भारत सरकार द्वारा जीएम सरसों की खेती को मंजूरी मिलने के बाद से ही विवाद छिड़ा हुआ है। कहा जा रहा है कि जीएम सरसों के सेवन से स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ेगा। इसके अलावा शहद उत्पादन का व्यवसाय पूरी तरह से ठप हो जाएगा। मधुमक्खी पालन से जुड़े किसान बड़ी संख्या में बेरोजगार होंगे। दावा ये भी किया जा रहा है कि शहद के निर्यात में बहुत बड़ी गिरावट आ सकती है। दरअसल, चिकित्सकीय गुणों की वजह जीएम मुक्त सरसों के शहद की मांग विदेशों में ज्यादा है।

जीएम सरसों को पर्यावरणीय परीक्षण के लिए जारी किए जाने पर उठे विवादों के बीच देश में मधुमक्खी-पालन उद्योग के महासंघ ‘कंफेडरेशन ऑफ ऐपीकल्चर इंडस्ट्री’ (सीएआई) ने इस फैसले को ‘मधु क्रांति’ के लिए बेहद घातक बताते हुए इस पर रोक लगाने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से दखल देने की मांग की है। सीएआई के मुताबिक, जीएम सरसों की खेती होने पर मधुमक्खियों के पर-परागण से खाद्यान उत्पादन बढ़ाने एवं खाद्य तेलों की आत्मनिर्भरता का प्रयास प्रभावित होने के साथ ही ‘मधु क्रांति’ का लक्ष्य और विदेशों में भारत के गैर-जीएम शहद की भारी निर्यात मांग को भी धक्का लगेगा। मधुमक्खी-पालन के काम में उत्तर भारत में लगभग 20 लाख किसान प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े हुए हैं। इसके अलावा उत्तर भारत के लगभग तीन करोड़ परिवार सरसों खेती से जुड़े हुए हैं। देश के कुल सरसों उत्पादन में अकेले राजस्थान का ही योगदान लगभग 50 प्रतिशत है।

कृषि क्षेत्र से जुड़े जानकारों के मुताबिक, बीज और रासायनिक दवाओं का कारोबार करने वाली बहुराष्ट्रीय कंपनियों को भारत सरकार से जीएम सरसों की खेती की जो अनुमति मिली है, वह किसानों के शोषण की गंभीर साजिश है। ये कंपनियां जीएम सरसों प्रौद्योगिकी के आड़ में भारत के बीज बाजार पर कब्जा करना चाहती हैं। ये कंपनियां जल्दी ही धान, गेंहू, अरहर, मूंग, मसूर आदि फसलों के जीएम- एचटी संकर बीज बाजार में बिक्री के लिए लाएंगी और किसानों द्वारा प्रयोग किए जा रहे परंपरागत बीजों को खत्म करके बीटी कपास बीज बाजार जैसा एकाधिकार बना लेंगी।

इससे किसान को हर साल इन कंपनियों से जीएम फसलों का महंगा बीज खरीदना पड़ेगा, जो महंगी रासायनिक दवाओं के बिना पूरी पैदावार भी नही देगा। अभी तो किसान सरसों, धान, गेंहू, चना, मसूर, मूंग आदि फसलों का अपने घर पर बनाया बीज प्रयोग करके बीज कंपनियों के दुश्चक्र से बचे हुए हैं लेकिन जीएम संकर बीज आने के बाद बीटी कपास के किसानों की तरह ही दूसरे किसान भी आत्महत्या को मजबूर होंगे, क्योंकि तब खेती पर बुआई से लेकर मंडी में बिकने तक बहुराष्ट्रीय कंपनियों का शोषणकारी कब्जा होगा और देश के पांच सौ से ज्यादा राष्ट्रीय और प्रादेशिक कृषि अनुसंधान संस्थान व विश्वविधालय, इन कंपनियों के सामने नमस्तक होकर किसानो की कोई मदद नही कर पाएंगे, जैसा कि बीटी कपास मामले में हुआ।

बहुराष्ट्रीय कंपनियों की जीएम प्रौद्योगिकी अंतरराष्ट्रीय पेटेंट कानून के अंतर्गत सुरक्षित होती है जिसे बिना भारी भरकम रायल्टी दिए भारतीय संस्थान प्रयोग नही कर सकेंगे! वैसे भी सरसों और धान आदि की संकर किस्मों का बीज पिछले एक दशक से उपलब्ध है जिनकी पैदावार ज्यादा नही होने से किसानों ने इन्हें नहीं अपनाया। देश के कुल धान क्षेत्र का केवल आठ फीसद क्षेत्र ही संकर धान के अंतर्गत आता है! कनाडा व यूरोप की जिस संकर कानोला सरसों/गोबिया सरसों की दूगनी पैदावार का उदारहण देकर वैज्ञानिक देश में भ्रम पैदा कर रहे हैं, वह 1980-1999 के दौरान देश भर में किए गए परीक्षण में भारतीय मौसम के अनुकुल नहीं पाई गई थी। जीएम सरसों का मामला अब सुप्रीम कोर्ट पहुंच चुका है। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से इस हाइब्रिड फसल की खेती को मंजूरी देने से फिलहाल रुकने को कहा है। (युवराज)

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