काशी तमिल संगमम का औपचारिक शुभारंभ शनिवार को हुआ। बीएचयू के एंफीथिएटर मैदान में आयोजित समारोह का उद्घाटन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किया। अपने संबोधन में उन्होंने वणक्कम और हर हर महादेव बोलकर काशी और तमिलनाडु का नाता जोड़ । महीने भर का ये कार्यक्रम 16 दिसंबर तक चलेगा। केंद्र के शिक्षा मंत्रालय की तरफ से आयोजित ये कार्यक्रम आजादी के अमृत महोत्सव के तहत कराया जा रहा है। अखबारों में आये विज्ञापन में कहा गया है कि ये कार्यक्रम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ‘एक भारत, श्रेष्ठ भारत’ संकल्प को नये आयाम देने वाला है 

बीएचयू और आईआईटी मद्रास आयोजन के नॉलेज पार्टनर हैं।सरकारी विज्ञापनों में इस कार्यक्रम को वाराणसी और तमिलनाडु के बीच राम सेतु के तौर प्रोजेक्ट किया जा रहा है और अलग अलग तरीके से ये भी समझाने की कोशिश है कि इस संगम के खत्म होने तक तमिलनाडु के लोगों को काशी के बारे में और बनारस के लोगों को तमिलनाडु की सांस्कृतिक समृद्धि के बारे में सब कुछ मालूम हो जाएगा।

” अरुणाचल प्रदेश के दौरे से वाराणसी पहुंचे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने काशी और तमिलनाडु की प्राचीनता, संस्कृति, धार्मिक महत्व, अध्यात्म, रीति रिवाज आदि की चर्चा की। कहा कि काशी और तमिलनाडु दोनों संगीत, साहित्य और कला के केंद्र हैं। दोनों ही जगह ऊर्जा और ज्ञान के केंद्र हैं।

आज भी तमिल विवाह परंपरा में काशी यात्रा का जिक्र होता है। यह तमिलनाडु के दिलों में अविनाशी काशी के प्रति प्रेम है। यही एक भारत श्रेष्ठ भारत की परिकल्पना है जो प्राचीन काल से अब तक अनवरत बरकरार है। इस दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने इशारों में पूर्व की सरकारों पर निशाना साधा। ” 

उन्होंने कहा कि हमें आजादी के बाद हजारों वर्षों की परंपरा और इस विरासत को मजबूत करना था, इस देश का एकता सूत्र बनाना था, लेकिन दुर्भाग्य से इसके लिए बहुत प्रयास नहीं किए गए। काशी तमिल संगमम इस संकल्प के लिए एक प्लेटफॉर्म बनेगा और राष्ट्रीय एकता को मजबूत करने के लिए ऊर्जा देगा।

काशी और तमिलनाडु को एक ही जैसा शिवमय और शक्तिमय बताते हुए मोदी ने कहा, एक स्वयं में काशी है। तो तमिलनाडु में दक्षिण काशी है। ‘काशी-कांची’ के रूप में दोनों की सप्तपुरियों में अपनी महत्ता है।

प्रधानमंत्री मोदी ने तमिल भाषा का भी बड़े सम्मान के साथ जिक्र किया। हाल के उत्तर और दक्षिण के बीच चले भाषायी विवाद के साये में भी प्रधानमंत्री मोदी की बातें राजनीतिक रूप से काफी महत्वपूर्ण लगती हैं।

ये काशी और दक्षिण भारत का रिश्ता है, तमिलनाडु ही नहीं कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, केरल ये सब जो दक्षिण भारतीय राज्य हैं, उनका बहुत पुराना संपर्क रहा है काशी के साथ। काशी दरअसल धर्म-अध्यात्म की नगरी होने के अलावा ये मोक्षदायिनी नगरी रही है। यहां आके पिंडदान करने के बाद, दक्षिण भारत से ही नहीं, पूरे भारतवर्ष से लोग आते हैं यहां। जैसे गया में जाते हैं पिंडदान करने के लिए, वैसे काशी में दक्षिण भारत से तमाम लोग यहां आते रहे हैं पिंडदान करने के लिए अपने पितरों का, पुरखों का।

