मिट्टी का खराब होना एक वैश्विक घटना है। दुनिया की आधी ऊपरी मिट्टी तो नष्ट हो चुकी है। एक सामान्य कृषि भूमि में न्यूनतम जैविक तत्त्व 3-6 प्रतिशत होने चाहिये, लेकिन दुनिया के ज्यादातर हिस्सों में यह एक प्रतिशत से भी बहुत नीचे है। उत्तरी यूरोप में औसत जैविक तत्त्व 1.48 प्रतिशत है, दक्षिण यूरोप में 1.2 प्रतिशत, अमेरिका में 1.3 प्रतिशत, भारत में 0.68 प्रतिशत और अफ्रीका में 0.3 प्रतिशत है। इसका यह मतलब है कि धरती पर ज्यादातर कृषि भूमि मरुस्थलीकरण की ओर बढ़ रही है।

जब बात जैव-विविधता और मिट्टी की आती है, तब राष्ट्रीय सीमाओं के कोई मायने नहीं होते। इसे वैश्विक स्तर पर संभालना होअगर इस धरती पर जीवन के प्रति हमारी कोई प्रतिबद्धता है, अगर इस धरती पर भावी पीढ़ियों के लिये हमारी कोई प्रतिबद्धता है, तो हर देश के लिये यह करना जरूरी है। पहली और सबसे महत्त्वपूर्ण चीज है, हर देश की नीतियों में मिट्टी और पर्यावरण के पुनरोद्धार को सम्मान देना।

अभी ‘जागरुक धरती-मिट्टी बचाओ अभियान’ का लक्ष्य एक वैश्विक नीति लाना है कि कृषि भूमि में कम से कम 3-6 प्रतिशत जैविक तत्व होने चाहिये। हर कोई जानता है कि ऐसा होने की जरूरत है, पर समस्या यह है कि लोगों ने आवाज नहीं बठाई है। फिलहाल, दुनिया में 5.26 अरब लोग लोकतांत्रिक देशों में रहते हैं, यानी उन्हें वोट देने और अपनी सरकार चुनने का अधिकार है। लोकतंत्र का अर्थ है, लोगों का शासन, पर अभी लोगों ने अपने जीवन के दीर्घकालीन हितों को अभिव्यक्त नहीं किया है।

मिट्टी को पुनर्जीवित करना 15-20 साल की एक प्रक्रिया है, तो ज्यादातर नेताओं की इसमें रुचि नहीं है, क्योंकि उनका कार्यकाल सिर्फ 4-5 साल का होता है। अगर लोग ही सरकार से नहीं कहेंगे तो सरकार दीर्घकालिक निवेश कैसे करेंगी ? इसी कारण मिट्टी बचाओं अभियान दुनिया भर में कम से कम .3.5 अरब लोगों तक पहुँचने की कोशिश कर रहा है, ताकि सारे राजनीतिक दलों और सरकारों पर दीर्घकालिक मिट्टी पुनरोद्धार नीतियाँ बनाने के लिये जोर डाला जा सके।

हमने एक आम नीति दस्तावेज भी तैयार किया है। हमने दुनिया में 730 राजनीतिक दलों से कहा है कि आप अपने घोषणापत्र में मिट्टी पुनरोद्धार विषय को शामिल करें। मिट्टी के लिये लोगों को आगे आना होगा। लोकतंत्र में लोगों की आवाज सबसे महत्त्वपूर्ण होती है। जरूरी नहीं कि हर कोई मिट्टी के संरक्षण में जुट जाये, हर किसी को केवल अपनी आवाज बुलन्द करनी है।

अपनी सरकारों तक अपनी आवाज पहुंचाने के लिये तकनीक का इस्तेमाल कीजिये। ट्विटर, फेसबुक, टेलीग्रामः या आपके पास जो भी उपकरण हो। उस पर हर दिन 5-10 मिनट लगाइये और मिट्टी के बारे में कुछ कहिये। अगर हम 3.5 अरब लोगों को भी इन 100 दिनों के दौरान मिट्टी के बारे बोलने के लिये प्रेरित कर सके, तो धरती की कोई भी सरकार इनकी अनदेखी नहीं कर सकेगी।

मिट्टी के लिये लोग जागने लगे हैं। विशेषज्ञों का अनुमान है कि हमने आसानी से 1.3 अरब लोगों से सम्पर्क कर लिया है। सात से ज्यादा देश इस अभियान के साथ जुड़ गए हैं और अनेक देशों के साथ बातचीत जारी है। समझौते पर भी “हस्ताक्षर हुए है। राष्ट्रमण्डल के 54 देशों ने अभियान में साथ देने का आश्वासन दिया है। संयुक्त राष्ट्र की अनेक संस्थायें हमारे साथ भागीदारी कर रही हैं। मरुस्थलीकरण रोकने के लिये संयुक्त राष्ट्रसभा, संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम, विश्व खाद्य कार्यक्रम और इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजरवेशन ऑफ नेचर जैसी संस्थायें सक्रिय हो गई हैं। अनेक संस्थायें मिट्टी बचाओ अभियान के साथ अब मजबूत भागीदार है।

हमें बिल्कुल आश्वस्त रहना चाहिये कि हमें सफलता मिलेगी। जागने के साथ ही जल्दी पहल करने की जरूरत है। अगर हम अभी ठोस पहल करते हैं, तो अगले 25-30 साल में हम मिट्टी में काफी सुधार ला सकते हैं। ध्यान रहे, अगर हम पहले 50 साल बाद करते हैं तो फिर मिट्टी को ठीक करने में 100-150 साल लग जायेंगे। इसका मतलब है कि चार या पाँच पीढ़ियाँ मिट्टी की कमजोर स्थिति के चलते भयंकर जीवन स्थितियों से गुजरेगी।।

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