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दिलचस्प और स्टाइलिश रहा महाराष्ट्र में चुनाव प्रचार* 

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(डॉ.मुकेश कबीर-विभूति फीचर्स)
महाराष्ट्र में चुनाव प्रचार समाप्त हो चुका है। इस बार चुनाव परिणाम को लेकर कोई भी निश्चित नहीं है। परिणाम क्या होगा यह तो तेईस तारीख को पता चल ही जाएगा लेकिन अभी चर्चा में है महाराष्ट्र का चुनाव प्रचार। महाराष्ट्र जैसा दिलचस्प चुनाव प्रचार पूरे देश में कहीं नहीं होता है,इसे निश्चित रूप से स्टाइलिश कैंपेन कहा जा सकता है। महाराष्ट्र के चुनाव प्रचार की खासियत यह होती है कि यहां की जनता बहुत अनुशासित होती है और नेता बहुत सम्माननीय होते हैं,यहां नेताओं के प्रति गहरी निष्ठा होती है इसीलिए जब वो मंच पर आते हैं तो इतनी गर्मजोशी से उनका स्वागत और अभिनन्दन होता है जैसे देवराज इंद्र पधारे हों और नेताओं से जनता का एक दिली लगाव तो होता ही है साथ ही उनके रिश्ते बिल्कुल घर जैसे होते हैं इसीलिए संबोधन भी घरेलू होते हैं दादा,ताई,काका, और साहेब। नेता भी आपस में एक दूसरे का जिक्र इसी तरह के संबोधन से करते हैं फिर चाहे वो विरोधी पार्टी के नेता ही क्यों न हों।
यहां सभी पार्टियां अजीत पवार का जिक्र करती हैं तो उनके नेता उनको अजीत दादा ही बोलते हैं,फिर चाहे अजीत दादा पर कोई आरोप ही क्यों न लगाना हो। इसी तरह की छोटी छोटी बातों से यहां के चुनाव प्रचार में एक घरेलू वातावरण बन जाता है जो देश में और कहीं देखने को नहीं मिलता ।यहां का चुनावी वातावरण ऐसा होता है कि महिलाएं भी चुनावी सभा में स्वयं को सहज महसूस करती हैं। यही कारण है कि चुनावी सभाओं में जितनी संख्या में महिलाएं महाराष्ट्र में इकट्ठी होती हैं उतनी और किसी राज्य में नहीं,पूर्वोत्तर के राज्यों भी महिलाएं बहुत आती हैं लेकिन उसके कुछ अलग कारण हैं।
बात महाराष्ट्र की करें तो यहां की चुनावी सभाएं बहुत अनुशासित होती हैं और पंडाल का माहौल लगभग वैसा ही होता है जैसा उत्तर भारत में किसी सांस्कृतिक आयोजन का होता है । चुनावी भीड़ में महिलाओं के साथ कोई छेड़छाड़ नहीं होती और न ही किसी प्रकार के हुड़दंग की स्थिति निर्मित होती है ।यहां सभी मराठी मानुष होते हैं जो मराठी अस्मिता का पूरा ध्यान रखते हैं।
           अब यदि नेताओं की बात करें तो हर नेता का अपना स्टाइल होता है,अजीत पवार और राज ठाकरे का सेंस ऑफ ह्यूमर जबरजस्त होता है इनकी सभा एक कॉमेडी शो जैसी हो जाती है इसलिए इनकी सभाओं में भीड़ ज्यादा होती है और भीड़ सिर्फ इनके चुटकुले सुनने ही आती है। अजीत पवार विरोधाभासी नेता हैं उनकी निष्ठा किधर है यह क्लियर नहीं है लेकिन लोगों की नजर में वो पंवार साहेब के भतीजे हैं यही उनकी टीआरपी है और इसको कैसे भुनाया जाये यह अजीत दादा अच्छे से जानते हैं अजित दादा का दबदबा भी अच्छा है इसीलिए कोई लिबर्टी नहीं ले पाता,यहां तक कि सारे नेता उनको दादा ही कहते हैं फिर चाहे फडणवीस हों, नवाब मलिक हों या कोई और सभी अजीत दादा की पोजिशन का ध्यान रखकर बोलते हैं।
अजीत दादा के भाषण भी रोचक होते हैं और कभी कभी बिलो द बेल्ट भी होते हैं लेकिन मराठी मानुष को सब चलता है इसीलिए पिछले चुनाव में उनका दिया गया डायलॉग बहुत चर्चित हुआ था जिसे सोशल मीडिया पर भी खूब उछाला गया और उसके कार्टून भी बनाए गए थे ,अजीत दादा ने कहा था “यहां के डैम में पानी नहीं है तो मैं पेशाब से भर दूं क्या ? अजीत दादा के इस डायलॉग से जहां उनके समर्थक  बहुत रोमांचित हुए थे वहीं विरोधियों ने तीखी आलोचना की थी, और राज ठाकरे की पार्टी ने कार्टून बनाकर एक डैम का नाम ही “अजीत दादा मूत्रालय” दर्शा दिया था। अजीत दादा, भाषण के मामले में शरद पवार से अलग हैं ।
शरद पवार ज्यादातर काम की बातें ही करते हैं और जनता से घर के वरिष्ठ सदस्य की तरह बात व्यवहार करते हैं, यही उनकी ताकत भी है इसीलिए वे लोगों के पवार साहेब हैं,जिनका आधे महाराष्ट्र पर कब्जा है । उनकी राजनीति भाषण पर आधारित नहीं है बल्कि व्यक्तिगत संबंधों के दम पर वो पंवार साहेब बने हैं।महाराष्ट्र में साहेब बनना आसान नहीं है,वहां सिर्फ दो ही साहेब हुए हैं पंवार साहेब और बाला साहेब ,और इन दोनो का ही पूरे महाराष्ट्र पर कब्जा रहा है,ये दो सम्राट की तरह छाए रहे लेकिन दोनों की शैली भिन्न है।
