Cow Based Natural Farming: भारत में रसायनिक खेती के दुषपरिणामों (Harms of Chemical farming) को देखते हुये ज्यादातर राज्यों में गाय आधारित प्राकृतिक खेती (Natural Farming in India) का चलन बढ़ता जा रहा है. प्राकृतिक खेती अपनाने के लिये किसान ट्रेनिंग (Natural Farming Training) ले रहे हैं और कम खर्च में गौ आधारित खेती (Cow Based Farming) करके हजारों का खर्चा बचा रहे हैं. खासकर बात करें गुजरात राज्य की तो यहां अब ज्यादातर किसानों ने पूरी तरह रसायनों मुक्त खेती (Natural Farming in Gujarat) करके फसलें उगाना शुरू कर दिया है. इससे कीटनाशक और उर्वरक का खर्चा कम और मुनाफा बढ़ रहा है. दुनिया के सामने प्रकृतिक खेती पर इसी तरह का उदाहरण प्रस्तुत किया है, गुजरात के मोरबी जिले में माथक गांव में खेतीहर किसान दाजी गोहिल ने, जिन्होंने 10 एकड़ जमीन पर प्राकृतिक खेती (Chemical Free Farming) करके दूसरे किसानों के सामने मिसाल पेश की है.
80,000 की लागत में कमाये 4.5 लाख रुपये
किसान दाजी गोहिल भी साधारण किसानों की तरह ही रसायनिक कीटनाशकों और उर्वरकों का इस्तेमाल करके खेती किया करते थे, लेकिन खेती की लागत दिन पर दिन बढ़ती और मुनाफा कम होता जा रहा है. वो हर साल फसलों से बेहतर उत्पादन के लिये 1.5 लाख रुपये तक खर्च करते थे, जिसके बाद सिर्फ 4 लाख रुपये की आमदनी होती थी. किसान दाजी गोहिल बताते हैं कि उन्होंने गौ आधारित प्राकृतिक खेती के बारे सुना तो था, लेकिन सही तरीका ना पता होने के कारण प्राकृतिक खेती शुरू नहीं कर पाये. इसके बाद साल 2019 में राजकोट के ढोलरा गांव में सुभाष पालेकर की 7 दिवसीय प्रशिक्षण आयोजित किया गया, जिसमें ट्रेनिंग लेकर दाजी गोहिल ने प्राकृतिक खेती के गुर सीखे. उन्होंने बताया कि गाय आधारित खेती करने पर शुरुआत में 80,000 तक की लागत आई और आमदनी बढ़कर 4.5 लाख रुपये तक पहुंच गई.
एक घटना ने बदल दी जिंदगी
हर इंसान के जीवन में किसी बड़ी घटना के बाद ही बड़ा बदलाव आता है. ऐसा ही दाजी गोहिल के साथ भी हुआ. प्रगतिशील किसान दाजी गोहिल ने प्राकृतिक खेती से जुड़े कई सेमिनार और शिविरों में जाकर जीवामृत से खेती करने के नुस्खे सीखे, लेकिन प्राकृतिक खेती शुरू करने में काफी झिझक हो रही थी. एक दिन किसी रिश्तेदार की ब्लड़ कैंसर के कारण मौत हो गई, जबकि वो शुद्ध शाकाहारी भोजन और स्वस्थ दिनचर्या का पालन किया करते थे. बस इसी घटना से दाजी गोहिल की जिंदगी को बदल दिया और उन्होंने जहरमुक्त प्राकृतिक खेती करने का मन बनाया. गौ आधारित खेती करने पर शुरूआत में खेती का लागत काफी हद तक कम और आमदनी में बढ़त दर्ज होने लगी.
बंजर जमीन में फूंकी जान
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, रसायनिक खेती के दौरान दाजी गोहिल को आर्थिक और खेती से जुड़ी कई समस्याओं का सामना करना पड़ता था. कभी-कभी कम उत्पादन के कारण फसल में रसायनिक दवा, खाद, खरपतवारनाशी का प्रयोग करने लगे, जिससे मिट्टी की उपजाऊ शक्ति कम हो गई और धीरे-धीरे जमीन बंजर होने लगी. खेती में लगातार बढ़ते कैमिकल के प्रयोग से खेती का मुनाफा कम हो गया, जिसके कारण कर्ज के जाल फंसते चले गये. खेती में रोजाना बढ़ते इस खर्च को बोझ को कम करने के लिये काफी समय तक गेहूं, मूंगफली, बाजरा, जीरा,आजवाइन, धनिया, हल्दी, सौंफ, मूंग, तिल, अरहर, सहजन, सब्जियां, गन्ना और पशुओं के चारे के लिये शुद्ध और गाय आधारित प्राकृतिक खेती की. इससे कुछ महीनों में ही खेती की लागत कम होने लगी और मुनाफा भी धीरे-धीरे बढ़ने लगा.
जैव विविधता को भी फायदा