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गऊ भारत भारती ’ के वार्षिक उत्सव में उत्तर प्रदेश के गौ सेवा आयोग के अध्यक्ष आचार्य श्याम बिहारी जी तथा भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के अधिकारी डॉ विजय पहारिया होंगे शामिल।

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‘ गऊ भारत भारती ’ के वार्षिक उत्सव में उत्तर प्रदेश के गौ सेवा आयोग के अध्यक्ष आचार्य श्याम बिहारी जी तथा भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के अधिकारी डॉ विजय पहारिया होंगे शामिल।

झाँसी -१५ नवंबर , २३ दिसम्बर को मुंबई में होने जा रहे ‘ राष्ट्रीय समाचारपत्र गऊ भारत भारती ’ के १०वें वार्षिक उत्सव तथा राष्ट्र सेवा सम्मान समारोह में मुख्य अतिथि के सन्दर्भ में निवेदन पत्र आज दिनाँक १५ नवंबर को उत्तर प्रदेश के गौ सेवा आयोग के अध्यक्ष राज्य मंत्री आचार्य श्याम बिहारी गुप्ता जी को निवेदन पत्र गऊ भारत भारती के सलाहकार संपादक तथा भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद- भारतीय चरागाह एवं चारा अनुसंधान संस्थान झाँसी (उ.प्र) में कार्यरत है अधिकारी डॉ.विजय गुप्ता और उनकी टीम ने उनके घर जा कर निमंत्रण पत्र दिया और उन्हें आमंत्रित किया। माननीय राज्य मंत्री महोदय जी ने आमंत्रण स्वीकार करते हुए गऊ भारत भारती के पुरे टीम की शुभकामनाएं दी।
ज्ञात हो कि राष्ट्रीय समाचारपत्र ” गऊ भारत भारती ” भारत का ऐसा पहला प्रकाशन है जिसे गौ वंश पर आधारित प्रथम समाचारपत्र के तौर पर जाना जाता है। ” गऊ भारत भारती ” गौ वंश के संरक्षण व संवर्धन से जुड़े व्यक्तियों व संस्थाओं की सक्रियताओं व गतिविधियों को प्रमुखता से प्रकाशित करता आ रहा है। इन १० वर्षो में ” गऊ भारत भारती ” अपने छोटे प्रकाशन समूह और सीमित संसाधनों के बावजूद गौवंश को ले कर अप्रतिम व अनुपम सजगता के साथ गौवंश और पर्यावरण बचाओ अभियान को सफलता पूर्वक लोगो तक पहुँचने में सफल रहा है।
” गऊ भारत भारती ” अपने माध्यम से गौ , गंगा , गीता , गायत्री के मूल मन्त्र को आत्मसात करते हुए इस विषय को जीवित रखने में तत्परता के साथ संघर्ष करते हुए देश में गौ वंश और पर्यावरण के साथ साथ हिन्दू सनातन संस्कृति के प्रचार प्रसार में मुख्य भूमिका निभाते हुए भारत के जनमानस में जागरूकता की ज्वाला जगाते हुए माँ भारती की सेवा कर रहा है।

पिछले वर्ष १२ से १८ अक्टूबर तक भारत का पहला ” गऊ ग्राम महोत्सव ” – The Festival Of Cows Economy – काऊ बेस इकोनॉमी – अर्थवयवस्था ( Economy ) का पहला Cow Product Exhibition का आयोजन कर प्रकाशन समूह द्वारा एक मंच पर भारत के गौपालकों , किसानों को लाने और काऊ बेस इकोनॉमी के महत्व को बताने का हमारा प्रयास रहा। जिसमे भारत सरकार के पूर्व पशुपालन केंद्रीय मंत्री श्री परषोत्तम रूपाला जी का आशीर्वाद मिला था . Animal Welfare Board of India , राष्ट्रीय कामधेनु आयोग , आरआर ग्लोबल , तथा महाराष्ट्र सरकार का भरपूर योगदान रहा। आज गऊ भारत भारती लगातार १० वर्षो से गौ आधारित भारतीय अर्थवयवस्था को मजबूती प्रदान कर रहा है।

दिनाँक २३ दिसम्बर को मुंबई में मुक्ति शभागार में होने जा रहे इस समारोह में पूर्व केंद्रीय मंत्री परषोत्तम रुपाला , आचार्य लोकेश मुनि , साध्वी सरस्वती , महाराष्ट्र गौ सेवा आयोग के अध्यक्ष राज्य मंत्री शेखर मूंदड़ा , भाजपा मुंबई सचिव , कामगार नेता अभिजीत राणे , एकता मंच के अध्यक्ष प्रशांत काशिद , सांसद रविंद्र वायकर , आदि महानुभाव को आमंत्रित किया गया है।

गौतस्करों की गाड़ी डिवाइडर से टकराकर पलट गई, जिसमें एक आरोपी की मौत

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गुरुग्राम: मानेसर थाना एरिया में पुलिस को देखकर भाग रहे गौ-तस्करों की गाड़ी डिवाईडर पर चढ़ने के बाद पलट गई। हादसे में एक गौतस्कर की मौत हो गई, जबकि छह घायल हो गए। पुलिस ने शव को कब्जे में लेकर पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया, वहीं घायल गौतस्करों को उपचार के बाद गिरफ्तार कर लिया। पुलिस को पलटी हुई गाड़ी में चार गाय बंधी हुई मिली, जिनको पिकअप में गौ-तस्करों द्वारा बेरहमी से ठूसकर भरा हुआ था। पुलिस आरोपियों से पूछताछ कर रही है।

पास सड़क किनारे कुछ व्यक्ति एक पिकअप गाड़ी में गायों को भरते हुए दिखाई दिए। पुलिस को देखकर उन्होंने पिकअप को पचगांव-बिलासपुर की तरफ भगा लिया। पुलिस ने पिकअप का पीछा किया। पचगांव चौक पर जाम होने के चलते जब पिकअप को भागने के लिए रास्ता नहीं मिला तो चालक ने पिकअप को डिवाईडर पर चढ़ाकर गलत साईड से भागने का प्रयास किया। लेकिन तेज रफ्तार गाड़ी डिवाईडर पर चढ़ते ही पलट गई। पुलिस ने मौके से सभी छह गौतस्करों को काबू कर लिया।

आरोपियों की हुई पहचान

पुलिस द्वारा पकड़े गए आरोपियों में नूंह के आंकेड़ा निवासी मुन्ना, सूडाका निवासी माफिक अली व मुबारिक उर्फ उटावडिया, सालाहेड़ी निवासी शौकीन उर्फ सुंडा, रहना निवासी इरसाद उर्फ लंगड़ा व यूपी के अलीगढ़ निवासी सलाम के रूप में हुई। वहीं पुलिस को गाड़ी के नीचे दबा एक गौतस्कर मृत अवस्था में मिला। जिसकी पहचान नूंह के सालाहेड़ी निवासी सहजाद के रूप में हुई। वहीं पुलिस को पलटी हुई गाड़ी से चार गाय बंधी हुई मिली। जिनको पिकअप में गौ-तस्करों द्वारा बेरहमी से ठूसकर भरा हुआ था। पुलिस ने गाड़ी को अपने कब्जे में लिया और उपचार कराने के बाद सभी आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया। वहीं शव को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया।

पुलिस टीम द्वारा आरोपियों के अपराधिक रिकॉर्ड की जांच की तो पता चला कि मृतक आरोपी सहजाद के खिलाफ हत्या करने का प्रयास व गौ-तस्करी करने के दो केस गुरुग्राम में तथा तीन केस नूंह में दर्ज हैं। जबकि आरोपी शौकीन उर्फ सुन्डा के खिलाफ जिला रेवाड़ी, नूंह, गुरुग्राम व रोहतक के विभिन्न थानों में हत्या करने का प्रयास, गौ-तस्करी, पॉक्सो अधिनियम, चोरी इत्यादि अपराधों के 18 केस दर्ज हैं। आरोपी ईरसाद के खिलाफ गौ-तस्करी, मारपीट करने व धमकी देने के सम्बन्ध में जिला गुरुग्राम व जिला नूंह कुल तीन केस दर्ज हैं। आरोपी माफिक अली व आरोपी मुबारिक के खिलाफ जिला नूंह में एक-एक केस दर्ज है।

