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उत्तराखंड में गौवंश की जानकारी के लिए डैशबोर्ड और एप जल्द होंगे लाॅन्च

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देहरादून: उत्तराखंड की सड़कों पर घूम रहे निराश्रित गौवंशीय पशु मुसीबत बनते जा रहे हैं. कई बार इन पशुओं की वजह से सड़क हादसे भी हो रहे हैं, जिसमें लोगों के साथ ही गौवंश भी घायल हो जाते हैं. ऐसे में सड़कों पर मौजूद निराश्रित गौवंशीय पशुओं की समस्या से जनता को निजात दिलवाने को लेकर मुख्य सचिव राधा रतूड़ी ने विभागीय अधिकारियों के साथ बैठक की. उत्तराखंड एनिमल वेलफेयर बोर्ड की गौ सदनों के निर्माण से संबंधित हुई बैठक में सीएस रतूड़ी ने शहरी विकास विभाग की ओर से शहरी क्षेत्रों बनाए जा रहे 36 गौ सदनों के निर्माण कार्य को जल्द पूरा करने के निर्देश दिए.

उत्तराखंड में 26 गौ सदनों के लिए भूमि चिन्हित: वर्तमान समय में शहरी विकास विभाग की ओर से राज्य के 13 जिलों में 36 गौ सदनों के लिए भूमि चिन्हित कर ली गई है. इसमें से 13 गौ सदनों का निर्माण कार्य चल रहा है. बैठक के दौरान सीएस राधा रतूड़ी ने सचिव शहरी विकास विभाग को निर्देश दिए कि नगर पालिकाओं के जरिए हर महीने शहरी क्षेत्र में सड़कों पर घूम रहे निराश्रित गौवंशीय पशुओं की संख्या की समीक्षा की जाए. साथ ही इसकी मॉनिटरिंग और उन्हें गौ सदनों में भेजने के भी पुख्ता इंतजामात किए जाएं.

निराश्रित गौवंशीय पशुओं को गोद लेने पर दिए जा रहे रोजाना 80 रुपए: उत्तराखंड में निराश्रित गौवंशीय पशुओं को गोद लेने वालों को दिया जाने वाला मानदेय देशभर के अन्य राज्यों के मुकाबले ज्यादा है. प्रदेश में प्रति पशु के लिए रोजाना 80 रुपए दिए जा रहे हैं. मुख्य सचिव ने पंचायती राज विभाग को राज्य के ग्रामीण क्षेत्रों में स्थापित किए जाने वाले 26 गौ सदनों के निर्माण कार्य को भी जल्द शुरू करने के निर्देश दिए. इसके लिए विभाग को मिसिंग लिंक योजना के जरिए 10 करोड़ की धनराशि पहले ही जारी की जा चुकी है.

एप और डैशबोर्ड में रहेगी गौवंश की जानकारी: वहीं, पंचायती राज विभाग ने भूमि चिन्हीकरण का काम पूरा कर लिया है. बैठक के दौरान सीएस ने बेसहारा गौवंशीय पशुओं की समस्या के समाधान में आधुनिक तकनीक और आईटी का इस्तेमाल करने की बात कही. जिसके तहत राज्य के सभी गौवंशीय पशुओं की अनिवार्य रूप से जियो टैगिंग के साथ ही डैशबोर्ड और एप को जल्द लॉन्च किया जाए. सीएस ने एप और डैशबोर्ड में हर गौवंशीय पशु की आयु, चिकित्सा समेत अन्य जानकारी से संबंधित डाटा एनालिसिस के निर्देश दिए हैं.

उत्तराखंड में निराश्रित गौवंशीय पशुओं की संख्या: निर्माणाधीन और पहले से ही संचालित गौ सदनों के संचालन एवं रखरखाव की लगातार मॉनिटरिंग के लिए मुख्य सचिव ने अधिकारियों को सख्त हिदायत भी दी. साथ ही इस बाबत निर्देश दिए कि गौ सदनों में गौवंश के लिए चारा, भूसा, प्रकाश, चिकित्सा, सुरक्षा और दवाइयों की पर्याप्त व्यवस्था हो. इसके लिए गौ सदनों का समय-समय पर निरीक्षण भी किया जाए. निराश्रित पशुओं की देखभाल में गौ सेवक योजना काफी अहम है. लिहाजा, इसे विस्तार देने की जरूरत है. उत्तराखंड पशु कल्याण बोर्ड की मानें तो राज्य में निराश्रित गौवंशीय पशुओं की संख्या 20,887 है.

 

Chhattisgarh News: सीएम ने गौशालाओं को प्रति मवेशी दी जाने वाली अनुदान की राशि में की वृद्धि

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रायपुर: मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने गौशालाओं को प्रति मवेशी दी जाने वाली अनुदान की राशि में वृद्धि की है। सीएम साय ने इस अनुदान राशि को 25 रुपये से बढ़ाकर 35 रुपये करने की बात कही है। सीएम ने कहा- गौ माता के संरक्षण एवं संवर्धन के लिए छत्तीसगढ़ में जनजागरूकता अभियान चलाने की आवश्यकता है। मुख्यमंत्री सोमवार को राजधानी रायपुर के पंडित दीनदयाल उपाध्याय ऑडिटोरियम में छत्तीसगढ़ राज्य गौ सेवा आयोग के नव नियुक्त अध्यक्ष विशेषर सिंह पटेल के पदभार ग्रहण समारोह को संबोधित कर रहे थे।

मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने नई जिम्मेदारी मिलने पर छत्तीसगढ़ राज्य गौ सेवा आयोग के नव नियुक्त अध्यक्ष विशेषर पटेल को बधाई और शुभकामनाएं दीं। मुख्यमंत्री ने इस अवसर पर लगाए गए गौ-उत्पादों के स्टालों का अवलोकन भी किया।

बेमतरा के झालम में 50 एकड़ में बनी गौशाला

मुख्यमंत्री साय ने कहा कि गौ माता हमारी समृद्धि का प्रतीक है। ऐसा माना जाता है कि गौ माता में 33 कोटि देवी देवताओं का वास होता है। मुख्यमंत्री ने कहा कि गौ अभ्यारण्य को गौ-धाम कहना उचित होगा। राज्य सरकार द्वारा जगह जगह गौ -धाम बनाने का निर्णय किया गया है। बेमेतरा जिले के झालम में 50 एकड़ में गौ-धाम बनकर तैयार है, जल्द ही इसका उदघाटन किया जाएगा। इसी तरह कवर्धा जिले में 120 एकड़ में गौ-धाम बनाने का काम तेजी से चल रहा है।

मुख्यमंत्री साय ने कहा कि राज्य सरकार द्वारा प्रदेश में दुग्ध उत्पादन को बढ़ावा देने और छत्तीसगढ़ के देवभोग ब्रांड को मजबूत बनाने का काम किया जा रहा है। राज्य सरकार का प्रयास होगा कि गौ माता सुरक्षित रहें। गौ तस्करी और गौ हत्या पर पाबंदी लगाने के लिए सख्ती से कदम उठाए जा रहे हैं।

