रणवीर सैनी
मुजफ्फरनगर। जिले की गोशालाओं और गोआश्रय स्थलों में बछड़ों और सांड़ों से अधिक गायों की संख्या हो गई है। ऐसे भी मामले हैं, जब गाय के दूध देना बंद करते ही घर से निकालकर पशुपालक सड़क पर छोड़ रहे हैं। दो से तीन किलो दूध की गाय को भी सड़कों पर छोड़ा जा रहा है।
सनातन संस्कृति में गाय को माता का दर्जा दिया गया है। परिवार में पहली रोटी गाय को देने की परंपरा है। जिले में 65 गोशाला और 35 आश्रय स्थल बनाए गए हैं। पशुपालन विभाग के आंकड़े बताते हैं कि आश्रय स्थलों में गोवंश की संख्या 7896 है। इनमें 3796 नर गोवंश और 4100 मादा गोवंश हैं। मुख्य पशु चिकित्साधिकारी डॉ. चंद्रवीर सिंह का कहना है कि विभाग के प्रयासों से कृत्रिम गर्भाधान से पैदा होने वाले बछड़ों की संख्या घट रही है। हमारे सामने सबसे बड़ी चिंता अब यह है लोग बांझ गायों को अधिक संख्या में निराश्रित छोड़ रहे हैं। यह एक बड़ी सामाजिक समस्या बन गई है। हमारे जिले के आंकड़े सामने हैं, जनपद में गो आश्रय स्थलों में नर गोवंश से मादा गोवंश की संख्या 304 अधिक है। नवीन मंडी एसोसिएशन के अध्यक्ष संजय मित्तल का कहना है कि कुछ लोग मंडी में दो से तीन किलो दूध देने वाली गायों को छोड़कर चले जाते हैं। गाय जितने का दूध देती है, उससे ज्यादा उनके ऊपर खर्च आता है।
सब्जी से महंगा हो रहा पशुओं का चारा
दूध देने वाले एक पशु पर किसान का प्रति दिन 300 से 400 रुपये तक का खर्च आ रहा है। छोटी जोत और आय के कम साधन होने के कारण बांझ गाय का घर में रखना उसके लिए चुनौती से कम नहीं है। बाजार भूसा इस समय 2100 रुपये क्विंटल पहुंच गया है। हरा चारा 17 रुपये का पांच किलो है। खल और चौकर अलग से लगता है। बाजार में कुछ सब्जियों के दाम पशुओं के चारे से कम हैं।
एकल गोशाला योजना अपनाएं : टिकैत
भाकियू के प्रवक्ता राकेश टिकैत का कहना है कि हमने पांच साल पहले सरकार के सामने प्रस्ताव रखा था कि वह एकल गोशाला की व्यवस्था करें। शहरी क्षेत्र के पैसे वाले जो लोग गाय की सेवा करना चाहते हैं वह किसान की गाय गोद ले लें। किसान को हर माह एक हजार रुपये दे दें। किसान गाय का पालन कर लेगा, गाय की जान बच जाएगी। गोसेवा करने वालों का दान पुण्य हो जाएगा। गायों को बचाने का यही तरीका है।
छोटी जोत, बांझपन बड़ी समस्या : धर्मेंद मलिक
भाकियू अराजनैतिक के प्रवक्ता धर्मेंद्र मलिक का कहना है कि किसान अपने पशु को मजबूरी में छोड़ रहा है। छोटी जोत हो गई है, चारा महंगा पड़ रहा है और गायों में बांझपन की समस्या बढ़ गई है। गांवों में ट्रेंड पशु चिकित्सकों की व्यवस्था होनी चाहिए। नस्ल सुधार पर जोर दिया जाना चाहिए। समय पर किसान की गाय गाभिन हो जाए और अच्छी नस्ल के बच्चा पैदा हो तो यह समस्या खत्म हो जाएगी।