– अशोक भाटिया

सपा सांसद रह चुके रघुराज शाक्य मैनपुरी लोकसभा उप चुनाव में सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल यादव को चुनौती देंगे। भाजपा ने रघुराज शाक्य को मैनपुरी उप चुनाव में पार्टी का प्रत्याशी घोषित किया है। पार्टी ने मंगलवार को उप चुनाव के लिए उम्मीदवारों की घोषणा की। प्रसपा के अध्यक्ष शिवपाल यादव के करीबी रहे रघुराज शाक्य विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा में शामिल हुए थे। रघुराज को पार्टी ने मैनपुरी में प्रत्याशी बनाकर सपा के लिए मुकाबले को कांटे का बनाने की कोशिश की है। डिंपल यादव ने सोमवार को नामांकन दाखिल किया। इस दौरान डिंपल और अखिलेश से अधिक चर्चा में सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव रहे। उनके नाम पर ही वोट मांगते अखिलेश यादव दिखते रहे। अब भाजपा ने ऐसा दांव खेला है, जिस चुनौती से निपटना अखिलेश यादव के लिए मुश्किलों भरा हो सकता है। शिवपाल यादव भले ही सोमवार को दिन भर लखनऊ कार्यालय में बैठकर भविष्य की रणनीति बनाते दिखे। मैनपुरी के चुनावी मैदान में वे दिखेंगे या नहीं, भविष्य तय करेगा। लेकिन, उनके साथी रहे रघुराज शाक्य की भाजपा से उम्मीदवारी ने चुनावी हलचल को बढ़ा दिया है। रघुराज शाक्य को शिवपाल सिंह यादव का करीबी माना जाता है। उत्तर प्रदेश चुनाव 2022 से ठीक पहले प्रगतिशील समाजवादी पार्टी छोड़कर रघुराज शाक्य ने भाजपा का दामन थाम लिया था। रघुराज शाक्य इटावा सीट से दो बार सांसद रहे हैं। उन्होंने उत्तर प्रदेश चुनाव से पहले उप  मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य की मौजूदगी में इसी साल फरवरी माह में भाजपा की सदस्यता ग्रहण की थी। करीब 53 वर्षीय रघुराज शाक्य प्रगतिशील समाज पार्टी के प्रदेश उपाध्यक्ष के पद पर भी रह चुके हैं। रघुराज शाक्य वर्ष 1999 और 2004 में समाजवादी पार्टी के टिकट पर इटावा से सांसद चुने गए। वर्ष 2012 में सपा के टिकट पर इटावा सदर सीट से विधानसभा का चुनाव जीता था। उत्तर प्रदेश चुनाव 2022 में इटावा सदर सीट से उम्मीदवारी कर रहे थे, लेकिन उन्हें चुनावी मैदान में नहीं उतारा गया।

मैनपुरी में जातीय समीकरण की बात करें तो ये सीट पिछड़े वर्ग के मतदाताओं की बहुलता वाली सीट है। यहां सबसे ज्यादा यादव मतदाता हैं। इनकी संख्या करीब 3.5 लाख है। शाक्य, ठाकुर और जाटव मतदाता भी अच्छी संख्या में हैं। इनमें करीब 1.60 लाख शाक्य, 1.50 लाख ठाकुर,  1.40 लाख जाटव, 1.20 लाख ब्राह्मण और एक लाख के करीब लोधी और राजपूतों के वोट हैं। वहीं, वैश्य और मुस्लिम मतदाता भी एक लाख के करीब हैं, जबकि कुर्मी मतदाता की संख्या एक लाख से ज्यादा है। मैनपुरी में अभी करीब 17 लाख वोटर्स हैं। इनमें 9.70 लाख पुरुष और 7.80 लाख महिलाएं हैं। 2019 में इस सीट पर 58.5% लोगों ने वोट डाला था।