10 या उससे अधिक गाय पालने वाले किसानों को आर्थिक अनुदान

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भोपाल: 10 या उससे अधिक गाय पालने वाले किसानों को आर्थिक अनुदान – मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने  कहा कि अब बुजुर्ग और अपाहिज गायों की देखभाल कांजी हाउस की जगह गौ-शालाओं में की जाएगी। साथ ही, 10 या उससे अधिक गाय पालने वाले किसानों को सरकार की ओर से आर्थिक अनुदान दिया जाएगा।

मुख्यमंत्री ने घोषणा की कि प्रदेश में गौ-पालकों को क्रेडिट कार्ड भी प्रदान किए जाएंगे, जिससे उन्हें आर्थिक सहायता मिलेगी। प्रदेश में दुग्ध उत्पादन बढ़ाने के लिए प्रत्येक गाय के आहार की राशि दोगुनी कर दी जाएगी। अगले पशु गणना में प्रदेश को पहले स्थान पर लाने का लक्ष्य रखा गया है। डॉ. यादव ने गौ-वध को रोकने के लिए सख्त कानून की घोषणा की, जिसके तहत दोषी पाए जाने पर 7 वर्ष की सख्त सजा का प्रावधान किया गया है। उन्होंने बताया कि प्रदेश में गौ-वंश संरक्षण के लिए विशेष प्रयास किए जा रहे हैं, जिससे मध्यप्रदेश को गौ-वंश के क्षेत्र में समृद्ध बनाया जा सके।

मुख्यमंत्री यादव ने बताया कि प्रदेश के 51,000 से अधिक गाँवों में दुग्ध उत्पादन बढ़ाकर मध्यप्रदेश को देश में प्रथम स्थान पर लाने का प्रयास किया जा रहा है। उन्होंने दुग्ध सहकारिता को और सशक्त बनाने के लिए राष्ट्रीय डेयरी डेवलपमेंट बोर्ड के साथ अनुबंध का भी जिक्र किया, जिससे राज्य में दुग्ध उत्पादन में उल्लेखनीय वृद्धि होगी।  सरकार ने गौ-पालन को प्रोत्साहन देने के लिए गौ-शालाओं को प्रति गाय 40 रुपये का अनुदान देने का निर्णय लिया है, जो पहले 20 रुपये था। इसके अलावा, 10 या उससे अधिक गाय पालने वालों को भी अनुदान दिया जाएगा। शहरी क्षेत्रों में बड़ी गौ-शालाएं स्थापित करने की भी योजना है, जहां 5,000 से 10,000 गायों के लिए व्यवस्था होगी।

Panchkula News: सरस्वती गोशाला में गर्भवती गाय की भूख से मौत

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रायपुररानी। सरस्वती गोशाला में एक गर्भवती गाय की भूख से मौत होने पर क्षेत्र के लोगों में भारी आक्रोश है। इस दुखद घटना के बाद गोरक्षकों, विश्व हिंदू परिषद और अन्य सामाजिक संगठनों के सदस्य सड़क पर उतर आए हैं। सभी लोग प्रशासन से सख्त कार्रवाई की मांग कर रहे हैं। जानकारी के अनुसार 11 नवंबर को सरस्वती गोशाला में एक गर्भवती गाय की मौत हो गई थी। गो रक्षकों ने आरोप लगाया कि यह घटना गोशाला प्रबंधन की लापरवाही और गायों के प्रति उनके उपेक्षापूर्ण रवैये का परिणाम है।
पोस्टमार्टम रिपोर्ट में यह खुलासा हुआ कि गाय की मौत भूख के कारण हुई थी। गाय की मौत के बाद लोगों ने वीरवार को प्रदर्शन कर रायपुररानी के सरकारी स्कूल के पास सड़क पर एकत्रित होकर नारेबाजी की। उन्होंने प्रशासन से मांग की कि इस मामले में तत्काल सख्त कार्रवाई की जाए और गोशाला के प्रबंधकों के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज किए जाएं।

इस दौरान सड़क पर प्रदर्शन बढ़ता देख नायब तहसीलदार रविंद्र कुमार और थानाध्यक्ष सुखबीर सिंह भारी बल सहित मौके पर पहुंचे और प्रदर्शनकारियों से बातचीत की। इसके बाद प्रदर्शनकारियों ने उन्हें एक ज्ञापन सौंपा, जिसमें 24 घंटे के भीतर उचित कार्रवाई न होने पर आंदोलन को और उग्र करने की चेतावनी दी गई।

गोशाला का निरीक्षण कर गायों की स्थिति जांची
प्रदर्शनकारियों ने सरस्वती गोशाला का दौरा कर गायों की खराब स्थिति का पता लगाया। एक अन्य गाय को गली हुई चर्बी के साथ पाया गया। इससे प्रदर्शनकारी भड़क गए। उन्होंने आरोप लगाया कि प्रशासन ने कई बार शिकायतों के बावजूद गोशला की स्थिति में कोई सुधार नहीं किया है। गो रक्षकों का कहना था कि गोशाला में गायों के लिए चारे और पानी की भारी कमी है।नायब तहसीलदार ने प्रदर्शनकारियों को आश्वासन दिया कि उनकी शिकायतों पर विचार किया जाएगा।

इस मौके पर बजरंग दल के जिला संयोजक प्रदीप नवानी, विश्व हिंदू परिषद के जिलाध्यक्ष श्रीनिवास दीक्षित, गौ रक्षा दल के प्रमुख कार्यकर्ता आजाद राय, सुरेन्द्र वर्मा, रोहित सैनी, सौरव भट्ट, रोहित, नरेंद्र, राणा, अभी शर्मा, डिशु गर्ग, गौरव, संदीप, राजेश, दीपक शर्मा, गोल्डी डेराबस्सी, एडवोकेट एमके बिला और अन्य समाजसेवी उपस्थित थे।

गो रक्षकों द्वारा सरस्वती गोशाला में गो प्रबंधकों की लापरवाही से गर्भवती गाय के मरने की शिकायत दी गई है। इसको लेकर जांच जारी है – सुखबीर सिंह, थाना प्रभारी रायपुररानी