दोनों डेप्युटी सीएम ने किया संबोधित

उपमुख्यमंत्री अरूण साव ने कहा कि गौ -माता हमारी कृषि अर्थव्यवस्था का अभिन्न अंग हैं। इनके संरक्षण और संवर्धन के लिए आवश्यक है कि हम गौ -माता के लिए अपने घर में जगह बनाएं, गौ – पालन करें। वहीं, उपमुख्यमंत्री विजय शर्मा ने कहा कि प्रदेश में विष्णु का सुशासन है। पीएससी घोटाले और भ्रष्टाचार करने वालों के खिलाफ सख्त करवाई की जा रही है। राज्य सरकार गुजरात के अमूल की तर्ज पर पशुपालन को समाज और परिवार की आर्थिक तरक्की का जरिया बनाएगी।

पवन तिवारी 

नवभारत टाइम्स ऑनलाइन

दुनिया भर के टी20 हीरो आ रहे हैं अपना जलवा दिखाने’ 

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डेविड वार्नर, जेसन होल्डर के साथ आईएलटी20 सीज़न3 का अभियान
मुंबई (अनिल बेदाग): भारत की प्रमुख मीडिया एवं मनोरंजन कंपनी, ज़ी एंटरटेनमेंट एंटरप्राइजेज लिमिटेड ने 11 जनवरी, 2025 को शुरू हो रहे डीपी वर्ल्ड आईएलटी20 के तीसरे संस्करण के लिए बहुप्रतीक्षित मार्केटिंग अभियान का अनावरण किया। टीवीसी में दुबई कैपिटल्स के ऑस्ट्रेलियाई बल्लेबाज़ी स्टार डेविड वार्नर और अबू धाबी नाइट राइडर्स से वेस्टइंडीज के ऑलराउंडर जेसन होल्डर, प्रतिभाशाली अभिनेता देवेन भोजानी और आनंद तिवारी शामिल हैं, जो आईएलटी 20 का जादू बिखेरने करने के लिए इससे जुड़े हैं।
संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) की जीवंत पृष्ठभूमि वाले इस टीवीसी में वार्नर और होल्डर दिखते हैं, जिसमें आकर्षक दृश्य, हल्का-फुल्का हास्य और क्रिकेट का दमदार एक्शन है और इस तरह इस लीग के दौरान क्रिकेट प्रेमियों को होने वाले अनुभव और मनोरंजन प्रस्तुत किया गया है। ‘दुनिया भर के टी20 हीरो आ रहे हैं अपना जलवा दिखाने’ की टैगलाइन और #दिखाएंगेअपनाजलवा के सोशल मीडिया अभियान के साथ यह टीवीसी इस टूर्नामेंट के उत्साह को दर्शाता है और मशहूर खिलाड़ियों का सम्मान करता है। यह लीग अपनी वैश्विक प्रतिष्ठा और टी20 की प्रमुख क्रिकेट प्रतिभाओं की भागीदारी को एक मंच पर लाकर दर्शकों को सबसे मुश्किल क्रिकेट टूर्नामेंट में विजयी होने के लिए खिलाड़ियों को अपना पूरा दम लगाते हुए देखने का मौका देती है।
डेविड वार्नर, ऑस्ट्रेलियाई क्रिकेट स्टार ने इस विज्ञापन अभियान के बारे में कहा,”दुनिया की सबसे कड़ी प्रतिस्पर्धा वाली टी20 लीगों में से एक के लिए इस तरह के आकर्षक विज्ञापन अभियान का हिस्सा बनना बेहद सम्मान की बात है। यह अभियान प्रशंसकों को टूर्नामेंट देखने के लिए उत्साहित करने वाले रोमांचक अनुभव की झलक प्रदान करता है। पिछले सीज़न की तरह, हमें विश्वास है कि यह लीग दुनिया भर के क्रिकेट प्रेमियों के लिए एक अद्वितीय, इमर्सिव अनुभव प्रदान करेगी।”
जेसन होल्डर, वेस्टइंडीज के ऑलराउंडर ने कहा,“ऐसे रोमांचक विज्ञापन अभियान का हिस्सा बनना सौभाग्य की बात है जो क्रिकेट के लिए वैश्विक जुनून को एक मंच पर लाता है। टूर्नामेंट का नया संस्करण प्रशंसकों के लिए शानदार प्रतिस्पर्धा और यादगार पलों का वादा करता है और मैं इस मार्की टूर्नामेंट का हिस्सा बनकर उत्साहित हूं।”
श्री आशीष सहगल, मुख्य विकास अधिकारी, डिजिटल और ब्रॉडकास्ट रेवेन्यू विभाग, ज़ी एंटरटेनमेंट एंटरप्राइज लिमिटेड ने कहा,”हम इस अभियान के लॉन्च से बहुत खुश हैं, जो इस प्रमुख वैश्विक खेल आयोजन की पृष्ठभूमि के रूप में संयुक्त अरब अमीरात की सांस्कृतिक जीवंतता को उजागर करता है। डेविड वार्नर और जेसन होल्डर जैसे प्रसिद्ध क्रिकेटरों के साथ-साथ प्रतिभाशाली अभिनेता देवेन भोजानी और आनंद तिवारी को पेश कर हम अपने दर्शकों को विश्व स्तरीय मनोरंजन प्रदान करना चाहते हैं। टूर्नामेंट को दिखाने के लिए और अधिक चैनल पेश कर हमारा एक ऐसा नवोन्मेषी और इमर्सिव अनुभव तैयार करना चाहते हैं जो दुनिया भर के क्रिकेट प्रेमियों को पसंद आए।”

लोकसभा और राज्यसभा में संविधान पर होगी बहस

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नई दिल्‍ली: संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान लोकसभा और राज्‍यसभा में संविधान पर बहस होगी. इसे लेकर सभी पार्टियों ने अपनी सहमति जताई है. यह बहस लोकसभा में 13 और 14 दिसंबर को होगी जबकि राज्‍यसभा के लिए 16 और 17 दिसंबर का दिन निर्धारित किया गया है.

लोकसभा स्पीकर ने सभी दलों के नेताओं के साथ बैठक में यह प्रस्ताव विपक्ष के सामने रखा. इस पर सभी दलों के फ्लोर लीडर्स ने अपनी सहमति जताई है.

सड़क दुर्घटना में IPS अधिकारी की मौत

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नई दिल्ली:  कर्नाटक के हासन जिले में अपनी पहली तैनाती को लेकर कार्यभार संभालने जा रहे भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) के एक अधिकारी की दुर्घटना में मौत हो गई. पुलिस ने बताया कि कर्नाटक कैडर के 2023 बैच के आईपीएस अधिकारी हर्षवर्धन (26) मध्यप्रदेश के रहने वाले थे. पुलिस ने बताया कि दुर्घटना रविवार शाम को हुई. उन्होंने बताया कि हासन तालुक के किट्टाने के निकट पुलिस वाहन का टायर फट गया, जिसके बाद चालक ने नियंत्रण खो दिया और वाहन सड़क किनारे एक मकान और पेड़ से टकरा गया.

