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Bhagat Singh Koshyari : देश की जनता के जननायक है .

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भगत स‍िंह कोश्‍यारी राजनीत‍ि में अपनी सादगी के ल‍िए जाने जाते है. इस वजह से उन्‍हें उत्‍तराखंड में बच्‍चे से लेकर बुजुर्ग तक प्‍यार से भगत दा के नाम से पुकारते हैं. वह उत्‍तराखंड गठन के बाद बनी अंतर‍िम सरकार में मुख्‍यमंत्री की ज‍िम्‍मेदारी संभाल चुके हैं.

भगत दा’. RSS प्रचारक से राज्यपाल तक का सफर कर चुके भगत सिंह कोश्यारी ने महाराष्ट्र में एक नई तरह की राजनीति की शुरुआत की है। आम तौर पर एक राज्यपाल एक रबर स्टैम्प की तरह से होता है मगर भगत सिंह कोश्यारी ने एक राज्यपाल की भूमिका की पूरी की पूरी पृष्ठ्भूमि ही बदल कर रख दी है। महानगर मुम्बई की तमाम स्वमसेवी संगठनों और संस्थाओ को पुनर्जीवित कर दिया है , हर दिन कुछ न कुछ सांस्कृतिक , सामाजिक कार्यक्रमों में मुख्य अतिथि के तौर पर भाग ले कर राजभवन से सामाजिक समरसता और समाज सेवा की प्रेरणा देने वाले भगत सिंह कोश्यारी आज महानगर मुम्बई ही नहीं सम्पूर्ण महाराष्ट्र की जनता के लाडले बन चुके है।
भगत दा में एक जननायक की भूमिका में नजर आते है। जनता के बीच रहना उन्हें सामाजिक कार्यो की प्रेरणा देना , देश की सेवा में प्रेरक बनाना उनकी ख़ासियत है। आज भले ही महाराष्ट्र की तिकड़ी सरकार के साथ उनका विवाद समय – समय खुल कर सामने आते रहे हो मगर उनके सामने सभी ने मुँह की खाई है। अभी अभी ताजे विवाद को भी ले कर उन्होंने एक साधे हुए राजनेता के तौर पर ज़वाब दे कर विरोधी पार्टियों को आईना दिखा दिया है।

घटना क्रम के अनुसार , महाराष्ट्र (Maharashtra) के कई नेताओं ने राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी (Bhagat Singh Koshyari) की, समर्थ रामदास को छत्रपति शिवाजी महाराज (Chhatrapati Shivaji Maharaj) का गुरु बताने वाली टिप्पणी पर सोमवार को आपत्ति जताई. इन नेताओं ने भारतीय जनता पार्टी (BJP) के नेता एवं छत्रपति शिवाजी महाराज के वंशज उदयनराजे भोंसले का नाम भी शामिल है. उन्होंने कोश्यारी के बयान पर आपत्ति जताते हुए उनसे तत्काल इसे वापस लेने को कहा है. कोश्यारी ने रविवार को औरंगाबाद में एक कार्यक्रम के दौरान छत्रपति शिवाजी महाराज और चंद्रगुप्त मौर्य का उदाहरण देते हुए गुरु की भूमिका को रेखांकित किया था.

उन्होंने कहा था, ‘‘इस भूमि पर कई चक्रवर्ती (सम्राट), महाराजाओं ने जन्म लिया, लेकिन चाणक्य न होते तो चंद्रगुप्त के बारे में कौन पूछता? समर्थ (रामदास) न होते तो छत्रपति शिवाजी महाराज के बारे में कौन पूछता.’’ कोश्यारी ने कहा था, ‘‘मैं चंद्रगुप्त और शिवाजी महाराज की योग्यता पर सवाल नहीं उठा रहा हूं. जैसे एक मां, बच्चे का भविष्य बनाने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है, उसी तरह हमारे समाज में एक गुरु का भी बड़ा स्थान है.’’
खैर भगत दा के साथ विवादों का पुराना नाता है। वह राज्यपाल से ज्यादा एक नायक और जननायक की भूमिका में रहते है जिसे महाराष्ट्र की जनता बहुत प्यार करती है।

Shri Bhagat Singh Koshyari ji

देश की स‍ियासत में भगत स‍िंह कोश्‍यारी (Bhagat Singh Koshyari) क‍िसी पहचान के मोहताज नहीं है. राजनीत‍ि में अपनी सादगी के ल‍िए पहचाने जाने वाले भगत स‍िंंह कोश्‍यारी को प्‍यार से ‘भगत दा’ के नाम से पुकारा जाता है. भगत स‍िंह कोश्‍यारी उत्‍तराखंड बीजेपी (Uttarakhand BJP) के दिग्गज और वरिष्ठ नेताओं में शुमार रहे हैं. उन्‍होंने राष्‍ट्रीय स्‍वयं सेवक संघ (RSS) के प्रचारक से महाराष्‍ट्र के राज्‍यपाल तक का सफर तय क‍िया है, लेक‍िन भगत दा का यह राजनीत‍िक सफर बेहद ही उतार- चढ़ाव भरा रहा है. राजनीत‍ि में आने से पहले वह कॉलेज में एक श‍िक्षक के तौर पर अपनी सेवाएं दे रहे थे. ज‍िसके बाद वह राष्‍ट्रीय स्‍वयं सेवक संघ (RSS) में पूर्णकाल‍िक हो गए और अव‍िवाह‍ित रहते हुए RSS के स्‍वयं सेवक के साथ ही BJP  की राजनीत‍ि में सक्र‍िय रहे.