शौर्य और पराक्रम के प्रतीक प्रकृति को समर्पित भगवान बिरसा मुंडा*

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(कुमार कृष्णन-विभूति फीचर्स)
धरती आबा, महानायक और भगवान, बिरसा मुंडा को ये तीनों नाम यूं ही नहीं मिले। अंतिम सांस तक अंग्रेजों से अध‍िकारों की लड़ाई लड़ने वाले और प्रकृति को भगवान की तरह पूजने वाले बिरसा मुंडा की आज जयंती है।  देश में आज इनकी जयंती को जनजाति गौरव दिवस के तौर पर मनाया जा रहा है। मध्यप्रदेश,छत्‍तीसगढ़, झारखंड, उड़ीसा,‍ बिहार और पश्‍चिम बंगाल के आदिवासी क्षेत्रों में इन्‍हें भगवान की तरह पूजा जाता है।
               धरती आबा बिरसा मुंडा का ‘उलगुलान’भूमि से लेकर धर्म सम्बन्धी तमाम समस्याओं के खिलाफ जनसंघर्ष था तथा उन समस्याओं के खिलाफ राजनीतिक समाधान का प्रयास भी। वह आदिवासी और खासकर मुंडा समाज की आंतरिक बुराईयों और कमजोरियों को दूर करने का सामूहिक अभियान भी था। समाज की परंपरागत प्रकृति निर्भर तत्व ने आर्थिक समाजवाद की अवधारणा को बिरसा के अंदर जागृत किया । गांधी से पहले गांधी की अवधारणा के तत्व के उभार के पीछे भी बिरसा का समाज एवं पड़ोस के सूक्ष्म अवलोकन एवं उसे नयी अतंर्दृष्टि देने का तत्व ही था। तभी तो उन्होंने गांधी के समान समस्याओं को देखा-सुना, फिर चिंतन-मनन किया। उन्होंने मुंडा समाज को पुनर्गठित करने का जो प्रयास किया, वह अंग्रेजी हुकूमत के लिये विकराल चुनौती बनी। नये बिरसाइत धर्म की स्थापना की तथा लोगों को नई सोच दी, जिसका आधार सात्विकता, आध्यात्मिकता, परस्पर सहयोग, एकता व बंधुता था। समस्या के कारणों को ढूढ़ ‘गोरों वापस जाओ’ का नारा दिया एवं परंपरागत लोकतंत्र की स्थापना पर बल दिया, ताकि शोषणमुक्त ‘ आदिम साम्यवाद ’ की स्थापना हो सके।
           1894 में बिरसा मुंडा ने एक ऐसे धर्म की शुरुआत की जो पूरी तरह से प्रकृति को समर्पित था। बिरसाइत धर्म में गुरुवार के दिन फूल, पत्तियां और दातून को तोड़ने पर भी मनाही थी।इस दिन हल चलाने की भी पाबंदी थी। इस धर्म को मानने वालों का एक ही लक्ष्‍य था, प्रकृति की पूजा। इस धर्म के प्रसार के लिए बिरसा मुंडा ने 12 शिष्‍यों को नियुक्‍त किया। इस धर्म को मानने वालेे लोग मांस, मदिरा, तम्‍बाकू और बीड़ी का सेवन भी नहीं कर सकते।
           1857 के स्वतंत्रता आंदोलन के शांत होने के बाद सरदार आंदोलन संगठित जनांदोलन के रूप में शुरू हो गया। 1858 से भूमि आंदोलन के रूप में विकसित यह आंदोलन 1890 में राजनीतिक आंदोलन में तब्दील हो गया, जब बिरसा मुंडा ने इसकी कमान संभाली। बिरसा का जन्म 15 नवम्बर 1875 को खूंटी जिले के अड़की प्रखंड के उलिहातु गांव में हुआ था। व्यक्तित्व निर्माण और तालीम ईसाई मिशनरियों के संरक्षण में हुई। स्कूली शिक्षा के दौरान बिरसा में विद्रोह के लक्षण प्रकट होने लगे। आदिवासियों में भूतकेता पहनाई आदि की परंपरा है। वे धार्मिक कृत्यों के लिये जमीन छोड़ते हैं। उस समय ईसाई पादरी उस जमीन पर मिशन का कब्जा करने की कोशिश करते थे।  बिरसा ने इसकी शिनाख्त ईसाई मिशनरियों और गोरों की साजिशों के रूप में की और इसकी बेबाक ढंग से आलोचना की, जिस कारण वे स्कूल से निकाल दिये गये।
इसके बाद वे सरदार आंदोलन में शमिल हो गये। ईसाई मिशन की सदस्यता छोड़ 1890-91 से करीब पांच साल तक वैष्णव संत आनंद पांड से हिन्दुओं के वैष्णव पंथ के आचार का ज्ञान प्राप्त किया और व्यक्तिक तथा सामाजिक जीवन पर धर्म के प्रभाव का मनन किया। परंपरागत धर्म की ओर उनकी वापसी हुई और उन्होंने धर्मोपदेश देना तथा धर्माचरण का पाठ पढ़ाना शुरू किया । ईसाई धर्म छोड़नेवाले सरदार बिरसा के अनुयायी बनने लगे। बिरसा का पंथ मुंडा जनजातीय समाज के पुनर्जागरण का जरिया बना । उनका धार्मिक अभियान प्रकारांतर से आदिवासियों को अंग्रेजी हुकूमत और ईसाई मिशनरियों के विरोध में संगठित होकर आवाज बुलंद करने को प्रेरित करने लगा। उस दौर में उनकी लोकप्रियता इस कदर परवान चढ़ी कि उनके अनुयायी ‘बिरसाइत’ कहलाने लगे। उन्होंने सादा जीवन उच्च विचार अपनाने का उपदेश दिया और मुंडा समाज में व्याप्त अंधविश्वासों और कुरीतियों पर जमकर प्रहार किया । वह जनेउ, खड़ाऊ और हल्दी रंग की धोती पहनने लगे।
उन्होंने कहा कि ईश्वर एक है और वह है सिंगवोंगा। भूत-प्रेत की पूजा और बलि देना निरर्थक है।सार्थक जीवन के लिये सामिष भोजन अथवा मांस-मछली का त्याग करना जरूरी है। हड़िया पीना बंद करना होगा।भगवान बिरसा ने अपनी सुधारवादी प्रक्रिया के तहत सामाजिक जीवन में एक आदर्श प्रस्तुत किया। उन्होंने नैतिक आचरण की शुद्धता, आत्मसुधार और एकेश्वरवाद का उपदेश दिया। उन्होंने ब्रिटिश सत्ता के अस्तित्व को अस्वीकारते हुए अपने अनुयायियों को सरकार को लगान न देने का आग्रह किया था। 1894 में अकाल के दौरान भगवान बिरसा ने वनवासि‍यों के लगान माफी के लिए आंदोलन चलाया। उन्होंने नारा दिया “अबुआ राज सतेरे जना, महारानी राज तुण्डु जना”।
बिरसा के लोकप्रिय व्यक्तित्व के कारण सरदार आंदोलन में नई जान आ गयी। अगस्त 1895 में वन सम्बन्धी बकाये की माफी का आंदोलन चला। उसका नेतृत्व बिरसा ने किया। धार्मिक आधारों पर एकजुट बिरसाइतो का संगठन जुझारू सेना की तरह मैदान में उतर गया। बकाये की माफी के लिये उन्होंने चाईवासा तक की यात्रा की तथा रैयतों को एकजुट किया। अंग्रेजी हुकूमत ने बिरसा की मांग को ठुकरा दिया। बिरसा ने भी ऐलान कर दिया कि -‘ सरकार खत्म हो गयी। अब जंगल जमीन पर आदिवासियों का राज होगा। 9 अगस्त 1895 को चलकद में पहली बार बिरसा को गिरफ्तार किया गया, लेकिन उनके अनुयायियों ने उन्हे छुड़ा लिया।16 अगस्त 1895 को गिरफतार करने की योजना के साथ आये पुलिस बल को बिरसा के नेतृत्व में सुनियोजित ढ़ंग से घेरकर खदेड़ दिया। इससे बौखलाई अंग्रेजी हुकूमत ने 24 अगस्त 1895 को पुलिस अधीक्षक मेयर्स के नेतृत्व में पुलिस बल चलकद रवाना किया तथा रात के अंधेरे में उन्हें गिरफ्तार  कर लिया गया।
उन पर यह आरोप लगाया गया कि लोगों को ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ विद्रोह करने के लिये उकसा रहे थे। मुंडा और कोल समाज ने बिरसाइतों के नेतृत्व में सरकार के साथ असहयोग करने का ऐलान कर दिया। व्यापक विरोध के कारण मुकदमा चलाने का स्थान रांची से बदलकर खुंटी कर दिया गया, लेकिन विरोध के तेवर में फर्क नहीं पड़ने के कारण मुकदमें की कार्रवाई रोककर तुरंत जेल भेज दिया गया। भा़दवि की धारा 505 के तहत मुकदमा चला तथा उन्हें दो साल सश्रम कारावास की सजा सुनायी गयी। उन्हें रांची से हजारीबाग जेल भेज दिया गया। 1897 में झारखंड में भीषण अकाल पड़ा तथा चेचक की महामारी भी फैली। आदिवासी समाज बिरसा के नेतृत्व के अभाव में भी  दमन-शोषण, अकाल तथा महामारी से एकसाथ जूझता रहा। 30 नवम्बर 1897 को बिरसा जेल से छूटे तथा चलकद लौटकर अकाल तथा महामारी से पीड़ित लोगों की सेवा में जुट गये। उनका यह कदम अपने अनुयायियों को संगठित करने का आधार बना। फरवरी 1898 में डोम्बारी पहाड़ी पर मुंडारी क्षेत्र से आये मुंडाओं की सभा में उन्होंने आंदोलन की नई नीति की घोषणा की तथा खोये राज्य की वापसी के लिये धर्म तथा शांति का  मार्ग अपनाने का आह्वान किया। उनके अभियान के तहत सामाजिक तथा सांस्कृतिक पक्ष को केन्द्र में रखकर आदिवासी समाज को मजबूत तथा संगठित करने का सिलसिला जारी रहा। 1889 के अंत में यह अभियान रंग लाया और अधिकार हासिल करने, खोये राज्य की प्राप्ति का लक्ष्य, जमीन को मालगुजारी से मुक्त करने तथा जंगल के अधिकार को वापस लेने के लिये व्यापक गोलबंदी शुरू हुई। कोलेबिरा, बानो लोहरदग्गा, तोरपा, कर्रा, बसिया, खूंटी, मुरहु, बुंडु, तमाड़, पोड़ाहाट, सोनाहातु आदि स्थानों पर बैठक हुई।
