महर्षि दयानन्द ,कखन जी भाई नमक औचित्य ब्राह्मण गुजरात के टंकारा गाँव मे करीबन 200 साल पहले जमादार थे।वे शिव भक्त थे,इन्हे मूलशंकर नामक पुत्र था मूल शंकर धर्म,श्लोक और सूत्र सीखाते थे।,सैट साल की उम्र मे इन्हे जनोई धरण करने सीखा दिया।यजुर्वेद भी पढ़ाया मूलशंकर ने व्याकरण वेद का अभ्यास कर लिया 14 साल की उम्र मे अर्थववेद संहिता सीख ली,21 साल की उम्र मे शादी करनी थी,उसे शादी देना चाहते थे उनके मातपिता , 1903 मे एक शाम को मूल शंकर ने गृह त्याग कर दिया
मूलशंकर लाला भगत की भूमि मे साला पहुचे।वहा ब्रह्मचर्य की दीक्षा ली,भगवा धारण कर लिया,वे सिध्ध्पुर मेले मे एक दिन पाहुच गए,वहा इनके पिताजी से भेट हुई ,मूलशंकर ने पिताजी के पेर पकड़ लिया वहा से अहमदाबाद,अहमदाबाद से बड़ौदा पहुच गए,वहा से चनोद करनाली जा पहुचे।पिताजी ने उसे समझाने के लिए दो पहरेदार रखे थे,वहा से वे सिध्ध्पुर से रात मे अंधेरे मे निकल पड़े,महाराष्ट्र के श्रुंगेरी मठ के परमानंद सरस्वती ने उन्हे ब्रह्मचारी सन्यासी की दीक्षा दी,यहा से इन्हे दयानन्द सरस्वती नाम प्राप्त हुआ.दयानन्द ने हरद्वार के कुम्भ के मेले मे योगियो से ज्ञान समागम किया,काँगड़ी गुरुकुल रम्या तपोवन मे गौरी कुंड मे जलस्रोत पर बैठकर एक माह अघोर तपस्या की त्रिस साल की उम्र मे विध्याचल घूमे।बतिस वे वर्ष मे दुर्गाकुंड मंदिर मे चंडालगढ़ पहुचे,वहा आननका त्याग किया और शुद्ध दूध हारी बने,
दयानन्द 1914 मे तैतीस साल की उम्र मे नर्मदा नदी के दर्शन को निकल पड़े,नर्मदाके मूल की शोध की त्रिस साल वे घूमते रहे,1917 मे विध्या प्राप्त की,बाद मे मथुरा पहुच गए॰अमरीका के कर्नल ओलकोट और ऋषि रमणी मेडम ब्लेवेरस्की थियोसोफ़िकल सोसाइटी के स्थापक थे,उनहो ने दयानन्द सरस्वती जी की बाते सुनी थी,थियोसोफ़िकल सोसाइटी ने उन्हे आर्य समाज का एक अंग बना दिया था,वे डौनो स्वामी जी के शिष्य बन गए।1937 मे मुजफ्नगर मे आर्य समाज मे दूसरे वार्षिकोत्सव मे उपस्थित होकर सरस्वती जी ने दो भाषण दिये,थियोसोफ़िकल सोसाइटी से सावधानी बरतने के संकेत दिये और मेडम ब्लेवस्की की सख्त आलोचना की,महर्षि का जीवन चरित्र विरतव की घटनाओ से भरा हुआ हे,मणिरत्न जेसे उनका जीवन प्रकाशित हे।मतभेद रखनेवालों सत्या की पहचान कराई हे।उन्होने एक साथ चालीस से पचास राजपूतो को यज्ञोपवीत दिया हे,स्त्रियो को गायत्री मंत्र पढ़ने का अधिकार मरशी दयानन्द सरस्वती ने दिलाया,मेरठ मे महाराज ने श्रद्धा का खंडन करने के लिए भाषण किया था।
दयानन्द जी को मूर्ति पुजा मे विरोध था,नौवि सदी मे विदेशी आक्रमण को रोकने मे भारत तददन निसफल साबित हुआ था,छोटे छोटे जमी के विभाजित राजाओ अपने को पृथ्वीपति मानने लगे थे,ज्ञाति प्रथा बढ़ रही थी,बल विवाह की रस्म सर्व सामान्य बन गई थी.विवाह करके पाँच साल मे विधवा बनी हुई पुत्री का दुख मात पिता के दिल को नहीं छु सका था,लिखने पढ़ने को सिख ले तो अभ्यास पूर्ण हो गया समझा जाता था।ब्रहमीन का लड़का क्रियाकन्द सीखने पाठशाला जाता था,व्याकरण न्याय वेदान्त विज्ञान और इतिहास का अभ्यास क्रम मे स्थान नहीं था,धर्म मे बिता समय और परमानंद के अनुसार संध्या वंदन ,पुजा पाठ देव दर्शन और कीर्तन किए जाते थे।
