दिनेश चंद्र वर्मा – 
मर्यादा पुरूषोत्तम भगवान राम का चरित्र सदैव से ही प्रेरणा का स्त्रोत रहा है। एशियाई देशों में रामकथा इतनी लोकप्रिय रही है कि हर एशियाई भाषा में भगवान राम का जीवन चरित्र लिखा गया है। भारत की तो हर भाषा में रामायण मिलती है किन्तु एशियाई देशों में भी रामकथा इतनी व्यापक एवं प्रचलित थी कि कम्बोडिया, थाईलैण्ड और जाबा में रामकथा से चित्रित मंदिर आज भी देखने को मिलते हैं। कम्बोडिया की राजधानी पअंग कोर वाटफ में विश्व के सबसे विशाल मंदिर में रामकथा उत्कीर्ण है। इस मंदिर में लगी विशालकाय चट्ïटानें इतनी बड़ी हैं कि उन्हें हाथियों से खींचना तक कठिन था, किन्तु ये चट्टानें उस समय आदमी खींच कर लाये थे।
” थाईलैण्ड में राम की कथा रामकियेन के नाम से प्रचलित है। यह कथा लगभग उसी स्वरूप में है, जिस स्वरूप में संस्कृत में महर्षि वाल्मीकि ने लिखा है। हां एक अंतर अवश्य है इस कथा में रावण के वध के बाद लंका की स्थिति का भी विवरण मिलता है। इस विवरण के अनुसार चक्रवाल के राजा महापाल ने एक बार लंका पर आक्रमण कर दिया था तब लंका के शासकों की मदद हेतु भगवान राम ने हनुमान को लंका भेजा था। रामकियेन की मूल कथा जहां वाल्मीकि रामायण के समान है, वहीं उसमें कुछ नये पात्रों का भी समावेश है। कुछ पात्रों के नाम बदले हुए हैं। ” 

कम्बोडिया के अतिरिक्त इंडोनेशिया, थाईलैण्ड, जाबा, सुमात्रा और बाली में रामकथा का आज भी प्रचलन है। कुछ इतिहासकारों की मान्यता है कि इन देशों में बौद्ध धर्म के पहुंचने के कई वर्षों पूर्व से रामकथाएं प्रचलित थीं। स्थानीय भाषाओं में इनका व्यापक प्रचार-प्रसार था। इन देशों में मिले कुछ पुरातत्व अवशेष इस धारणा की पुष्टिï करते हैं। मलेशिया को पूर्ण इस्लामी देश माना जाता है किन्तु वहां 'हकायत सिरीराम’ के नाम से आज भी रामकथा प्रचलित है। इस कथा पर आधारित नाटक भी वहां खेले जाते हैं। 'हकायत सिरीराम’ मे राम का आदर्श चरित्र तो ज्यों का त्यों है पर कथा एवं पात्रों में वाल्मीकि रामायण से काफी अंतर है। जैसे इस कथा में कैकई का नाम बलिया दरी बताया गया है तथा उसे रानी के स्थान पर दासी बताया गया है। राम को इस कथा में ;सिरीराम’ कहा गया है। लक्ष्मण के नाम में कोई परिवर्तन नहीं है, किन्तु भरत को 'वरदान’ कहा गया है। सीता को रावण की पुत्री बताया गया है तथा कहा गया है कि सीता के पैदा होते ही ज्योतिषियों ने भविष्यवाणी की थी कि यह कन्या अपने पिता की मृत्यु का कारण बनेगी। रावण ने इस कन्या को नदी में बहा दिया। यह कन्या एक ऋषि को मिली तो उन्होंने उसका पालन -पोषण किया। इस कन्या के विवाह के लिए ऋषि ने यह शर्त रखी थी कि जो व्यक्ति एक तीर से चालीस वृक्षों को छेद देगा उसके साथ ही इस कन्या का विवाह किया जाएगा। राम ने इस शर्त को पूरा किया और उनका सीता के साथ विवाह कर दिया गया। इस कथा में रावण की बहिन शूर्पनखा का नाम 'सुरापंडिका’ कहा गया है। कथा में हनुमान जी का भी उल्लेख है पर उन्हें वानर नहीं माना गया है। हकायत सिरीराम के अनुसार हनुमान जी अंजनी नामक तपस्विनी के पुत्र थे, उनकी  मुखाकृति वानर से मिलती थी। इस कथा में सीता की अग्नि परीक्षा तथा बाद में उन्हें राम द्वारा त्याग देने का उल्लेख भी है। महर्षि वाल्मीकि को इस कथा में;ऋषि काली’ कहा गया है। इस कथा में यह भी कहा गया है कि बाद में राम और सीता का मिलन हो गया था तथा वे वन चले गये थे।