24 दिसम्बर 1899 को रांची के तोरपा, खूंटी, तमाड़ बसिया, आदि से लेकर सिंहभूम जिला के चक्रधरपुर थाने तक में विद्रोह की आग भड़क उठी विद्रोह के दमन के लिये सिहभूम से रांची तक 500 बर्गमील क्षेत्र में सेना और पुलिस की कम्पनी बुलाकर बिरसा की गिरफ्तारी का अभियान तेज किया गया। सरदारों पर हमला करने और आंदोलन का साथ देनेवालों मुंडा- मानकियों को गिरफ्तार करने व आत्मसमर्पण न करनेवाले विद्रोहियों की घर -सम्पत्ति कुर्क करने की योजना को अमलीजामा पहनाया जाने लगा। सरकार ने बिरसा की सूचना देने वालों और गिरफ्तारी में मदद देने वाले मुंडा या मानकी को पांच सौ रुपए पुरस्कार देने का ऐलान किया। बावजूद इसके सरकार बिरसा को गिरफ्तार नहीं कर पायी। बिरसा ने आंदोलन की रणनीति बदली, साठ स्थानों पर संगठन के केन्द्र बने। डोम्बारी पहाड़ी पर मुंडाओं की बैठक में‘उलगुलान ’ का ऐलान किया गया। बिरसा के इस आंदोलन की तुलना आजादी के आंदोलन में बहुत बाद 1942 के अगस्त क्रांति के काल से की जा सकती है। 1942 में महात्मा गांधी ने ‘ करो या मरो’ का नारा दिया था।
           बिरसा के नेतृत्व में अफसरों, पुलिस, अंग्रेज सरकार के संरक्षण में पलनेवाले जमींदारों और महाजनों को निशाना बनाया गया। खूंटी, तोरपा, बसिया, तमाड़, सर्बादा, मुरहू, चक्रणरपुर, पोड़ाहाट रांची और सिंहभूम में गोरिल्ला युद्ध ने हुकूमत की चूलें हिला दी। आंदोलन को कुचलने के लिये रांची और सिंहभूम को सेना के हवाले कर दिया गया। 8 जनवरी 1900 को डोम्बारी पहाड़ियों पर जमे बिरसाइत के जत्थे पर सेना ने आक्रमण कर दिया तथा युद्ध के दौरान लगभग 200 मुंडा मारे गये। सैलरकब पहाड़ी पर भी संघर्ष हुआ। इसके बाद भी बिरसा पकड़ में नहीं आये। आंदोलन की रणनीति के तहत अपने आंदोलन के केन्द्र बदले तथा घने जंगलों में संचालन के केन्द्र बनाये गये। जमकोपाई तथा पोड़ाहाट के जंगलों संगठन तथा प्रशिक्षण के कैंप बनाये गये। 3 फरवरी 1900 को सेंतरा के पश्चिम जंगल में बने शिबिर से बिरसा को उस समय गिरफ्तार किया गया, जब वे गहरी नींद मे सोये हुए थे। पुलिस के भारी बंदोबस्त के  साथ उन्हें तत्काल खूटी के रास्ते रांची कारागार लाकर बंद कर दिया गया। बिरसा के साथ अन्य 482 आंदोलनकारियों को गिरफ्तार किया गया। उनके खिलाफ 15 आरोप दर्ज किये गये। शेष अन्य  गिरफ्तार लोगों में सिर्फ 98 के खिलाफ आरोप सिद्ध हो पाया। बिरसा के विश्वासी गया मुंडा और उनके पुत्र सानरे मुंडा को फांसी दी गयी। गया मुंडा की पत्नी मांकी को दो वर्ष सश्रम कारावास की सजा दी। मुकदमें की सुनवाई के शुरूआती दौर में उन्होंने जेल में भोजन करने के प्रति अनिच्छा जाहिर की। अदालत में तबियत खराब होने की वजह से जेल वापस भेज दिया गया। 1 जून को जेल अस्पताल के चिकित्सक ने सूचना दी कि बिरसा को हैजा हो गया है और उनके जीवित रहने की संभावना नहीं है। 9 जून 1900 की सुबह सूचना दी गयी कि बिरसा नहीं रहे । इस तरह एक क्रांतिकारी जीवन का अंत हो गया। सन् 1895 से 1900 तक बिरसा मुंडा का महाविद्रोह ‘ऊलगुलान’ चला। आदिवासियों को लगातार जल-जंगल-जमीन और उनके प्राकृतिक संसाधनों से बेदखल किया जाता रहा और वे इसके खिलाफ आवाज उठाते रहे। 1895 में बिरसा ने अंग्रेजों की लागू की गयी जमींदारी प्रथा और राजस्व-व्यवस्था के खिलाफ लड़ाई के साथ-साथ जंगल-जमीन की लड़ाई छेड़ी थी। उन्होंने सूदखोर महाजनों के खिलाफ भी जंग का ऐलान किया। ये महाजन, जिन्हें वे दिकू कहते थे, कर्ज के बदले उनकी जमीन पर कब्जा कर लेते थे। यह मात्र विद्रोह नहीं था, बल्कि यह आदिवासी अस्मिता, स्वायतत्ता और संस्कृति को बचाने के लिए महासंग्राम था।
अबुआ दिशुम अबुआ राज यानी हमारा देश हमारा राज्य का नारा देने वाले लोकनायक जिन्होंने आदिवासिओं के सम्मान ,स्वाभिमान ,स्वतंत्रता और सबसे मुख्य उनकी संस्कृति को बचाने के लिए आत्मसमर्पण और बलिदान दिया जिसे कभी भुलाया नहीं जा सकता। भगवान बिरसा मुंडा ने महज़ 25 साल का जीवन जिया परन्तु इस छोटे से सफर में पूरे साहस और शौर्य का प्रदर्शन कर वह हमेशा के लिए अमर हो गए वास्तव में बिरसा मुंडा देशभक्ति एवं वीरता का प्रतीक थे। उन्होंने केवल आदिवासियों के लिए ही नहीं परन्तु उनके साथ-साथ इस देश की अखंडता, इसकी गौरवशाली संस्कृति और जनजातीय परंपरा के संरक्षण के लिए स्वयं को न्यौछावर कर दिया। अन्याय और उत्पीड़न से लड़ने के वीरतापूर्ण प्रयासों से भरी उनकी जीवन कहानी उपनिवेशवाद के खिलाफ प्रतिरोध की एक मजबूत आवाज का प्रतिनिधित्व करती है।
बिरसा के संघर्ष के परिणामस्वरूप छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम 1908 बना। जल , जंगल और जमीन पर पारंपरिक अधिकार की रक्षा के लिये शुरू हुए आंदोलन एक के बाद एक श्रृंखला में गतिमान रहा तथा इसकी परिणति अलग झारखंड राज्य के रूप में हुई, लेकिन अबुआ दिशुम का सपना साकार नहीं हो सका। आजादी के बाद औद्योगिकीकरण के दौर ने उस सामाजिक आर्थिक व्यवस्था को ध्वस्त कर दिया जिसकी स्थापना के लिये बिरसा का उलगुलान था। खनिज सम्पदा के दोहन  और घोटाले ने प्रदेश को शर्मसार किया है।
                  बिरसा के द्वारा स्थापित बिरसाइत पंथ आज भी कायम है।खूंटी जिला मुख्यालय से पांच किलोमीटर दूर जंगल के बीच बिरसाइतों का गांव है अनिगड़ा। बिरसाइत सम्प्रदाय से जुड़े लोग मांस मछली नहीं खाते हैं, तुलसी की पूजा करते हैं। पहनने में सूती वस्त्र का इस्तेमाल करते हैं तथा नशे से दूर रहते है। हिंसा से दूर रहकर अहिंसा का पालन करते है। अनगड़ा में ही उदय मुंडा को फांसी दी गयीं। उनका परपौत्र मंगरा मुंडा आज भी जिंदा है। उनके मुताबिक कभी इस गांव में बिरसाइतों की संख्या 50 थी। अब ये नाममात्र के रह गये हैं। ये अपनी गरीबी और मुश्किलों से नाराज नहीं है, पर सरकारी उपेक्षा से ज्यादा दुखी है। मंगरा मुंडा के मुताबिक यदि अंग्रेजों ने शोषण किया तो आजाद भारत की सरकार ने भी कम धोखा  नहीं दिया। आजादी के बाद भी लगान- सूद से मुंडाओं को मुक्ति नहीं मिली। जल,जंगल,जमीन पर अधिकार नहीं मिला। अबुआ दिशुम का सपना पूरा नहीं हुआ।
                                                                आज राज्य गठन के 24 वर्ष होने के बाद भी अबुआ दिशुम-अबुआ राईज मात्र नारा बनकर रह गया। सीएनटी-एसपीटी एक्ट और संविधान प्रदत्त पांचवीं अनुसूची, पेसा कानून, वनाधिकार कानून तथा न्यायिक निर्णय समता जजमेंट आदि मुद्दों पर राज्य गठन होने के बाद जो सार्थक प्रयास केंद्र एवं राज्य सरकार द्वारा होना चाहिए, वो अब तक दिखाई नहीं दे रहा है। हालांकि 10 नवंबर 2021 को केंद्र सरकार ने इनकी जयंती के दिन को जनजातीय गौरव दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की है। बिरसा मुंडा के नाम पर केंद्र सरकार और कई राज्यों की सरकारी योजना चला रही है।(विभूति फीचर्स)