बाला साहेब की बात सबसे अलग है क्योंकि उनमें बहुत से गुण थे,उनका व्यक्तिगत संपर्क तो मजबूत था ही उसके साथ उनके भाषण भी बहुत दमदार और रोमांचक होते थे, बाला साहेब की भाषा शैली इतनी अलग थी कि उनकी भाषा को लोगों ने अलग ही नाम दे दिया “ठाकरी भाषा” इस भाषा में असहनीय तीखेपन के साथ चुटकुले की मिठास भी होती थी और गालियों का नमक और साथ ही इतिहास,साहित्य और संस्कृति का ज्ञान भी इसलिए उनके जैसा नेता पूरे देश में कोई और नहीं था। उनकी इसी ठाकरी भाषा के सही उत्तराधिकारी बनकर उभरे हैं राज ठाकरे, जिनके भाषण में वे सभी तत्व हैं जो बाला साहेब में थे। उनका ह्यूमर भी कमाल का है इसीलिए राज के भाषण में  तीखे प्रहार के साथ मजेदार जोक्स भी होते हैं और उनकी सभा एक अच्छा खासा कॉमेडी सर्कस होती है । राज भी बाला साहेब की तरह मिमिक्री करते हैं। वे सभी नेताओं की मिमिक्री इतनी परफेक्ट करते हैं कि एक बार शरद पंवार ने कहा था कि “राज यदि नेता नहीं होता तो फिल्मी हीरो जरूर होता”।
राज पूरी तरह बाला साहेब का प्रतिबिंब लगते हैं, बहुत डायनेमिक हैं और बुलंद आवाज़ है साथ ही तेवर भी वही हैं,राज की सभा में आधी भीड़ तो इसलिए भी होती है कि लोगों को उनमें बाला साहेब स्पष्ट नज़र आते हैं। राज की सभा में महिलाएं बहुत बड़ी संख्या में आती हैं, देश में किसी भी नेता की सभा में इतनी महिलाएं नहीं आतीं इसका कारण है कि वे यहां सुरक्षित महसूस करती हैं । राज भी सभा में कोई भी बदसलूकी नहीं कर सकता खासकर महिलाओं के साथ, ऐसा ही प्रभाव बाला साहेब का हुआ करता था ।
राज में पूरे बाला साहेब उतर जाते है,किसी नेता की इतनी परफेक्ट कॉपी कहीं और देखने को नहीं मिली । किसी पिता पुत्र में भी इतनी समानता देखने को नहीं मिलती,यहां तक कि बाला साहेब के किसी भी पुत्र में उनकी ऐसी झलक दिखाई नहीं देती ,उनके खुद के द्वारा बनाए गए राजनीतिक उत्तराधिकारी उद्धव भी बाला साहेब जैसे नहीं लगते, उद्धव की शैली अलग है,हालांकि राजनीति में मौलिक शैली ही बेहतर मानी जाती है,उद्धव की शैली भी मौलिक है लेकिन लोग उनमें बाला साहेब देखना चाहते हैं इसलिए उद्धव ने अपने स्वभाव के विपरीत थोड़ा तीखापन लाने की कोशिश की है,और काफी हद तक सफल भी हुए हैं,इसका सबूत है उनकी सभाओं में उमड़ने वाली भीड़। राज के बाद किसी की सभा से सबसे ज्यादा भीड़ आ रही है तो वो उद्धव की सभा हैं। हालांकि उद्धव की सभा इसलिए उल्लेखनीय है क्योंकि उनकी सभा में जो भीड़ आ रही है वो इंटीरियर इलाकों में आ रही है जबकि राज मुंबई में भीड़ जुटाते हैं,मुंबई में भीड़ जुटाना इतना कठिन नहीं है जितना इंटीरियर में ।
उद्धव के भाषण अब बेहतर हो गए हैं,अब वो भी तीखी और मीठी मिक्स भाषा बोलते हैं, यही ठाकरी भाषा कहलाती है। ठाकरी भाषा के दो प्रतिनिधि और हैं एक संजय राउत जो रोज टीवी पर बोलते हैं और दूसरे आदित्य ठाकरे जो टीवी पर तो बोलते ही हैं और सभाओं में भी खूब बोलते हैं। खास बात यह है कि आदित्य ने खुद को शिवसेना का अगला   उत्तराधिकारी साबित कर भी दिया है,आदित्य भी अन्य ठाकरे की तरह इंटेलिजेंट और नॉलेजेबल हैं साथ भी उनमें बाला साहेब के तेवर और उद्धव की विनम्रता का मिश्रण है।
राजनीति में सबसे ज्यादा सफल ऐसे नेता ही होते है इसीलिए आदित्य का भविष्य उज्जवल दिखाई देता है। हालांकि शुरुआत में आदित्य को शिवसेना का पप्पू भी कहा गया था लेकिन आदित्य ने अपनी मेहनत और काबिलियत से एक मैच्योर्ड नेता की इमेज बना ली है, इसकी झलक उनकी प्रेस कॉन्फ्रेंस में भी देखी जा सकती है ,आदित्य को देखकर शिवसेना का भविष्य सुरक्षित लगने लगा है लेकिन फिलहाल उनकी शिवसेना की सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि उनकी टक्कर सीधे सीधे केंद्र सरकार और राज्य सरकार दोनों से है और मोदी जी जैसे पॉपुलर प्रधानमंत्री के होते हुए उद्धव सेना की जीत आसान नहीं होगी इसलिए शिवसेना फिलहाल तो उतनी सशक्त नहीं होगी जितनी बाला साहेब के वक्त थी लेकिन भारत की राजनीति  के बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता ।
हमारी राजनीति दलबदलू नेताओं का स्वर्ग है इसलिए भविष्य में क्या होगा यह वक्त आने पर ही पता चलेगा,ऊंट किस करवट बैठेगा यह तो एक्सपर्ट जानते हैं लेकिन अभी तो चुनाव प्रचार गर्मागर्म रहा ,बिल्कुल चना जोर गरम की तरह,बस इसका मजा लीजिए, जनतंत्र में जन के हाथ में बस यही काम होता है,सभा में ताली बजाने का अधिकार तो हमारा ही है,इसे कोई सरकार नहीं छीन सकती तो तेईस तारीख तक इंतजार कीजिए तब तक जय हिंद,जय महाराष्ट्र।
(लेखक गीतकार हैं।)

