कैरो (लोहरदगा), [शंभू प्रसाद सोनी]। Jharkhand News झारखंड के लोहरदगा में गौ-मूत्र के कमाल से किसान मालामाल हो रहे हैं। किसानों को रासायनिक खाद में होने वाले खर्च और फसलों में कीटनाशक के छिड़काव में होने वाले महंगे खर्च से मुक्ति मिल गई है। ऐसा कैरो प्रखंड की महिलाओं द्वारा गौमूत्र से तैयार किए जा रहे खाद व कीटनाशक के कारण हुआ है। काफी संख्या में किसान अपने खेतों और फसलों के लिए इसे उपयोग में ला रहे हैं।
लोहरदगा जिले के कैरो प्रखंड में महिलाएं गौमूत्र से औषधीय मटका खाद व कीटनाशक तैयार कर रही हैं। जिसे क्षेत्र के किसान उनके घर से ही खरीद लेते हैं। महिलाएं घर बैठे ही महीने में 5-6 हजार की आमदनी कर रही हैं। इस कार्य को कैरो के उतका गांव निवासी छेनवा उरांव व हीरामनी उरांव, खंडा गांव में जितनी उरांव, डूमरटोली में संगीता उरांव तथा नगड़ा धुरिया टोली में संध्या उरांव कर रही हैं।
खाद और कीटनाशक के निर्माण में क्या-क्या किया जाता है उपयोग
औषधीय मटका खाद को बनाने में 10 लीटर गौमूत्र, एक किलोग्राम गोबर, 200 ग्राम गुड़, आधा-आधा किलोग्राम नीम, करंज व सिंदुवार का पत्ता का इस्तेमाल किया जाता है। महिलाएं बताती हैं कि इस खाद व कीटनाशक से फसल को काफी लाभ मिलता है। क्षेत्र के किसान महिलाओं के घर से औषधीय मटका खाद व कीटनाशक को खरीद कर ले जाते हैं। इस कार्य से महिलाओं की आर्थिक स्थिति सुदृढ़ हो रही है। औषधीय खाद व कीटनाशक का खेतों में इस्तेमाल करने से मिट्टी की उर्वरा शक्ति बढ़ रही है, इसके अलावे रासायनिक खादों का उपयोग कम हो रहा है।
महिलाएं कैसे बनाती हैं कीटनाशक
कैरो प्रखंड के चार गांवों में एलजीएसएस के सहयोग से महिलाएं समूह बनाकर औषधीय खाद व कीटनाशक तैयार कर रही हैं। प्रखंड के उतका, डूमरटोली, नगड़ा व खंडा गांव में खाद बनाया जाता है। इसे बनाने की विधि काफी आसान है। दस लीटर गौमूत्र में एक किलोग्राम गोबर, दो सौ ग्राम गुड़ व आधा-आधा किलोग्राम करंज, सिंदुवार व नीम के पत्ते मिलाकर इसे तैयार किया जाता है। सभी सामग्रियों को मिलाकर इसे एक समय सीमा तक छोड़ दिया जाता है। जब कीटनाशक तैयार हो जाता है तो इसे किसान खरीद कर ले जाते हैं।
महिलाओं को महीने में 5-6 हजार की हो रही है आमदनी
कैरो प्रखंड के विभिन्न गांवों में दर्जन भर से अधिक महिलाएं औषधीय खाद व कीटनाशक तैयार कर रही हैं। जिसे किसान खरीद कर अपने खेतों में डालते हैं। इस कीटनाशक से फसलों में कीट-पतंग नहीं लगते हैं। इसे तैयार करने का काफी आसान तरीका है। कैरो के उतका, खंडा, डूमरटोली व नगड़ा गांव में दर्जन भर से अधिक महिलाएं इस कार्य से जुड़ी हुई हैं। उनका कहना है कि खाद व कीटनाशक बेचकर महीने में 5-6 हजार की आमदनी हो जाती है। हालांकि अभी बहुत किसान इससे अनभिज्ञ हैं, उन्हें जागरूक किया जा रहा है कि इसका उपयोग करें।
जैविक खेती पर भी किसानों को प्रेरित कर रही हैं महिलाएं
लोहरदगा जिला कृषि पदाधिकारी शिवपूजन राम का कहना है कि कैरो प्रखंड के किसानों को महिलाएं जैविक खेती करने के लिए भी प्रेरित करने का कार्य कर रही हैं। औषधीय मटका खाद व कीटनाशक खरीदने वाले किसानों को महिलाएं जैविक खेती करने के तरीकों को बताती हैं। जैविक खेती में धान, मकई, मडुवा सहित अन्य फसल किसान कर सकते हैं।
महिलाएं किसानों को बताती हैं कि जैविक खेती करने से फसलों को कीड़ा लगने का खतरा नहीं रहता है। साथ ही जैविक खेती की उपज को खाने से किसी भी प्रकार की शरीर में हानि नहीं होती है। जैविक खेती से फसलों का उपज भी बेहतर होता है। रासायनिक खेती से वर्तमान में कई बीमारियों की चपेट में लोग पड़ रहे हैं।
जैविक खेती पर कृषि विभाग जोर दे रही है। अगर महिलाएं इस प्रकार की कार्य कर रहीं तो काफी सराहनीय है। आने वाले भविष्य में जैविक खेती को बढ़ावा दिया जाएगा। इससे मिट्टी की उर्वरा शक्ति बढ़ने के साथ वायु प्रदूषण में भी नियंत्रण होगा। रासायनिक कीटनाशक और खाद का प्रयोग करने से बीमारियां काफी बढ़ रही हैं।
Edited By: Sanjay Kumar ( साभार )