हे इंसान, अगर तू सच्चा इंसान है, हिन्दू, मुस्लिम सिख ईसाई, पारसी या और कोई – इस धरती माँ के किसी भी हिस्से में रहता है, कोई भी भाषा बोलता है, मांसाहारी है या शाकाहारी ! कहीं न कहीं किसी भी अवस्था में गाय का दूध जरूर पीता है ! बचपन में माँ के स्तनों से दूध प्रचूर मात्रा में न मिलने के कारण, बच्चे को जल्दी हजम होने वाला गाय के दूध से ही पाला जाता है ! बड़े होने पर उसे चाय, काफी, मिल्क शेख, ठंडाई में भी दूध की जरूरत पड़ती है ! गांधी जी ने जन्मभर बकरी का दूध पीया है, आज तक किसी राजनेता, धर्मगुरु, संत महात्मा ने बकरी को माँ का दर्जा नहीं दिया ! भैंस का दूध, गाय का दूध, बकरी का दूध यहां तक भेद का दूध और ऊँट तक का दूध इंसान इस्तेमाल करता है !
किसी राजनेता, धर्माधिकारी, संत महात्मा ने गाय के अलावा किसी को माँ का दर्जा नहीं दिया ! क्यों ? कहते हैं जब देव – दानवों ने समुद्र मंथन किया था और १४ रत्न समुद्र से निकले थे, उन रत्नों में एक रत्न काम धेनु नाम की गाय भी शामिल थी ! रामायण की एक कथा के अनुसार सत्यनारायण विष्णु भगवान् ने यह कामधेनु गाय महर्षि वशिष्ट जी (जो बाद में भगवान् राम के परिवार के सम्मानीय पुरोहित हुए ) को दे दी थी ! ये गाय महर्षि वशिष्ट जी को पत्नी सहित सारे आश्रम वासियों को सारी सुविधाएं उपलब्ध कराती थी ! उन दिनों अयोध्या नरेश विश्वामित्र हुआ करते थे ! उन्हें आखेट खेलने का बड़ा शौक था ! एक बार वे अपनी सैना के साथ जंगल में आखेट को गए, रात होगई, जंगल घना था, भटकते हुए वे महर्षि वशिष्ट जी के आश्रम में पंहुच गए ! आश्रम में महर्षि वशिष्ट जी ने पत्नी सहित अयोध्यापति महाराज विश्वामित्र जी का स्वागत किया और सारे सैनिकों सहित विश्वामित्र जी को खान-पान और सोने तक का बेहतरीन इंतजाम करके दिखा दिया ! अगली सुबह महाराज विश्वमित्र जी ने ब्रह्मऋषि का धन्यवाद किया, साथ ही यह भी पूछ लिया की ‘आश्रम में आपने इतने सारे लोगों की उनकी हैसियत के मुताबिक़ शाकाहारी पौष्टिक,भोजन और रात को सोने की इतनी उच्च कोटि की व्यवस्था कैसे की ? महर्षि वशिष्ट जी ने सारा श्रेय कामधेनु को दे दिया ! सम्राट विश्वामित्र जी के मन में खोट आगया, उनहोंने सोचा, “इतने उच्च कोटि की सर्वगुण संपन्न कामधेनु गाय यहां आश्रम में शोभा नहीं दे रही है, इसे तो अयोध्या नरेश के निजी गौशाला की शोभा बढ़ानी चाहिए” .
प्रकट में उन्होंने महर्षि वशिष्ट जी से कहा, “ऋषिवर, आश्रम में ये देवलोक की गाय शोभाहीन होगई है, इसकी असली जगह अयोध्या नरेश के गौशाला में है, आप इसे मुझे दे दीजिये और बदले में जितना धन, सोना चांदी चाहिए, ले लीजिए ” ! लेकिन वशिष्ट जी ने गाय देने से इंकार कर दिया ! विश्वामित्र जी ने भी कामधेनु गाय को जबरन उठाने की ठान ली और अपनी पूरी सैनिक शक्ति गाय को अपनी राजधानी ले जाने के लिए लगा दी ! महाराजा के इस कुकृत से कामधेनु गाय ने रूष्ट होकर जितने सैनिक थे उतने ही रूप बनाकर सारे सैनिकों को घायल कर धरती पर गिरा दिया ! महाराज विश्वामित्र इस अप्रत्याशित हार से आहत हुए और बिना कामधेनु गाय के ही अपने घायल सैनिकों के साथ अयोध्या लौट गए ! राजधानी लौटते ही उनहोंने अपना राजपाट अपने पुत्र को सौंप दिया और स्वयं भगवा वस्त्र धारण करके वे ब्रह्म ऋषि बनने के लिए तपस्या करने के लिए जंगल में चले गए ! यह केवल कहानी ही नहीं है, बल्कि पौराणिक कथाओं में अंकित है ! मां के दूध के बाद बच्चे की पाचन शक्ति को दुरुस्त करने के लिए मात्र गाय का दूध ही नन्ने बच्चे को पिलाया जाता है !