अमरेली जिले के लोग पशुपालन के माध्यम से आर्थिक रूप से मजबूत हो रहे हैं

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अमरेली जिले के चरवाहे, पशुपालन में अपना भविष्य देख रहे हैं और इससे लाखों रुपये कमा रहे हैं. यहां के प्रमुख पशुपालक प्रदीपभाई परमार ने गिर गायों के प्रजनन और बिक्री को व्यवसाय का रूप दिया है. वे असम, हरियाणा, पंजाब, बैंगलोर और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में गायें बेचते हैं. प्रदीपभाई महीने में 20 से अधिक गायें बेचते हैं और अच्छी नस्ल की गिर गायों के प्रजनन से यह संभव हो पाया है.

युवा कर रहे हैं पशुपालन में नवाचार
अमरेली जिले के युवा पशुपालन में रुचि लेकर अच्छी नस्ल की गाय और भैंसें पाल रहे हैं. गिर गाय और भैंसों से प्राप्त दुग्ध उत्पादन इनके व्यवसाय का प्रमुख हिस्सा है. सौराष्ट्र में एक गिर गाय की कीमत लाखों रुपये होती है, जबकि एक लीटर दूध का दाम 70 से 100 रुपये के बीच रहता है. एक गाय से महीने में 30 से 40 हजार रुपये तक की आमदनी होती है.

गुजरात की प्रसिद्ध गिर और कपिला गायें
गुजरात में गिर गाय का विशेष महत्व है, लेकिन कपिला गाय भी काफी चर्चित है. दमनगर गांव के एक चरवाहे के पास गिर गाय है, जिसकी कीमत 1.20 लाख रुपये आंकी गई है. यह गाय प्रतिदिन 14 लीटर दूध देती है. गाय के दूध से तैयार घी और अन्य उत्पादों से ग्रामीण क्षेत्रों में काफी आर्थिक प्रगति हो रही है.

हिंदू संस्कृति और गाय का महत्व
हमारी हिंदू संस्कृति में गाय का विशेष स्थान है. शोध से यह सिद्ध हुआ है कि गाय के दूध में स्वर्ण तत्व होते हैं. अमरेली जिले में काली कपिला, सफेद कपिला और गिर गाय जैसी विशेष नस्लें पाई जाती हैं. इन गायों की उच्च गुणवत्ता और दूध उत्पादन क्षमता ने पशुपालन व्यवसाय को नई ऊंचाई पर पहुंचाया है.

नौकरी छोड़ अपनाया पशुपालन
प्रदीपभाई परमार ने ग्रेजुएशन तक पढ़ाई की और कुछ समय तक पुलिस विभाग में नौकरी की. बाद में उन्होंने नौकरी छोड़कर पशुपालन का व्यवसाय शुरू किया. वर्तमान में वे गिर गायों की बिक्री और प्रजनन का कार्य कर रहे हैं. उन्होंने बताया कि उनके पास एक गिर गाय है जिसकी कीमत 1.20 लाख रुपये है और यह 14 लीटर दूध देती है. इस दूध से घी बनाया जाता है, जिससे उन्हें अतिरिक्त आय प्राप्त होती है.

समृद्धि का साधन बन रहा पशुपालन
अमरेली जिले के लोग पशुपालन के माध्यम से न केवल आर्थिक रूप से मजबूत हो रहे हैं, बल्कि इसे आधुनिक तरीके से संचालित कर रहे हैं. गिर गाय की बढ़ती मांग और उच्च दूध उत्पादन ने पशुपालन को एक लाभदायक व्यवसाय बना दिया है.

