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भारतराष्ट्र की अर्थव्यवस्था का आधार हें गोमाता;

Gau mata is the basis of the economy of the nation of India भारतराष्ट्र की अर्थव्यवस्था का आधार हें गोमाता ,

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गाय हमारी अर्थव्यवस्था का आधार है। गाय को पालने से दूध, दही, छाछ, घी जैसे पोषक पदार्थ प्राप्त होते हैं। गाय से ही बैल मिलते हैं जो कि हल चलाने, सामान ढोने और खेती के काम में सहायक होते हैं। गोधन का गोबर ईंधन बचाने व ऊर्जा उत्पादन में काम आता है। इससे पर्यावरण प्रदूषण कम होता है। गोबर की खाद भी होती है। गोधन को पालने से ग्वालों की दिनचर्या अनुशासित रहती है। इससे जीवन पूरी तरह स्वस्थ रहता है। गोमूत्र से अनेक रोगों का उपचार होता है। एक अनुसन्धान के अनुसार हमारे देश को कृषि के लिए नब्बे प्रतिशत ऊर्जा गोवंश से ही मिलती है। इस तरह गाय को ग्राम विकास का आधार मानना पूर्णतया उचित है।

गाय के घी से होने वाले हवन का धुआँ कीटाणु अथवा बैक्टीरिया को नष्ट करता है। गाय का गोबर खेतों में खाद के काम तथा ईंधन के काम आता है। इसका मूत्र अनेक असाध्य रोगों के इलाज में उपयोगी रहता है। इस प्रकार गाय का हमारे जीवन में अत्यधिक महत्त्व है। यह गरीबों के परिवारों का पालन-पोषण करने में उपयोगी रहती है। इससे खेती और कृषि के कामों में सहायता मिलती है। गाय के बछड़े बैल बनते हैं, जो हल चलाने एवं भार ढोने के काम आते हैं। गोधन के मरने पर भी इसका चमड़ा अनेक चीजों को बनाने के काम आता है। गाय की उपयोगिता एवं महत्त्व को देखकर ही इसे ‘गोमाता’ कहते हैं।

भारतीय जन-जीवन में परिवार के पालन तथा कृषि कार्य की दृष्टि से गाय का विशेष महत्त्व है। इससे दूध जैसा पौष्टिक पदार्थ मिलता है। इसके गोबर एवं गोमूत्र का अनेक तरह से उपयोग किया जाता है। वेदों एवं पुराणों में गाय को पूज्य और रक्षणीय बताया गया है। यहाँ पर गोपालन की सनातन परम्परा रही है।

आयुर्वेद में अनेक रोगों के उपचार आदि में गाय के घी को उपयोगी माना गया है। गाय के घी से हवन करने पर जो धुआँ फैलता है, वह हानिकारक कीटाणुओं को नष्ट करता है। वह ओजोन परत के छेद को पाटने का काम करने में व पर्यावरण शुद्धि में भी उपयोगी रहता है।

भारतीय जन जीवन में गाय का अपना विशेष महत्त्व है। गाय चौपाया प्राणी है और उसे माँ के बराबर आदर दिया गया है। यह हमारी पारिवारिक व कृषि संस्कृति की आधार रही हैं। गाय को गोधन कहा है। पौराणिक काल में जिसके पास जितनी अधिक गायें, वह उतना ही धनी माना जाता था। अतएव गायों की सुरक्षा को एक मानवीय कर्तव्य के रूप में परिभाषित किया गया है। गाय को वेदों में रक्षणीय, सुरक्षा के योग्य, इसी अर्थ में स्वीकारा गया है कि वे सर्वोपरि धन हैं। गायों के जाये बैलों ने कृषि कार्य में इतना सहयोग किया कि वे गायों के साथ ही पूजा के योग्य भी माने गये।

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