संस्कृत शब्दानुशासन के  अन्तिम रचयिता  महापंडित, कलिकालसर्वज्ञ हेमचन्द्राचार्यजी* 

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*(संदीप सृजन -विनायक फीचर्स)*
विश्व के इतिहास में संस्कृत के मध्यकालीन रचनाकारों में प्रसिद्ध जैन आचार्य हेमचन्द्राचार्यजी का नाम विशेष महत्व रखता है। वे महापण्डित थे, काव्यशास्त्र के आचार्य थे, योगशास्त्र मर्मज्ञ थे और ‘कलिकालसर्वज्ञ’ जैसी महान उपाधि से अलंकृत थे। जैनधर्म और दर्शन के तो वे प्रकाण्ड विद्वान् थे ही अपने समय के महान टीकाकार भी थे। वे जहाँ एक तरफ विभिन्न शास्त्रों के पारंगत थे वहीं दूसरी अनेक भाषाओं के मर्मज्ञ भी थे। हेमचन्द्राचार्यजी आज भी विश्व के सर्वश्रेष्ठ व्याकरणकार एवं अनेक भाषाकोशकार माने जाते है। भारतीय चिंतन, साहित्य और साधना के क्षेत्र में उनका योगदान अत्यन्त महत्वपूर्ण है। हेमचन्द्राचार्यजी ने साहित्य, दर्शन, योग, व्याकरण, काव्यशास्त्र, वाङ्मय के सभी अंगों पर नवीन साहित्य की सृष्टि तथा नये पंथ को आलोकित किया। संस्कृत एवं प्राकृत पर उनका समान अधिकार था।
हेमचन्द्राचार्यजी का जन्म गुजरात में अहमदाबाद से 100 किलोमीटर दूर दक्षिण-पश्चिम स्थित धंधुका नगर में विक्रम संवत 1145 को कार्तिक पूर्णिमा की रात्रि में हुआ था। माता-पिता शिव पार्वती उपासक मोढ वंशीय वैश्य थे। पिता का नाम चाच और माता का नाम पाहिणी देवी था। बालक का नाम चंगदेव रखा। माता पाहिणी और मामा नेमिनाथ दोनों ही जैन धर्म के उपासक थे। चंगदेव जब गर्भ में थे तब माता ने आश्चर्यजनक स्वप्न देखे थे। इस पर जैनाचार्य देवचंद्रसूरी जी ने स्वप्न का विश्लेषण करते कहा कि सुलक्षण सम्पन्न पुत्र होगा जो दीक्षा लेगा और जैन सिद्धान्त का सर्वत्र प्रचार प्रसार करेगा।
बाल्यकाल से चंगदेव दीक्षा के लिये दृढ थे। खम्भात में जैन संघ की अनुमति से उदयन मंत्री के सहयोग से नौ वर्ष की आयु में दीक्षा संस्कार विक्रम सवंत 1154 में माघ शुक्ल चतुर्दशी शनिवार को हुआ और उनका नाम मुनि सोमचंद्र रखा गया। अल्पायु में शास्त्रों में तथा व्यावहारिक ज्ञान में निपुण हो गये। 21 वर्ष की अवस्था में समस्त शास्त्रों का मंथन कर ज्ञान वृद्धि की । नागपुर (महाराष्ट्र) के पास धनज ग्राम के एक वणिक ने विक्रम सवंत 1166 में सूरिपद प्रदान महोत्सव सम्पन्न किया। तब एक आश्चर्यजनक घटना घटी। मुनि सोमचन्द्र एक मिट्टी के ढेर पर बैठे थे। आचार्य देवचन्द्रसूरी जी ने अपने ज्ञान में देखा और कहा कि, “सोम जहाँ बैठेगा वहाँ हेम ही होगा” और वह मिट्टी का ढेर सोने में बदल चुका था। उस के बाद सोमचन्द्र, आचार्य हेमचन्द्रसूरीजी के नाम से जाने लगे।
आचार्य श्री ने साहित्य और समाज सेवा करना आरम्भ किया और पैदल विहार करते हुए अणहिलपुरपत्तन में पधारे। जिस मार्ग से आचार्य श्री ने प्रवेश किया उसी मार्ग पर सामने से महाराजा सिद्धराज जयसिंह की सवारी आ रही थी। जब सिद्धराज जयसिंह की नजर आचार्य हेमचन्द्रसूरीजी पर गयी तो वो आचार्य श्री को देखकर विस्मित हो गये और सहजभाव से उनके सामने नत मस्तक हो गये।उन्होंने आचार्य हेमचन्द्रसूरीजी को अपने राजभवन में पधारने की विनती की। आचार्य श्री भी शकुन देख कर धर्मप्रभावना जान कर राजसभा में राजा सिद्धराज जयसिंह को प्रतिबोध देने लगे। राजा सिद्धराज जयसिंह के अनुरोध पर योगानुयोग आचार्य हेमचन्द्रसूरीजी ने कश्मीर जाकर सरस्वती देवी की साधना की और देवी का साक्षात्कार प्राप्त कर देवी से आठ व्याकरण ग्रंथ प्रदान करने का निवेदन किया। देवी कृपा से आचार्य हेमचन्द्रसूरीजी व्याकरण ग्रंथ लेकर राजा सिद्धराज जयसिंह के दरबार में पहुंचे। जिसका नाम सिद्धहेम शब्दानुशासन दिया। राजा की प्रसन्नता का पार नहीं रहा। राजा ने उस ग्रंथ को हाथी पर रखवाकर नगर में भ्रमण करवाया था। यह महान ग्रंथ आज भी संस्कृत व्याकरण के प्रमुख ग्रंथों में माना जाता है।
आचार्य हेमचन्द्रसूरीजी की जितनी प्रगाढ़ता सिद्धराज जयसिंह से थी उससे भी अधिक घनिष्टता उनके सिंहासन पर बैठने वाले राजा कुमारपाल से रही। कुमारपाल अपने समय के दिग्विजयी महाराजा रहे। अठ्ठारह देशों में उनका शासन था। उनके शासन में मारना, काटना जैसे शब्दों का प्रयोग करना निषेध था। अहिंसा के क्षेत्र में आचार्य हेमचन्द्रसूरीजी की प्रेरणा से उन्होंने कई कार्य किए जो कि जैन ग्रंथों में विस्तार से पढ़े जा सकते है। महाराजा कुमारपाल ने अपने आत्मकल्याण के लिए आग्रह कर आचार्य हेमचन्द्रसूरीजी से एक ग्रंथ लिखने का अनुरोध किया तो आचार्य श्री ने योगशास्त्र ग्रंथ की रचना की थी।
