आशीष वशिष्ठ का कॉलम/ बात कुछ ऐसी है…
विकास और प्रौद्योगिकी के इस बदलते दौर में मोबाइल हमारे जीवन का एक अहम अंग बन गया है। एक पल के लिए भी कोई इसे स्वयं से दूर नहीं करना चाहता है। इसी का परिणाम है कि माता-पिता की देखा-देखी आज छोटे-छोटे बच्चे भी इसके आदी हो गए हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं कि लाड-प्यार के कारण आपने जिस उपकरण को अपने बच्चे की जीवन में शामिल किया है, आगे चलकर वह आपके बच्चे की शारीरिक और मानसिक समस्याओं का कारण बन सकता है।
कोरोना महामारी के दौर में ऑनलाइन पढ़ाई ने बच्चों को मोबाइल फोन का गुलाम बना दिया। अब बच्चों की आदत इतनी बिगड़ गई है कि कुछ देर के लिए उन्हें मोबाइल फोन न मिले तो उनमें चिड़चिड़ापन, बेचैनी, घबराहट, गुस्सा, व्यवहार में आक्रामकता, बातचीत ही बंद कर देना या खाना छोड़ देने जैसे लक्षण सामने आ रहे हैं। स्मार्ट फोन के हाथ में आते ही उनका मूड ठीक हो रहा है। मोबाइल की लत से बच्चों की दैनिक गतिविधियां बुरी तरह प्रभावित हो रही हैं।
स्कूल से आते ही बच्चे मोबाइल फोन में ही लगे रहते हैं। इससे आंखों पर बुरा असर तो पड़ ही रहा है, मानसिक विकार भी आ रहे हैं। मनोचिकित्सकों के अनुसार जागरूक अभिभावक तो काउंसलिंग करवा रहे हैं, लेकिन कुछ इन लक्षणों को अनदेखा कर रहे हैं। स्कूल बंद होने से ऑनलाइन पढ़ाई का फायदा हुआ था, लेकिन अब मोबाइल की लत नुकसानदायक साबित हो रही है।
विशेषज्ञों के अनुसार, बच्चों और किशोरों में मोबाइल की लत मानसिक रोगी बना सकता है। ऐसे में अभिभावक को बहुत अधिक सावधान रहने की जरूरत है। मोबाइल फोन पर बहुत अधिक गेम खेलना, दिनभर वीडियो देखते रहना या इसका किसी भी रूप में बहुत अधिक प्रयोग, उनके स्वास्थ्य के लिए अति नुकसानदायक है।
डाक्टरों के अनुसार मोबाइल ज्यादा इस्तेमाल करने से बच्चों में डिप्रेशन, अनिद्रा और चिड़चिड़ापन जैसी मानसिक समस्याएं बढ़ रही हैं। बच्चों में सिर और आंखों में दर्द, भूख न लगना, आंखों की रोशनी कम होना, गर्दन में दर्द जैसी शारीरिक बीमारियां हो रहीं हैं। वहीं अत्यधिक मोबाइल इस्तेमाल से बच्चों में अवसाद और निराशा तेजी बढी है। बच्चे आभासी दुनिया को ही वास्तविक दुनिया समझ बैठे हैं। साथ ही इनको ई-स्पोर्ट के चलते अन्य शारीरिक बीमारियां भी देखने में मिल रही हैं। इसके अलावा इंटरनेट पर फैली अश्लीलता इनके मन मस्तिष्क को को दूषित कर रही है।
छोटे-छोटे बच्चे और किशोर जिस तरह से जघन्य अपराधों में लिप्त होते जा रहे हैं, वह गंभीर चिंता का विषय है। जाहिर है, सोशल मीडिया, इंटरनेट और इलेक्ट्रानिक गैजेट के तेजी से बढ़ते इस्तेमाल के दुष्प्रभाव हैं ये सब। यही कारण है कि बच्चों में नैतिकता की गिरावट साथ ही आदर्श व्यवहार की कमी बड़े रूप में देखी जा सकती है। मोबाइल का कम इस्तेमाल ठीक है, अन्यथा यह लत है। मूड ठीक करने के लिए स्मार्टफोन का इस्तेमाल भी ऐसा ही है, जैसे ड्रग्स व्यवहार को प्रभावित करती है।
चिकित्सकों की माने तो बच्चों में मोबाइल की लत को दूर करने के लिए परिवार में अनुशासन जरूरी है। बच्चों को एक निर्धारित समय के लिए मोबाइल फोन के इस्तेमाल के लिए कहा जा सकता है। बच्चों को आउट डोर या इंडोर खेलकूद या दूसरी रचनात्मक गतिविधियों के लिए प्रेरित करें। पेरेंट्स बच्चों को घर से बाहर घूमने टहलने ले जाएं। अच्छी कहानियां सुनाएं। मोबाइल की आदत को छुड़ाने के लिए उन पर प्रतिबंध भी लगाना जरूरी है।
अभिभावक स्वयं भी मोबाइल के इस्तेमाल में सावधानी बरतें। दिनों दिन गंभीर होती इस समस्या के प्रति अभिभावकों को ध्यान देना होगा कि बच्चे इंटरनेट और मोबाइल का उपयोग कितना और किस उद्देश्य से कर रहे हैं। अगर समय रहते इस पर ध्यान नहीं दिया गया तो समाज के लिए यह किसी आपदा से कम नहीं होगा। (युवराज)