संस्कार -भारती द्वारा आयोजित सिने टाकीज में प्रसिद्ध गीतकार एवं सेंसर बोर्ड के अध्यक्ष मुख्य अतिथि प्रसून जोशी ने कहा कि समुद्र मंथन से प्राप्त अमृत की चर्चा होती है पर विष की बात भी होनी चाहिए। मंथन की प्रक्रिया पर भी बात होनी चाहिए। बीज को बोने का काम भी महत्वपूर्ण है। अब कंटेंट सृष्टि की बात होनी चाहिए। आज विचार को तलवार से नहीं दबाया जा सकता। भारतीयता को बचाने नहीं विस्तार देने की आवश्यकता है।
वर्चुअल रियलिटी और गेमिंग बहुत बड़ा क्षेत्र होने जा रहा है। संस्कृति का बीजारोपण उनमें भी करना चाहिए। जब आपको दिखता है तो आप उसे महसूस करते हैं।
प्रज्ञा प्रवाह के राष्ट्रीय संयोजक जे. नंदकुमार ने बीज वक्तव्य देते हुए कहा कि कला और संस्कृति को धर्म, अर्थ, यश के साथ समाज को उपदेश देने का काम भी करना चाहिए। भारत का अस्तित्व स्वधर्म ही है।फिल्म निर्माण का काम भी तब स्वाधीनता संग्राम का अंग था। कला एवं सिनेमा को भारत के संस्कृति से जोड़ना चाहिए।
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अजय भांम्रे जी कार्यकारी कुलपति ने कहा – मुंबई विवि में लोककला अकादमी, संगीत कला, नाटक पर पढ़ाई हो रही है।अन्य विषय भी शीघ्र शुरू होंगे।
इस अवसर पर प्रसून जोशी के हाथों फिल्मकार सुभाष घई को सम्मानित किया गया। सुभाष घई ने संस्कार – भारती की भूरि -भूरि प्रशंसा की। उन्होंने कहा कि छुट्टियों का उपयोग बच्चों को गीता -महाभारत आदि पढ़ने और उसका सार लिखने के लिए कहें तो वह भारतीय संस्कृति को समझ सकेंगे। हमारे शास्त्रों में बीस हजार कहानियाँ हैं जिनपर फिल्म नहीं बनी हैं पर बनायी जानी चाहिए।
इससे पूर्व विशिष्ट अतिथि नीतीश भारद्वाज ने कहा कि नाट्यशास्त्र का प्रयोजन मनोरंजन, व्यवसाय रहा होगा पर अब इतिहास संरक्षण, विचार प्रवाह और पूरे देश की फिल्म चिंतन और मंथन का विषय बन गया है। अगले २५ वर्षों में सिनेमा का नरेटिव क्या होगा यह जानना चाहिए।
सुनियंत्रित योजना के तहत भारत के उपलब्धियों को दूसरे ले गए। हमें अपना सांस्कृतिक पहचान बनाने की आवश्यकता है। सिनेमा माध्यम का उपयोग विचार निर्माण के लिए होना चाहिए।