पुलिस के अनुसार, वर्धन होलेनरसीपुर में परिवीक्षाधीन सहायक पुलिस अधीक्षक के रूप में ड्यूटी पर रिपोर्ट करने के लिए हासन जा रहे थे.  पुलिस के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि वर्धन के सिर में गंभीर चोट आई और इलाज के दौरान अस्पताल में उनकी मौत हो गई, जबकि चालक मंजेगौड़ा को मामूली चोट आई.

पुलिस ने बताया कि आईपीएस अधिकारी ने हाल में मैसूर स्थित कर्नाटक पुलिस अकादमी में अपना चार सप्ताह का प्रशिक्षण पूरा किया था. उन्होंने बताया कि उनके पिता उप-मंडल अधिकारी हैं. कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धरमैया ने अधिकारी के परिवार के प्रति संवेदना व्यक्त की है.

उन्होंने सोशल मीडिया मंच ‘एक्स’ पर एक पोस्ट में कहा, ‘‘हासन-मैसूरु राजमार्ग के किट्टाने सीमा के पास एक भीषण दुर्घटना में प्रशिक्षु आईपीएस अधिकारी हर्षवर्धन की मौत के बारे में सुनकर दुख हुआ. यह बहुत दुखद है कि ऐसी दुर्घटना उस समय हुई जब वह आईपीएस अधिकारी के रूप में कार्यभार संभालने जा रहे थे. ऐसा तब नहीं होना चाहिए था जब वर्षों की कड़ी मेहनत रंग ला रही थी.” उन्होंने कहा, ‘‘मैं ईश्वर से प्रार्थना करता हूं कि हर्षवर्धन की आत्मा को शांति मिले। मृतक के परिवार के प्रति मेरी संवेदनाएं हैं.”

प्यार और आत्म-विकास पर योग गुरु बिजय आनंद का प्रेरक संदेश 

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मुंबई (अनिल बेदाग) : प्रसिद्ध अभिनेता और आध्यात्मिक योग गुरु बिजय आनंद ने एक बार फिर प्यार और आत्म-विकास पर अपने प्रेरक संदेश से दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया है। ऑन-स्क्रीन और ऑफ-स्क्रीन दोनों जगह सकारात्मकता और ज्ञान फैलाने के लिए जाने जाने वाले, बिजय का नवीनतम वीडियो सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रहा है।
क्लिप में, बिजय कई चेहरों के एक सामान्य संघर्ष को संबोधित करता हैः अकेले होने और प्यार पाने में असमर्थ होने की भावना। वह स्पष्ट रूप से बताते हैं कि कैसे सच्चा प्यार आत्म-प्रेम से शुरू होता है-किसी के शरीर, स्वास्थ्य और व्यक्तिगत विकास को स्वाभाविक रूप से पूर्ण संबंधों को आकर्षित करने के लिए। उनकी हार्दिक अंतर्दृष्टि न केवल उत्थानकारी है, बल्कि सशक्त भी है, जिससे उन्हें दुनिया भर में प्रशंसकों और अनुयायियों से व्यापक प्रशंसा मिली है।
अपनी शिक्षाओं के लिए बढ़ते वैश्विक दर्शकों के साथ, बिजय जीवन और आध्यात्मिकता पर परिवर्तनकारी सबक साझा करने के लिए सोशल मीडिया का उपयोग करना जारी रखते हैं। गहन सत्यों के साथ व्यावहारिक ज्ञान को मिलाने की उनकी क्षमता ने कई लोगों के लिए एक मार्गदर्शक शक्ति के रूप में उनकी जगह पक्की कर दी है।

चंद्रबाबू नायडू की सरकार का बड़ा फैसला- आंध्र प्रदेश में वक्फ बोर्ड को भंग किया

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Andhra Pradesh Waqf Board: देशभर में वक्फ बिल को लेकर छिड़ी बहस के बीच आंध्र प्रदेश में बड़ा फैसला लिया गया है। वक्फ बोर्ड को लेकर मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू के नेतृत्व वाली सरकार ने एक आदेश जारी किया है, जिसमें स्टेट वक्फ बोर्ड को भंग करने की घोषणा की गई है। पिछली वाईएसआरसीपी सरकार की ओर से वक्फ बोर्ड गठित हुआ था।

चंद्रबाबू नायडू सरकार ने पिछली सरकार के दौरान अल्पसंख्यक कल्याण विभाग की ओर से जारी जीओ-47 को रद्द करते हुए जीओ-75 जारी किया है। सरकार ने कहा कि आंध्र प्रदेश वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष के चुनाव पर हाईकोर्ट ने रोक लगा दी थी। उसी समय राज्य वक्फ बोर्ड के गठन के 2023 के सरकारी आदेश की संवैधानिकता को चुनौती देने वाले लंबित मुकदमों के कारण एक प्रशासनिक शून्यता पैदा हो गई थी। अधिसूचना में लिखा है- ‘अल्पसंख्यक कल्याण विभाग आंध्र प्रदेश राज्य वक्फ बोर्ड के गठन के लिए जारी G.O.Ms.No.47 को वापस लेता है।’

मोहम्मद फारूक ने बताई सरकार का प्रतिबद्धता

कानून एवं न्याय, अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री एन मोहम्मद फारूक के मुताबिक, नए आदेश जीओ-75 का उद्देश्य वक्फ बोर्ड में शासन संबंधी शून्यता को दूर करना है। वो इस बात पर जोर देते हैं कि सरकार अपने नए निर्देशों के तहत वक्फ संपत्तियों की सुरक्षा और अल्पसंख्यक कल्याण को बढ़ावा देने के लिए प्रतिबद्ध है।

आंध्रा में वक्फ बोर्ड भंग होने पर BJP क्या बोली?

