अशोक भाटिया
जी-20 देशों के सम्मेलन का इंडोनेशिया के खूबसूरत शहर बाली में समापन हो गया और अगले वर्ष के लिए इसकी अध्यक्षता भारत को सौंप दी गई। जी 20 शिखर सम्मेलन के डिक्लेरेशन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की स्पष्ट छाप दिखाई दी। ‘ये युग युद्ध का नहीं’, का जो संदेश प्रधानमंत्री मोदी ने रूस के प्रेसिडेंट व्लादिमीर पुतिन से बातचीत के दौरान दिया था, उसे बाली डिक्लेरेशन में जगह दी गई है। यह बात बहुत महत्वपूर्ण है। ये गांधी, बुद्ध और महावीर का देश है जहां अहिंसा और शक्ति की बात होती है, शांतिपूर्ण तरीके से सारी बातें निपटाने की।

दूसरी बात ये वक्त युद्ध का नहीं है। निश्चित रूप से जो बड़ा संकट आज दुनिया में आया हुआ है, चाहे वो खाद्य सुरक्षा की बात हो, चाहे वो विद्युत या ऊर्जा सुरक्षा की बात हो, या बाकी जो दूसरे हेल्थ इशूज हैं या इन्फ्लेशन है, पॉवर्टी है, ये कुछ ना कुछ हद तक जो अभी कॉनफ्लिक्ट चल रहे हैं दुनिया में। खासकर रशिया और यूक्रेन के बीच कॉन्फ्लिक्ट हो रहा है, उससे खाद्य और ऊर्जा का संकट बढ़ता जा रहा है। बाकी जो कॉन्फ्लिक्ट चीन के साथ ताइवान, साउथ चाइना सी में ले लीजिए या ईरान-इजरायल का कॉनफ्लिक्ट देखिए, या पाकिस्तान-तालिबान का देख लीजिए। बाकी जो दूसरे इश्यूज हैं, जिसमें देशों को सुरक्षा के लिए ज्यादा खर्च करना पड़ता है, हथियारों के लिए ज्यादा खर्च करना पड़ रहा है, जो बेसिक सुविधाएं हैं वो जिसमें आप हेल्थ की कहिए, मेडिसिन हुआ, एजुकेशन हुआ, पॉवर्टी एलिवेशन हुआ, जो बेसिक नीड्स हैं, उसकी तरफ से ध्यान हट रहा है।
मोदी जी ने सटीक बात कही है कि ये युग युद्ध का युग नहीं है। ये युद्ध, जो गैर परम्परागत चुनौतियां हैं, उनसे निपटने का है। जैसे कि अब जी 20 का अगला अध्यक्ष भारत है। भारत को एक मौका है कि जो गैर परंपरागत चुनौतियां हैं समाज के सामने, विश्व के सामने। उनके साथ भारत के लीडरशिप में लड़ा जाए। भारत, जो वसुधैव कुटुंबकम की बात करता है, वन विलेज, वन वर्ल्ड की बात करता है, ये साबित करने के तरफ अग्रसर किया जाए, क्योंकि भारत एक सॉफ्ट पावर है। भारत एक लॉ अबाइडिंग कंट्री है। भारत दुनिया की लार्जेस्ट फंक्शनल डेमोक्रेसी है। ये मैसेज भारत हमेशा देना चाहता है कि कोई भी संकट का समाधान हमें डायलॉग और डिप्लोमैसी के माध्यम से करना चाहिए, युद्ध के माध्यम से नहीं करना चाहिए। साथ साथ यही बातें भारत ने जी 20 सम्मेलन में भी कहीं।
ऐसे में जी 20 सम्मेलन में भारतीय कूटनीति की जो धाक दिखी, उससे दुनिया के देश भारत की तरफ एक उम्मीद की नजर से देख रहे हैं . इसके आलावा बड़ी बात ये है कि भारत की जो विदेश नीति है, उसमें मोटे तौर पे भारत में सर्व सम्मति है कि भारत जो विदेशों के साथ संबंध बना रहा है, डेवेलप कर रहा है, वो सबको मान्य है।
भारत ने सम्मेलन में गुजरे कोरोना संकट व जलवायु परिवर्तन को विश्व की अर्थव्यवस्था के लिए बहुत बड़ा विनाशक बताते हुए कहा कि इससे विभिन्न देशों के बीच की विभिन्न वस्तुओं की सप्लाई या आपूर्ति शृंखला टूट गई जिसकी वजह से उपभोक्ता वस्तुओं की कमी महसूस होने लगी।
अतः कोरोना के बाद नयी विश्व व्यवस्था की जरूरत महसूस हो रही है। भारत का यह शुरू से ही मानना रहा है कि जलवायु परिवर्तन के खतरे को देखते हुए जिस प्रकार गरीब या विकासशील कहे जाने वाले देशों पर विकसित देशों द्वारा प्रकृति के साथ की गई छेड़छाड़ या आधुनिकतम वैज्ञानिक विधियों द्वारा प्रदूषित गैसों के अत्याधिक उत्सर्जन का विपरीत असर हुआ है, उसकी भरपाई अमीर देशों को ही करनी चाहिए जिससे ये देश अपने विकास के लिए वैकल्पिक तरीकों का उपयोग करने में सक्षम हो सकें परन्तु सम्मेलन ने इस बारे में कोई फैसला नहीं किया है जबकि जलवायु परिवर्तन का विनाशकारी असर विकासशील देशों पर ही पड़ रहा है।
इसके साथ यह भी सत्य है कि जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर भारत सबसे ज्यादा प्रभावी देश माना जाता है। इस सम्मेलन से एक तस्वीर और साफ हो रही है कि वर्तमान विश्व परिस्थितियों में बहुदेशीय सहयोग व सहकार के साथ ही द्विपक्षीय आधार पर सहयोग की दिशा में भी देश आगे बढ़ते नजर आ रहे हैं।