आचार्य हेमचन्द्रसूरीजी द्वारा रचित ग्रंथों मे योगशास्त्र सर्वाधिक प्रसिद्ध ग्रंथ है। इसकी शैली पतंजलि के योगसूत्र के अनुसार ही है किन्तु विषय और वर्णन क्रम में मौलिकता एवं भिन्नता है। योगशास्त्र नीति विषयक उपदेशात्मक काव्य की कोटि में आता है। योगशास्त्र जैन संप्रदाय का धार्मिक एवं दार्शनिक ग्रंथ है। वह अध्यात्मोपनिषद् है। इसके अंतर्गत मदिरा दोष, मांस दोष, नवनीत भक्षण दोष, मधु दोष, उदुम्बर दोष, रात्रि भोजन दोष का वर्णन है। योगशास्त्र आज भी अत्यन्त उपादेय ग्रन्थ है। आचार्य हेमचन्द्रसूरीजी ने अपने योगशास्त्र से सभी को गृहस्थ जीवन में आत्मसाधना की प्रेरणा दी। पुरुषार्थ से दूर रहने वाले को पुरुषार्थ की प्रेरणा दी। इनका मूल मंत्र स्वावलंबन है। वीर और दृढ चित पुरुषों के लिये उनका धर्म है। आचार्य हेमचन्द्रसूरीजी के ग्रंथो ने संस्कृत एवं धार्मिक साहित्य में भक्ति के साथ श्रवण धर्म तथा साधना युक्त आचार धर्म का प्रचार किया। समाज में से निद्रालस्य को भगाकर जागृति उत्पन्न की। सात्विक जीवन से दीर्घायु पाने के उपाय बताये। सदाचार से आदर्श नागरिक निर्माण कर समाज को सुव्यवस्थित करने में आचर्य ने अपूर्व योगदान किया।
प्रसिद्ध विद्वान सोमेश्वर भट्ट की ‘कीर्ति कौमिदी’ में आचार्य हेमचन्द्रसूरी जी के बारे में कहा है कि “सदा हृदि वहेम श्री हेमसूरेः सरस्वतीम्।,सुवत्या शब्दरत्नानि ताम्रपर्णा जितायया ॥” आचार्य हेमचन्द्रसूरीजी ने तर्कशुद्ध, तर्कसिद्ध एवं भक्तियुक्त सरस वाणी के द्वारा ज्ञान चेतना का विकास किया और परमोच्च चोटी पर पहुंचा दिया। पुरानी जड़ता को जड़मूल से उखाड़कर फेंक दिया। आत्मविश्वास का संचार किया। आचार्य के ग्रंथो के कारण जैन धर्म गुजरात में दृढमूल हुआ। भारत में सर्वत्र, विशेषतः मध्य प्रदेश में, जैन धर्म के प्रचार एवं प्रसार में उनके ग्रंथों ने अभूतपूर्व योगदान किया। इस दृष्टि से जैन धर्म के साहित्य में आचार्य हेमचन्द्र के ग्रन्थों का स्थान अमूल्य है। अन्य ग्रंथों में काव्यानुशासन, छन्दानुशासन, सिद्धहेमशब्दानुशासन (प्राकृत और अपभ्रंश का ग्रन्थ), उणादिसूत्रवृत्ति, अनेकार्थ कोश, देशीनाममाला, अभिधानचिन्तामणि, द्वाश्रय महाकाव्य, काव्यानुप्रकाश, त्रिषष्ठिशलाकापुरुषचरित, परिशिष्ट-पर्वन, अलङ्कारचूडामणि, प्रमाणमीमांसा, वीतरागस्तोत्र आदि प्रसिद्ध है।
आचार्य हेमचन्द्रसूरीजी ने 84 वर्ष की अवस्था में अनशनपूर्वक अन्त्याराधन क्रिया आरम्भ की। विक्रम सवंत 1229  में महापंडितों की तरह समाधि मरण को प्राप्त किया।  आचार्य हेमचन्द्रसूरीजी को पाकर उस समय गुजरात अज्ञानता, धार्मिक रुढियों एवं अंधविश्वासों से मुक्त हो धर्म का महान केन्द्र बन गया था। अनुकूल परिस्थिति में कलिकाल सर्वज्ञ आचार्य हेमचन्द्रसूरीजी सर्वजनहिताय एवं सर्वापदेशाय पृथ्वी पर अवतरित हुए। 12 वीं शताब्दी में पाटलिपुत्र, कान्यकुब्ज, वल्लभी, उज्जयिनी, काशी इत्यादि समृद्धिशाली नगरों की उदात्त स्वर्णिम परम्परा में गुजरात के अणहिलपुर ने भी गौरवपूर्ण स्थान प्राप्त किया।
आचार्य हेमचन्द्रसूरीजी अद्वितीय विद्वान थे। साहित्य के सम्पूर्ण इतिहास में किसी दूसरे ग्रंथकार की इतनी अधिक और विविध विषयों की रचनाएं उपलब्ध नहीं है। व्याकरण शास्त्र के इतिहास में आचार्य हेमचन्द्रसूरीजी का नाम सुवर्णाक्षरों से लिखा जाता है। संस्कृत शब्दानुशासन के वे अन्तिम रचयिता हैं। इनके साथ उत्तर भारत में संस्कृत के उत्कृष्ट मौलिक ग्रन्थों का रचनाकाल समाप्त हो जाता है।(विनायक फीचर्स)

चुनाव प्रचार के दौरान जांच अधिकारी पर भड़के उद्धव ठाकरे

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शिवसेना (UBT) प्रमुख उद्धव ठाकरे के हेलिकॉप्टर की एक बार फिर चेंकिंग हुई है। 24 घंटे में दूसरी बार उद्धव ठाकरे के हेलिकॉप्टर की जांच हुई जिसके बाद उनका गुस्सा फूट पड़ा। उद्धव ने कहा कि बार-बार तलाशी लिया जाना गलत है। वहीं, इस मामले पर अब चुनाव आयोग की प्रतिक्रिया सामने आई है। चुनाव आयोग ने कहा है कि एजेंसियां SOP का पालन कर रही हैं और उसी के तहत उद्धव के हेलिकॉप्टर की चेकिंग की जा रही है।

दरअसल, चुनाव आयोग के ऑफिसर ने उद्धव ठाकरे के हेलिकॉप्टर की जांच की थी, जिसके बाद शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे भड़क गए थे। चुनाव आयोग के अधिकारियों ने यवतमाल जिले के वानी हेलीपैड पर उद्धव ठाकरे के बैग की जांच करने की मांग की थी। इसके बाद उद्धव नाराज हो गए और उन्होंने कर्मचारियों से सवाल करते हुए वीडियो रिकॉर्ड करना शुरू कर दिया था।

जांच अधिकारी पर भड़के उद्धव ठाकरे

वीडियो में वह जांच अधिकारी पर नाराजगी जाहिर करते हुए नजर आ रहे हैं। उद्धव सीधे तरीके से जांच कराने से मना नहीं किया, लेकिन उन्होंने अधिकारी से कहा कि इससे पहले कितने नेताओं के बैग चेक किए हैं। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि जांच अधिकारी को पीएम मोदी और अमित शाह का बैग भी चेक करना होगा और इसका वीडियो भी शेयर करना होगा।

उद्धव ठाकरे और जांच अधिकारी के बीच पूरी बातचीत

उद्धव ठाकरे – क्या नाम है आपका?