गाय पालने वाले को ही मिले चुनाव लड़ने का अधिकार

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MP News: गाय को लेकर देशभर में बहस छिड़ी रहती है, गौ पालन के मुद्दे पर सियासत भी जमकर होती है. इस बीच मध्य प्रदेश में पूर्व मंत्री और बीजेपी के एक विधायक ने गौ पालन को लेकर नई डिमांड की है. उनका कहना है कि जो लोग गाय पालते हैं, उन्हें ही चुनाव लड़ने का अधिकार मिलना चाहिए. जिसके बाद से ही विधायक के इस बयान की चर्चा तेजी से सियासी गलियारों में हो रही है. जबकि उन्होंने हर पंचायत में गौशाला खोलने की मांग भी की है.

दरअसल, मंदसौर जिले की सुवासरा विधानसभा सीट से बीजेपी विधायक और पूर्व मंत्री हरदीप सिंह डंग ने गौपालन को लेकर यह डिमांड की है. दरअसल, आगर मालवा जिले के सालरिया स्थित कामधेनु गौ अभयारण में चल रही एकवर्षीय गौ कथा में हरदीप सिंह डंग पहुंचे हुए थे, जहां उन्होंने कहा ‘नेता खाली भाषण दे रहे है कि गौमाता के लिए वो यह करते हैं वो करते हैं, लेकिन ऐसा दिखता नहीं है. लेकिन मेरा मानना है कि भारत में ऐसा कानून बनना चाहिए कि कोई भी पंच सरपंच विधायक सांसद कोई सा भी चुनाव लड़े, जो गौ माता पाले उसे ही चुनाव लड़ने का अधिकार हो, जो गौ पालन नहीं करता है उसका फार्म रिजेक्ट कर देना चाहिए. खाली बोलने से काम नहीं चलेगा.’

गौ माता के इस Video को देख लोगों ने कही ये बात

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हमारे देश में गाय को पूजा जाता है। उसे एक मां का दर्जा दिया जाता है। कई लोगों के घरों में गाय पाली जाती हैं। गाय हमारी तमाम जरूरतों को पूरा करती है। दूध-दही से लेकर गाय का गोबर भी हमारे काम में आता है। गाय का दूध मनुष्यों के लिए पोषण का प्राथमिक स्रोत है। वहीं, इसके गोबर का उपयोग प्राकृतिक उर्वरक के रूप में किया जाता है। हिंदू धर्म में गायों को धन और समृद्धि की देवी, मां लक्ष्मी का अवतार भी माना गया है। कहते हैं कि एक गाय के अंदर कई देवी-देवताओं का वास होता है। गाय एक मां की तरह ही हमारे पूरे परिवार का भरण-पोषण करती है। इन सभी लिखी गई बातों को आप इस वीडियो को देखने के बाद अच्छी तरह से समझ जाएंगे कि आखिर गाय को मां क्यों कहते हैं।

परिवार को खुशियों से भर देती है गाय

वायरल हो रहे इस वीडियो में देखा जा सकता है कि एक महिला गाय का दूध निकाल रही है। गाय चुपचाप बिल्कुल शांत खड़ी है। एक बच्चा है जो गाय के गले लगा हुआ है और उसकी गर्दन को पकड़कर उस पर लटक रहा है। इसके बावजूद भी गाय बिल्कुल शांत होकर खड़ी है। वीडियो देख ऐसा लग रहा है जैसे कोई बच्चा अपनी मां की गोद में खेल रहा हो। शायद गायों में भी हमारी मां की तरह ममता का भाव कूट-कूटकर भरा हो। वीडियो से आप यह भी समझ सकते हैं कि एक गाय कैसे पूरे परिवार को खुशियों से भर देती है।

“मां तो आखिर मां ही होती है”

इस वीडियो को सोशल साइट एक्स पर @Gulzar_sahab नाम के अकाउंट से शेयर किया गया है। जिसे खबर लिखे जाने तक करीब डेढ़ लाख लोगों ने देखा और 5 हजार लोगों ने लाइक किया है। वीडियो पर कई लोगों ने कमेंट करते हुए अपना रिएक्शन भी दिया है। जहां एक यूजर ने लिखा – गाय अगर हमारे घर से चली जाती है तो हमें बहुत दुख होता है। ये एक ऐसी जानवर है जिसके लिए हमें अन्य जानवरों से कहीं ज्यादा दुख होता है। दूसरे ने लिखा – बचपन में मैं भी अपनी गाय के साथ ऐसे ही खेला करता था।

 

मुंबई से 15 दिवसीय अनोखी ट्रेन यात्रा “जागृति यात्रा 2024” की शुरुआत

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भारत की सबसे बड़ी उद्यमी ट्रेन यात्रा युवा लीडरों को प्रेरित करेगी और दुनिया को ‘मध्य भारत’ दिखाएगी

मुंबई। जागृति यात्रा 2024 देश भर से चुने गए 500 युवा परिवर्तनकर्ताओं के साथ 15 दिन की एक अतुलनीय यात्रा पर निकलने के लिए तैयार है। 16 नवंबर से शुरु हुई यह यात्रा भारत भर में ट्रेन द्वारा 15 दिन में 8,000 किलोमीटर का अभियान पूरा करेगी। नरीमन प्वाइंट मुंबई, यशवंत राव चव्हाण ऑडिटोरियम में आयोजित एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान जागृति यात्रा के सीईओ आशुतोष कुमार और सीओओ चिन्मय द्वारा यह जानकारी साझा की गई।

