पूरन चन्द्र शर्मा –

हम सभी जानते हैं कि लोकतंत्र के हित में एक मजबूत विपक्ष का होना जरूरी है। विपक्ष को सदन में जनता ही भेजती है जिससे सत्ताधारी पार्टी किसी प्रकार की मनमानी न कर सके और देश सुचारु रूप से चलता रहे। यह स्वस्थ्य लोकतंत्र के लिए आवश्यक भी है।

लेकिन आज विपक्ष ही लोकतंत्र को कमजोर करने में लगा हुआ है। विपक्षी पार्टियों के नेता जनहित के स्थान पर अपने ही हित के बारे में सोचने लगे हैं जो कि लोकतांत्रिक व्यवस्था के खिलाफ है।

लोकतंत्र में जनता को मालिक और जनता के द्वारा चुने गए प्रतिनिधि को जनसेवक कहा जाता है।  इसे एक विडम्बना ही कहेंगे कि अधिकांश जनसेवक चुनाव जीतने के बाद जनता से दूरी बनाने लग जाते हैं।

जनता के साथ विश्वासघात कर बेशर्मी से ये जनता के पैसे को लूटने में लग जाते हैं। भारतीय राजनीति में भ्रष्ट  नेताओं की एंट्री हो जाने के कारण देश और देश की जनता को भारी नुकसान उठाना पड़ रहा है। इधर  देखने में आ रहा है कि कुछ सालों से भारतीय न्यायपालिका भ्रष्ट नेताओं के खिलाफ कठोरता से पेश आ रही है जो कि देश के लिए  शुभ संकेत है।

पश्चिम बंगाल में एक-एक करके भ्रष्टाचार के नए केस सामने आ रहे हैं। पश्चिम बंगाल पुलिस निष्पक्ष हो कर काम नहीं कर पा रही। यहां की पुलिस को सत्ताधारी तृणमूल कांग्रेस पार्टी के नेताओं के इशारों पर काम करना पड़ रहा है। स्थानीय पुलिस प्रशासन चाह कर भी अपराधियों को गिरफ्तार नहीं कर पा रही है। ऐसी परिस्थिति में कलकत्ता हाई कोर्ट को बाध्य हो कर केंद्रीय जांच ब्यूरो एवं  अन्य केंद्रीय एजेंसियों को जांच करने के आदेश देने पड़ रहे हैं। पश्चिम बंगाल में शिक्षक भर्ती घोटाले के आरोप में पूर्व शिक्षा मंत्री पार्थ चटर्जी एवं उनकी करीबी अर्पिता मुखर्जी सहित कई नेता एवं मंत्री  जेल में बंद हैं।  शिक्षक भर्ती घोटाले के चलते राज्य की शिक्षा व्यवस्था बुरी तरह से प्रभावित हुई है।

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी यदि समय रहते भ्रष्ट तरीके से नियुक्त किए गए शिक्षकों की सूची कलकत्ता हाई कोर्ट को सौंप देती तो बाकी के करीब 20 हजार शिक्षकों की नौकरी बच जाती।

सिर्फ 5000 के आसपास शिक्षकों को ही नौकरी से निकाला जाता जो रिश्वत देकर शिक्षक बने थे।  राज्य सरकार की अदूरदर्शिता के कारण योग्य शिक्षकों को अपनी नौकरी से हाथ धोना पड़ा है।

संदेशखाली में  महिलाओं पर हो रहे अत्याचार, टीएमसी नेताओं द्वारा जमीनों पर जबरन कब्जा करना आदि मुद्दों पर राज्य सरकार ईमानदारी से काम करती तो इस मामले में न्यायालय को राज्य सरकार के कार्यों में हस्तक्षेप करने की आवश्यकता नहीं पड़ती।

एक बार तो टीएमसी के एक नेता ने पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी शहर में स्थित 125 वर्ष पुराने श्री हनुमान मंदिर को दिन दहाड़े बुलडोजर से तोड़ दिया, जबकि मंदिर के पुजारी के पास जमीन के वैध कागजात भी थे। जलपाईगुड़ी नगर पालिका द्वारा हनुमान मंदिर की जमीन पर एक मार्केट काम्प्लेक्स का निर्माण करना था।  इस घटना की सूचना स्थानीय प्रशासन को दी गई थी पर प्रशासन मौनी बाबा बना रहा।  इसी प्रकार सिलीगुड़ी (पश्चिम बंगाल) शहर के समीप फुलवारी इलाके में एक टीएमसी नेता ने होलिका दहन की जमीन पर कब्जा कर उसे बेच दिया। शिकायत करने पर भी प्रशासन चुप बैठा रहा।

राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी समय पर अपनी पार्टी के भ्रष्ट नेताओं के खिलाफ कार्रवाई करती तो पार्टी की साख बनी रहती। चारों तरफ से राज्य सरकार की किरकिरी हो रही है।  आज तृणमूल कांग्रेस को बहुत ज्यादा कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है। लोकसभा चुनाव के समय घोटाले का पर्दाफाश होने से राज्य की सत्ताधारी  पार्टी तृणमूल कांग्रेस को कितना नुकसान होगा तथा  राज्य की मुख्य प्रतिद्वंद्वी पार्टी भारतीय जनता पार्टी को कितना फायदा होगा यह तो मतगणना के बाद ही मालूम पड़ेगा। (विनायक फीचर्स)

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