अधिकारी – मेरा नाम अमोल है

उद्धव ठाकरे – कहां के रहने वाले हैं?

अधिकारी – अमरावती का रहने वाला हूं

उद्धव ठाकरे – अमरावती का ठीक है..लेकिन अब तक किन-किन लोगों का अपने बैग चेक किया है? हां ठीक है मेरी बैग चेक कर रहे हो लेकिन मुझ से पहले किन नेताओं का बैग चेक किया?

अधिकारी – आपका ही पहले दौरा है

उद्धव ठाकरे – हां, ठीक है.. मेरा पहला दौरा है लेकिन किस राजनेता का बैग आपने चेक किया है अब तक?

अधिकारी – मुझे 4 महीने ही हुए हैं..

उद्धव ठाकरे – 4 महीने में आपने एक भी बैग नहीं चेक किया.. मैं ही पहले कस्टमर आपको मिला?

अधिकारी – नहीं साहब..ऐसी कोई बात नहीं है

उद्धव ठाकरे – नहीं आप मेरा बैग चेक करिए मैं आपको रुकूंगा नहीं। आप मेरा बैग चेक करते हुए बताओ कि क्या आपने अब तक मिंधे(एकनाथ शिंदे) का बैग चेक किया? क्या देवेंद्र फडणवीस, अजीत पवार, मोदी, अमित शाह का बैग चेक किया क्या?

अधिकारी – अब तक मौका नहीं मिला

उद्धव ठाकरे – जब वह आएंगे तो उनका बैग चेक करते हुए वीडियो आप मुझे भेजिए। मोदी की बैग चेक करते हुए आप लोगों का वीडियो मुझे चाहिए.. वहां आप अपनी पूछ मत झुका देना। यह वीडियो में रिलीज कर रहा हूं चेक करिए मेरा बैग। मेरा यूरिन पॉट भी चेक करिए। जो खोल कर देखना है देख लीजिए.. इसके बाद मैं आप लोगों को खोलूंगा। फ्यूल की टंकी चेक करना चाहेंगे ?

अधिकारी – नहीं साहब

उद्धव ठाकरे – मोदी और अमित शाह का बैग चेक करते हुए मुझे एक तो वीडियो चाहिए। इसके बाद वीडियो रिकॉर्डिंग कर रहे हैं व्यक्ति से उद्धव ठाकरे पूछते हैं – वीडियो वाले दादा आपका नाम क्या है? नाम बता.. मेरा नाम उद्धव ठाकरे है आपका नाम क्या है। बैग चेक करने के लिए भी अब महाराष्ट्र के बाहर से लोगों को लाया जा रहा है।

उद्धव ठाकरे ने कहा- जिंदगी में पहली बार मेरा बैग चेक हुआ

वाशिम की प्रचार सभा मे शिवसेना यूबीटी प्रमुख उद्धव ठाकरे ने कहा कि जिंदगी में पहली बार चुनाव में उनका भी बैग चेक किया गया। उन्होंने चेकिंग करने वाले कर्मियों से कहा क्यों आपने फड़नवीस, मिंधे, गुलाबी जैकेट, अमित शाह और मोदी का बैग कभी चेक किया। उनका बैग चेक करने की हिम्मत की कभी? हम लोकशाही को मानते है, इसलिए आप हमें कायदा दिखाते हो। मैं कायदा मानता हूं और मानूंगा ही।

गाय माता को राष्ट्र माता का दर्जा दिलाने की मांग हुई तेज

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जम्मू, 12 नवंबर (हि.स.)। गाय माता को राष्ट्र माता का दर्जा दिलाने, सशक्त कानून बनाने, और गौशालाओं के निर्माण की मांग को लेकर मूवमेंट कल्कि का धरना प्रदर्शन लगातार 23वें दिन भी जारी रहा। आंदोलनकारियों ने आम जनता से समर्थन का आह्वान करते हुए कहा कि अब समाज को जागरूक होकर इस पवित्र आंदोलन में सम्मिलित होना चाहिए।

इस अवसर पर मूवमेंट कल्कि के सदस्यों ने कहा गाय हमारी संस्कृति और सभ्यता का प्रतीक है। उसे राष्ट्र माता का सम्मान दिलाने के साथ-साथ उसे संरक्षित करने के लिए कठोर कानून बनाना अत्यंत आवश्यक है। हमारी मांग है कि सरकार इस विषय पर तुरंत ध्यान दे और गौ संरक्षण हेतु एक प्रभावी नीति का निर्माण करे। उन्होंने आगे कहा कि समाज के हर वर्ग को आगे आकर इस आंदोलन में सहयोग देना चाहिए ताकि हमारी पवित्र धरोहर सुरक्षित रह सके।

मूवमेंट कल्कि के सदस्य दिन-रात इस मुद्दे को लेकर अडिग हैं और उन्होंने प्रतिज्ञा की है कि जब तक उनकी मांगें पूरी नहीं होंगी, वे अपने आंदोलन को जारी रखेंगे। प्रदर्शनकारियों ने सरकार से मांग की है कि गौ संरक्षण के प्रति गंभीर कदम उठाए जाएं और गौशालाओं का निर्माण कर उन्हें सुरक्षित आश्रय प्रदान किया जाए।

थारपारकर गाय भारत की बेहतरीन दुधारू गायों में से एक है

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देशी चीजों के फायदों को देखते हुए लोगों में ऐसे सामानों के प्रति इंट्रेस्ट बढ़ रहा है. देशी सब्जी से लेकर देशी खाना और देशी जानवरों के उत्पाद जैसे देशी मुर्गी के अंडे से लेकर देशी गायों के दूध आदि की मांग काफी बढ़ी है. देशी गाय के दूध और उससे बने प्रोडक्ट की डिमांड बढ़ने से अचानक देसी गाय थारपारकर के दाम हजारों से लाखों में पहुंच गए हैं.

हाल ही में राजस्थान में भारत सरकार के केन्द्रीय पशु प्रजनन फार्म में थारपारकर नस्ल की गायों और बछियों की खुली बोली लगाने का कार्यक्रम 18 अक्टूबर 2024 को आयोजित किया गया था. इसमें थारपारकर गाय की नीलामी ने अब तक के सभी रिकॉर्ड तोड़ दिए. नीलामी में 85 किसानों और पशुपालकों ने रजिस्ट्रेशन कराया था. नीलामी में कुल 43 पशुओं को रखा गया था जिसमें थारपारकर गाय संख्या 8034 की सबसे बड़ी बोली लगी. इस गाय के लिए 9.25 लाख रुपये की बोली लगाई गई.

यह बोली महाराष्ट्र के सतारा जिले के निमसोड निवासी प्रगतिशील किसान और ब्रीडर पुष्कराज विठ्ठल ने लगाई थी. बाद में पुष्कराज ने इसे खरीद लिया. इसके बाद अन्य राज्यों में भी थारपारकर गाय के दाम एकदम से आसमान छूने लगे. सहारनपुर के रहने वाले किसान आदित्य त्यागी के पास कई थारपारकर गाय हैं. उनकी गायों के भी 5 लाख रुपये से अधिक दाम लगा चुके हैं.