तो उस पिंडदान करने के क्रम में काशी अनादि काल से, आदि शंकराचार्य के जमाने से लोग आते रहे और उस जमाने से काशी दक्षिण भारतीयों का एक केंद्र रहा है। उसमें भी काशी में एक मोहल्ला है- हनुमान घाट। हनुमान घाट पूरी तरह से दक्षिण भारतीयों से भरा पड़ा है। इस एरिया में आप घूमेंगे तो आपको आधे सिर बाल, आधे सिर मुंडाए, वो जो मालगुडी देज के ब्राह्मण आपने सीरियल्स में देखा होगा, उस तरह के लोग दिखाई पड़ेंगे। घनपाड़ी दिखाई पड़ेंगे, जो लंबी चोटियां, जो शिखा रखते हैं।

वेद पाठ करते हुए, कर्मकांड कराते हुए लोग। एक जमाने से लोग यहां बसे हुए हैं। कई-कई पीढ़ियों से लोग हैं यहां पर। और तमाम बड़े लोग, तमिलनाडु के सुब्रमण्यम भारती जो राष्ट्रवादी कवि रहे हैं, वो काशी आकर रहे हैं।

और भी बहुत सारे तमाम लोग। वो हनुमान घाट मोहल्ले में जहां रहते थे, वहां पर उनकी प्रतीमा की स्थापना की गई। बहुत सारे लोग वहां रहते हैं। केदार घाट से लेकर हनुमान घाट तक का जो क्षेत्र है, हरिश्चंद्र घाट से सटा हुआ है। एक तरफ, दाहिनी तरफ हनुमान घाट है, बाईं तरफ केदार घाट है। ये पूरा दक्षिण भारतीयों का गढ़ है।

यहां खान-पान, रहन-सहन सब कुछ, मैं स्वयं दक्षिण भारतीय हूं, मैं मूलत: कर्नाटक के एक छोटे से तटवर्ती गांव गोकर्ण का रहने वाला हूं, जिसे दक्षिण की काशी कही जाती है। हमारे पुरखे भी यहां आके इसी तरह से बसे और हम लोग आज यहां काशी में रहते हैं।

ये अलग बात है कि आज प्रफेशन दूसरा हो गया। मैंने जर्नलिज्म का रास्ता चुना, उसी तरह उन परिवारों में जो लोग पौरोहित्य करते रहे, उन लोगों के बच्चों ने पढ़-लिखकर अपना दूसरा रास्ता अपनाया। लेकिन हर परिवार में, कोई न कोई एक परिवार ऐसा है, जो पौरोहित्य का काम करता है। काशी में रहकर जो इस तरह कर्मकांड कराते हैं, वो तमिलियन यहां पर बहुत सारे हैं।

आपको मैं बताऊं कि काशी में सुब्बुलक्ष्मी रहती थीं, डॉ। रंगास्वामी अय्यर के पुत्र थे डॉ। रंगास्वामी शंकर, उनके घर में ठहरती थीं। और पूरा दक्षिण भारतीय परंपराओं से युक्त लोग जिस तरह से खान-पान, रहन-सहन।

हनुमान घाट के हर घर के बाहर आपको दहलीज पे रंगोली दिखाई पड़ेगा। कल सुबह उठके झाड़ू-पोंछा करने के बाद तुरंत अपने घर की दहलीज पे, या घर की चौखट के बाहर रास्ते में भी रंगोली बनाए हुए आपको दिखाई पड़ेगा। ये जो दक्षिण भारतीय यहां के हैं वो काशी को जीते हुए अपनी लोक परंपरा, रीति-रिवाज को आज भी वैसे ही जीते हैं।

काशी और दक्षिण भारत के इस संगम को लोग राजनीतिक दृष्टि से भी देख रहे है । इसका एकमात्र मकसद अगर कुछ है तो आने वाले तमिलनाडु का जो चुनाव है, कर्नाटक में होने वाले चुनाव हैं, वही एक तीर से कई लक्ष्य भेदने का इनका प्रयास है।

