Gopashtami 2022: भोपाल, 29 अक्टूबर। मध्यप्रदेश गौ-संवर्द्धन बोर्ड कार्य परिषद के अध्यक्ष स्वामी अखिलेश्वरानंद गिरि ने प्रदेश की सभी गौ-शाला संचालकों को आगामी गोपाष्टमी-एक नवम्बर को गौ-शालाओं में गौ-पूजन कार्यक्रम करने के निर्देश दिये हैं। उन्होंने कहा है कि कार्यक्रम में गौ-भक्तों और पशु प्रेमियों को आमंत्रित कर गौ-पूजन में सम्मिलित करें। पूजन के बाद गाय के महत्व पर केन्द्रित संगोष्ठियाँ की जाये। संगोष्ठियों में अनुभवी गौ-सेवकों, गौ-पालकों और विद्वज्जनों को आमंत्रित करें।

अपील

महामंडलेश्वर स्वामी अखिलेश्वरानंद गिरि ने प्रदेश के गौ-पालकों, गौ-भक्तों और गौ-प्रेमियों से अपील की है कि गोपाष्टमी पर अधिक से अधिक संख्या में अपनी निकटतम गौ-शाला पहुंच कर गौ-पूजन में शामिल हों। गायों और बछड़े-बछियों को गौ-ग्रास अर्पित करें। उन्होंने गौ-भक्तों से आग्रह किया कि यदि उनके घर में नन्हें बालक-बालिकाएं हैं, तो उनको भी अपने साथ गौ-शाला ले जाएं और उनमें गौ-संरक्षण के संस्कार रोपित करें। गायों को हरी घास, गुड़-रोटी, भीगी चने की दाल आदि खिलाएँ। गौ-ग्रास के निमित्त दान राशि भी गौ-शालाओं में दें।

गोपाष्टमी, जानिए इसकी सही तिथि, पूजा विधि और गौ पूजन का महत्व

कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी को गोपाष्टमी का पर्व मनाया जाता है। जैसा कि नाम से मालूम होता है कि ये गाय की पूजा और प्रार्थना करने के लिए समर्पित एक पर्व है। इस दिन गौ माता की पूजा की जाती है। द्वापर युग से चला आ रहा ये पर्व इस बार 1 नवंबर 2022 मंगलवार को मनाया जाएगा। मान्यता है कि कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा से लेकर सप्तमी तक भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी उंगली पर गोवर्धन पर्वत धारण किया था। आठवें दिन इंद्र अपना अहंकार और गुस्सा त्यागकर श्रीकृष्ण के पास क्षमा मांगने आए थे। तभी से कार्तिक शुक्ल अष्टमी को गोपाष्टमी का उत्सव मनाया जा रहा है। गाय को हमारी संस्कृति में पवित्र माना जाता है। श्रीमद्भागवत में लिखा है कि, जब देवता और असुरों ने समुद्र मंथन किया तो उसमें कामधेनु निकली। पवित्र होने की वजह से इसे ऋषियों ने अपने पास रख लिया। माना जाता है कि कामधेनु से ही अन्य गायों की उत्पत्ति हुई। श्रीमद्भागवत में इस बात का भी वर्णन है कि भगवान श्रीकृष्ण भी गायों की सेवा करते थे।

गोपाष्टमी का महत्व

गोपाष्टमी का ये पर्व गौधन से जुड़ा है। भारत में इस पर्व का अपना ही महत्व है। गाय सनातन धर्म की आत्मा मानी जाती है। हिन्दू धर्म में गाय का महत्व होने के पीछे एक कारण ये भी है कि गाय को दिवयगुणों का स्वामी कहा गया है। गाय में देवी-देवता का निवास माना गया है। पौराणिक ग्रंथों में कामधेनु का जिक्र भी मिलता है। मान्यता है कि गोपाष्टमी की पूर्व संध्या पर गाय की पूजा करने वाले लोगों को सुख समृद्धि और सौभाग्य प्राप्त होता है।

गोपाष्टमी की पूजा विधि

गोपाष्टमी को प्रातः उठकर गायों को स्नान कराएं फिर गौमाता का आकर्षक श्रृंगार करें। गंध-पुष्प आदि से गायों की पूजा करें और ग्वालों को उपहार आदि देकर उनका सम्मान करें। गायों को भोजन कराएं तथा उनकी परिक्रमा करें और थोड़ी दूर तक उनके साथ जाएं। संध्या को जब गायें वापस आएं तो उनका पंचोपचार पूजन करके कुछ खाने को दें। अंत में गौमाता के चरणों की मिट्टी को मस्तक पर लगाएं। ऐसा करने से सौभाग्य में वृद्धि होती है।

 

 

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