भैंस या बकरी का दूध नन्ने दुधमुंहे बच्चे को नहीं पिलाया जाता ! गांधी जी केवल बकरी का ही दूध पीते थे आम जनता भैंस का दूध पीती है लेकिन कोइ “भैंस माता या बकरी माता नहीं कहता” ! गौ माता का लालन पालन मात्र एक धर्म या जाति विशेष के अधिकार क्षेत्र में नहीं आता ! समाचारों और टी वी चैंनलों में दिखाया जाता है, रामदेव बाबा के आश्रम में बहुत सारी गाएं पाली जाती हैं और शुद्ध दूध और गाय का घी जनता तक पहुंचाया जाता है ! बहुत सारे मुस्लिम धर्मालम्बी परिवार भी गाय पालते हैं और उनकी देख भाल और सेवा ठीक ऐसे ही की जाती है जैसे हिन्दू करते हैं ! पाठकों को शायद याद होगा, भारतीय राजनीति में सबसे पहले कांग्रेस ने अपना चुनाव चिन्ह दो बैलों की जोड़ी ली थी, भारत कृषि प्रधान देश है, इस प्रकार ये चिन्ह जनता की आस्थाओं से जुड़ा हुआ था, नरेंद्र देव, जय प्रकाश नारायण, डाक्टर राम मनोहर लोहिया.
उन दिनों प्रजा सोशलिस्ट पार्टी से जुड़े थे जिनका चुनाव चिन्ह वरगद का पेड़ था ! लेकिन हर बार कांग्रेस की बैलों की जोड़ी ही जीत हासिल करती थी ! १९६७ में कांग्रेस में बिखराव हुआ, पुरानी कांग्रेस और नयी कांग्रेस बनी, इंद्रा गांधी ने नयी कांग्रेस खड़ी की और चुनाव चिन्ह गाय-बछिया को अपनी पार्टी का चुनाव चिन्ह गाय संग नन्नी बछिया को लिया !! ये चिन्ह भी आम जनता की आस्थावों से जुड़ा रहा ! कांग्रेस में फिर से बिखराव हुआ, बड़े बड़े कांग्रेस के ओल्ड फोल्ड नेता, चौधरी चरणसिंह, मोरारजी देसाई, लिंजगलप्पा जैसे नेता प्रधान मंत्री की कुर्सी पर बैठने का ख़्वाब देखते देखते लुढ़कने लगे तो उन्होंने, प्रधान मंत्री की कांग्रेस पद को एक परिवार की निजी सम्पति बनाने के लिए इंद्रागाँधी के मनसूबे पर ही सवालिया चिन्ह लगा दिया !
अब के इंद्रागाँधी जी को चुनाव चिन्ह मिला ‘हाथ’ “थप्पड़” और ये थप्पड़ आज भी विद्यमान है ! देश में एमरजेंसी लगी, १९७७ के चुनाव में इंद्रा जी की पार्टी को करारी हार का सामना करना पड़ा, मोरारजी देसाई प्रधान मंत्री बने, लेकिन दो साल के अंदर चौधरी चरणसिंह जी ने अपना दावा ठोक दिया प्रधान मंत्री की कुर्सी पर हक़ जमाने के लिए ! वे पीएम तो बने पर केवल कार्यवाहक, उन्हें संसद में हार का सामना करना पड़ा, संसद को भंग करना पड़ा और १९८० के चुनाव में इंद्रा गांधी फिर सत्ता में आगयी ! आस्थाओं से जुड़ी “गौ माता” !! पूजा के स्थान को स्वच्छ और पवित्र करने के लिए गौ मूत्र और गौ गोबर से लिपाई की जाती है ! गौमूत्र कही अंदरूनी बीमारियों में रामवाण का काम करती है ! देश में ही नहीं विदेशों में भी बहुत से मुसलिम भाई गाय को बड़ा स्थान देते हैं ! देश में बहुत सारे आश्रम चल रहे हैं, जहां गौशालाओं में बहुत सारी गायें पाली जाती हैं ! गाय को माता का दर्जा देने वाले सच्ची आस्था के साथ इन आश्रमों में खुले दिल से चन्दा देते हैं ! हम दूर क्यों जांय हरिद्वार में रामदेव जी के आश्रम में जांय और देखें की वहां गौशाला में बहुत सारी गायों की देख-भाल और सुरक्षा की जाती है ! गज धन और वाजिधन एक राजा द्वारा दूसरे पड़ोसी राजा से आत्म रक्षा का साधन जुटाता है लेकिन ‘गौधन सम्राट से लेकर आम जनता को मानसिक, शारीरिक रोगों से मुक्ति देता है ! ये धार्मिक आस्थाओं से भी जुड़ा हुआ है ! मन्त्रों में गाय के दूध से बना आचमन शुद्ध माना जाता है ! गाय के दूध से बनी खीर का मजा ही कुछ और है ! दूध के अलावा घी, मट्ठा, गर्मियों में लू से बचाता है ! गौ माता सर्व श्रेष्ट है, पूजनीय है – “गौ माता की जय “” हरेंद्र