लगभग एक हज़ार पूर्व तक अनेक आक्रमणों के बाद भी हर बार हमारा भारतवर्ष नई समृद्धि के साथ ‘स्वर्ण पाखी’ के रूप में सज्ज हो जाता था तो इसलिए कि हम ‘गोपालक देस’ थे ,गाय हमारी अर्थव्यवस्था की मेरुदंड थी और हमारी हिन्दू अर्थव्यवस्था में भोग नहीं उपयोग की महत्ता थी ,हमारी अर्थव्यवस्था का उद्देश्य ‘पूँजी निर्माण’ नहीं ,परमार्थ का पोषण हुआ करता था। जबसे हमारे जीवन से गायों का महत्त्व घटा ,हमारी अर्थव्यवस्था का संकुचन भी बढ़ा ,बढ़ता गया और कालांतर में हम ‘देश’ हो गए – हमारा ‘स्व’ लुट गया। यह स्वागतयोग्य है कि ‘गऊ भारत भारती’ ने पुनश्च गौवंश की महत्ता को जन -जन तक पहुंचाने का बीड़ा उठाया है। इसके लिए ‘ गऊ महोत्सव का आयोजन किया गया । परमादरणीय राज्यपाल डॉ भगत सिंह कोशियारी और केंद्रीय पशुपालन मंत्री पुरुषोत्तम रुपाला ने इसका शुभारम्भ किया तो वही इसका समापन उत्तर प्रदेश के पूर्व राज्यपाल के हाथों संपन्न हुआ।

समापन समारोह में कृपा शंकर सिंह , राधे गुरु माँ , इस्कॉन के प्रमुख देवकीनंदन दास जी , विधायक प्रकाश सुर्वे , विनोद शेलार , मनोभाव त्रिपाठी , चिराग गुप्ता ,अभिजीत राणे , टल्ली बाबा , संजीव गुप्ता और अन्य महानुभाव की उपस्थिति रही .

ज्ञात हो कि दिनाँक १२ अक्टूबर को “गऊ ग्राम महोत्सव” The Festival Of Cow का उद्घाटन महाराष्ट्र के राज्यपाल श्री भगत सिंह कोश्यारी जी ने मंत्रोच्चार व रणभेरी के प्रफ्फुलित वातावरण में किया इसका उद्घघाटन किया था। और समापन उत्तर प्रदेश के पूर्व राज्यपाल राम नाईक जी के हाथो संपन्न हुआ। इस कार्यक्रम के आयोजन में विशेष तौर पर ” राष्ट्रीय कामधेनु आयोग ” ,जीव जंतु कल्याण बोर्ड , ( पशुपालन और डेयरी विभाग भारत सरकार ) महाराष्ट्र सरकार (पशुपालन और डेयरी विभाग ) का विशेष सहयोग रहा। विभाग के मुख्य सचिव श्री जगदीश गुप्ता जी ने अपनी उपस्थिति दर्ज करवाई। तथा पूरे सप्ताह विचार -विनिमय को आगे बढ़ाने के लिए राष्ट्रीय कामधेनु आयोग , जीव जंतु कल्याण बोर्ड भारत सरकार व महाराष्ट्र राज्य सरकार के विशेषज्ञ अधिकारी उपस्थित रहेंगे ।

गाय की पीठ पर विद्यमान सूर्यके्तु नाडी सौर मंडल की समस्त ऊर्जा को अवशोषित कर अपने गव्यों (दूध ,मूत्र,गौमय) में डालकर समस्त मानव जीवन और प्रकृति को निरोगी एवं सम रखने का कार्य करती हैं। हमारा शरीर पंचमहाभूतों से बना हैं ये पंचमहाभूत्त है पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु एंवआकाश । इन पंचमहाभूतों मैं असंतुलन ही विभिन्न रोगों का कारण हें। किन्तु ईश्वर ने हमें गाय दी है जो अपने पंचगव्यो (गोमय दूध, घृत, गोमूत्र, छाछ) से इन पंचमहाभूतों को संतुलित करती है और हमें निरोगी रखती है। शरीर का पृथ्वी तत्व असंतुलित हुआ है तो हमें गोबर का रस या गोबर के कंडों से बनी भस्म का सेवन कर अपने पृथ्वी तत्व को संतुलित किया जा सकता है ।

जल तत्व को संतुलित करने के लिए गो मां का दूध ,वायु तत्व के लिए गोमूत्र , आकाश तत्व के लिए छाछ एंव अग्नि के लिए घृत है। अर्थात अपने पाँच महाभूतों को नियमित संतुलित करने के लिए हमें पांचों गव्यों का सेवन करना चाहिए। किंतु पाँचों महाभूतों की बात तो दूर हम एक भी महाभूत को संतुलित नही कर रहे है।

अगर पंचमहाभूतों को संतुलित करने के इस सूत्र को हम समझ ले तो हम समझ जाऐंगे की गाय के बिना हमारा अस्तित्त्व सम्भव ही नहीं है। जिस प्रकार शरीर के महाभूतों को गाय के गव्यो से संतुलित किया जा सकता है ठीक उसी प्रकार प्रकृति के महाभूतों को भी बिना गाय के गव्यों से संतुलित्त नही रख सकते है। अर्थात् गाय के बिना पर्यावरण को भी बचाना मुश्किल है। इसीलिए कहा गया है “गावो विश्वस्य मातर:”अर्थात गाय ही संपूर्ण जगत की मां है।

गऊ ग्राम महोत्सव the Festival of Cow का आयोजन गोरेगाँव पूर्व संमित्र मैदान चाफेकर चौक के पास किया गया है जो ७ दिनों तक चला जिसका समापन १८ अक्टूबर को हो गया । इसमें गौ केंद्रित अर्थव्यवस्था (COW BAESD Economy) को खड़ा करने के लिए भारतीय गौवंश से उत्पन्न विभिन्न प्रकार के प्रॉडक्ट(उत्पादों ) की प्रदर्शनी लगाई जा रही है। भारत के सभी गऊ आधारित उत्पादन को बनाने वाले,गऊ माता वैज्ञानिकता के प्रचार – प्रसार में जुड़े लोगों के लिए यह एक साँझा मंच है जहां भारत वर्ष के सभी गौ भक्तों और गऊ आधारित प्रॉडक्ट बनाने वालों को आमंत्रित किया गया है और साथ में भारत सरकार के पशुपालन व डेरी मंत्रालय के सभी लाभकारी योजनाओं की जानकारी साँझा करने के लिए सम्बंधित विशेषज्ञ बुलाए गए थे जो भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के उस सपने को साकार करने में सहभाग करेंगे जिसमें ‘स्टार्टअप’ , ‘वोकल फोर लोकल’ जैसे मन्त्र सिद्ध होने हैं।

इंडोनेशिया के मडुरा में गायों की सुंदरता का उत्सव होता है जिसका नाम है सोपी सोनोक फ़ेस्टिवल.सोपी सोनोक फेस्टिवल के दौरान बड़ी संख्या में लोग सुंदर गायों की इस प्रतियोगिता को देखने के लिए जमा होते हैं.महोत्सव के दौरान गायों की सुंदरता की प्रतियोगिता होती है और विजेता का चुनाव साज-सज्जा, सफ़ाई और चाल के आधार पर किया जाता है।आशा है,हम भी अपनी इस भुला दी गयी सांस्कृतिक धरोहर को पुनश्व अपने जीवन का अंग और अंश बनाएंगे। कल्याणम अस्तु।

राजेश झा
अतिथि सम्पादक ‘गऊ भारत भारती’

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