(राकेश अचल-विभूति फीचर्स) अमीन सयानी हमारे जमाने के ऐसे अकेले रेडियो उद्घोषक थे जिन्हे देश उनकी शक्ल से नहीं बल्कि आवाज से पहचानता था। अमीन सयानी ने अपने जीवन के 91 साल की यात्रा में से लगभग 60 साल तक देश की जनता को अपनी आवाज के जादू से बांधे रखा। आज की पीढ़ी को शायद इस बात पर भरोसा नहीं होगा कि कोई व्यक्ति केवल अपनी आवाज की दम पर लोगों के दिलो-दिमाग पर छाया रह सकता है।
अमीन सयानी से मैं कभी मिला नहीं किन्तु मुझे और मेरे जैसे असंख्य लोगों को ये लगता है कि अमीन सयानी उनके परिवार के सदस्य हैं ।रह वह जमाना था जब देश में कोई टीवी चैनल नहीं था। रेडियो भी आजादी के पांच साल बाद आया था । तब अमीन सयानी ने रेडियो पर लोकप्रिय फिल्मी गीतों के कार्यक्रमों के जरिये देश को एक सूत्र में बांधा। सुबह से देर रात तक अमीन सयानी की आवाज हर घर में गूंजती थी। यानि अमीन सयानी की आवाज से ही आम आदमी की सुबह होती थी और वे ही अपनी आवाज से लोगों को सुलाते थे।
हरदिल अजीज अमीन सयानी समाचार वाचक नहीं थे किन्तु किसी भी लोकप्रिय समाचार वाचक से ज्यादा लोकप्रिय थे ।  उस जमाने में समाचार वाचक के रूप में देवकी नंदन पांडे और रेडियो कार्यक्रम उद्घोषक के रूप में अमीन सयानी जाने जाते थे।  वे देश के राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री की तरह अपनी आवाज के बूते पर जाने जाते थे।
आज हजारों टीवी चैनल हैं ,रेडियो हैं लेकिन आप शायद ही किसी एक उद्घोषक को उसकी आवाज से पहचानते हों। आज उद्घोषकों की भीड़ है,उस जमाने में अमीन सयानी जैसे गिने-चुने उद्घोषक थे। रेडियो पर ‘ भाइयों और बहनों ‘ के संबोधन के जरिए  पहचाने जाने वाले सयानी साहब ने करीब 54 हजार रेडियो कार्यक्रम किए और 19 हजार स्पाट्स या जिंगल्स किए। इनका नाम लिम्का बुक ऑफ रिकार्ड्स में भी शामिल है।
बहुत कम लोगों को ये सौभाग्य हासिल होता है कि वे जिस मिट्टी में पैदा हुए हों ,उसी में उन्हें अंतिम साँस लेने का मौक़ा भी मिले । अमीन सयानी ऐसे ही खुशनसीब लोगों में से एक थे।  अमीन सयानी का जन्म 21 दिसंबर 1932 को मुंबई में हुआ था। देश में पहली रेडियो सेवा शुरू हुई तो अमीन सयानी एक उद्घोषक के रूप में उसमें भर्ती हो गए। सयानी साहब ने सन  1951 में रेडियो उद्घोषक के तौर पर अपने करियर की शुरुआत ऑल इंडिया रेडियो मुंबई से की थी। अपनी आवाज के जादू से वे समां बांध देते थे। शुरुआत में उन्होंने अंग्रेजी कार्यक्रमों की प्रस्तुति दी। ऑल इंडिया रेडियो को लोकप्रिय बनाने में उन्होंने अहम भूमिका निभाई। अमीन सयानी  ने कई फिल्मों में रेडियो अनाउंसर के तौर पर भी अपनी  उपस्थिति दर्ज कराई।
