इन दिनों पंजाबी सिनेमा हिंदी सिनेमा के समानान्तर खड़ी होती दिखाई देने लगी है। पंजाबी फिल्मों का बाज़ार छोटा होने के बावजूद पंजाबी फिल्मों का कलेक्शन औसतन ठीक ठाक चल रहा है ।

इसी वजह से पंजाबी फिल्मों के निर्माण की गति में भी तेजी आई है। इन दिनों पंजाबी सिनेमा जगत में एक नाम तेजी से उभर कर सामने आया है लेखक और निर्देशक नरेश एस गर्ग का। जब नरेश गर्ग ने इंडस्ट्री में कदम रखा,पंजाबी फिल्म उद्योग पर कुछ चुनिंदा फिल्म निर्देशकों का कब्जा था, अब खुद को स्थापित करना इतना आसान नहीं था, धीरे-धीरे संपादक से लेखक और लेखक से निर्देशक तक का सफर पूरा करना। नरेश गर्ग का कहना है कि उनका सपना एक स्वच्छ सिनेमा की स्थापना करना है जहां मनोरंजन के नाम पर अश्लीलता या गंदगी नहीं परोसी जाती है, इसलिए मेरी हर फिल्म अपनी संस्कृति पर आधारित होती है।

मेरा मकसद है कि पूरा परिवार साथ में मेरी फिल्म देखे। नरेश का पहले भी एक सपना था,निर्देशक बनने के बाद अभिनेता बनना चाहते थे, यही वजह थी कि जब वो 12वीं की पढ़ाई कर रहे थे, तभी उनके पास मुंबई से फोन आया और वे बीच में ही पढ़ाई छोड़कर मुंबई के लिए निकल गए।

उन्होंने अभिनय का डिप्लोमा पूरा किया, जब उन्हें अभिनय में ज्यादा गुंजाइश नहीं मिली तो उन्होंने खुद को संपादन की ओर अग्रसर किया और फिर उसके बाद वो निर्देशन के क्षेत्र में आ गए। पंजाब के होशियारपुर जिले में 24अगस्त1974 को जन्मे नरेश एस गर्ग कई पंजाबी फिल्मों का लेखन और निर्देशन कर चुके हैं। संदेशपरक फिल्मों को प्राथमिकता देने वाले पंजाबी सिनेमा के मशहूर लेखक निर्देशक नरेश  गर्ग  को राज काकरा, जोनिता डोडा, नवदीप कलेर, नीतू पंढेर, गुरिंदर मक्का, धर्म युद्ध मोर्चा,  चमकीला फॉरएवर, खत्रे दा घुग्गू, मालवा दी जट्टी, सग्गी फुल, कौम दे हीरे, धन धन बाबा बुद्दन शाह जी और शाविंदर महल अभिनीत पंजाबी फिल्म पट्टा पत्ता सिंघन दा वैरी के निर्देशन के लिए जाना जाता है।

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