मोतीलाल नेहरू और हकीम अजमल खान ने डॉ हेडगेवार की रिहाई पर आयोजित ‘सम्मान समारोह ‘ में अपने भाषणों में डॉ साहब की बहादुरी , सैद्धांतिक जीवन , सांगठनिक शक्ति और अनन्य -राष्ट्रप्रेम की भूरि -भूरि प्रशंसा की थी
 
मुंबई।  १२ जुलाई / आज डॉ केशव बलिराम हेडगेवार की जेल से मुक्ति का शताब्दी दिन है। अजानी जेल से उनकी रिहाई के बाद आयोजित ‘हेडगेवार स्वागत सभा ‘ को प्रख्यात कांग्रेसी नेता पंडित मोतीलाल नेहरू और हकीम अजमल खान ने सम्बोधित करते हुए डॉ हेडगेवार के समर्पण -सिद्धांत और सांगठनिक क्षमता की भूरि -भूरि प्रशंसा की थी। उन्होने जनसभा को बताया था कि किस तरह डॉ हेडगेवार ने अपने ओजस्वी एवं तर्कपूर्ण वक्तव्य से अंग्रेजी सरकार के समापन की भविष्यवाणी करते हुए न्यायाधीश स्मेली को निरुत्तर कर दिया था।

न्यायाधीश  ने उनका बयान सुनकर आश्चर्य से कहा, “इनका अपने बचाव का वक्तव्य तो इनके मूल भाषण से भी अधिक देशद्रोही है।” 19 अगस्त को अदालत ने अपना निर्णय सुनाया कि हेडगेवार अदालत को लिखित में एक शपथ-पत्र दें कि वे अगले एक वर्ष तक देशद्रोही भाषण नहीं देंगे और इसके साथ 3000 रुपयों की जमानत राशि जमा करें। डॉ. हेडगेवार ने न्यायाधीश को कहा “मेरी आत्मा कहती है कि मैं बिल्कुल निर्दोष हूँ। दमन करने की नीति सिर्फ उस आग में घी डालने का काम करेगी, जो सरकार की वहशी नीतियों के कारण पहले से ही धधक रही है।मुझे पूरा विश्वास है कि अब वह दिन दूर नहीं, जब विदेशी शासन अपने पापों का फल भोगेगा। मुझे सर्वव्यापी ईश्वर के न्याय पर पूर्ण भरोसा है। इसलिए मैं मना करता हूँ कि मैं अदालत के आदेश का पालन नहीं करूँगा।” जैसे ही उन्होंने अपना उत्तर पूरा किया, जज ने उन्हें एक वर्ष के कठोर कारावास की सजा सुना दी।

डॉ. हेडगेवार अदालत परिसर से बाहर आए, जहाँ असंख्य लोगों की भीड़ इकट्ठा हो गई थी। शुक्रवार, 19 अगस्त, 1921 के दिन उन्हें अजानी जेल ले जाया गया। शेषाद्रिजी के अनुसार,“उसी शाम टाउनहाल के मैदान में उनकी गैर मौजूदगी में उन्हें सम्मानित करने के लिए एक सार्वजनिक सभा आयोजित की गई। जब डॉ. हेडगेवार जेल में पहुँचे तो उसी दौरान जाथड़ नाम का एक नया जेलर, जेल में नियुक्त किया गया था। डॉ. हेडगेवार ने ही उसे जेल मैनुअल समझने में उनकी सहायता की।

उल्लेखनीय है कि मई 1921 में डॉ हेडगेवार जी द्वारा कटोल तथा भरतवाड़ा में दिए गए आक्रामक भाषणों के कारण ब्रिटिश औपनिवेशिक सरकार ने उनको   ‘देशद्रोह’ के आरोप में गिरफ्तार कर लिया था।स्मेली नाम के एक ब्रिटिश जज की  अदालत में इस मामले की सुनवाई 14 जून, 1921 को शुरू हुई। कुछ दिनों की सुनवाई के बाद डॉ. हेडगेवार ने इस अवसर का उपयोग राष्ट्र के जागरण के लिए करने का विचार किया और उन्होंने अपनी पैरवी खुद करने का निर्णय लिया। उन्होंने 5 अगस्त, 1921 के दिन अपना लिखित वक्तव्य पढ़ा, डॉक्टर हेडगेवार का भाव समझने के लिए यह पंक्तियाँ पर्याप्त है…”अगर कोई भारतीय, जो अपने देश के लिए और राष्ट्रभाव को फैलाने के उद्देश्य से कुछ बोल रहा है, को देशद्रोही कहा जाए और अगर वह बिना भारतीय और यूरोपीय लोगों में दुश्मनी बढ़ाने के सत्य न बोल पाए तो यूरोपीय तथा वे लोग, जो स्वयं को भारत सरकार मानते हैं, उनके लिए मैं कहना चाहूँगा कि वे यह समझ लें कि वह दिन अब दूर नहीं, जब सभी विदेशियों को मजबूर होकर भारत छोड़ना पड़ेगा।”

डॉक्टर जी की कारागार से मुक्ति दिनांक 12 जुलाई 1922 को प्रात: काल हुई I बाहर आते समय जब वह अपने घर के कपड़े पहनने लगे, तो उनका बंद गले का कोट तथा आँगरखा उन्हें तंग होने लगाI डॉक्टर जी का वजन 25 पौंड बढ़ गया था I यह उनके प्रत्येक परिस्थिति में हंसते-हंसते जीवन व्यतीत करने का उनका स्वभाव का स्वाभाविक परिणाम थाI इसी कारण जेल भी उनके लिए स्वास्थ्यकर सिद्ध हुई I डॉक्टर जी सब कारागृह से बाहर आए तो मूसलाधार वर्षा हो रही थीIऐसे समय में भी डॉक्टर मुंजे, डॉक्टर परांजपे, डॉक्टर नारायण भास्कर खरे, तथा अनेक मित्र बाहर बाट देख रहे थेI उनके द्वारा अर्पित पुष्पहारों को सहर्ष स्वीकार करते हुए डॉक्टर जी सबके साथ घर को चलेI रास्ते में स्थान- स्थान पर रोककर उनका स्वागत किया गयाI

जब 12 जुलाई 1922 को उनको अजानी जेल से रिहा किया गया तो उसी शाम एक सार्वजनिक स्वागत सभा का आयोजन किया गया था , जिसमें उस समय के एक वरिष्ठ कांग्रेसी नेता मोतीलाल नेहरू तथा हकीम अजमल खाँ ने जैसे लोगों को संबोधित किया।उन्होने अपने भाषणों में डॉ साहब की बहादुरी , सैद्धांतिक जीवन , सांगठनिक शक्ति और अनन्य -राष्ट्रप्रेम की भूरि -भूरि प्रशंसा की थी। नागपुर के बाद यवतमाल, वानी, आरबी, बढ़ोना, मोहापा और अन्य कई स्थानों पर भी उनका स्वागत हुआ, लेकिन ये स्वागत-उत्सव कहीं से भी देश की गंभीर स्थिति के प्रति उनके चिंतन को कम न कर सके।

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