मुलायम सिंह यादन ने भले ही 1996, 2004, 2009, 2014 और 2019 में पांच बार मैनपुरी सीट जीती हो, लेकिन पिछले लोकसभा चुनाव में उनकी जीत का अंतर समाजवादी के लिए चिंता का विषय है। 2004 के लोकसभा चुनावों में 64 प्रतिशत मतदाताओं का समर्थन हासिल करने वाली समाजवादी पार्टी के लिए साल 2019 लोकसभा चुनाव में जीत का अंतर घटकर 94,389 रह गया, जबकि समाजवादी ने ये चुनाव बसपा  के साथ मिलकर लड़ा था, जिसे दलितों का बड़ा समर्थक माना जाता है।

अखिलेश और डिंपल यादव के सामने सबसे बड़ी चुनौती परिवार को एकजुट करने की भी होगी। मैनपुरी लोकसभा के तहत इटावा नगर की जसवंतनगर विधानसभा सीट भी आती है। इस सीट से शिवपाल सिंह यादव विधायक हैं। शिवपाल सिंह और अखिलेश के बीच की तल्खी भी जगजाहिर है। वहीं, जसवंतनगर में शिवपाल यादव की पकड़ सबसे मजबूत मानी जाती है। साल 2019 के लोकसभा में मुलायम सिंह की जीत जसवंतनगर से ही सुनिश्चित हुई थी। इस सीट से मुलायम सिंह यादव ने 65 हजार से ज्यादा वोटों के लीड ली थी। ऐसे में शिवपाल यादव की नाराजगी डिंपल पर भारी पड़ सकती है। हालांकि, रामगोपाल यादव ने कहा कि शिवपाल की सहमति से ही मौनपूरी से डिंपल को प्रत्याशी बनाया गया।

मैनपुरी लोकसभा सीट पर उप चुनाव सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव के निधन के बाद हो रहा है। यह मुलायम परिवार की परंपरागत सीट रही है। ऐसे में सपा की ओर से डिंपल यादव को उम्मीदवार बनाया गया। उनके पक्ष में चुनावी मैदान में उतरे अखिलेश यादव ने मुलायम सिंह यादव के नाम पर सभी वोट डिंपल को मिलने का दावा किया है। हालांकि, भावनाओं को एक तरफ रखें तो शाक्य वोट बैंक मुलायम सिंह यादव तक की चिंता इस सीट पर बढ़ाता रहा है। मैनपुरी सीट से लोकसभा चुनाव 2019 में महज 94,389 वोटों के अंतर सेजीता था। मुलायम के खिलाफ प्रेम सिंह शाक्य चुनावी मैदान में उतरे थे।

लोकसभा चुनाव 2019 में मुलायम सिंह यादव को 5,24,926 वोट मिले थे। वहीं, दूसरे नंबर पर रहे भाजपा के प्रेम सिंह शाक्य को 4,30,537 वोट मिले थे। मुलायम सिंह यादव का यह आखिरी चुनाव माना जा रहा था। इस कारण भाजपा का कोई भी सीनियर नेता यहां प्रचार करने नहीं आया। इसके बाद इस प्रकार का वोट भाजपा उम्मीदवार के पक्ष में था। उत्तर प्रदेश चुनाव 2022 में भाजपा ने मैनपुरी सीट के तहत मैनपुरी विधानसभा और भोगांव विधानसभा सीट पर कब्जा जमाया था। भाजपा ने पिछले दिनों में किलों को ढाहने की कवायद शुरू की है। आजमगढ़ और राजपुर लोकसभा सीट पर समाजवादी पार्टी के अभेद्य किले को उप चुनाव की बिसात पर ढाहा जा चुका है। इन सीटों पर भगवा परचम लहरा रहा है। ऐसे में रघुराज शाक्य डिंपल यादव की चुनौती बढ़ा सकते हैं। इतना मानकर चलिए, अब मैनपुरी लोकसभा सीट पर प्रचार करने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी जाएंगे। अन्य सीनियर नेता भी। इसलिए मुकाबला कड़ा होगा।

