भारत में हर साल  लगभग 11 हजार कृषि श्रमिकों की मौत बिजली के करंट से हो रही है। हर दिन औसतन 50 लोगों की मौत हो रही है। इसका कारण वायरिंग, कट और गिरी हुई ट्रांसमिशन लाइनों में मानकों का पालन न करना, उम्र बढ़ने, जंग और नम परिस्थितियों में मोटर केसिंग और कंट्रोल बॉक्स पर कंडक्टिव पथ के गठन के कारण होता है। कारण जो भी हो, यह बहुत दुखद है कि हमारे किसान, हमारे देश के खाद्य प्रदाता, अपनी दैनिक दिनचर्या को ईमानदारी से निभाने में मर रहे हैं।

देश भर में किसानों के खेतों से गुजरने वाली उच्च वोल्ट विद्युत धारा के लिए लगाए गए टावर पोल जन जीवन एवं जीव-जंतुओं के लिए परेशानी का कारण बन गए हैं। एक और मोबाइल टावरों की भरमार हो गई है वहीं अब किसानी भूमि में न केवल कम वोल्ट के लिए लगाए गए पोल बल्कि उच्च वोल्ट के पोल की भरमार हो गई है। किसानों के खेतों में बिजली की लाइनों का जाल बिछा है।

किसानों, जीवों एवं आम जन के लिए सबसे अधिक खतरा उच्च वोल्ट की लाइन ले जाने वाली टावर पोल से बन गया है। इन लाइनों के चलते किसानों का जीना ही हराम हो गया है। टावर पोल के पास से गुजरने वाली या उसके नीचे से गुजरने वाली बिजली लाइन पर भी इसका बुरा प्रभाव पड़ रहा है। किसानों को अपने खेतों में फव्वारा पाइप को ऊंचा उठाने से जान को खतरा बढ़ जाता है। जरूरी नहीं टावर पोल की लाइन से पाइप का छूना अपितु इसके नजदीक जाने पर ही यह बिजली लाइन अपनी ओर पाइप को  खींच लेती है।

खेतों से गुजरने वाली टावर लाइन का कुप्रभाव जन-जीवन पर पड़ रहा है। यही नहीं अगर कोई व्यक्ति  लोहे का छलना लेकर भी टावर के पास से गुजरा तो बिजली का झटका लगता है। जब फसल को काटकर इकट्ठा करके बड़ी लाइन के नीचे से ले जाते हैं तो कई बार करंट आ जाता है।  किसानों के साथ-साथ जंगली पक्षियों पर विशेषकर इन टावर पोल की लाइन से निकलने वाली बिजली तरंगें तथा मोबाइल टावर की विकिरण पक्षियों के लिए घातक साबित हो रही है। पास में रहने वाले लोगों में कैंसर का खतरा भी बढ़ जाता है। पेड़ पौधे भी नष्ट हो जाते हैं या फिर लाइन बिछाते वक्त काट डाले हैं।

टावर पोल भी तीन प्रकार के होते हैं। जिनमें से एक पावर हाउस में बिजली लाने या ले जाने के लिए बनाए जाते हैं जो छोटे होते हैं दूसरे पोल मध्यम दर्जे के तथा तीसरे मास्टर पोल होते हें जिन्हें निचाई वाले स्थानों पर लगाया जाता है। एक टावर पोल करीब 200 गज के करीब जगह में लगाया जाता है। इनके ऊपर से गुजरने वाले तारों से जब बिजली गुजरती है तो दूर तक आवाज सुनाई पड़ती है।

जिस जगह से लाइन गुजरने के लिए मंजूर हो जाती है उसी जगह से ही गुजरती है। जिस किसी किसान के खेत से लाइन गुजरती है और पोल गाड़ा जाता है उसे करीब 60 हजार रुपये का मुआवजा मिलता है मगर पूरी जिंदगी इस समस्या को झेलना पड़ता है।  जिस खेत से टावर पोल की बिजली गुजर रही है उसके नीचे से गुजरने वाली छोटी बिजली की लाइन अक्सर फाल्ट हो जाती है। यदि ट्रांसफार्मर पर फ्यूज लगाना हो तो भी उस लाइन के ऊपर से गुजरने वाली बड़ी लाइन का कई बार झटका सहना पड़ता है।

