आर.सूर्य कुमारी-

युग-युग बीतते चले जाते हैं, मगर धर्माभियान कभी नहीं जाता। यह धर्माभियान कभी हिंदू या आर्य धर्म के बैनर तले
चला। कभी ईसाई धर्म के बैनल तले चला तो कभी इस्लाम धर्म के बेनर तले।
आर्य धर्म विश्व का सबसे पुरातन धर्म है। इसकी सभ्यता संस्कृति सबसे पुरानी है और इस पुरातन धर्म की आत्मा में
इतनी शक्ति है कि यह पूरे विश्व के धर्मों को ललकार सकता है, अपने पितृत्व का दावा कर सकता है।

सिक्ख, बौद्ध, जैन जैसे धर्म खुद को एक स्वतंत्र धर्म मानते हैं, तो यह उनकी भ्रान्ति है। इतिहास की धारा में गोते
लगाने की क्षमता का अभाव है, लेकिन सच्चाई तो यह है कि सिख, बौद्ध व जैन धर्म, हिंदू धर्म को मजबूत करने व
उसमें नए प्राणों का संचार करने के क्रम में ही सामने आए, मगर बदलती पीढिय़ों के नैतिक सोच के अभाव में ये बने
अल्पसंख्यक।

सिर्फ हिंदू धर्म से विघटित होकर स्वयंभू धर्म घोषित होने के बाद भी इतना सही है कि तमाम हिंदू धर्म के अंगों में
बहुत हद तक समान सभ्यता व संस्कृति है। नामकरण, स्वागत-परम्परा विवाह-प्रथा इन सबमें बहुत हद तक
समानता स्पष्ट दृष्टि गोचर है।

हिन्दुत्व ने कभी भी कोड़ा तलवार या मुंह मीठी छुरी बनकर अपने धर्म का प्रचार नहीं किया। भारत क्या विश्व भर के
इतिहासकार व विद्वान हिंदुत्व को विश्व धर्म का प्रणेता कहने में हिचक नहीं करते।

आज अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर जो इस्लामिक आतंकवाद हैं, धर्म के अंधे प्रचार-प्रसार के लिए इस तरह गैर मुसलमानों
को जमीन पर ढहा रहे हैं कि मानों तूफान में तबाही का मंजर हो। यह आतंकवाद सुनामी व हुदहुद को भी पीछे छोड़ता
चला जा रहा है। उनके सामने अल्लाह, जन्नत, जहन्नुम कोई भी अवधारणा, काम नहीं करती। बस एक ही
अवधारणा काम करती है विश्व का इस्लामीकरण हो जाए। ऐसा करके पता नहीं कि वे किस अभीष्ट की सिद्धि कर
रहे हैं। पूरे विश्व में आतंकी मुसलमानों ने भयंकर रक्तपात शुरू कर दिया है। इसका कोई अंत नजर नहीं आ रहा है।
विचारणीय प्रश्न है कि वे इंसानों की हत्या कर किस इंसानियत की रक्षा करने जा रहे हैं? अल्लाह की धारणा मन में
बैठाकर जो कर्म कर रहे हैं, वह कभी माफी योग्य नहीं होता। अल्लाह की इबादत करो तो सभी मजहबों का सम्मान
करो।
ईसाईयों के पास मार-काट के लिए तलवार नहीं है, मगर मुंह में शहद भरा रहता है, जब मुंह से बोली निकलती है तो
सीधे सामने वाले के मन से होते हुए अन्तर्मन तक पहुंच जाती है और सामने वाले की बोली निष्पक्ष या यथार्थ नहीं
होती वह वैसे मुंहों से निकलती है जो बिना हथियार के ही जंग जीत लेती है। नाटकीय अंदाज में सभाएं करना व भोली-
भाली जनता को बहलाना-फुसलाना, रोटी-कपड़ा-मकान-नौकरी का लालच देना ये ईसाई पादरियों के हथकंडे होते हैं।
यहां भी वही स्वर्ग नर्क, युद्ध-कर्म, अशुद्ध कर्म, मानवता इसे उनका कोई मतलब नहीं होता। कुल मिलाकर पता
नहीं चलता कि पूरे विश्व व भारत को ईसाई बनाकर वे क्या हासिल कर लेंगे?

सच पूछा जाए तो आर्यत्व और हिंदुत्व में जबरदस्त शक्ति है, मगर हिंदुत्व मानवता का पालन करता है सर्वधर्म
समभाव का द्योतक है। सामाजिक व धार्मिक समरसता में विश्वास करता है। और एक बात हिन्दुत्व ने जितने
उथल-पुथल देखे धर्मिक क्रांतियां व घटनाएं देखी किसी दूसरे धर्म ने नहीं। हिन्दुत्व पूरे विश्व के सभी धर्मों का अग्रदूत
है इसलिए उसमें पितृत्व है उसकी आत्मा में ममत्व है और इसी आत्मीयता को कमजोरी मानकर अन्य धर्म गलत
मानसिकता बनाए तो इतिहास कभी माफ नहीं करेगा। (विभूति फीचर्स)

Previous articleस्वास्थ्य  – महिलाओं की आम समस्या में से एक है – श्वेतप्रदर
Next articleभारत और बांग्लादेश के बीच व्यापार पर संयुक्त कार्य समूह की 15वीं बैठक

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here