भाजपा की तो 2014 से ही उत्तर प्रदेश की ऐसी सीटों पर नजर रही जिन पर बड़े राजनीतिक विरोधी काबिज हुआ करते थे। 2019 में भाजपा ने अमेठी हथिया लिया और 2022 में आजमगढ़ और रामपुर के बाद  भाजपा का अगला निशाना मैनपुरी ही है।

डिम्पल का राजनातिक अनुभव देखे तो  2009 से उन्होंने अपना सफ़र शुरू किया था । तब अखिलेश यादव फिरोजाबाद और कन्नौज दो लोक सभा सीटों से चुनाव लड़े थे। दोनों सीटों से जीते भी, लेकिन बाद में फिरोजाबाद छोड़ दी थी। जब उपचुनाव की घोषणा हुई तो परिवार में डिंपल यादव को चुनाव लड़ाने पर सहमति बनी – ये डिंपल यादव का पहला चुनाव था।लेकिन तभी राज बब्बर भी कांग्रेस से टिकट लेकर मैदान में कूद पड़े। मुलायम परिवार में किसी ने भी राज बब्बर की परवाह नहीं की। असल में राज बब्बर पहले समाजवादी पार्टी के ही नेता हुआ करते थे, लेकिन पार्टी में उनको लाने वाले अमर सिंह से तकरार बढ़ जाने पर निकाल दिया गया था। राज बब्बर के बाद ही अमर सिंह ने अमिताभ बच्चन और जया बच्चन को मुलायम सिंह यादव के परिवार और पार्टी से जोड़ा था, लेकिन उनके बढ़ते प्रभाव से राज बब्बर को घुटन होने लगी थी , और फिर नौबत ये आ गयी कि पार्टी से ही बेदखल होना पड़ा । फिरोजाबाद उपचुनाव राज बब्बर के लिए बदला लेने का बड़ा मौका समझ में आया।चुनाव प्रचार के लिए जब राज बब्बर ने सलमान खान को बुला लिया तो, अमर सिंह ने संजय दत्त को बुला लिया डिंपल यादव के लिए वोट मांगने। अमर सिंह ने भी संजय दत्त के साथ रैली की, लेकिन सलमान खान को वॉन्टेड बोल कर सारे किये कराये पर खुद ही पानी फेर दिया।नतीजा आया तो डिंपल यादव चुनाव हार चुकी थीं और राज बब्बर जीत कर हिसाब बराबर कर चुके थे। पूरे परिवार में मायूसी छा गयी और उबरने में तीन साल लग गये , लेकिन ये भी है कि डिंपल की वो हार समाजवादी पार्टी के लिए संजीवनी बूटी साबित हुई। अखिलेश यादव के लिए डिंपल यादव की हार बहुत बड़ा सदमा रही। तब समाजवादी पार्टी उत्तर प्रदेश की सत्ता से बाहर हो चुकी थी और मायावती अपनी सोशल इंजीनियरिंग के जरिये सरकार बनवा चुकी थीं   । अखिलेश यादव ने सलाह मशविरा किया और साइकिल लेकर निकल पड़े।उसके बाद तो अगले विधानसभा चुनाव की तारीख आने तक अखिलेश यादव साइकिल पर ही सवार रहे और गांव गांव घूम कर लोगों से समाजवादी पार्टी के लिए वोट मांगते रहे। और तब तक मैदान में डटे रहे जब तक लोगों ने समाजवादी पार्टी को सत्ता नहीं सौंप दी।

ये तो मुलायम सिंह का दबदबा ही रहा जो सारी चीजें मैनेज कर दिये और 2012 में डिंपल यादव को निर्विरोध विजेता घोषित किया गया और वो संसद पहुंच गयीं। खास बात ये है कि तब भी डिंपल यादव को उपचुनाव में ही उतारा गया था और वो भी अखिलेश यादव की ही खाली की हुई सीट से। असल में 2012 में जब उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी की सरकार बनी तो मुलायम सिंह यादव पीछे हट गये और अखिलेश यादव मुख्यमंत्री बने गये  और उसी के चलते उनकी कन्नौज सीट खाली हो गयी थी। अव्वल को मुलायम परिवार को छाछ फूंक कर पीने की जरूरत नहीं थी, लेकिन सच तो यही रहा कि फिरोजबाद चुनाव का नतीजा दूध से जलने जैसा ही रहा। फिर क्या था, मुलायम सिंह यादव ने पूरी ताकत झोंक दी। फिर भी एक आदमी चुनाव मैदान में टपक पड़ा था। बहरहाल जैसे तैसे वो भी मैनेज हो गया  और डिंपल यादव निर्विरोध चुनाव जीत कर संसद पहुंच गयीं।