आंध्र प्रदेश बीजेपी के उपाध्यक्ष विष्णु वर्धन रेड्डी लिखते हैं- ‘आंध्र प्रदेश सरकार ने भारत जैसे धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र में ऐसी संस्थाओं के लिए संवैधानिक प्रावधानों की कमी का हवाला देते हुए वक्फ बोर्ड को भंग कर दिया है। आंध्र प्रदेश अल्पसंख्यक कल्याण विभाग का नेतृत्व मंत्री एन मोहम्मद फारूक की ओर से किया जाता है। एनडीए सरकार से फारूक ने कहा कि अल्पसंख्यक कल्याण सुनिश्चित करना प्राथमिकता बनी हुई है।

आंध्र प्रदेश में एनडीए की सरकार

आंध्र प्रदेश में चंद्रबाबू नायडू के नेतृत्व में एनडीए की सरकार है। वर्तमान 16वीं आंध्र प्रदेश विधानसभा के लिए मई में चुनाव हुए। चुनाव परिणाम 4 जून 2024 को घोषित किए गए। नतीजों में एनडीए सरकार को प्रचंड बहुमत मिला। 175 विधानसभा सीटों में से चंद्रबाबू नायडू की पार्टी टीडीपी ने 135 सीटें जीतीं, जबकि सहयोगी जनसेना पार्टी को 21 और बीजेपी को 8 सीटों पर जीत मिली थी। इसके बाद चंद्रबाबू नायडू की अगुवाई में सरकार का गठन हुआ और पवन कल्याण राज्य के डिप्टी सीएम बने।