जागृति यात्रा 2024 के बारे में जानकारी देते हुए आशुतोष कुमार ने कहा कि 15 दिनों की यह अनूठी ट्रेन यात्रा युवा लीडरों को भारत के टियर 2 और टियर 3 शहरों में सामाजिक और आर्थिक परिवर्तन के लिए प्रेरित और सशक्त बनाने के लिए तैयार है। उन्होंने कहा कि मुंबई से शुरू हुई इस साल की यात्रा 500 युवा प्रतिभागियों को 12 शहरों से होते हुए 8,000 किलोमीटर की यात्रा पर ले जाएगी। इनमें से 50% से अधिक सफल उद्यमी हैं, जो बाकी लोगों के लिए संभावित रोल मॉडल हैं।

उन्होंने कहा कि यह कार्यक्रम मीडिया को भारत के कुछ सबसे प्रभावशाली उद्यमियों और देश के कोने-कोने से बदलाव लाने वालों से मिलने और बातचीत करने का मौका देगा। अपनी तरह के सबसे बड़े आंदोलन के रूप में, यह यात्रा उद्यमिता के लिए एक जीवंत इनक्यूबेटर के रूप में कार्य करती है, जो भारत की कुछ सबसे बड़ी चुनौतियों के लिए वास्तविक दुनिया के समाधान खोजने के लिए विभिन्न पृष्ठभूमि के युवाओं को सशक्त बनाती है।

आशुतोष कुमार ने कहा कि जागृति सेवा संस्थान द्वारा आयोजित यह वार्षिक यात्रा एक मोबाइल इनक्यूबेटर के रूप में कार्य करती है, जो प्रतिभागियों को मध्य भारत के हृदय स्थल से होकर ले जाती है, जहां नवाचार की सबसे आकर्षक कहानियां प्रतीक्षा कर रही हैं।

अपने 17वें वर्ष में, एसबीआई द्वारा समर्थित जागृति यात्रा विविध पृष्ठभूमि से जोशीले युवा उद्यमियों को एक साथ लाती है, जो उन्हें भारत के टियर 2 और टियर 3 शहरों की वास्तविकताओं को समझने और हल करने के लिए सशक्त बनाती है। अहमदाबाद, दिल्ली और चेन्नई सहित 12 गतिशील स्टॉप के दौरान, ‘यात्री’ के रूप में प्रतिभागी जमीनी स्तर के शोधकर्ताओं और सामाजिक उद्यमियों से मिलेंगे, जो पहले से ही भारत के भविष्य को फिर से परिभाषित कर रहे हैं।

उन्होंने कहा कि यह यात्रा देश के शीर्ष मीडिया आउटलेट्स के लिए परिवर्तन की प्रभावशाली कहानियों को हासिल करने के लिए एक दुर्लभ मंच प्रदान करेगी, क्योंकि युवा लीडर स्थानीय नायकों से जुड़ते हैं और भारत की सरलता की अनकही कहानियों का पता लगाते हैं।

मीडिया के लिए मुख्य आकर्षण ऐसी कहानियां होंगी, जिन्हें आप मिस नहीं करना चाहेंगे। मीडियाकर्मियों के पास उन उद्यमियों से सीधे जुड़ने का एक अनूठा मौका है, जो स्वास्थ्य सेवा, टिकाऊ खेती और शिक्षा के क्षेत्र में नई ज़मीन तैयार कर रहे है। ऐसे दूरदर्शी उद्यमशीलता की भावना का उदाहरण देते हैं, जिन्हें अक्सर मुख्यधारा की कहानियों से बाहर रखा जाता है।

भारत के उभरते नेताओं पर स्पॉटलाइट प्रतिस्पर्धी चयन प्रक्रिया के माध्यम से चुने गए, 21-27 वर्ष की आयु के प्रतिभागी सामाजिक परिवर्तन के लिए जुनून और भारत के भविष्य को आकार देने की प्रतिबद्धता से प्रेरित हैं। 28 से अधिक उम्र के सलाहकारों द्वारा समर्थित, वह अंतर पीढ़ी की अंतर्दृष्टि प्राप्त करते हैं और नेतृत्व कौशल विकसित करते हैं।
जागृति यात्रा को कवर करके, रिपोर्टर उन युवा भारतीयों की आवाज़ और कहानियों को सामने ला पाएंगे, जो मध्य भारत की भावना का प्रतिनिधित्व करते हैं, और आकांक्षा को कार्रवाई में बदलते हैं।
आशुतोष ने कहा कि जागृति यात्रा 2024, मीडिया के सदस्यों को आमंत्रित किया गया है, ताकि भारत के जीवंत उद्यमशीलता कोर को प्रकट करने वाली कहानियों को कैप्चर किया जा सके।

जागृति यात्रा के बारे में बता दें कि यह जागृति सेवा संस्थान की एक प्रमुख पहल है, जो युवा भारतीयों को अनुभवात्मक शिक्षा, उद्यमशीलता और सतत परिवर्तन के माध्यम से सामाजिक रूप से जागरूक नेता बनने के लिए सशक्त बनाती है। 2008 में स्थापित, इस गैर-लाभकारी संस्था ने पूरे भारत में सामाजिक रूप से जागरूक नेतृत्व की लहर को उत्प्रेरित किया है, जो वैश्विक प्रासंगिकता वाले स्थानीय समाधानों को प्रेरित कर रहे हैं।

