आज विश्व मिल्क डे है और बहुत अच्छी खबर रांची से आ रही है। समाचार के अनुसार रांची के बुढमू प्रखंड बेरवारी गांव निवासी 40 वर्षीय रामेश्वर महतो की जिंदगी गौ पालन से बदल गई। कभी राजमिस्त्री का काम करने वाला रामेश्वर को जीतोड़ मेहनत के बाद भी न तो परिवार चलाने लायक आमदनी होती थी और न ही समाज में इज्जत मिलता था। भविष्य की चिंता से परेशान रामेश्वर 2004 में रामकृष्ण मिशन के दिव्यायन कृषि विज्ञान केंद्र के संपर्क में आये। कृषि विज्ञानियों ने गो पालन का सलाह दिया। दिव्यायन कृषि विज्ञान केंद्र में छह माह का गौ पालन की ट्रेनिंग ली। फिर बैंगलोर जाकर श्रीश्री रविशंकर के आश्रम जाकर गोबर से केचुआ खाद और गौ मूत्र से जैविक कीटनाशक बनाने की ट्रेनिंग ली।

2005 में कर्ज लेकर साहिवाल नस्ल की एक गाय खरीदी। राजधानी में श्यामा प्रसाद विश्वविद्यालय के समीप एक व्यक्ति की खाली पड़े जमीन में शेड डालकर गो पालन शुरू किया। घर-घर जाकर दूध बेचते। एक से दो और फिर गायों की संख्या बढ़ने लगी तो जगह कम पड़ गया।

फिर रामेश्वर महतो महतो गायों को लेकर अपने गांव चला गया। वहां बड़े स्तर पर गो पालन करने लगा। आज उनके खटाल में साहिवाल, फ्रिसियन, गिर नस्ल की 16 गाये हैं, जबकि छह बछिया हैं। प्रतिदिन 150 लीटर दूध का उत्पादन होता है, जिसे करीब 35 रुपये लीटर की दर पर मेधा डेयरी को बेचते हैं। इस तरह प्रतिमाह 1 लाख 57 हजार 500 रुपये कमाते हैं।

इसके अलावा गाय के गाेबर से केंचुआ खाद और गौ मूत्र से कीटनाशक बनाते हैं। केंचुआ खाद और गो मूत्र को बेचने के बजाय खुद के खेती में उपयोग करते हैं। रामेश्वर के अनुसार गो पालन ने आर्थिक परेशानी दूर कर दी। अब जीवन आराम से कट रहा है। बच्चे को अच्छी शिक्षा दिला रहें।

गाय पालन के साथ गोबर गैस वर्मी कंपोस्ट का कर रहे उत्पादन

रांची जिले के नगड़ी प्रखंड के हरही निवासी विशेश्वर शाही गाय पालन के साथ साथ गोबर गैस उत्पादन, वर्मी कंपोस्ट और गौशाला को धोने के उपरांत अवशेष पदार्थ और बेकार पानी का उपयोग खेती में किया जा रहा है। विशेश्वर के पास कुल 30 गायें हैं। इनमें से दो शाहीवाल, फ्रीजीयन और उन्नत नस्ल के गाय शामिल हैं। गिर नस्ल का नंदी है। धीरे धीरे गिर नस्ल को बढ़ाने का इरादा है। प्रतिदिन 200 लीटर दूध का उत्पादन होता है। जिसे वे मेधा को आपूर्ति करते हैँ। एकमुश्त 200 लीटर दूध 35 लीटर प्रति लीटर की दर से घर आकर ले जाया जाता है। 2011 में उन्होंने गव्य विकास से पांच गाय लिया था। इसी पांच गाय से धीरे धीरे अब उनके पास 30 गायें हैं। गाय पालन और उससे होने वाले लाभ को देखकर गांव के अन्य लोगों ने भी एक -दो गाय पालना शुरु कर दिया है।

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