भोपाल की गैस दुर्घटना : प्रलय सा दृश्य* 

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(दिनेश चंद्र वर्मा – विनायक फीचर्स)
दो दिसम्बर 1984 की रात को भोपाल में एक कुहराम मच गया और ढाई हजार से ज्यादा जिंदगियां हमेशा के लिए खामोश हो गईं, सैकड़ों लोगों की आंखों के आगे अंधेरा छा गया। हजारों लोग बेसहारा हो गए। विश्व की सबसे बड़ी औद्योगिक प्रदूषण की इस घटना से संपूर्ण विश्व से एक कराह उठी यह कैसे और क्यों हुआ?
कयामत या प्रलय की कल्पना केवल धार्मिक किताबों में की गई है, पर भोपाल के किसी निवासी से आप यदि यह पूछें कि क्या उसने प्रलय या कयामत देखी है तो वह तपाक से उत्तर देगा, ‘‘हां, हमने 2 और 3 दिसम्बर की रात को झीलों के इस खूबसूरत शहर में प्रलय या कयामत होते देखी है।’’ इस प्रलय का असर आज भी इस खूबसूरत शहर पर दिखाई दे रहा है। हजारों लोग शहर छोडक़र भाग गए और भाग रहे हैं।
अधिकृत आंकड़े बताते हैं कि अब तक ढाई हजार लोग मारे जा चुके हैं, मेथिल आइसो साइएनेट नामक जहरीली गैस से दो लाख व्यक्ति प्रभावित हुए हैं। मगर भोपाल के लोग इस आंकड़े को सच पर परदा डालने की कोशिश बता रहे हैं, अनुमान है कि दुनिया की इस सबसे बड़ी गैस दुर्घटना में 10 से 12 हजार लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा है, अब भी हजारों लोग आंखों में जलन तथा सांस लेने में तकलीफ होने की शिकायत कर रहे हैं।
अस्पतालों में 3 दिसम्बर से मरीजों के आने का जो तांता लगा, वह अभी तक कायम है। लोग अपने घरों को लौटने में हिचक रहे हैं और अपने खुले घरों को छोडक़र सैकड़ों मील की दूरी पर स्थित अपने मित्रों और रिश्तेदारों के यहां पहुंच गए हैं।
भोपाल के आसपास के कस्बों और शहरों के अस्पताल गैस पीडित मरीजों से भरे पड़े हैं। जगह नहीं है, इसलिए अस्पतालों के बाहर शामियाने लगाकर इलाज हो रहा है। मरीज आगरा, झांसी और नागपुर तक के अस्पतालों में भर्ती हैं।
मौतें कितनी हुईं, यह कोई नहीं बता सकता। भोपाल के श्मशान और कब्रिस्तान छोटे पड़ गए। श्मशानों में सामूहिक दाह संस्कार हुआ। शहर काजी ने कब्रिस्तानों की पुरानी कब्रें खोद कर उनमें मुर्दे दफनाएं।
हजारों जानवर भी इस दुर्घटना में मारे गए। इन जानवरों को दफनाने के काम में भोपाल शहर नगर निगम पूरी तरह असफल रहा। ये जानवर भोपाल विदिशा मार्ग पर फेंके जा रहे हैं।
 *गैस के दूरगामी परिणाम*
वैसे डॉक्टर इस गैस के दूरगामी परिणामों को लेकर भी परेशान हैं। आशंका है कि गैस से प्रभावित लोगों को बाद में भी बीमारियां हो सकती हैं। भोपाल के निवासियों को खाने पीने तक का संकट हो गया है।
दुर्घटना के पांच दिन बाद  इस प्रदेश के मुख्यमंत्री तक यह बताने की स्थिति में नहीं थे कि हवा और पानी में गैस का जहरीला असर खत्म हो गया है या नहीं। भोपाल के नलों में जिस तालाब का पानी आता है उसमें सैकड़ों मछलियां मर रही थीं। हवा में गैस का असर महसूस हो रहा था। आंखों में हलकी जलन महसूस हो रही थी। सरकार का हर पुरजा अफवाहों से सावधान रहने की सीख दे रहा था। मगर सही हालत क्या है, यह बताने की स्थिति में कोई नहीं था।
मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह भी कुछ बताने की स्थिति में नहीं थे। वह हर दिन देशी-विदेशी पत्रकारों और कैमरामैनों से घिरे रहते थे और उनके प्रश्नों के गोलमोल उत्तर देते हुए नाराज हो जाते थे। मुख्यमंत्री बेचारे क्या करते? मध्यप्रदेश का प्रशासन ही पूरी तरह ठप हो गया था। उन्हें खुद यह नहीं मालूम था कि कहां क्या हो रहा है और उनसे प्रश्न पूछने वाले पत्रकारों में मध्य प्रदेश से बाहर के ही नहीं, बल्कि भारत से बाहर के पत्रकार भी होते थे।
 *हुआ क्या था?*
वह रविवार की ठंडी रात थी। भोपाल के निवासी हमेशा की तरह अपने बिस्तरों में दुबके पड़े थे। आधी रात के आसपास भोपाल के उत्तरी सिरे बैरसिया रोड पर स्थित कीटनाशक दवाइयों के कारखाने यूनियन कार्बाइड से जहरीली गैस मेथिल आइसो साइएनेट रिसनी शुरू हुई। धीरे धीरे यह गैस भोपाल शहर पर छा गई। गहरी नींद में सोए लोग जाग पड़े। उन्हें आंखों में जलन होने लगीं, सांस लेने में तकलीफ होने लगी, फिर आंखों से आंसू आने शुरू हो गए और खांसी भी आने लगी। इसके बाद सांस लेने में तकलीफ शुरू हुई और सैकड़ों लोग बिस्तर में ही तड़प तड़प कर कुत्तों की मौत मर गए।
और इसके साथ ही सारे शहर में हड़बड़ी और हाहाकार मच गया। लोग अपने घरों से निकले और सिर पर पैर रखकर भागे। ऐसा लगता था कि सारा शहर भाग रहा हो, लोग सडक़ों पर भाग रहे थे- बसों से, ट्रकों से, कारों से, आटो रिक्शाओं से, मोटर साइकिलों और स्कूटरों से, साइकिलों से, जिन्हें कुछ नहीं मिला, वे पैदल ही भाग रहे थे। कोई पीछे मुडक़र नहीं देख रहा था। कोई उस शहर में नहीं रहना चाहता था जहां उसने वर्षों गुजारे थे।
मगर भागने से भी लोगों की जानें नहीं बचीं, कुछ लोग भागते हुए मर गए और उनकी लाशें सडक़ों के किनारों तथा रेलवे स्टेशन पर पड़ी थी। जहां उन पर दिन भर मक्खियां भिनकती रही। कुछ लोग भागकर दूसरे शहरों में पहुंचे तो वहां मर गए।
सडक़ों पर लाशों पर ही नहीं, बल्कि दूसरी कई चीजों पर भी मक्खियां भिनभिना रही थी। सडक़ों पर उल्टियों के ढेर लगे थे। भोपाल एक श्मशान में तब्दील हो चुका था। आदमी ही नहीं पशुपक्षी, गाय, भैंस, बैल, बकरी, घोड़े और मुर्गों के अलावा अनेक जानवरों की लाशों से शहर अटा पड़ा था। यूनियन काबाईड के सामने की झुग्गी झोपडिय़ों की बस्ती जयप्रकाश नगर में सबसे ज्यादा लाशें पड़ी हुई थीं। लाशें इसलिए पड़ी रही, क्योंकि भापल से प्रशासन भी भाग चुका था।
कहा जाता है कि जब गैस रिसनी शुरू हुई थी यूनियन काबाईड के कर्मचारियों ने प्रशासन को सूचना दे दी थी। मगर प्रशासनिक अधिकारियों ने बजाए जनता को बचाने के अपनी और अपने परिवारों की जान बचाना बेहतर समझा। अधिकारी और राजनीतिबाज सरकारी गाडिय़ों में अपने परिवारों सहित बैठकर भाग गए और दूसरे दिन लौटे, तब तक शहर में लाशें सडक़ों पर बिखरी रहीं और नागरिक कीड़ों की तरह बिलबिलाते, बिलखते और तड़पते हुए अस्पतालों में अपनी जान बचाने की कोशिश करते रहे।
अस्पतालों में भी रेलमपेल मची हुई थी। अनेक डॉक्टर और कर्मचारी लापता थे। भीड़ को नियंत्रित करने के लिए पुलिस के दर्शन भी दुर्लभ हो गए थे। जब 3 दिसम्बर का सूरज उग रहा था, तब भोपाल के अस्पताल लाशों के ढेरों में तब्दील हो चुके थे।
