सूरत. भोजन की तलाश में शहरों और गांवों की सड़कों पर भटक रहा गौ वंश आए दिन हादसों की वजह बन रहा। हाईकोर्ट ने इस पर टिप्पणी करते हुए गौवंश को सड़कों से हटाने का आदेश दिया है। इसके बाद से गौ संरक्षण और संवर्धन को लेकर बड़े-बड़े दावे करने वाली गुजरात सरकार समस्या का हल ढूंढने में लगी है।
पशु बाड़े बनाने की बात की जा रही है, हालांकि ये बाड़े कहां और कैसे बनेंगे इसको लेकर अभी स्थिति स्पष्ट नहीं हैं। मालधारी समाज (पशुपालकों ) पर भी शिकंजा कसा जा रहा हैं, जिसका विरोध हो रहा है। जानकारों की माने तो गौ वंश की इस स्थिति के लिए सरकार नीति जिम्मेदार है।
गत वर्ष सितंबर में भूपेंद्र पटेल के मुख्यमंत्री बनने के बाद सरकार ने चालू वित्त वर्ष 2022-23 में “मुख्यमंत्री गौ माता पोषण योजना” के तहत 500 करोड़ रुपए के पैकेज की घोषणा की थी। जिसे प्रदेश की विभिन्न 219 पांजरापोलों व 1418 गौ शालाओं में आधारभूत सुविधाओं के विकास पर खर्च करने का प्रावधान रखा था। इन पांजरापोलों व गौ शालाओं में गौवंश की संख्या करीब 4.50 लाख हैं।
घोषणा के महीनों बाद भी सरकार ने इस योजना के तहत एक रुपया भी खर्च नहीं किया। इतना ही नहीं कोरोना काल में प्रति गाय 25- 30 रुपए की जो सहायता राशि मिल रही थी, उसे भी बंद कर दिया है। कोई सहायता नहीं मिलने से धार्मिक व सामाजिक ट्रस्टों के माध्यम से संचालित होने वाली इन पांजरापोलों व गौ शालाओं की हालत पतली हो गई हैं।
नोटबंदी, जीएसटी व उसके बाद कोरोना की मार पड़ने से अब इन्हें पर्याप्त दान भी नहीं मिल रहा हैं। पांजरापोलों को तो किसी तरह की कोई खास आमदनी भी नहीं होती। यहां ऐसे मवेशी व पशु-पक्षी लाए जाते हैं, जो बीमार होते हैं या फिर उनका कोई उपयोग नहीं होता। उनके भोजन के साथ उपचार का अतिरिक्त खर्च वहन करना पड़ता हैं।
सहायता राशि के अभाव में पांजरापोलों को अपनी बैंक एफडी तुड़वा कर किसी तरह खर्च चलाना पड़ रहा हैं। कई पांजरापोलें नए मवेशियों को लेने से कतरा रहीं हैं। वे मवेशी के साथ उस पर होने वाले खर्च की भी दान के रूप में मांग करती हैं।
पांजरापोलों व गौ शालाओं द्वारा और अधिक मवेशियों को नहीं लिए जाने से बिना मालिक के कई मवेशी भोजन की तलाश में सड़कों पर भटकने को मजबूर हैं। यदि सरकार पांजरापोलों और गौशालाओं को घोषित योजना का तुरंत लाभ देकर सक्षम बनाए तो सड़कों पर आवारा घूमने वाले मवेशियों को भी ठिकाना मिल सकता हैं।
नहीं मिल रहा जवाब
पांजरापोलों व गौशालालों में को घोषित 500 करोड़ सरकारी मदद नहीं मिलने पर हमने गौ सेवा व गौचर विकास बोर्ड व मुख्य मंत्री कार्यालय से संपर्क किया। बोर्ड प्रमुख ने बताया कि उन्होंने प्रोजेक्ट फाइल सीएम ऑफिस भेज दिया, लेकिन वहां से कोई फंड नहीं मिला है। वहीं सीएम ऑफिस से भी कोई जवाब नहीं मिला है।
– धर्मेश गामी ( भारतीय गौ रक्षा मंच, सूरत)
मेरी टर्म खत्म हो गई
500 करोड़ के खर्च की योजना गुजरात सरकार की है। गौ सेवा व गौचर विकास बोर्ड में मेरी टर्म खत्म हो गई है। शायद अभी कोई चेयरमैन नहीं है। इस लिए मैं इस बारे में कुछ भी बताने की स्थिति में नहीं हूं।
– डॉ. वल्लभ कथीरिया ( गौ सेवा व गौचर विकास बोर्ड, गुजरात)