सनातन हिंदू संस्कृति में किसी भी जीव की हत्या निषेध है और ऐसा माना जाता है कि अपने लिए पूर्व निर्धारित भूमिका को निभाने के उद्देश्य से ही विभिन्न जीव इस धरा पर जन्म लेते हैं एवं सभी जीवों में आत्मा का वास होता है। इसलिए हिंदू धर्मावलम्बियों द्वारा पशु, पक्षियों, पेड़, पौधों, नदियों, पर्वतों, आदि को भी ईश्वर का रूप मानकर पूजा जाता है। कई पशु एवं पक्षी तो हमारे भगवानों के वाहन माने जाते हैं। जैसे, भगवान गणेश का वाहन मूषक को माना जाता है, मां दुर्गा का वाहन शेर को माना जाता है, भगवान शिव के गले में सर्प हमेशा वास करते हैं एवं नंदी को उनका वाहन माना जाता है, भगवान विष्णु का वाहन गरुड़ को माना जाता है, भगवान कार्तिक का वाहन मोर को माना जाता है एवं धन की देवी लक्ष्मी माता का वाहन उल्लू को माना जाता है।
हिंदू समाज में भगवानों की पूजा के साथ-साथ उनके वाहनों के रूप में पशु एवं पक्षियों की भी पूजा अर्चना की जाती है। नाग पंचमी नामक त्यौहार के दिन सांप को दूध पिलाया जाना शुभ माना जाता है।विकसित देशों में वैज्ञानिकों द्वारा लगातार की जा रही शोधों के आधार पर अब यह कहा जा रहा है कि दरअसल पूरे विश्व में केवल सनातन हिंदू संस्कृति ही लाखों वर्षों से बहुत ही वैज्ञानिक आधार पर चल रही है। पशु, पक्षी, पेड़, पौधे, नदियों, पर्वतों, जंगलो के संरक्षण की बात इस महान संस्कृति के मूल में है। इस धरा पर समस्त जीवों का अपना महत्व है एवं इन्हें अपनी भूमिका का निर्वहन इस धरा पर करना होता है। जैसे गंदगी साफ करने में कौआ और गिद्ध की प्रमुख भूमिका पाई गई हैं।
परंतु दुर्भाग्य का विषय है कि हाल ही के समय में गिद्ध शहरों ही नहीं बल्कि जंगलों में भी लुप्तप्रायः हो गए हैं। हम लोग जानते ही नहीं है कि गिद्धों के न रहने से इस पृथ्वी ने क्या खोया है।वर्ष 1997 में पूरी दुनिया में रेबीज नामक बीमारी से 50 हजार से अधिक लोग मर गए थे। भारत में सबसे ज्यादा 30 हजार से अधिक मौतें हुई थीं। स्टेनफोर्ड विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने अपने अध्ययन में पाया कि ऐसा गिद्धों की संख्या में अचानक आई कमी के कारण हुआ था जिसके फलस्वरूप चूहों और कुत्तों की संख्या में एकाएक वृद्धि हो गई थी। अध्ययन में यह भी बताया गया था कि कुछ पक्षियों की प्रजातियों के समाप्त होने से मृत पशुओं की सफाई, बीजों का प्रकीर्णन और परागण जैसे कार्य बहुत बड़ी हद्द तक प्रभावित हुए हैं। अमेरिका जैसा देश अपने यहां चमगादड़ों को संरक्षित करने का अभियान चला रहा है। सामान्यतः हम सोचते हैं कि चमगादड़ तो पूरी तरह से बेकार जीव है।
मगर वैज्ञानिकों के अनुसार चमगादड़ मच्छरों के लार्वा खाता है। यह रात्रिचर परागण करने वाला प्रमुख पक्षी है एवं यह खेती का मित्र है, जिसका मुख्य भोजन चूहा है। इसीलिए भारतीय संस्कृति में पक्षियों के संरक्षण एवं संवर्धन की बात कही गई है। अर्थात, जैव विविधता को बनाए रखने की बात केवल हिंदू सनातन संस्कृति में ही बहुत पहिले से मानी जाती रही है। परंतु विकसित देशों द्वारा अपनाए गए विकास के मॉडल के अंतर्गत जैव विविधता के महत्व को कम आंकने के चलते अब इस पृथ्वी पर पर्यावरण एवं प्राकृतिक संतुलन बनाए रखना लगभग असम्भव सा हो गया है।
हमारे जीवन में जैव विविधता का बहुत महत्व है। इस पृथ्वी पर अब एक ऐसे पर्यावरण का निर्माण करना एक आवश्यकता बन गया है, जो जैव विविधता में समृद्ध, टिकाऊ और आर्थिक गतिविधियों के लिए हमें निरंतर अवसर प्रदान करता रहे। जैव विविधता में असंतुलन आने से प्राकृतिक आपदाएं जैसे अत्यधिक वर्षा, तूफान, बाढ़, सूखा और भूकम्प आदि आने का खतरा बढ़ जाता है। इसलिए हमारे लिए जैव विविधता का संरक्षण करना अब बहुत जरूरी हो गया है। हमारा जीवन प्रकृति का अनुपम उपहार है। अत: पेड़-पौधे, अनेक प्रकार के जीव-जंतु, मिट्टी, हवा, पानी, महासागर-पठार, समुद्र-नदियां इन सभी का संरक्षण जरुरी है क्योंकि ये सभी हमारे अस्तित्व एवं विकास के लिए महत्वपूर्ण है।
जैव विविधता को कई कारणों से नुकसान हो रहा है। जैसे, जगलों के क्षेत्र में लगातार हो रही कमी, प्रदूषण, प्राकृतिक एवं मानवजन्य आपदाएं, जलवायु परिवर्तन, कृषि का आधुनिकीकरण, जनसंख्या वृद्धि, पशु एवं पक्षियों का शिकार और उद्योगों एवं शहरों का प्रसार। अन्य कारणों में सामाजिक एवं आर्थिक बदलाव, भू-उपयोग में परिवर्तन, खाद्य श्रृंखला में हो रहे परिवर्तन तथा जीवों की प्रजनन क्षमता में कमी इत्यादि भी शामिल हैं।
आज आवश्यकता इस बात की है कि विकास के लिए जैव विविधिता के साथ बेहतर तालमेल बनाया जाए। विकास और जैव विविधिता को दो अलग अलग अवधारणाओं के रूप में नहीं देखा जा सकता। जैव विविधिता के संरक्षण के बिना विकास का कोई महत्व नहीं है। जैव विविधता का संरक्षण करना मानव जीवन के अस्तित्व के लिए आवश्यक है। अतः पूरे विश्व को ही आज सनातन भारतीय संस्कृति को अपनाने की आवश्यकता है अन्यथा तो इस पृथ्वी पर रहना ही लगभग असम्भव होने जा रहा है।