Organic Farming: भारत में गाय को मां का दर्जा दिया गया है और कई सदियों से गाय (Cow) की पूजा-आराधना भी की जाती है. पौराणिक काल से ही गाय को खेती और दूध उत्पादन के लिहाज से भी अहम माना गया है. पुराने समय की कारगर मान्यताओं के बलबूते पर ही आज गाय आधारित खेती (Cow Based Farming) करके किसान अच्छा मुनाफा तो कमा ही रहे हैं, साथ ही इससे मिट्टी की उपजाऊ शक्ति भी वापस लौट रही है. खासकर गुजरात में गाय आधारित खेती और इससे जुड़े डेयरी व्यवसायों (Dairy Business)  को काफी बढ़ावा दिया जा रहा है. यही कारण है कि सबसे ज्यादा गाय आधारित खेती की सफलता इसी राज्य से उभर कर सामने आ रही है.
सफलता की इन्हीं कहानियों में शामिल है गोंडल, गुजरात के रमेशभाई रूपरेलिया का नाम, जिन्होंने 80 रुपये की मजदूरी करके जैविक उत्पादों का बड़ा एंपायर खड़ा कर दिया है. कभी पैसों की कमी के कारण रमेशभाई रुपरेलिया को अपनी पढ़ाई छोड़नी पड़ी, लेकिन बचपन से ही दिमाग में उपज रहे गौ सेवा के बीज ने इन्हें आज 123 से भी ज्यादा देशों में लोकप्रियता दिलवाई है. बता दें कि आज रमेशभाई रुपरेलिया अपने गाय पालन (Cow Farming) और गाय आधारित खेती के जरिये उपजे अनाज, फल, सब्जी, दूध, मसालों के उत्पाद (Organic Products) बनाकर देश-विदेश में निर्यात कर रहे हैं. रमेशभाई के इन्हीं प्रयासों के चलते सम्मानित भी किए गए हैं.
बचपन से गौ सेवा में हुए लीन
रमेशभाई रुपरेलिया बचपन से ही संगीत के शौकीन रहे हैं, जो गांव में हार्मोनियम बजाकर गाय की महिमा का बखान करते थे. उसी समय से ही दिमाग में गौसेवा का बीज पनपा और लोगों को गौ मूत्र, गोबर और गाय के दूध के फायदे बताने लगे. घर में आर्थिक तंगी के कारण बचपन में ही पढ़ाई छोड़नी पड़ी और 7वीं पास रुपरेलिया मात्र 80 रुपये में मजदूरी करने लगे. उनके साथ उनके माता-पिता भी खेतों में खेतिहर मजदूर के तौर पर काम करते और अपना गुजारा चलाते. साल 1988 तक रमेशभाई का काम होता था दूसरों की गायों की सेवा करना और उन्हें चराने ले जाना. कई सालों तक गाय सेवा और आर्थिक तंगी में गुजारा चलता रहा.
यहीं से मिली गाय आधारित खेती की प्रेरणा
जिंदगी में कुछ करने का जज़्बा और डटकर संघर्ष की चाह ने रमेशभाई को गाय आधारित खेती करने के लिए प्रेरित किया. रमेशभाई के पास खुद की जमीन नहीं थी, लेकिन मजदूरी के साथ-साथ एक जैन परिवार से जमीन किराए पर लेकर खेती करने लगे. खेती के लिए उन्होंने पूरी तरह जैविक विधि अपनाई और जैसे-तैसे गाय का गोबर और गौमूत्र का इंतजाम करके फसलों का उत्पादन लेने लगे. धीरे-धीरे गाय आधारित खेती का नुस्खा काम करने लगा और साल 2010 में 10 एकड़ जमीन से करीब 38,000 किलो प्याज का रिकॉर्ड उत्पादन लिया और जिलेभर में प्रसिद्धि हासिल की. दूसरा रिकॉर्ड उत्पादन हुआ हल्दी, एक एकड़ में गौ आधारित खेती करके हल्दी की 36,000 किलो पैदावार मिले. बस फिर क्या धीरे-धीरे रमेशभाई तरक्की करने लगे और खुद की 4 एकड़ जमीन खरीदकर जैविक खेती के साथ-साथ गौपालन करने लगे.
साइकिल पर डिलीवरी से लेकर ऑनलाइन मार्केटिंग सीखी
वैसे तो रमेशभाई ने सातवीं तक ही पढ़ाई की है, लेकिन समय की मांग को देखते हुए उन्होंने बेसिक कंप्यूटर कोर्स किया, ताकि अपने जैविक उत्पादों की ऑनलाइन मार्केटिंग कर सकें. इससे पहले रमेशभाई खेती और गौपालन के जरिये जैविक उत्पाद और घी आदि बानकर साइकिल पर ही डिलीवरी करते थे. उस समय ऑर्गेनिक प्रॉडक्ट्स को लेकर ज्यादा बातें नहीं होती थीं, इसलिए उत्पादों के भी सही दाम नहीं मिल पाते थे, लेकिन  धीरे-धीरे ई-मेल मार्केटिंग और इंटरनेट का ज्ञान हासिल करने के बाद उन्होंने खुद ही ऑनलाइन मार्केटिंग शुरू कर दी.
बता दें कि रमेशभाई रूपरेलिया ने अपना यूट्यूब (Youtube Marketing) चैनल भी बानया है, जिसके जरिये वो गाय आधारित खेती (Cow Based Farming) और गौ पालन के अपने वीडियो अपलोड करके किसानों को जागरुक करते हैं. शुरूआत में इसी यूट्यूब चैनल के जरिये देश-दुनिया में उनके जैविक उत्पादों की डिमांड बढ़ने लगी थी.
123 देशों तक फैलाया करोड़ों का कारोबार
रमेशभाई की बढ़ती लोकप्रियता को देखकर अडोस-पडोस के गांव से भी किसान ट्रेनिंग के लिये आने लगे. रिपोर्ट्स की मानें तो अभी तक रमेशभाई से करीब 23 देशों के 10 हजार लोगों ने जैविक खेती और गौपालन की ट्रेनिंग (Cow Farming Training) ली है. यहां किसानों ने गाय का देसी घी बनाना तक सीखा है. आज रमेशभाई की सफलता करीब 123 देशों तक फैल चुकी है. आज गोंडल के गोपाल- रमेशभाई रूपरेलिया (Ramesh Rupareliye) जैविक खेती के साथ-साथ ‘श्री गीर गौ कृषि जतन संस्था‘ नाम से गौशाला चलाते हैं.
इस तरह खेती और गौशाला से निकले उत्पादों का प्रसंस्करण और पैकेजिंग कर ऑनलाइन मार्केटिंग करते हैं. बता दें कि आज रमेशभाई रुपरेलिया जैविक उत्पाद और गाय का देसी घी (Cow Ghee) बेचकर सालाना 3 करोड़ से ज्यादा की आमदनी ले रहे हैं. वह खुद तो 150 से भी ज्यादा गौवशों की देखभाल और जैविक खेती (Organic Farming) करते ही है, साथ ही 100 से भी ज्यादा लोगों को अपनी इस सफलता से जोड़कर रोजगार उपलब्ध करवा रहे हैं.
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