मुझे याद है कि वे तीन देवियां, भूत बंगला और बॉक्सर फिल्म में एक उद्घोषक के रूप में ही नजर आये थे।मुझे अच्छी तरह से याद है कि उन दिनों जब हम स्कूल में थे तब भी अमीन सयानी के शो ‘बिनाका गीतमाला ‘ को सुनने के लिए रेडिओ से चिपके रहते थे।  जिनके घरों पर रेडियो नहीं था वे बाजार में किसी पान  वाले या किसी चाय वाले के यहां बजने वाले रेडियो के आसपास जमा हो जाते थ।  कस्बों में तो बिनाका गीतमाला के फिल्मी गीत सुनने के लिए जाम की स्थिति बन जाती थी ।  उस जमाने में केवल बिनाका गीतमाला सुनने के लिए रेडियो खरीदने का चलन था और इसका श्रेय था अमीन सयानी साहब की आवाज को।
अच्छी और सुरीली आवाज के लोग प्राय: गायक बनना चाहते है।  
कहते हैं कि अमीन सयानी भी एक गायक बनना चाहते थे लेकिन गायक बनना उनके नसीब में नहीं था। उन्हें तो एक कामयाब रेडियो उद्घोषक बनने के लिए पैदा किया गया था। वे मानते थे कि अच्छी हिंदी बोलने के लिए थोड़ा-सा उर्दू का ज्ञान होना आवश्यक है। उनका परिवार बहुभाषी  था इसका लाभ उन्हें मिला ।  उनके यहां हिंदी,अंग्रेजी के अलावा उनकी अपनी मातृ भाषा उर्दू बोली,लिखी और पढ़ी जाती थी। अमीन सयानी को उनके भाई हामिद सयानी ने उन्हें रेडियो से जोड़ा था।10 साल तक वे इंग्लिश कार्यक्रम  का हिस्सा रहे।आजादी के बाद उन्होंने हिंदी की ओर रुख किया।
शो की बढ़ती लोकप्रियता और श्रोताओं की भारी मांग  पर इसे ‘काउंट डाउन ‘ शो बना दिया गया था। रेडियो पर अपने पसंदीदा गाने सुनने के लिए लोग वोट करते थे।  वोटिंग के आधार पर गाने चलाये जाते थे हालांकि, कई लोग अपना पसंदीदा गाना सुनने के लिए फर्जी वोटिंग भी करते थे।   अमीन सयानी का शो ‘बिनाका गीतमाला’ लगभग 42 साल तक चला।  इसके बाद इस शो में लोगों की दिलचस्पी कम होने लगी और इसे बंद कर दिया गया।
एक साक्षात्कार में खुद अमीन सयानी ने बताया था कि उनकीभाषा कई मरहलों, कई तूफ़ानों और पथरीली राहों से होकर यहां तक पहुँची थी। वे एक ऐसे घर में पैदा हुए थे  जहाँ कई भाषाओं का मिश्रण था। उनके पिताजी ने बचपन में कभी पारसी सीखी थी और मां गुजराती, अंग्रेज़ी और हिंदी बोलती थी।  खुद अमीन सयानी अपने  बचपन में गुजराती बोलते थे। उनकी  मां गांधीजी की शिष्या थी। गांधी जी ने उनकी माँ को हिंदी, गुजराती और उर्दू में पत्रिका निकालने की सलाह दी थी। उनकी  मां ने ये काम अमीन सयानी को सौंपा और इससे भी उन्हें अपनी भाषाओं के विस्तार में काफ़ी मदद मिली।
अमीन सयानी उन लोगों में से थे जिनकी नकल की जाती थी।  महिला उद्घोषकों में उनका मुकाबला अक्सर तबस्सुम से हुआ करता था। लेकिन ऐसा उन्होंने कभी स्वीकार नहीं किया। उन जैसे लोग सदी में कभी-कभी जन्म लेते हैं। मोहक आवाज और मधुर मुस्कान से भरे इस व्यक्तित्व को विनम्र श्रृद्धांजलि।(विभूति फीचर्स
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