सूरत -गुजरात – दीपक देसाई ‘दीपक ‘ पारदी तिघरा गांव के साहित्यकार जी है जिनकी हाल ही में प्रकाशित काव्य पुस्तक ”यादों के ग़ुब्बारे ‘ हिंदी और गुजरती साहित्यकारों के बीच में चर्चा का विषय बना हुआ है।

दीपक देसाई ‘दीपक ‘ को बचपन से ही साहित्य , सिनेमा , कला के प्रति बहुत रूचि रही मगर जिंदगी की भाग दौड़ में वह अपनी साहित्यिक यात्रा को कही एक बिंदु पर विराम दे चुके थे मगर कहते है न माँ सरस्वती का लाल कभी भी हारता नहीं है। अपनी साहित्य सेवा में निरंतर लगे रहे और पहला काव्य संग्रह ”यादों के ग़ुब्बारे ‘ प्रकाशित होते ही कलमकारों , फिल्मकारों , साहित्यानुरागियों के बीच चर्चा का विषय बन गया।

दीपक देसाई ‘दीपक ‘ ‘ पारदी तिघरा गांव जो बलसाड गुजरात में आता है वही पर जन्मे और अपनी पढ़ाई गुजरती भाषा में पूरी की। खेती किसानी करने वाले दीपक भाई देसाई एक मृदुभाषी , कला और कलाकार प्रेमी है। सामाजिक कार्य भी वह समय समय पर करते रहते है।
दीपक भाई देसाई अपने सामाजिक कार्यो के साथ साथ लेखन को सामाजिक जनचेतना का अपना हथियार बनाया है। वह कहते है कि -” सामाजिक कार्य का अर्थ है सकारात्मक, और सक्रिय हस्तक्षेप के माध्यम से लोगों और उनके सामाजिक माहौल के बीच अन्तःक्रिया प्रोत्साहित करके व्यक्तियों की क्षमताओं को बेहतर करना ताकि वे अपनी ज़िंदगी की ज़रूरतें पूरी करते हुए अपनी तकलीफ़ों को कम कर सकें।
दीपक भाई देसाई आगे कहते है है कि -” एक लेखक सामाजिक प्राणी तो होता ही है उसका यह कर्त्तव्य भी है कि वह सोए हुए समाज को जगाए उन्हें देश और समाज के प्रति अपनी जबबदारी को तय करने का मार्ग भी सुझाए।
खैर बहुत ही काम समय में दीपक देसाई ‘ दीपक ‘ को उनकी सामाजिक और साहित्यिक कार्यों के किये बहुत से सम्मान मिल चुके है। हाल ही में ” गऊ भारत भारती ” समाचारपत्र द्वारा ” गऊ भारत भारती सर्वोत्तम सम्मान ” मनोनीत राज्य मंत्री तरुण राठी के हाथो मिला।
इसी के साथ ही साहित्य जगत का सम्मानित सम्मान वाग्धारा सम्मान केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान के हाथो मिला। मुंबई में बॉलीवुड आइकोनिक अवार्ड, गुजराती-हिंदी कविता लेखन के लिए बॉलीवुड गायक कुमार शानू के हाथो मिला। दादा साहेब फालके अवार्ड आदि मिल चूका है।

अब जल्द ही उन्हें ” महाराष्ट्र श्री ” का सम्मान भी उन्हें मिलने जा रहा है। ६० से ६५ की उम्र में आज दीपक देसाई ‘ दीपक ” को यह यस – सम्मान उनकी लेखनी और सामाजिक कार्यो के लिए मिल रहा है।
दीपक भाई देसाई की उनकी यह सफलता देख कर यही कहा जा सकता है कि आदमी किसी भी उम्र में कभी भी अपनी मज़िल और प्रसिद्धि पा सकता है।

 

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