 *मुख्यमंत्री की घोषणा*
मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह ने प्रशासन के ठप हो जाने और जिम्मेदार अधिकारियों के भाग जाने के संबंध में तो कुछ नहीं कहा है, पर अपने बारे में जरूर ऐलान किया है कि यदि कोई यह सिद्ध कर देगा कि 2 और 3 दिसम्बर की रात को वह भोपाल छोडक़र केरवा बांध स्थित अपने बंगले में भाग कर चले गए थे तो वह राजनीति से सन्यास ले लेंगे। मगर अर्जुन सिंह बजाए इतनी घोषणाएं करने एवं नाटक करने के सीधे सीधे यह क्यों नहीं बता रहे हैं कि वह उस रात को कहां थे? और यदि वह भागे नहीं थे तो क्या उनका प्रशासन इतना निकम्मा है कि अफसरों की फौज में से किसी ने भी उन्हें यह सूचना नहीं दी कि भोपाल में क्या हो रहा है? या उन्हें सूचना मिल गई थी, तो क्या वह भोपाल के रेलवे स्टेशन पर तैनात उन कर्मचारियों से गए बीते हो गए थे, जिन्होंने यात्रियों की जान बचाने के लिए अपने आप को बलि चढ़ा दिया था?
मध्यप्रदेश की जनता न्यायिक जांच आयोग से जानने की अपेक्षा उनसे ही सीधे सीधे यह जानना चाहती है कि वह उस रात कहां थे। उन्हें इस हादसे की सूचना कब मिली? यदि नहीं मिली तो इसका कारण क्या है? यदि मिल गई थी तो फिर उन्होंने अपने संवेदनशील प्रशासन को कैसे और कब सक्रिय किया?
इस घटना को लेकर अर्जुन सिंह और सरकार के प्रति आक्रोश, रोष और असंतोष से भोपाल के समाचार पत्र भरे पड़े हैं। स्वयं अर्जुन सिंह जब अस्पताल में लाशों को देखने गए तो शोक संतप्त लोगों ने उन पर फब्तियां कसीं और उन्हें भला बुरा कहा।
 *दुर्घटना कैसे हुई*
इस प्रलयकारी दुर्घटना की कहानी बड़ी पुरानी है। दुर्घटना के लिए यूनियन काबाईड के प्रबंधकों एवं सरकार की मिलीभगत, घनघोर लापरवाही, विशेषज्ञों का अभाव तथा सुरक्षा उपायों की अवहेलना जिम्मेदार है। इस कारखाने के कर्मचारियों ने इस पत्रकार को बताया कि गैस के टैंक में पानी चला जाना इस दुर्घटना का मुख्य कारण था। करीब 15 दिन पूर्व ही टैंक में गैस का दबाव बढ़ गया था। दबाव और तापमान बताने वाले मीटरों की सुइयां असामान्य स्थिति की सूचना दे रही थीं। दुर्घटना से तीन दिन पहले सेफ्टी वाल्व से गैस रिसनी शुरू हो गई थी, किंतु कर्मचारी और अधिकारी इसलिए बेफिक्र थे कि जब यह गैस कास्टिक सोडा के स्क्रबर से गुजरती है तो उसका जहरीला दबाव समाप्त हो जाता है।
2 दिसम्बर की शाम को गैस की टंकी की इस असामान्य स्थिति की जानकारी इस कारखाने के अधिकारियों को थी, उसी रात टैंक में कहीं और से अधिक पानी रिस गया।
गैस का यह टैंक जमीन में पड़ा हुआ था, वह इतना गरम हो गया था कि टैंक के ऊपर का सीमेंट का हिस्सा तडक़ गया था, तभी टैंक के एक वाल्व की डिस्क उछल गई और गैस चिमनी के रास्ते निकलने लगी। पर यदि सेफ्टी वाल्व की डिस्क नहीं हटती और गैस तेजी से निकलनी शुरू नहीं होती तो टैंक में भीषण विस्फोट होना निश्चित था और यदि यह विस्फोट होता तो भोपाल शहर एक खंडहर और वीरान शहर में तब्दील हो जाता।
टैंक के अंदर पानी कैसे चला गया। इस संबंध में बताया जाता है कि 2 दिसम्बर को मेथिल आइसों साइएनेट, कार्बन मोनो आक्साइड एवं फास्जीन जैसी जानलेवा गैसों के संयंत्र बंद थे, मगर ‘‘सेविन’’ नामक एक कीटनाशक दवा के उत्पादन की तैयारी के लिए बाहरी सतह की सफाई चल रही थी। इस सफाई में पानी का इस्तेमाल किया गया था। यही पानी मेथिल आइसो साइएनेट के भूमिगत टैंक में घुस गया। पानी के टैंक में जाते ही ‘‘हाइड्रोवर्मिक रिएक्शन’’ शुरू हो गया और टैंक में दबाव तथा तापमान बढऩे लगा।
यदि यह गैस केमिकल फिल्टर से निकलती तो भी इसका घातक प्रभाव नहीं रहता, मगर यह फिल्टर भी काम नहीं कर रहा था। इसलिए गैस सीधे ही हवा में जाने लगी। यह सब रात को 12 बजे शुरू हो गया था। अर्जुन सिंह के रिश्तेदार और भोपाल के कलेक्टर मोतीसिंह को इसकी जानकारी रात के दो बजे दे दी गई थी।
गैस जब रिसती है तो उसे निष्प्रभावी बनाने के लिए हाइड्रेंट नामक एक यंत्र का भी प्रयोग किया जाता है। हाइड्रेंट फव्वारे के समान होता है और इससे कास्टिक मिश्रित पानी छोड़ा जाता है। मगर उस रात कारखाने में पर्याप्त मात्रा में कास्टिक सोडा भी नहीं था।
अफसोस की एक बात यह भी है कि इस कारखाने में जहरीली गैसों का भरपूर उत्पादन और उपयोग होता है, किंतु गैसों के जहरीलेपन को रोकने वाले विशेषज्ञों का अभाव है, कारखाने में इस तरह के जो विशेषज्ञ थे वे लौटकर अमरीका चले गए।
कहा जाता है कि जिस गैस ने तबाही मचाई, वह मात्रा में पांच टन थी। अभी भी टैंक में गैस बाकी है। अनुमान है कि टैंक में 15 टन गैस अब भी है। इस गैस को कैसे नष्ट किया जाएगा, यह अभी तक स्पष्ट नहीं हो पाया है। डॉक्टर अभी तक यह तय नहीं कर पा रहे हैं कि गैस पीडितों को कौन सी दवा दी जाए और इस गैस के दूरगामी परिणाम क्या होंगे? एक चिंताजनक बात शव परीक्षाओं में यह पाई गई है कि जो लोग मारे गए उनके फेफड़े गलकर पानी हो गए थे। इस गैस का वनस्पतियों पर भी असर पड़ा है, पेड़ों के पत्ते काले पड़ गए हैं और उड़ गए हैं।
आशंका यह भी है कि भोपाल के तालाब में भी यह गैस मिश्रित हो गई है। भारी मात्रा में मछलियां मर रही हैं और भोपाल के निवासी इसी पानी को पीने के लिए मजबूर हैं।
 *पहली दुर्घटना नहीं*
यूनियन काबाईइड में होने वाली यह पहली दुर्घटना नहीं है, बल्कि इससे पहले भी कई दुर्घटनाएं हो चुकी हैं। इस कारखाने की स्थापना के लिए 31 अक्टूबर, 1975 को लाइसेंस जारी किया गया था, जिस जहरीली गैस ने यह तबाही मचाई उसका उत्पादन सन् 1980 में शुरू हुआ। 26 दिसम्बर, 1981 को गैस रिसने के कारण कारखाने के एक मजदूर मुहम्मद अशरफ की मृत्यु हो गई और तीन लोग बीमार हो गए। 9 फरवरी, 1982 को गैस रिसने से 24 लोग बीमार हुए। 5 अक्टूबर, 1982 को गैस के रिसने से आसपास की बस्ती में भगदड़ मच गई। सन् 1983 में भी इस तरह की दो दुर्घटनाएं हुई, मगर वे जानलेवा नहीं थी।
सन् 1981 में अशरफ की मौत की जांच के लिए राज्य सरकार ने एक समिति नियुक्त की थी। इस समिति ने अपनी रिपोर्ट में बताया था कि सुरक्षा उपायों की लापरवाही के कारण अशरफ की मौत हुई और भविष्य में यह लापरवाही और भी घातक हो सकती है।
