20 जुलाई 2022, बड़वानी । गौ आधारित खेती से लागत हुई आधी – अंग्रेजी दवाइयों के सेवन से मनुष्य की प्रवृत्ति उसके अधीन हो गई जबकि देसी आयुर्वेदिक दवाइयों के उपयोग से मनुष्य को कम बीमारियों का सामना करना पड़ता है। ऐसी ही स्थिति आज खेती की हो गई, यह कहना है ग्राम मंडवाड़ के प्रगतिशील कृषक श्री बाबूलाल काग का। वह अपनी 40 एकड़ भूमि पर गौ आधारित खेती (पशुओं से प्राप्त गोमूत्र गोबर का उपयोग) करते हैं। 60 वर्षीय सातवीं तक शिक्षित श्री काग 15 वर्ष की आयु से खेती कर रहे हैं।

आपने पिछले 3 वर्षों से गौ आधारित खेती अपनाई। श्री काग कहते हैं कि जब तक रसायनिक उर्वरकों का उपयोग करते थे खेती घाटे का सौदा रही,जब से पशुओं के साथ खेती करना प्रारंभ की, तब से खेती हमारे लिए फायदे का सौदा बन गई है। इनके खेतों पर अधिकतर अंतरवर्तीय फसल देखी जा सकती है। जिसमें गन्ने के साथ हल्दी, पपीता, गेहूं अन्य फसलें लगाते हैं। 4 एकड़ में अमरूद के 1500 वृक्ष 1 साल में चार लाख की आमदनी देते हैं इन वृक्षों के बीच भी फसल लगाई जाती है। हल्दी, मेथी दाना, गन्ना फसलों की अच्छी गुणवत्ता होने से गांव से ही आसानी से विक्रय हो जाती है। 35 पशुओं की गौशाला के साथ गौ आधारित खेती करने में उपज की गुणवत्ता बढ़ी साथ ही खर्चों में कटौती भी हुई है। अन्य जानकारी कृषक श्री काग के मो.: 9893988639 पर ले सकते हैं।

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