इस परिस्थिति मे परिवर्तन लाने वाले राजा राम मोहन राय इलाहि से प्राश्चर्यार्थ संस्कृति की अवर से जन्मा था,इस समय मे स्वामी नारायण ,महर्षि दयानन्द और राम कृष्ण परमहंस का उदभवस्वयं और इस देश की धर्म संस्कृति पर आधारित था,महर्षि दयानंद उज्ज्वल ज्योति पुंज थे,मूलशंकर से दयानंद मे परिवर्तन की कथा ,त्याग ,तपस्या ,लगन और ध्येय प्राप्ति की कथा उल्का मे तेजस्वी लाइन जेसे हे,जाती प्रथा तोड़ने की अन्य धर्म के लोगो को हद धर्म मे लानेकी कन्या पढ़ाई की महर्षि की बाते आज भी कम नहीं हुई हे,मूर्ति पुजा का विरोध किया था,उनके वक्तव्य के सामने पंडित भी अवाक बन जाते थे,उनका कार्य क्षेत्र पांचाल था,एक हजार साल से विदेशियों को रोकने वाले पंपावियों के धर्म ने क्रांति की चिंगारी उन्हे स्पर्श कर गई,थी,देश के विभिन्न प्रांतो मे उन्होने प्रवास किया था,अलवर के राजा उनसे प्रभावित हुए थे,और अपने साथ अलवर ले गए थे,किन्तु राजा के पास साई जा नहीं सकते थे,इस लिए अलवर छोड़ दिया,और मथुरा मे वेद पाठशाला की स्थापना की,वे प्रामाणिक ग्रंथ ही छात्रों को पढ़ाते थे,आगरा मे वे गीता कथा करते थे,एक माह तक वहा रहे थे,मूर्ति पुजा नहीं करना हे,यह बात सभी को वे समझाते थे,उनकी बाते सुनकर लोग मूर्तिया नदी मे फेंक आते थे,हरद्वार मे गए तो अंध श्रद्धा देखकर बहुत व्यथित हुये ,
वेद धर्म का गौरव बढ़े और युवाओ आगे बढ़े एसी उनकी सोच थी,विध्यालय बनाने और गुरुकुल चलाकरयुवाओ को तालिम देकर सशक्त बनाने की बात इनहो ने काही थी।
हिन्दी भाषी द्रष्टि कोण प्रचार के लिए प्रकाश डालते थे।हिन्दी भाषा मे लेख प्रकाशित करते थे,लोगो को समझाने के कम उन्होने किया हे,वे काशी गए थे,अंध विश्वास देखा डरने लगे,काशी नरेश के पंडित तैयार करो शास्त्रार्थ करने को कहा,वहा से वे कोलकाता गए,वहा के अग्रणी उनके पास जाते थे,केशव सेन के साथ बहुत चर्चा हीदी मे ही होती थी,कोलकाता से वे मुंबई हुगली नासिक मथुरा गए,गुजरात सारा और वहा से चितोड़ जोधपुर उड़ेपुर गए।उड़ेपुर के राजा जसवंत उनसे प्रभावित थे,वे वेदगन स्तुति संस्कृत मे करते थे,प्रार्थना के बाद हिन्दी मे गायत्री मंत्र करते थे। लोगो मे राष्ट्र भावना जताने ,देश भक्ति जताने के लिए कार्य करते थे,एक धर्म और एक भाषा हीदी का लक्ष रखकर देश की उन्नति की खेवना करते थे,महर्षि दयानन्द आज भी उनके विचारो से हमारे बीच जीवित हे,उनके चरणों मे कोटी कोटी वंदन करते हुए जन्म दिन अवसर पर पुष्पांजलि अर्पित करते हे।
डॉ गुलाब चंद पटेल
कवि लेखक अनुवादक
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