ये जो टूरिज्म को बढ़ावा देना, ये सब काशी और तमिलनाडु का इतना प्रभुत्व नहीं है वो यहां आकर चुनाव कराएं और चुनाव जीत जाएं लेकिन तमिलनाडु में भाजपा को अगर घुसपैठ करनी होगी, अगर वहां पर लक्ष्य साधना होगा सरकार बनाने के लिए तो द्रमुक और अन्नाद्रमुक को पीछे छोड़ने के लिए कुछ जरूरी है कि भाजपा कुछ ऐसा आयोजन करे और वहां पर कुछ ऐसा आयोजन संभव नहीं था, तो काशी में प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र में ऐसा कुछ आयोजन हो जाता है तो उसके एक दूसरे असरात होते हैं।

एक महीने तक चलने वाले इस कार्यक्रम में कई हजार लोग तमिलनाडु के विभिन्न क्षेत्रों से आ रहे हैं और सच ये है कि तमिलनाडु ही नहीं, अभी तो कर्नाटक में बैंगलोर-वेंगलोर वगैरह शहर में एक वक्त से तमिलियन हावी हैं। तो वहां की राजनीति में इसके जरिए उनके घुसपैठ करने की है, तमिलियन के जो वोटर्स हैं कर्नाटक में उनको साधने के उद्देश्य से ऐसा आयोजन कर रहे हैं। आप जो कह रहे हैं, निश्चित रूप से राजनीति ही है ।

पिछले साल हुए विधानसभा चुनावों के दौरान दक्षिण की राजनीति के प्रति भाजपा और कांग्रेस के नजरिये में काफी फर्क देखने को मिला था। भाजपा का पूरा फोकस जहां पश्चिम बंगाल पर रहा, कांग्रेस की गतिविधियों में ज्यादा जोर तमिलनाडु और केरल को लेकर देखने को मिला था। ये भी महसूस किया गया कि जैसे कांग्रेस को पश्चिम बंगाल से कोई मतलब नहीं रहा, भाजपा का रुख केरल और तमिलनाडु को लेकर मिलती जुलती ही रही।

केरल में भाजपा से ज्यादा मेट्रो मैन ई। श्रीधरन ही दिखे, लेकिन पार्टी के हाथ खींच लेने पर वो भी शांत हो गये। बची खुची चीजें चुनाव नतीजों ने बराबर कर दी थीं।

दक्षिण को लेकर कांग्रेस का एक और पक्ष राहुल गांधी के बयान के जरिये सामने आया, जिसमें उनका कहना था कि राजनीति को लेकर उत्तर भारत के मुकाबले दक्षिण भारत के लोग ज्यादा जागरुक होते हैं। ये दावा राहुल गांधी ने अमेठी में अपने अनुभव के आधार पर कहा था, लेकिन तब जब वहां के लोगों ने कांग्रेस नेता को नकार दिया।राहुल गांधी को तो पहले भी दक्षिण भारत के दौरों में काफी कंफर्टेबल देखा जाता रहा, लेकिन वायनाड की चुनावी जीत ने एक नया और मजबूत बॉन्ड ही बना दिया।

अब अगर काशी तमिल संगमम् के कार्यक्रमों और हिस्सा लेने वाले मेहमानों को ध्यान से देखें और समझने की कोशिश करें तो साफ तौर पर लगता है कि भाजपा दक्षिण भारत के वोटर से जुड़ने के लिए किस हद तक परेशान है और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का भाषण सुनने के बाद तो ऐसा ही महसूस हो रहा था जैसे बगैर नाम लिए वो ‘भारत जोड़ो यात्रा’ के किस्से सुना रहे हैं।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बताया कि काशी तमिल संगमम् का आयोजन आजादी के अमृत काल में हो रहा है, और बोले, ‘भारत वो राष्ट्र है जिसने स्वाभाविक सांस्कृतिक एकता को जिया है।’