फडणवीस ने कहा था-मैं सीएम रेस में नहीं

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महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव के लिए वोटिंग 20 नवंबर को होगी। अब मतदान में बहुत कम दिन ही बचे हैं और सियासत चरम पर है। वोटिंग से ठीक दो दिन पहले सीएम एकनाथ शिंदे ने रविवार को बड़ा बयान दिया है। उन्होंने कहा कि वो सीएम पद की रेस में कहीं नहीं हैं। न्यूज एजेंसी आजतक से बातचीत में शिंदे ने कहा कि ये भी तय है कि सीएम महायुति का ही होगा लेकिन मैं किसी रेस में नहीं। बता दें कि इससे ठीक एक दिन पहले ही महाराष्ट्र के डिप्टी सीएम देवेंद्र फडणवीस ने भी न्यूज एजेंसी एएनआई से बातचीत में भी यही बात कही थी। तो अब महायुति की सरकार बनी तो सीएम कौन होगा, इसपर अभी से सस्पेंस शुरू हो गया है।

फडणवीस ने कहा था-मैं सीएम रेस में नहीं

फडणवीस ने 16 नवंबर को एएनआई को दिए इंटरव्यू में कहा था कि एनसीपी (SP) चीफ शरद पवार परिवार और पार्टी तोड़ने में महारथी हैं। एनसीपी और शिवसेना अपनी अति महत्वाकांक्षाओं के कारण टूटीं।क्योंकि उद्धव सीएम बनना चाहते थे, इसलिए उन्होंने हमसे नाता तोड़ लिया। मुख्यमंत्री बनने के बाद वे आदित्य ठाकरे को आगे लाना चाहते थे, इसलिए उन्होंने एकनाथ शिंदे को सफोकेट करने की कोशिश की।उद्धव ठाकरे के लिए भाजपा के दरवाजे बंद हो चुके हैं। महाराष्ट्र में पार्टी भविष्य में भी कभी उनके साथ नहीं जाएगी। शिंदे को सीएम बनाने की जानकारी मुझे पहले से थी। मैं मुख्यमंत्री या अध्यक्ष किसी भी रेस में नहीं हूं।

 शिंदे ने पीएम मोदी के नारे का किया समर्थन

सीएम शिंदे ने कांग्रेस पर जमकर तंज कसा और कहा कि कांग्रे की नीति फूट डालो राज करो की है। राहुल गांधी, बाला साहेब ठाकरे को हिंदू हृदय सम्राट कब कहेंगे? बालासाहेब ठाकरे खुद कहते थे कि मैं अपनी पार्टी को कभी भी कांग्रेस की पार्टी नहीं बनने दूंगा, लेकिन उद्धव ठाकरे खुद के स्वार्थ और मुख्यमंत्री बनने के लिए कांग्रेस के साथ चले गए। शिंदे ने इसके साथ ही पीएम मोदी के ‘एक हैं तो सेफ हैं’ नारे का भी समर्थन किया।