फिरोजाबाद की ही तरह पिछले आम चुनाव में हार का मुंह देख चुकीं डिंपल यादव के लिए मैनपुरी का मैदान कोई नया नहीं है, लेकिन कन्नौज की तरह तो वो मैनेज होने से रहा। बल्कि, ये लड़ाई तो और भी ज्यादा मुश्किल होने वाली है।मुलायम सिंह ने तो 2019 में ही मैनपुरी के लोगों से बोल दिया था कि वो अपना आखिरी चुनाव लड़ रहे हैं। हालांकि, वो अपना कार्यकाल भी नहीं पूरा कर पाये। और अब उनके विरासत को बचाने और बनाये रखने की जिम्मेदारी बेटे अखिलेश यादव पर आ चुकी है  और यही वजह है कि अखिलेश यादव ने अपने बाद समाजवादी पार्टी का सबसे मजबूत चेहरा मैदान में उतार दिया है।हो सकता है अखिलेश यादव ने मुलायम सिंह यादव के आखिरी चुनाव लड़ने की बात सोच कर ही मैनपुरी संसदीय क्षेत्र की विधानसभा सीट करहल से चुनाव लड़ने का फैसला किया हो  ये तो है ही कि आजमगढ़ के मुकाबले अखिलेश यादव के लिए मैनपुरी का किला बचाना कहीं ज्यादा जरूरी है।

मैनपुरी संसदीय क्षेत्र में पांच विधानसभा सीटें हैं, जिनमें अखिलेश यादव की करहल सहित तीन विधानसभा सीटें समाजवादी पार्टी के पास हैं, जबकि दो सीटों पर भाजपा काबिज है। इस लिहाज से देखा जाये तो इलाके में आधे से ज्यादा दखल तो समाजवादी पार्टी का ही है, लेकिन चुनाव भी तो सर्जरी की ही तरह होता है जिसमें हमेशा ही जोखिम बना रहता है।मैनपुरी सीट पर समाजवादी पार्टी का 1996 से ही कब्जा रहा है, जब मुलायम सिंह यादव खुद वहां से सांसद बने थे  अब तक मैनपुरी लोक सभा सीट पर दो बार उपचुनाव भी हो चुके हैं और ये तब से तीसरा उपचुनाव है।2004 में हुआ उपचुनाव जीत कर धर्मेंद्र यादव संसद पहुंचे थे, लेकिन 2022 के आजमगढ़ उपचुनाव में वो भाजपा के दिनेश लाल निरहुआ से मात खा गये।

2014 में मुलायम सिंह यादव मैनपुरी और आजमगढ़ दो सीटों से चुनाव लड़े और जीतने के बाद मैनपुरी सीट छोड़ दी थी। तब मुलायम परिवार के ही तेज प्रताप यादव सांसद बने – और अब उनकी बहू डिंपल यादव मैदान में उतर चुकी हैं।हाल फिलहाल हो रहे उपचुनाव एक हिसाब से 2024 के आम चुनाव के लिए फीडबैक माने जा रहे हैं, लेकिन मैनपुरी उपचुनाव का नतीजा तो समाजवादी पार्टी की  उम्मीदवार डिम्पल यादव के लिए आसान नहीं लगाती। खैर नतीजा जो है वह 8 दिसंबर को आएगा तब तक बहुत कुछ राजनीतिक उलटफेर हो सकता है  । (युवराज)

– अशोक भाटिया

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