रामायण का चीनी भाषा में भी अनुवाद हुआ तथा कालांतर में वह बौद्ध साहित्य में शामिल हो गया। बौद्ध साहित्य में रामकथा 'दशरथ जातक’ के रूप में प्रचलित है। जापान में रामकथा को आज भी नृत्य नाटिका के रूप में प्रस्तुत किया जाता है। टोकियो के काबुकी थियेटर में रामायण पर आधारित नाटक और नृत्यों का मंचन किया जाता है, जो आज भी वहां बहुत लोकप्रिय है। एशियाई देशों में रामकथा के व्यापक प्रचार-प्रसार के साक्षी मध्य जावा के प्राचीन शिव मंदिर भी हैं। प्रेम बनन तथा पर तरन में स्थित इन दोनों शिव मंदिरों में रामकथा उत्कीर्ण है।  ईरान में नौवीं शताब्दी में रामायण का रूपांतर ईरानी भाषा में हो चुका था। जाबा में दसवीं शताब्दी में रामकथा पर आधारित 'रामायने ककबीन’ नामक ग्रन्थ की रचना हो चुकी थी। वहां 'सेरतराम’ नामक एक अन्य ग्रन्थ भी मध्यकाल में लिखा गया, जो रामकथा पर ही आधारित है। बाली दीप में आज भी ;चरित्र रामायण’ के नाम से रामकथा प्रचलित है।

कम्बोडिया में;रामकेति’ नामक एक अति प्राचीन ग्रन्थ उपलब्ध हुआ है। इस ग्रंथ के 80 सर्ग ही मिल पाए हैं तथा इसमें राजा दशरथ के पुत्रयेष्ठिï यज्ञ से मेघनाद वध तक की कथा समाहित है।  थाईलैण्ड की राजधानी बैंकाक के बौद्ध मंदिरों में रामकथा उत्कीर्ण है। थाईलैण्ड के शासक आज भी अपने नाम के साथ राम लगाते हैं। थाईलैण्ड में रामकथा पर आधारित कोई एक दर्जन ग्रंथ उपलब्ध हैं।

वर्मा (म्यानमार) में राम के चरित्र पर रामयागन नामक ग्रंथ की रचना हुई। तिब्बती भाषा में भी भगवान राम के जीवन पर आधारित ग्रंथ मिले हैं। तुनछांग की गुफाओं में दो ऐसी पांडुलिपियां मिली हैं, जिनमें राम की कथा थी तथा जिनकी रचना छठवीं एवं सातवीं शताब्दी में हुई थी। साईबेरिया तथा रूस के हाल्मिंग गणराज्य में भी रामकथा प्रचलित होने के प्रमाण मिलते हैं। श्रीलंका में भी सिंहली भाषा में राम की महिमा में कोई आधा दर्जन से अधिक ग्रंथ लिखे जाने के प्रमाण मिले हैं, जिनमें सुवेणी, सीतात्याग तथा जानकी हरण के नाम उल्लेखनीय हैं। भारत में आक्रांताओं के आगमन के पूर्व से ही रामकथा मध्यपूर्व में प्रचलित थी पर मुगल शासकों के काल में अरबी एवं फारसी में भी रामकथा का अनुवाद हुआ। बाद में यूरोपीय देशों में भी रामकथा पहुंची तथा अंग्रेज साहित्यकारों की मान्यता है कि, होमर मिल्टन तथा शेक्सपियर की कुछ रचनाओं पर रामकथा का प्रभाव पाया जाता है। पादरी फ्रेंक हेवलिंग नामक अंग्रेज लेखक ने अपनी पुस्तक 'दी राईज ऑफ रिलीजियस सिग्नीफेन्स ऑफ दी राम’ में इस तथ्य को स्वीकार करते हुए कहा है कि यूरोप में राम का महत्व बढ़ता जा रहा है।

विभिन्न यूरोपीय भाषाओं में रामकथा का अनुवाद हुआ। पार्जिटन ने वाल्मीकि रामायण का अनुवाद किया। रूसी विद्वान वारान्निकोव ने तुलसी कृत रामचरित मानस को अनुदित किया। यूरोपीय विद्वान फादर कामिल बुल्के तो रामकथा से इतने अभिभूत हुए कि वे बीसवीं सदी के रामायण के सबसे बड़े विद्वान के रूप में जाने जाते हैं। अनेक यूरोपीय विद्वानों ने रामकथा की विवेचना और मीमांसा अपने-अपने दृष्टिïकोण से की है, जैसे ए.के. वेवर का कथन है कि राम ने श्रीलंका में अपने धर्म के प्रचार हेतु युद्ध लड़ा था। मोनियर विलियम्स के मतानुसार राम ने आर्य संस्कृति के प्रचार के लिए श्रीलंका पर आक्रमण किया था।

अब विद्वान रामकथा की किसी भी तरह विवेचना करते रहें पर दो तथ्य अब स्थापित हो चुके हैं। एक तो दुनिया के हर देश में मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम का चरित्र प्रेरणादायी माना जाता है तथा दूसरा तथ्य यह है कि सदियों पूर्व रामकथा सुदूर देशों में प्रचलित हो गई थी। (विभूति फीचर्स)

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