क्यों अमरीका में शरण मांग रहे हैं लाखों भारतीय*

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(भूपेन्द्र गुप्ता-विभूति फीचर्स)
एक समय था जब ब्रिगेडियर उस्मान को बंटवारे के समय पाकिस्तान का सेनाध्यक्ष बनाने का प्रस्ताव दिया गया था लेकिन उन्होंने यह कहकर इनकार कर दिया था कि भारत मेरा देश है इस धरती में मेरे बुजुर्ग दफन हैं। उन्होंने पाकिस्तान का सेनाध्यक्ष बनने की बजाय भारत का ब्रिगेडियर बने रहना स्वीकार किया और अपना नौसेरा बचाने के लिये शहीद हो गये। वह तो अनिश्चितता का समय था,जान-माल का खतरा था किंतु आज तो निश्चिंतता का समय है। संवैधानिक और नियामक संस्थायें देश को आजादी के प्रति सजग कर रहीं हैं ऐसे दौर में कुछ खबरें हैरान भी करतीं हैं और चिंतित भी।
संसद में एक प्रश्न के उत्तर में बताया गया है कि पिछले 10 सालों में लगभग 15 लाख भारतीय नागरिकों ने देश की नागरिकता त्याग दी है । इससे भी जो ज्यादा चिंताजनक आंकड़ा है वह यह कि अमेरिका में शरण मांगने वाले भारतीयों की संख्या में 855 प्रतिशत  की वृद्धि हुई है। उल्लेखनीय है कि अमेरिका में शरण मांगने वाले दो तरह से शरण के लिए आवेदन करते हैं एक तो वह जिन्हें एफर्मेटिव कहा जाता है और दूसरा वे जिन्हें डिफेंसिव कहा जाता है। डिफेंसिव यानि वे जो सुरक्षा की दृष्टि से  अमेरिका में शरण की गुहार लगाते हैं । अमेरिका की होमलैंड सिक्योरिटी डिपार्टमेंट की  इमीग्रेंट एनुअल फ्लो रिपोर्ट बताती है कि 2023 में अमेरिका में शरण चाहने वाले आवेदकों में 41हजार 330 भारतीय शामिल थे जो कि 2022 की तुलना में 855 फ़ीसदी ज़्यादा हैं और भी आश्चर्यजनक बात यह है कि इसमें से आधे आवेदक गुजरात राज्य के हैं। जहां 2014 के बाद समृद्धि का विस्फोट हुआ है। समझना जरूरी है कि  उन भारतीयों ने क्यों कर सुरक्षा एसाईलम के लिये आवेदन किया है? वर्ष 2022 में शरणार्थी के रूप में आवेदन करने वाले 14 हजार 570 भारतीयों में से 9200 ने डिफेंसिव एसाईलम यानि सुरक्षा शरण का आवेदन किया है।
 भारत की अर्थव्यवस्था के उछालें भरने के दावे ,आम नागरिक के लिये सुरक्षा  की गारंटी और बेहतर अवसरों के प्रचार के बीच भी अगर 41हजार 330 नागरिक अमरीका में शरण मांग रहे हैं और उनमें भी 50% से अधिक सुरक्षा कारणों से तो यह पड़ताल का विषय होना ही चाहिए ? इन सुरक्षा शरण चाहने वाले भारतीयों को देश में क्या खतरा लग सकता है? उनमें से आधे उस राज्य से क्यों हैं जिसमें सर्वाधिक विकास के दावे किये जा रहे हैं?
      एलपीआर रिपोर्ट के अनुसार अमरीका में लगभग 28 लाख भारत में जन्मना नागरिक रहते हैं जो मेक्सिको में पैदा हुए अमरीकी नागरिकों के बाद सर्वाधिक संख्या है।अकेले 2022 में ही 1लाख 28 हजार 878 मेक्सीकन,65 हजार960 भारतीय,53 हजार 413 फिलिपाईन नागरिकों को  अमरीकी नागरिकता के लिये न्यूट्रिलाईज किया गया है।
ऐसा माना जाता है कि सामान्यतःआर्थिक ,शैक्षणिक अवसरों और राजनैतिक स्थिरता को देखते हुए सुरक्षित भविष्य की तलाश में लोग अपनी नागरिकता त्याग करने का कठिन फैसला लेते हैं। अमरीका में रहने वाले 28 लाख 31 हजार 330 भारतीयों में 42 फीसदी भारतीय , अमरीकन नागरिकता के लिये अपात्र हैं। इसके बावजूद  भारतीय ब्रेन इतनी बड़ी तादाद में जोखिम क्यों उठा रहा है?
मोटा-मोटी सभी देशों से आर्थिक प्रवासी अवसरों की तलाश करते हैं जिसमें आऊटफ्लो और इनफ्लो की मात्रा देश की वास्तविक परिस्थितियों का बखान कर देती है।
जिन 10 वर्षों में 15 लाख भारतीयों ने नागरिकता छोड़ने का आवेदन किया है उसी दौरान विगत पांच सालों में मात्र 5 हजार 220 विदेशियों को भारतीय नागरिकता दी गई है उनमें 4 हजार 552 यानि 87 फीसदी  पाकिस्तानी, 8 फीसदी अफगानिस्तानी और 2 फीसदी बंगलादेशी हैं। इसका अर्थ है कि भारतीय नागरिकता त्यागने वालों के मुकाबले भारतीय नागरिकता चाहने वालों की संख्या 1 प्रतिशत भी नहीं है।
लंदन की हेनली एंड पार्टनर की एक रिपोर्ट के अनुसार  लगभग 7 हजार सुपर रिच धनाढ्य भारत की नागरिकता छोड़ सकते हैं।सरकार ने राज्यसभा में बताया है कि वह इन लोगों की व्यावसायिक पृष्ठभूमि के बारे में अनभिज्ञ है।भारतीय टेक्स कानूनों,स्वास्थ्य सुविधाओं और इनवेस्टमेंट माईग्रेशन नागरिकता त्यागने की नयी वजह के रूप में सामने आ रही है। मेहुल चौकसी जैसे लोग इसी इवेस्टमेंट माईग्रेशन के नाम पर भाग खड़े हुए हैं।
नागरिकता छोड़ने का एक कारण यह भी है कि कई देश दोहरी नागरिकता स्वीकार नहीं करते,दूसरा बड़ा कारण अन्य देशों में निर्वाध आवाजाही के लिये भारतीय पासपोर्ट पर केवल 60 देशों में वीजा फ्री या आगमन पर वीजा सुविधा उपलब्ध है जबकि अमरीकन पासपोर्ट पर 186 देशों में यह सुविधा प्राप्त है। जन्म से भारतीय विदेशी नागरिकों को भारत में ओसीआई(ओवरसीज सिटीजन आफ इंडिया के रूप में पंजीकृत किया जा सकता है) माना जाता है। गृह मंत्रालय ने सदन को जानकारी दी है कि आज ओसीआई की संख्या 1लाख 90 हजार है जो 2005 में मात्र 300 हुआ करती थी।इसका अर्थ है कि लगभग 8 फीसदी नागरिकता त्यागने वाले भारतीय ही ओसीआई के रूप में देश से जुड़े रहना चाहते हैं।
अवसरों की तलाश और बेहतर जीवन की महत्वाकांक्षा मानव स्वभाव है किंतु जब अवसर देश से बड़ा बनने लगे तो मानिये चिंता का समय आ गया है।(विभूति फीचर्स)

