माउंट आबू। ब्रह्मकुमारी संस्था की स्थापना सन 1930 में लेखराज कृपलानी ने की, जिन्हें यह संस्था प्रजापिता ब्रह्मा मानती है।
दादा लेखराज अविभाजित भारत में हीरों के व्यापारी थे। वे बाल्यकाल से ही धार्मिक प्रवृत्ति के थे। 60 वर्ष की आयु में उन्हें परमात्मा के सत्यस्वरूप को पहचानने की दिव्य अनुभूति हुई। उन्हें ईश्वर की सर्वोच्च सत्ता के प्रति खिंचाव महसूस हुआ। इसी काल में उन्हें ज्योति स्वरूप निराकार परमपिता शिव का साक्षात्कार हुआ। इसके बाद धीरे-धीरे उनका मन मानव कल्याण की ओर प्रवृत्त होने लगा।
उन्हें सांसारिक बंधनों से मुक्त होने और परमात्मा का मानवरूपी माध्यम बनने का निर्देश प्राप्त हुआ। उसी की प्रेरणा के फलस्वरूप सन् 1937 में उन्होंने इस विराट संगठन की छोटी-सी बुनियाद रखी। सन् 1937 में आध्यात्मिक ज्ञान और राजयोग की शिक्षा अनेकों तक पहुँचाने के लिए इसने एक संस्था का रूप धारण किया।
इस संस्था की स्थापना के लिए दादा लेखराज ने अपना विशाल कारोबार कलकत्ता में अपने साझेदार को सौंप दिया। फिर वे अपने जन्मस्थान हैदराबाद सिंध (वर्तमान पाकिस्तान) लौट आए। यहाँ पर उन्होंने अपनी सारी चल-अचल संपत्ति इस संस्था के नाम कर दी। सन 1950 में लेखराज जी राजस्थान स्थित आबू पर्वत पहुंचे और योग साधना करते हुए प्रजापिता ब्रह्माकुमारी संस्था का मुख्यालय स्थापित किये। प्रारंभ में इस संस्था में केवल महिलाएँ ही थी। माउंट आबू में ब्रह्मकुमारी की मुख्य प्रशासिका जगदम्बा सरस्वती, दादी मनमोहिनी, दादी प्रकाशमणि, दादी जानकी, दादी हृदयमोहिनी, दादी रत्नमोहिनी रहीं। दादा लेखराज को ‘प्रजापिता ब्रह्मा’ नाम दिया गया। सभी ब्रह्माकुमारी द्वारा उन्हें शिव बाबा भी कहा जाता है। जो लोग आध्यात्मिक शांति को पाने के लिए ‘प्रजापिता ब्रह्मा’ द्वारा उच्चारित सिद्धांतो पर चले, वे ब्रह्मकुमार और ब्रह्मकुमारी कहलाए तथा इस शैक्षणिक संस्था को ‘प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय’ नाम दिया गया।
इस विश्वविद्यालय की शिक्षाओं (उपाधियों) को वैश्विक स्वीकृति और अंतर्राष्ट्रीय मान्यता प्राप्त हुई है।
ओम शांति
माउंट आबू से संवाददाता संतोष साहू