Home Nation राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग की महाराष्ट्र शासन को पड़ी डांट

राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग की महाराष्ट्र शासन को पड़ी डांट

555
0

विवेक महाशब्दे ( विश्व संवाद केंद्र, मुंबई) गत लगभग चार वर्षों से खोस्ते ग्रामस्थ अनुसूचित जमाती और अन्य पारम्परिक वननिवासी (वनहक्क मान्य करना अधिनियम) अधिनियम, २००६ व सुधारित नियम, २००८ और २०१२ के अनुसार ख़ोस्ते महसूल गाँव ने उनके पारम्परिक वन क्षेत्र पर सामूहिक वनहक्क दावा जून २०१८ में दाखिल किया था। देखा जाय तो, केंद्र सरकार ने आदिवासी समाज की सम्पूर्ण उपजीविका जंगल पर आधारित होने के कारन वह ही इस जंगल का पालनकर्ता है और वह ही इस जंगल का उत्तम संवर्धन कर सकता है, इस संकल्पना से इस कानून की निर्मिति करी और इसके सब अधिकार ग्रामसभा को बहाल किये। कई सालों से ग्रामस्थ जंगल का संवर्धन कर ही रहे थे, पर दावा दाखिल कर ग्रामस्थों ने वनव्यवस्थापन समिति और विविध समितियां तैयार करके ग्रामसभा में निश्चय कर ४ वर्षों से उत्तम तरीके से वनसंवर्धन किया है। आज अत्यंत घना अरण्य निर्माण हुआ है और गाँव के initiative से यह साध्य हुआ है, यह उल्लेखनीय बात है। अखिल भारतीय वनवासी कल्याण आश्रम का हमारे गाँव को सतत सहकार्य मिल रहा है, उनका मार्गदर्शन बहुमूल्य है।

३(१) झ अनुसार निरंतर इस्तेमाल, संवर्धन, पुनरुत्पादन और प्रबंधन के अधिकार ग्रामसभा को बहाल किये गए हैं। पर, ये अधिकार केवल कागज पर ही दिख रहें हैं। आदिवासियों का विकास न हो, इसी भूमिका में प्रशासन दिखाई दे रहा है, क्योंकि खोस्ते गाँव ने प्रयास की पराकाष्ठा की, जिल्हाधिकारी, ठाणे को अनेकों बार लिखित पत्रव्यवहार और अनेकों बार प्रत्यक्ष मिलकर बिनती की, परन्तु न्याय मिलने की कोई भी आशा नहीं दिखाई दी। दो बार मा. राज्यपाल को प्रत्यक्ष मिलकर निवेदन दिया और उन्होंने भी जिल्हाधिकारी, ठाणे को दावा …. के सन्दर्भ में आदेश दिए थे। जो ५ वे अनुसूची के पालक है, उनका भी मान नहीं रखा गया, यह प्रशासन की तरफ से एक प्रकार की मनमानी हो रही है। और अन्य सब सम्बंधित विभागों से समय समय पर पत्रव्यवहार करके भी आदिवासी समाज का स्वप्न अपूर्ण ही रह गया है।

वस्तुतः जो सामूहिक वनहक्क दावा खोस्ते महसूल गाँव ने किया है, वह कानून के अनुसार सब प्रक्रिया कर, चार गाँवों ने इकठ्ठा आकर किया है, इसके लिए ग्रामसभा में ठराव कर, वे सर्वसम्मति से पारित कराएं गएँ हैं। पर, इस समाज का विकास न हो, इसलिए, सब कानूनन होते हुए भी, ग्रामसभा को जो अधिकार बहाल किये हुए हैं, उनकी प्रशासन की तरफ से.. … होती हुई दिख रही है। ग्रामसभा ठराव सुप्रीम होते हैं, पर ग्रामसभा के कानूनन ठराव सर्वसम्मति से पारित करने पर भी उसका सम्मान नहीं होता। एखाद निर्णय यदि समाज के सर्वांगीण हित का हो, तो शासनस्तर पर उसका फ़ौरन अम्मल हो, ऐसा अपेक्षित है, परन्तु ग्रामसभा के अधिकार को न मानने से आदिवासी समाज पर प्रशासन यह घोर अन्याय कर रहा है। मा. जिल्हाधिकारी जिल्हा वन हक्क समिति के अध्यक्ष के तौर पर कार्य करते हैं। उन्होंने निष्पक्ष रहते हुए निर्णय करना चाहिए था; परन्तु जिन्होंने देरी से दावा दाखिल किया है, उन्हें फ़ौरन दावा देने की भाषा मा. अध्यक्ष की तरफ से की जाती है, यह दुर्भाग्य की बात है। जिन्होंने दावा किया हैं,उन समर्थ दावेदारों को दावा देने के बदले दुसरे गाँव को दावा देने की हमदर्दी दिखाई जाती है, इससे आदिवासी समाज का वैचारिक .. , यह बात गंभीरता से सोचनी चाहिए।

हमारा दावा आज मिलेगा, कल मिलेगा, ऐसी आशा लगाकर ग्रामस्थ सतत धडपड कर रहें थे। पर सब प्रयास विफल हो रहे थे। पर्यायी आदिवासी समाज की आवाज दबाने का प्रयास सतत चल रहा था। प्रशासन के इस अन्याय के विरुद्ध न्याय मिलाने के लिए हमारे गाँव को राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग की तरफ जाना पड़ा और आयोग ने हमारी शिकायत को ध्यान में लेते हुए, महाराष्ट्र शासन को दणका देकर, लिखित नोटिस जारी की है और १५ दिनों में शासन से लिखित स्पष्टीकरण माँगा है।

हमारे खोस्ते गाँव के लिए राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाती आयोग ने दावा मिलने का मार्ग खुला किया है। परन्तु, तभी भी प्रशासन ने यह दावा .. तो ग्रामस्थ आंदोलन भूख हड़ताल करने की चेतावनी प्रशासन को दे रहा है।

Previous articleसेवा इंटरनेशनल के अनुपम कार्य
Next articleबिहारसमाज अबूधाबी के यजमानी में बिहार समाज ने सरस्वती पूजा की

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here