” मोदी ने ये भी समझाया कि किस तरह पिछली सरकारों में उत्तर और दक्षिण को एक करने के लिए जरा भी प्रयास नहीं किये गये।सरकारी तौर पर काशी तमिल संगमम् को इस रूप में भी प्रचारित किया जा रहा है कि ये तमिल जैसी प्राचीन भाषा के विकास में मददगार बनने वाला है लेकिन दक्षिण के कुछ लोग आयोजन को तमिल की जगह संस्कृत को बढ़ावा देने वाला बता रहे हैं – क्या इसलिए क्योंकि ये आयोजन वाराणसी में हो रहा है?तमिल भाषा की तारीफ पहले भी कर चुके प्रधानमंत्री मोदी ने संगमम् में कहा, हमारे पास दुनिया की सबसे प्राचीन भाषा तमिल है। ” 

आज तक ये भाषा उतनी ही पॉपुलर है।।। और उतनी ही जीवंत है। दुनिया में लोगों को जब पता चलता है कि विश्व की सबसे पुरानी भाषा भारत में है तो उन्हें आश्चर्य होता है।दक्षिण भारत की विभूतियों का जिक्र कर मोदी वहां के लोगों से जुड़ने के लिए शिद्दत से प्रयासरत दिखे, मेरा अनुभव है।।। रामानुजाचार्य और शंकराचार्य से लेकर राजाजी और सर्वपल्ली राधाकृष्णन तक। दक्षिण के विद्वानों के भारत दर्शन को समझे बिना हम भारत को नहीं जान सकते।आपको याद होगा भाजपा नेता अमित शाह ने हिन्दी के इस्तेमाल को लेकर बयान दिया था तो दक्षिण भारत से जबरदस्त प्रतिक्रिया हुई थी, ऐसे में प्रधानमंत्री मोदी की तमिल भाषा की तारीफ विरोध करने वालों को भाजपा की तरफ से कुछ नया न करने को लेकर यकीन दिलाने की कोशिश ही लगती है।

सरकारी तौर पर काशी तमिल संगमम् के आयोजन को चाहे जिस रूप में प्रचारित किया जाये लेकिन भाजपा की हैदराबाद कार्यकारिणी से आयीं तब की खबरों पर नजर डालें तो तस्वीर काफी हद तक साफ नजर आएगी ।

PM addressing at the Kashi Tamil Sangamam, in Varanasi on November 19, 2022.

ये समागम भी भाजपा के मिशन साउथ के रोड मैप का हिस्सा ही है।दक्षिण भारत के केरल से आने वाली पीटी ऊषा, आंध्र प्रदेश से आने वाले विजयेंद्र प्रसाद, कर्नाटक के वीरेंद्र हेगड़े और तमिलनाडु के इलैयाराजा को राज्य सभा भेजा जाना भी तो उसी रणनीति हिस्सा है।हाल फिलहाल देखें तो प्रधानमंत्री मोदी और अमित शाह के निशाने पर अक्सर तेलंगाना के मुख्यमंत्री के। चंद्रशेखर राव ही नजर आते हैं, लेकिन ये नहीं भूलना चाहिये कि तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन को भी भाजपा उसी लूप में शामिल कर चुकी है – अगर ऐसा नहीं था तो तमिलनाडु से लोगों को बुलाकर महीना भर काशीवास कराने की क्या जरूरत थी?

 तमिलनाडु की जरूरत तो 2024 में हैं लेकिन तेलंगाना से भी पहले कर्नाटक का नंबर आने वाला है। और भाजपा को हर हाल में सत्ता में वापसी करनी है ताकि आगे चल कर 2019 जैसे रिजल्ट कर्नाटक में ला सके। तब भाजपा ने कर्नाटक की 28 लोक सभा सीटों में से 25 जीत ली थी।भाजपा दक्षिण के जिन पांच राज्यों पर अभी फोकस कर रही है, उनमें कर्नाटक के अलावा केरल, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु हैं । 2019 में कर्नाटक की 25 सीटों के अलावा दक्षिण भारत की 130 सीटों में भाजपा महज पांच ही सीटों पर जीत हासिल कर सकी थी । काशी तमिल संगमम् 2024 के मंजिल का ही एक पड़ाव है।

अशोक भाटिया

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