अधिकारी की भूमिका निभा रही है, साथ ही पहली बार एक्शन करती भी नजर आएंगी। इस फिल्म के ट्रेलर जारी किए जाने के बाद पॉजिटिव रिस्पॉन्स मिलने पर प्रोड्यूसर बोनी कपूर ने इस फिल्म को हिंदी, तेलुगू और कन्नड़ में बड़े पैमाने पर रिलीज करने का फैसला किया हैै।
इस फिल्म में कार्तिकेय गुम्माकोंडा विलेन के रोल में नजर आएंगे। अदाकारा हुमा कुरैशी की यह फिल्म बॉक्स ऑफिस पर आलिया भट्ट की फिल्म ‘गंगूबाई काठियावाड़ी’ से टकराने वाली है। फिल्म ‘गंगूबाई काठियावाड़ी’ 25 फरवरी को रिलीज होने वाली है। प्रस्तुति : काली दास पाण्डेय