एटा के इंटर कॉलेज में क‍िया अध्‍यापन, RSS के संपर्क में आए और पूर्णकालि‍क हो गए

अंग्रेजी से परास्‍नातक करने के बाद भगत स‍िंह कोश्‍यारी ने अध्‍यापन के क्षेत्र में भव‍िष्‍य बनाने का प्रयास क‍िया. ज‍िसके तहत उन्‍होंने 1964 में एटा के राजाराम इंटर कॉलेज में बतौर प्रवक्‍ता काम करना शुरू क‍िया और कुछ वर्षों तक पढ़ाया. इसके बाद वह 1966 में RSS के संपर्क में आए और पूर्णकालि‍क हो गए. इसके बाद उन्‍होंने प्रवक्‍ता की नौकरी छोड़ कर प‍िथौरागढ़ की तरफ वाप‍िस रूख क‍िया और प‍िथौरागढ़ को अपनी कर्मभूम‍ि बनाया.

प‍िथौरागढ़ के सरस्‍वती श‍िशु मंदि‍र की स्‍थापना के साथ ही यहीं पढ़ाया भी

प‍िथौरागढ़ लौटे भगत स‍िंह कोश्‍यारी ने 1977 में ज‍िले के अंदर सरस्‍वती श‍िशु मंद‍िर की स्‍थापना की और लंबे समय तक इस स्‍कूल में अध्‍यापन का काम भी क‍िया. इसके साथ ही उन्‍होंने  पर्वत पीयूष नाम से साप्‍ताहि‍क समाचार पत्र का संपादन और प्रकाशन क‍िया. ज‍िसमें वह जनसरोकारों के मुद्दे उठाते रहे. वह आपतकाल के दौरान तकरीबन दो सालों तक फतेहगढ़ जेल में बंद भी रहे.

1997 में व‍िधानपर‍िषद पहुंचे, 2001 में बने उत्‍तराखंड के मुख्‍यमंत्री

भगत सिंह कोश्यारी लंबे समय तक कुमाऊं व‍िव‍ि की कार्यकारी प‍र‍िषद के सदस्‍य भी रहे. तो वहीं वह 1997 में पहली बार व‍िधानपर‍िषद पहुंचे. इसके बाद जब 2000 में पृथक उत्‍तराखंड बना तो गठ‍ित पहली अंतर‍िम सरकार में उन्‍हें कैब‍िनेट मंत्री बनाया गया, लेक‍िन एक साल बाद ही वह अंतर‍िम सरकार के मुख्‍यमंत्री बनाए गए. इसके एक साल बाद 2002 में उत्‍तराखंड का पहला व‍िधानसभा चुनाव आयोज‍ित क‍िया गया. इस चुनाव में भगत स‍िंह कोश्‍यारी कपकोट से व‍िधानसभा पहुंचे, लेक‍िन बीजेपी को बहुमत नहीं म‍िला. इस दौरान भगत स‍िंह कोश्‍यारी ने नेताप्रत‍िपक्ष के तौर पर ज‍िम्‍मेदारी संभाली.

दोबारा मुख्‍यमंत्री बनने से चूके तो राज्‍यसभा पहुंचे

2007 के चुनाव में बीजेपी को भगत स‍िंह कोश्‍यारी के नेतृत्‍व में सफलता म‍िली, लेक‍िन बहुमत का आंकड़ा प्राप्‍त कर लेने के बाद भी बीजेपी ने भगत स‍िंह कोश्‍यारी को मुख्‍यमंत्री नहीं बनाया गया. उनकी जगह पर केंद्र की राजनीत‍ि में सक्र‍िय भुवन चंद्र खंडूरी को मुख्‍यमंत्री बनाया गया. इसके बाद 2008 में भगत स‍िंह कोश्‍यारी को उत्तराखंड कोटे से राज्यसभा का सदस्य बनाया गया. वहीं इस दौरान भगत सिंह कोशियारी भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष भी रहे.

2014 में लोकसभा पहुंचे, 2019 में बने महाराष्‍ट्र् के राज्‍यपाल

भगत सिंह कोश्यारी उत्तराखंड की कपकोट विधानसभा सीट से 2 बार विधायक रह चुके हैं. वहीं उन्‍होंने 2014 में नैनीताल सीट से लोकसभा का चुनाव लड़ा. ज‍िसमें उन्‍हें जीत म‍िली. इसके बाद 2019 के लोकसभा चुनाव से उन्‍होंने दूरी बनाई. 2019 जब दोबारा मोदी सरकार सत्‍ता में आई तो 31 अगस्त 2019 को सरकार ने उन्हें महाराष्ट्र का राज्यपाल नियुक्त किया.

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