Home General रासलीला’ की गरिमा को समझें !

रासलीला’ की गरिमा को समझें !

श्रीकृष्ण के समस्त जीवन के प्रसंगों पर गंभीरता से विचार करिए या पूरी तरह से नास्तिकों की तरह कुछ मानिए ही मत,अपनी सुविधा के अनुसार किसी आदर्श चरित्र का मजाक मत उड़ाइए क्योंकि उसके साथ करोड़ो हिंदू समाज की आस्था जुड़ी हुई है जो हजारों साल की सभ्यता के साथ निरंतर चली आ रही है

272
0

रासबिहारी पाण्डेय

श्रीमद्भागवत के दसवें स्कंध में रासक्रीड़ा वर्णन की फलश्रुति में कहा गया है कि जो पुरुष भगवान श्री कृष्ण के चिन्मय रास विलास का श्रद्धा के साथ बार-बार श्रवण और वर्णन करता है,उसे भगवान के चरणों की परा भक्ति प्राप्त होती है और वह बहुत ही शीघ्र अपने हृदय के रोग व काम विकारों से छुटकारा पा जाता है. रास शब्द का मूल ‘रस’ है और रस स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ही हैं. श्रीमद्भागवत में रासलीला के पाँच अध्याय उसके पांच प्राण माने जाते हैं, इन अध्यायों में वंशी ध्वनि, गोपियों से वार्तालाप,वेणु गीत,राधा के साथ अंतर्ध्यान होकर पुनः प्रकट होना, जलकेलि और वन विहार का वर्णन है. महारास के समय श्रीकृष्ण की उम्र मात्र दस वर्ष की थी. रासलीला प्रसंग में कहीं भी काम प्रसंग का वर्णन नहीं है, किसी भी ग्रंथ में कृष्ण द्वारा गोपियों के गर्भाधान का कोई प्रसंग नहीं है किंतु आधुनिक समाज का तथाकथित संभ्रांत वर्ग ‘रासलीला’ शब्द को कामकला से जोड़कर गलत अर्थ में प्रयोग करता है.हिंदी सिनेमा के जरिए कुछ अधकचरे निर्माता,निर्देशक, लेखक और कलाकार भी ‘रासलीला’ शब्द की गरिमा को ठेस पहुंचाते हैं. सलमान खान की फिल्म का एक गीत है-
“इसक के नाम पर करते सभी अब रासलीला हैं
मैं करूँ तो साला कैरेक्टर ढ़ीला है….”
ऐसे विचारों को गीत संगीत में ढ़ालकर सिनेमा के माध्यम से करोड़ों व्यक्तियों तक पहुँचाने वाले जिम्मेदार लोग धर्मशास्त्रों को पढ़ने की जहमत नहीं उठाते, शब्दकोश भी देख लें तो कुछ हद तक अर्थ समझ में आ जाये,मगर आँखों पर बँधी व्यवसाय की पट्टी उन्हें ऐसा करने से रोकती है.
शब्द को ब्रह्म कहा गया है.उसे अलंकारों का गहना पहनाया जाता है.लक्षणा,व्यंजना के जरिये उसमें विशेष शक्ति और चमत्कार पैदा किया जाता है,लेकिन व्यवसायिकता के मोह में एक वर्ग ऐसा भी है जो अर्थ का अनर्थ करने पर तुला रहता है और शब्दों की गरिमा से खेलता रहता है.इस गीत में रासलीला का प्रयोग कुछ इस अंदाज में किया गया है मानो ‘रासलीला’ का संबंध भोग विलास से है.
जो लोग ईश्वरीय शक्ति में विश्वास नहीं रखते और राम,कृष्ण की लीलाओं को भी केवल मानवीय भाव एवं आदर्श की कसौटी पर कसना चाहते हैं, वे पहले ही धर्म विमुख हो जाते हैं.ईश्वरीय लीलाओं को मानवीय कसौटी पर नहीं कसा जा सकता. श्रीकृष्ण का हस्तिनापुर में विराट रूप दिखलाना,अर्जुन मोह के समय कुरुक्षेत्र के मैदान में विश्वरूप दिखलाना,अक्षय पात्र से साग का एक तिनका खा लेने से दुर्वासा समेत सभी ऋषियों का तृप्त हो जाना,द्रौपदी का वस्त्र बढ़ाना आदि कुछ ऐसे ही प्रसंग हैं.
एक और बात अक्सर कही जाती है कि श्री कृष्ण ने सोलह हजार कन्याओं के साथ विवाह क्यों किया؟ श्रीमद्भागवत के दसवें स्कंध के उनसठवें अध्याय में असुर भौमासुर की कैद से सोलह हजार कन्याओं को मुक्त कराने का प्रसंग वर्णित है. चूँकि ये कन्याएं बहुत दिनों तक भौमासुर की कैद में रह चुकी थीं, अतः कोई अन्य राजा इनसे विवाह के लिए राजी नहीं होता, दूसरी बात भगवान श्री कृष्ण को देखने के बाद उन राजकुमारियों ने मन ही मन स्वयं उन्हें अपने पति के रूप में वरण कर लिया था,अंतर्यामी श्री कृष्ण ने यह बात जान ली और उन्हें द्वारका ले जाकर एक ही मुहूर्त में अलग-अलग भवनों में प्रकट होकर शास्त्रोक्त विधि से पाणिग्रहण किया. क्या कोई साधारण मनुष्य ऐसा कर सकता है…؟
या तो श्रीकृष्ण के समस्त जीवन के प्रसंगों पर गंभीरता से विचार करिए या पूरी तरह से नास्तिकों की तरह कुछ मानिए ही मत,अपनी सुविधा के अनुसार किसी आदर्श चरित्र का मजाक मत उड़ाइए क्योंकि उसके साथ करोड़ो हिंदू समाज की आस्था जुड़ी हुई है जो हजारों साल की सभ्यता के साथ निरंतर चली आ रही है.

Previous articleकैंसर को पैर फैलाने से रोक सकता है गाय का गोबर व गोमूत्र: विहिप
Next articleगौशाला निर्माण को लेकर श्री गौ कृपा कथा का आयोजन

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here