मगर न तो कारखाने में सुरक्षा प्रबंध किए गए और न सरकार ने ये प्रबंध लागू कराने के कोई प्रयास किए। मध्यप्रदेश विधानसभा में भी यूनियन काबाईइड को लेकर कई बार चर्चाएं हुई थीं। 21 दिसम्बर 1982 को तत्कालीन श्रम मंत्री तारा सिंह वियोगी ने विधायक निर्भय सिंह पटेल, बाबूलाल गौर, पुरुषोत्तम राव विपट, रसूल अहमद सिद्दीकी और थावरचंद गहलोत के प्रश्नों और पूरक प्रश्नों के उत्तर में कहा था, ‘‘यूनियन काबाईड कारखाने में 25 करोड़ रुपए की लागत लगी है। यह कोई छोटा पत्थर तो नहीं है कि उसे उठाकर किसी दूसरी जगह पर रख दूं। ऐसा भी नहीं है कि भोपाल को इससे बहुत बड़ा खतरा पैदा हो गया है। ऐसी कोई संभावना भी नहीं है।’’ श्रम मंत्री ने यह भी कहा था कि वह स्वयं कारखाने को तीन बार देख आए हैं और कोई खतरा नहीं है।
भोपाल के एक पत्रकार राजकुमार केसवानी ने भी यूनियन काबाईड के खतरे के बारे में मुख्यमंत्री अर्जुुन सिंह को एक पत्र लिखा था। मगर मुख्यमंत्री ने इस पत्र का उत्तर देना भी उचित नहीं समझा। राजकुमार केसवानी का कहना है कि इस कारखाने के प्रति सरकारी लापरवाही का कारण यह है कि इसके प्रबंधकों के कई अफसरों और राजनीतिबाजों से करीबी रिश्ते हैं। यूनियन काबाईड के गेस्ट हाउस को अर्जुन सिंह के निजी उपयोग के लिए दिया जाता रहा है।
इंदिरा कांग्रेस के क्षेत्रीय अधिवेशन के समय मुख्यमंत्री के इस प्रिय गेस्ट हाउस में केंद्रीय मंत्रियों के ठहरने की व्यवस्था की गई थी।
 *रिश्ते और भी हैं*
प्रदेश के भूतपूर्व पुलिस महानिरीक्षक रामनारायण नागू को कारखाने की सुरक्षा का ठेका दिया गया है। निवर्तमान सिंचाई मंत्री दिग्विजय सिंह के भतीजे एक महत्वपूर्ण पद पर आसीन हैं। इसी तरह एक प्रशासनिक अधिकारी राजकुमार खन्ना के साले भी एक वरिष्ठ पद पर हैं।
 *सिर्फ बयानबाजी*
इस दुर्घटना के बाद मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह सिर्फ बयानबाजी ही कर रहे हैं। सुबह शाम वह राहत कार्य चलाने का ऐलान कर रहे हैं। मगर हालत यह है कि यदि भोपाल के नागरिक और समाजसेवी संस्थाएं सामने नहीं आतीं तो हजारों लोग भूख एवं प्यास से मर जाते। पीडितों को जो राहत धनराशि बांटी जा रही है, उसमें भी भारी भ्रष्टाचार हो रहा है। भोपाल के निवासी अब तक कोई आधा दर्जन बार मुख्यमंत्री के बंगले पर प्रदर्शन करके यह बता चुके हैं कि उनको जितनी धनराशि पर दस्तखत कराए गए हैं, उतनी धनराशि उन्हें नहीं मिली है।
मरीजों के भोजन के अलावा दवा का प्रबंध भी नागरिक एवं समाजसेवी संस्थाएं कर रही थीं। प्रशासन तो भाषण एवं वक्तव्य पिलाकर अपना कर्तव्य निभा रहा है।
मुख्यमंत्री ने मुआवजे के लिए यूनियन काबाईड पर मुकदमा चलाने की भी घोषणा की है। मगर इसमें संदेह है क्योंकि अर्जुनसिंह इस तरह की घोषणाएं करके उन्हें भूल जाने के आदी हैं।
वैसे इतनी अधिक मौैतों के लिए अर्जुनसिंह की एक घोषणा भी जिम्मेदार है। जनता पार्टी के शासन काल में इस कारखाने के आसपास की बस्तियां खाली कराने का निर्णय लिया गया था। पर तभी इंदिरा कांग्रेस की सरकार आ गई। बाद में अर्जुनसिंह ने जब झुग्गी झोपडिय़ों को मालिकाना हक देने की घोषणा की तो आसपास की एकएक इंच जमीन आबाद हो गई।
अब इस गैस दुर्घटना में मरने
वालों में सर्वाधिक संख्या उन लोगों की है, जो आसपास की झुग्गी झोपडिय़ों में रहते थे। अब ये झोंपडियां वीरान पड़ी हुई हैं। हां, उन पर इंदिरा कांग्रेस के झंडे अवश्य लहरा रहे हैं।
इसी तरह एक नाटक इस कारखाने के अमरीकी अध्यक्ष वारेन एंडरसन की गिरफ्तारी को लेकर हुआ। उन्हें गिरफ्तार कर के मुख्यमंत्री ने एक शानदार शब्दों वाला वक्तव्य जारी किया। मगर छ: घंटे बाद ही वारेन एंडरसन को न केवल रिहा कर दिया गया, बल्कि उन्हें सरकारी विमान से नई दिल्ली पहुंचा दिया गया।
 *औद्योगीकरण की अंधी दौड़*
मध्यप्रदेश में औद्योगीकरण की अंधी दौड़ चल रही है। इस प्रदेश में प्रदूषण रोकने के लिए एक लंबा चौड़ा विभाग भी है, मगर दर्जनों कारखाने प्रदूषण फैला रहे हैं और अब तक इन कारखानों के विषैले पानी और पैसों से सैकड़ों लोग मर चुके हैं। नागदा के दो कारखानों के बारे में इस तरह की शिकायतें गत कई वर्षों से मिल रही हैं। इसी तरह मध्यप्रदेश में दर्जनों कीटनाशक दवाइयों के कारखाने भी शहरों के बीच चल रहे हैं।
भोपाल में प्रशासन सिर्फ एक ही काम कर रहा है कि जैसे भी हो मरने वालों की संख्या कम से कम बताई जाए। इस दृष्टि से पुलिस का पूरा अमला अस्पतालों और घरों से लाशें निकालकर उन्हें ठिकाने लगाने के काम में लगा हुआ है, ये लाशें श्मशानों और कब्रिस्तानों के अलावा नर्मदा नदी में भी ले जाकर फेंके जाने की खबरें सरगर्म हैं।
इस स्थिति का चोरों ने भी लाभ उठाया है। वीरान घरों में चोरियां हो रही हैं। जो थोड़े बहुत लोग लौटे हैं उनमें से कई के यहां चोरियां हुई हैं। पुलिस को रिपोर्ट दर्ज करने की फुरसत नहीं है।
 *लापता लोगों की खोज*
इस घटना के बाद सैकड़ों लोग लापता हैं। मध्यप्रदेश युवक इंदिरा कांग्रेस के अध्यक्ष सुरेश पचौरी ने इस पत्रकार से कहा कि उनके कार्यकर्ता लापता लोगों का पता लगाने के काम में जुट गए हैं और उन्हें इसमें सफलता भी मिली है।
दुर्घटना में अनाथ बच्चों के पुनर्वास का काम भारत स्काउट एवं गाइड ने शुरू किया है। इस संगठन के दो पदाधिकारी विष्णु राजौरिया एवं डी.एस. राघव ने बताया कि अनाथ बच्चों के पुनर्वास के लिए उनके संगठन के दो शिविर चल रहे हैं।
 *पूरे परिवार ही उजड़ गए*
भोपाल की भयानक गैस दुर्घटना में कई पूरे के पूरे परिवार उजड़ गए हैं ऐसा ही एक परिवार भगवानसिंह का है। 50 वर्षीय भगवान सिंह मेहनत मजदूरी करके पेट पालता था। इस दुर्घटना में उसकी पत्नी तथा तीनों पुत्रियां मारे गए। सारे परिवार में वही अकेला बचा है, पर वह भी अंधा हो गया है। 5 दिसम्बर तक वह अपने घर पर अकेला ही भूखा प्यासा पड़ा रहा। किसी ने न पूछा और न किसी प्रकार की सहायता दी। पर यह कहानी सिर्फ भगवान सिंह की ही कहानी नहीं है, बल्कि उन सैकड़ों लोगों की कहानी है, जिन्हें राहत नहीं मिल सकी। प्रधानमंत्री श्री राजीव गांधी जब भोपाल पहुंचे तो उन्होंने देखा कि कुछ लोग राहत के लिए चंदा इकट्ठा कर रहे हैं। प्रधानमंत्री ने कहा कि राहत कार्यों के लिए सरकार पर्याप्त धन दे रही है, तब आप लोग क्यों चंदा इकट्ठा कर रहे हैं?चंदा इकट्ठा करने वालों का उत्तर था कि सरकारी राहत जब मिलेगी, तब तक हजारों लोग भूख से मर चुके होंगे।
(विनायक फीचर्स) *(यह लेख वरिष्ठ पत्रकार एवं विनायक फीचर्स के संस्थापक स्वर्गीय श्री दिनेश चंद्र वर्मा ने भोपाल की भीषणतम औद्योगिक दुर्घटना गैस त्रासदी के समय लिखा था।)*