थारपारकर गाय की खासियत
थारपारकर गाय भारत की बेहतरीन दुधारू गायों में से एक है. यह गाय थार रेगिस्तान से ली गई है इसलिए इसका नाम थारपारकर पड़ा. थारपारकर गाय भारत के अलावा पाकिस्तान से भी जुड़ी हुई है. यह गाय भारत के जोधपुर, जैसलमेर और कच्छ में सबसे पहले पाई गई थी. आजकल यह गाय भारत के लगभग सभी राज्यों में पाई जाती है. थारपारकर गाय को ग्रे सिंधी, वाइट सिंधी और थारी के नाम से भी जाना जाता है. इस गाय के दूध में कई बीमारियों से लड़ने की ताकत होती है. यह गाय बिना खाए पिए दो से तीन दिन तक आसानी से रह सकती है. किसी भी प्रकार का घास खा लेती है लेकिन दूध में फर्क नहीं पड़ता.

थारपारकर गाय के दाम बढ़ने से किसान खुश
किसान आदित्य त्यागी ने लोकल 18 से बात करते हुए बताया कि यह थारपारकर नस्ल की गए हैं और इन गायों को राजस्थान से एक बाड़मेर, एक जेसलमेर से लेकर आये थे. अब इन थारपारकर गायों की डिमांड बहुत ज्यादा बढ़ गई है. अभी हाल ही में सूरतगढ़ फार्म राजस्थान में इन गायों की नीलामी हुई है जबकि नीलामी में ए ग्रेड की गायों को नीलाम नहीं किया जाता. वहां सिर्फ डिफेक्टेड गायों को नीलाम किया जाता है. वहां पर सबसे ऊंची बोली थारपारकर गाय की 9 लाख 25 हजार रुपये लगी है. जबकि दूसरे नंबर पर थारपारकर 7 लाख 25 हजार रुपये में बिकी है.

किसान आदित्य त्यागी बताते हैं कि उनसे अच्छी नस्ल की गए उनके पास मौजूद है लेकिन इन गायों की डिमांड अब बहुत ज्यादा बढ़ गई है. कई लोगों के फोन भी आए हैं. यहां तक की 5 लाख रुपये तक उनकी गाय की कीमत लग चुकी है लेकिन अब थारपारकर गायों के दाम सोने के भाव हो गए हैं इसलिए वह उन गायों को अभी बेचना नहीं चाहते.

थारपारकर गाय 8 से 10 किलो दूध रोजाना देती है. इस थारपारकर गाय का दूध ₹100 लीटर से 150 रुपये लीटर बिकता है. आदित्य त्यागी बताते हैं कि इस थारपारकर गाय का बीमार आदमी को दूध पिलाने से वह जल्द स्वस्थ हो जाता है जिसका जीता जागता उदाहरण वह स्वयं हैं.

शिमला – कांगड़ा की गौशाला में दो साल में 1200 से ज्यादा गोवंश की मौत

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शिमला: देवभूमि हिमाचल के जिला कांगड़ा में एक गौशाला में दो साल के अंतराल में 1200 से ज्यादा गोवंश की मौत हो गयी थी. हाईकोर्ट में जनहित याचिका के माध्यम से जिला के शक्तिपीठ ज्वालामुखी के पास लुथाण गांव में स्थित गौशाला को अन्यत्र स्थानांतरित किये जाने की मांग उठाई थी. इसी याचिका पर हाईकोर्ट में सुनवाई चली हुई है.

कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति तरलोक सिंह चौहान और न्यायमूर्ति सत्येन वैद्य की खंडपीठ ने इस मामले में केंद्र और राज्य सरकार को आदेश दिए कि वह उनके द्वारा चलाए जा रहे गो अभयारण्य अथवा गोसदनों पर खर्च की गई राशि का विवरण पेश करे. कोर्ट ने खर्च की गई रकम और इसके उपयोग का सटीक विवरण दर्ज करने का आदेश दिया.

अदालत ने यह आदेश इस बात को देखते हुए जारी किए कि हिमाचल प्रदेश सरकार हिन्दू सार्वजनिक धार्मिक संस्थान और धर्मार्थ बंदोबस्ती अधिनियम, 1984 के तहत सरकार द्वारा अधिग्रहित मंदिरों में दान के रूप में एकत्रित की जा रही राशि का 15% इन गोशालाओं पर खर्च कर रही है. राज्य सरकार प्रदेश में बेची जा रही शराब की प्रत्येक बोतल पर भी काऊ सेस के रूप में ढाई प्रतिशत का उप-कर लगा रही है.

याचिका के तथ्य चौंकाने वाले

हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता द्वारा रखे गए तथ्यों को चौंकाने वाला बताया. इन तथ्यों को देखते हुए कोर्ट ने सचिव, जिला विधिक सेवा प्राधिकरण, कांगड़ा को आदेश दिए कि वह राधेश्याम गो अभयारण्य, ग्राम लुथान, पीओ सुधांगल, तहसील ज्वालामुखी, जिला कांगड़ा का दौरा करें और अभयारण्य की स्थिति के बारे में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करें और उसका निरीक्षण करने के बाद न केवल अपनी स्वतंत्र रिपोर्ट दाखिल करें बल्कि इस मामले में याचिकाकर्ता द्वारा प्रस्तुत किए गए तथ्यों पर अपना जवाब भी दाखिल करेंगे.

कोर्ट ने एसडीएम ज्वालामुखी को आदेश दिए कि वह अगली सुनवाई के दौरान कोर्ट में उपस्थित रहें और स्पष्ट करें कि उन्होंने किन परिस्थितियों में उक्त गौ अभ्यारण्य में ट्रैपिंग फोटोग्राफी और अन्य रिकॉर्डिंग पर प्रतिबंध लगाया गया है. कोर्ट ने राज्य सरकार से पूछा है कि गौ अभयारण्य के लिए फिलहाल कोई प्रबंधन समिति क्यों नहीं है और इस संबंध नियुक्ति के संबंध में क्या कदम उठाए जा रहे हैं.

राधा कृष्ण गौशाला लुथाण का मामला

उल्लेखनीय है कि प्रदेश सरकार ने हाईकोर्ट को बताया था कि राधे कृष्णा गौ अभ्यारण्य लुथाण जिला कांगड़ा में कोई अनियमितताएं नहीं बरती जा रही हैं. प्रतिवादियों ने प्रार्थी के आरोपों से इंकार किया था. हाईकोर्ट ने साढ़े 3 करोड़ रुपये की लागत से बनाए राधे कृष्णा गौ अभयारण्य लुथाण जिला कांगड़ा को बंद करने की मांग से जुड़े मामले पर सरकार को नोटिस जारी किए थे.प्रार्थी पवन कुमार ने मुख्य सचिव सहित पशुपालन विभाग के सचिव, वन सचिव, गौ सेवा आयोग बालूगंज के निदेशक, केंद्रीय पशुपालन विभाग के सचिव और एनिमल वेलफेयर बोर्ड को प्रतिवादी बनाया है. मामले में दिए तथ्यों के अनुसार 23 जनवरी 2019 को प्रदेश सरकार ने प्रदेश को आवारा पशु मुक्त करने के लिए प्रत्येक जिले में कम से कम एक पशु अभ्यारण्य स्थापित करने के बारे में दिशा निर्देश तय किए थे.

31 जुलाई 2020 को पशु विभाग अभयारण्य में पशुओं की देखरेख संबंधी एसओपी जारी किया. 7 अप्रैल 2021 को एक और एसओपी जारी कर गो सदनों की कार्यप्रणाली तय की. 20 जनवरी 2022 को सरकार ने ज्वाला जी जिला कांगड़ा के लुथाण में राधे कृष्णा गौ अभयारण्य स्थापित करने का निर्णय लिया. इसके बाद साढ़े 3 करोड़ रुपये की लागत से यह अभयारण्य स्थापित किया गया. दो सालों में वहां 1310 बेसहारा गायों को रखा गया और इन्ही दो वर्षो में 1200 गायें कुपोषण और बीमारी से मारी गईं. 19 अक्टूबर 2023 को एक ही दिन में 15 गायें कुप्रबंधन की वजह से मारी गई. प्रार्थी ने इस अभयारण्य को लुथान में बंद कर किसी अन्य उपयुक्त स्थान पर स्थापित करने के आदेशों की मांग की है.