देशभर में बिजली के करंट से होने वाली किसानों की मौत को देखें तो इन मौतों के कई कारण है।  जैसे खेतों से गुजर रही बिजली की लाइंस के तारों का ढीला होना।  आमतौर पर यह तारे इतनी ढीली हो जाती है कि जमीन और इनका फर्क बहुत कम रह जाता है।  कई बार तो यह मामूली अंधड़ में टूटकर खेतों में गिर जाती है और जब किसान रात को खेतों को पानी देने पहुंचते हैं तो उनको इनका आभास नहीं होता और वह इनकी चपेट में आकर मर जाते हैं।  दूसरा खेतों से गुजर रही हाई वोल्टेज तारों की ताकत इतनी ज्यादा होती है कि वह इंसानों और सामान्य जीव जंतुओं को अपनी तरफ खींच लेती है।
जिसकी वजह से इनकी मौत हो जाती है।

तीसरा कारण देखें तो आवारा पशुओं से बचने के लिए किसानों ने अपने क्षेत्रों के चारों तरफ जालियां लगाई है और उनमें यह करंट देते हैं जिसे से पशुओं को खेत की बाड़ के पास जाते ही झटका लगे ताकि आवारा पशु उनके खेतों में ना घुसे।  मगर जाने-अनजाने यह करंट वाली जालीदार तारे पशुऒं के साथ-साथ किसानों की  मौत का कारण बन जाती है।  यह झटका मशीन आमतौर पर लगाई तो नीलगाय और छोटा पशुओं से खेती को बचाने के लिए जाती है।  मगर किसान खेतों में काम करते वक्त लापरवाही से इनकी चपेट में आ जाते हैं।  अन्य कारणों को देखें तो किसानों की खुद की लापरवाही खेतों में पानी देते वक्त या टूबवेल चलाते वक्त  तारों के संपर्क में आने से ऐसी मौतों की केस सामने आए हैं।

इंसुलेशन के टूटने, जंग लगने और आर्द्र मौसम के दौरान कंडक्टिव पथ के बनने के कारण मोटर या कंट्रोल बॉक्स की केसिंग के संपर्क में आने वाला लाइव कंडक्टर अक्सर होने वाली घटना है। ऐसी स्थिति में, मोटर पम्पसेट और नियंत्रण बॉक्स के धातु के आवरण के साथ शारीरिक संपर्क से उचित अर्थिंग प्रदान न करने पर घातक आघात होता है। कृषि जल पम्पिंग सिस्टम में अर्थिंग के लिए आवश्यक देखभाल नहीं की जा रही है। यहां तक कि अनुचित अर्थिंग परिस्थितियों में भी यदि कम ऑपरेटिंग वोल्टेज को चुना जाता है, तो बिजली के झटके पूरी तरह से समाप्त हो सकते हैं।

भारत ने वर्ष 2019 में प्रधान मंत्री की कुसुम योजना (किसान ऊर्जा सुरक्षा और उत्थान महाभियान) शुरू की है। कुसुम योजना के घटक बी के तहत, अकेले 17.5 लाख, सौर ऊर्जा संचालित कृषि पंप स्थापित किए जाएंगे, जिनमें से प्रत्येक की अधिकतम क्षमता 7.5 एचपी होगी, जहां ग्रिड आपूर्ति नहीं है। उपलब्ध। 7.5 एचपी से अधिक क्षमता के पंप भी स्थापित किए जा सकते हैं, हालांकि, वित्तीय सहायता 7.5 एचपी क्षमता तक सीमित है। बिजली के झटके से होने वाली मौतों की रोकथाम कुसुम योजना द्वारा प्राप्त अतिरिक्त लाभ है, एक छिपा हुआ तथ्य, जिसके व्यापक प्रचार की आवश्यकता है।

मामूली संशोधन के साथ, यदि इस योजना का विस्तार ग्रिड संचालित पंपों को बदलने के लिए भी किया जाता है (अब यह योजना ग्रिड संचालित पंपों को कवर नहीं कर रही है), तो यह किसानों को बिजली के झटके से होने वाली मौतों को अधिकतम सीमा तक कम करने में मदद करती है। कुसुम योजना को सर्वोच्च प्राथमिकता के साथ लागू किया जाना चाहिए – और जहां तक संभव हो अधिक संख्या में पानी पंपिंग सिस्टम को कवर करने के लिए विस्तारित किया जाना चाहिए। इससे हमारे किसानों को बड़ी राहत मिलने वाली है।

नयी योजनाओं के साथ-साथ बिजली के ढीले तार ठीक करना, हाईवोल्टेज बिजली पोल का समाधान ढूंढना, खेत में लगाई जाली से बचना, रात को पानी चलाते समय सावधानी खेतों में किसानों को असमय मौत से बचा सकती है।

-प्रियंका सौरभ 

रिसर्च स्कॉलर इन पोलिटिकल साइंस,
कवयित्री, स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार,
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