गौ पालन विभाग की ओर से गोशालाओं में दी जाएगी गौ काष्ठ बनाने की मशीन

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राजीव दवेपौधे धरती का श्रृंगार है। पेड़-पौधों से ही प्राण वायु ऑक्सीजन मिलती है। उनको काटने से पर्यावरण पर संकट गहरा रहा है। पौधों की कटाई लकड़ी के लिए होती है। इस समस्या का समाधान खोजा गया है। गोशालाओं में गोबर से लकड़ी (गौ काष्ठ) बनाई जाएगी। यह लकड़ी गाय के पवित्र माने जाने वाले गोबर से बनी होने के कारण अंत्येष्टि, पूजन और अन्य कार्यों में उपयोग होगी। खास बात यह है कि इस गौ काष्ठ को तैयार करने में ज्यादा समय नहीं लगता है। गोबर से बनी लकड़ी साधारण लकड़ी की तुलना में सस्ती और कम धुआं छोड़ने वाली होगी। इससे पर्यावरण को भी कोई नुकसान नहीं होगा। यह लकड़ी बनाने के लिए गोपाल विभाग की ओर से 600 से अधिक मवेशी वाली प्रदेश की गोशालाओं को अनुदान पर मशीन उपलब्ध करवाई जाएगी।

ऐसे बनती है गौ काष्ठ

गौ काष्ठ बनाने के लिए गोबर को मशीन में डाल दिया जाता है। इसके बाद 4 से 5 फीट लंबी लकड़ी बन कर निकल आती है। उसे सूखा दिया जाता है। एक अनुमान के मुताबिक 1 क्विंटल गोबर से 1 क्विंटल गौ काष्ठ बनाई जा सकती है। मशीनों से 1 दिन में करीब 10 क्विंटल गोबर की गौ काष्ठ बनाई जा सकती है।

इन कार्यों में हो सकता है उपयोग

गौ काष्ठ का उपयोग श्मशान में अंतिम संस्कार के लिए किया जा सकता है। इसके साथ ही होलिका दहन, यज्ञ जैसे धार्मिक आयोजनों सहित फैक्ट्री व रेस्टोरेंट आदि में किया जा सकता है। गांव में गौ काष्ठ का उपयोग कंडों की जगह खाना बनाने में किया जा सकता है। इससे ज्यादा धुआं नहीं निकलता।

कई राज्यों में पहले से बन रही

प्रदेश की गोशालाओं के लिए गौ काष्ठ बनाना नया है, लेकिन देश के कई राज्यों में यह पहले से बनाई जा रही है। मध्यप्रदेश व छत्तीसगढ़ जैसे राज्य में कई किसान, पशुपालक, गोशालाएं गौ काष्ठ बना रहे है। प्रदेश में गौ काष्ठ की अनुमानित लागत करीब 8 रुपए प्रति किलोग्राम होगी।

इनका कहना है

पाली की 27 गोशाला में 600 या उससे अधिक मवेशी है। वहां गौ काष्ठ बनाने की मशीन लगाई जा सकती है। गौ काष्ठ का उपयोग धार्मिक रूप से करने के साथ श्मशान में अंतयेष्टी के लिए और उद्योगों में भी किया जा सकता है। इससे पर्यावरण संरक्षण होगा।

डॉ. मनोज पंवार, संयुक्त निदेशक, पशुपालन विभाग, पाली

प्रियंका गांधी की जीत पर वायनाड में हुई गाय की हत्या – रामभद्राचार्य

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Rambhadracharya On Congress: मध्यप्रदेश के छतरपुर जिले के बागेश्वर धाम के संत धीरेन्द्र शास्त्री की ओर से आयोजित हिंदू एकता पदयात्रा का समापन समारोह शुक्रवार (29 नवंबर,2024) को ओरछा में संपन्न हुआ. इस दौरान प्रसिद्ध संत रामभद्राचार्य ने अपने संबोधन में कांग्रेस और प्रियंका गांधी पर जमकर हमला बोला. उन्होंने अपने संबोधन में हिंदू एकता, तुष्टिकरण की राजनीति और धार्मिक अस्मिता से जुड़े मुद्दों पर खुलकर अपनी बता कही.

संत रामभद्राचार्य ने अपने भाषण में कांग्रेस पार्टी और प्रियंका गांधी पर निशाना साधते हुए गंभीर आरोप लगाए. उन्होंने कहा “पंजा खूनी हो गया है, प्रियंका गांधी के वायनाड से चुनाव जीतने के बाद उनके सम्मान में निर्दोष गाय को गोली मार दी गई. जो लोग अहिंसा की दुहाई देते हैं, उनके शासन में ऐसा होता है.”

संत रामभद्राचार्य ने इस घटना को हिंदू संस्कृति और धार्मिक मान्यताओं के खिलाफ बताया. उन्होंने कांग्रेस पर हिंदुओं की उपेक्षा और तुष्टिकरण की राजनीति करने का भी आरोप लगाया है.वहीं, हिंदू एकता को समय की मांग बताते हुए कहा कि यह पदयात्रा केवल शुरुआत है. उन्होंने इसे धार्मिक और सांस्कृतिक पुनर्जागरण की दिशा में एक बड़ा कदम बताया है.

‘जो मंदिरों पर दावा करेंगे उन्हें मिलेगा जवाब’
उन्होंने कहा “जो हिंदू हित की बात करेगा, वही भारत पर राज करेगा, अब हिंदू को न तो बांटना है और न ही काटना, जो हमारे मंदिरों पर दावा करेंगे, उन्हें जवाब मिलेगा. हिंदू एकता के इस आंदोलन को बटवृक्ष की तरह इतना बड़ा बनाया जाएगा कि हर समुदाय और व्यक्ति को इस पर विचार करना पड़ेगा”.

तुष्टिकरण की राजनीति का विरोध
संत रामभद्राचार्य ने तुष्टिकरण की राजनीति की कड़ी आलोचना करते हुए आरोप लगाया कि कुछ राजनीतिक दल धर्मनिरपेक्षता के नाम पर हिंदू धर्म और उससे जुड़े प्रतीकों को अपमानित करते हैं. उन्होंने कहा कि गाय, गंगा और भारत माता को गाली देने वाले कभी हमारे हो ही नहीं सकते. तुष्टिकरण की यह राजनीति अब बंद होनी चाहिए.

नए नारों की शुरुआत
अपने संबोधन में उन्होंने “ओम शांति” की जगह “ओम क्रांति” का नारा देने की बात कही. उनका कहना था कि हिंदुओं को अब शांत रहने के बजाय अपने अधिकारों और अस्मिता के लिए खड़ा होना चाहिए.”अब ‘ओम शांति’ नहीं, ‘ओम क्रांति’ का समय है. जो हिंदू एकता को तोड़ने की कोशिश करेगा, उसे सबक सिखाया जाएगा.”

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