गौ उपचारशाला में श्रीकृष्ण की प्रतिमा स्थापित

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रेवाड़ी, 17 नवंबर (हप्र)

बावल की अनाज मंडी के निकट बने गौ उपचार सेवा केन्द्र में रविवार को गौ सेवा संगठन द्वारा धूमधाम से गऊ गोपाल (श्रीकृष्ण) की प्रतिमा स्थापित की गई। समारोह में मुख्यातिथि बावल के भाजपा विधायक डा. कृष्ण कुमार थे। उन्होंने रिबन काटकर प्रतिमा का अनावरण किया। हवन-यज्ञ में गौ सेवकों ने आहुति डाली। इससे पूर्व संगठन द्वारा बावल शहर में गऊ गोपाल की प्रतिमा की शोभा व कलश यात्रा ढोल-बाजे के साथ निकाली गई। जिसमें सैकड़ों की संख्या में महिला व पुरुषों ने भक्तिभाव से हिस्सा लिया। विधायक डा. कृष्ण कुमार ने कहा कि बेजुबान व बेसहारा पशुओं का उपचार नि:स्वार्थ भाव से करना पुण्य का कार्य है। गौ सेवा संगठन द्वारा संचालिक उपचारशाला पशुओं के लिए बहुत की उपयोगी सिद्ध हो रही है। उन्होंने कहा कि सरकार ने भी गौ सेवा आयोग बनाया है। वे भी इस उपचारशाला के लिए हर संभव मदद करेंगे। इस मौके पर धर्मबीर प्रजापत, कालूराम सोनी, सुंदर सोनी, देवेन्द्र कुमार, अंकित कुमार, पार्षद अर्जुन चौकन, रमेश कुमार, दीपक कुमार उपस्थित रहे।

नाकाबंदी तोड़ गौ तस्कर हुए फरार

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Alwar News: कठूमर क्षेत्र में पुलिस गस्त को धता बताते हुए एवं सरकार के गौकशी रोकने के दावों को गौतस्करों द्वारा चुनौती दी जा रही है. कुछ समय पूर्व खेडली में गो तस्कर हुए थे फरार. वहीं आए दिन गौतस्करों द्वारा गौवंश को ले जाया जा रहा है.

गत रात्रि को गौतस्करी की घटना को लेकर कठूमर थाना प्रभारी संजय शर्मा ने बताया सूचना मिली कि एक पिकअप गाड़ी भनोकर रोड से कठूमर आ रही है. तिरपाल ढका हुआ है, जिसमें गोवंश थे. ड्यूटी आफीसर जगदीश मीणा मय ने पुलिस जाप्ता के नाकाबंदी की. जिसे तोड़कर को तस्कर बाजार की तरफ भाग गए

पुलिस ने गौ तस्करों का पीछा किया. पुलिस सायरन बजाती हुई गली मोहल्ले में पुलिसकर्मी चोर चोर चिल्लाते हुए पैदल भागे. लेकिन कोई भी व्यक्ति अपने घरों से बाहर नहीं निकला व आगे रास्ता बंद होने पर गाड़ी को छोड़कर अंधेरे का फायदा उठाकर गौतस्कर भाग गए. पिकअप गाड़ी को जप्त कर तलाश ली गई, जिसमें 20 लीटर अवैध हथकड शराब व पांच गोवंश बेरहमी से बंधे हुए घायल अवस्था में मिले.

वापसी में पिकअप के आगे पीछे एक बोलेरो गाड़ी चलती नजर आई, जिस पर व्यक्ति को रोक कर नाम पता पूछा तो व्यक्ति ने राशिद पुत्र बरकत कुरेशी मुसलमान ग्राम गोधोला थाना पुन्हाना बताया. उसने बताया कि मामा के लड़के ने बुलाया था. गाड़ी की तलाशी में पुलिस को 2 कैरट किंगफिशर बियर मिली मिलीं. गौवंश को अलीपुर की गौशाला में छुड़वा दिया गया. मामला दर्ज किया जा रहा है .अनुसंधान कर आरोपियों के विरुद्ध कार्रवाई की जाएगी.

भोपाल में बनेगी 10 हजार गायों की क्षमता वाली मॉर्डन गौशाला

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Bhopal Gaushala News:  मध्य प्रदेश में यह वर्ष (चैत्र माह से फाल्गुन माह तक) गौ-संरक्षण एवं गौ-संवर्धन वर्ष के रूप में मनाया जा रहा है. इसी के अंतर्गत भोपाल के बरखेड़ी अब्दुल्ला क्षेत्र में 10 हजार गायों की क्षमता वाली अत्याधुनिक गौ-शाला (Hi-tech Gaushala) के निर्माण की योजना है, जिसका विधिवत भूमि-पूजन जल्द ही मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव (CM Mohan Yadav) द्वारा किया जाएगा. गौ-शाला (Gaushala) लगभग 25 एकड़ क्षेत्र में बनाई जा रही है. इसमें गायों के आधुनिक तरीके से रख-रखाव के साथ ही उनके उपचार के लिए सभी संसाधनों से युक्त चिकित्सा वार्ड (Medical Ward) का भी निर्माण किया जाएगा.

5 करोड़ रुपए की लागत से तैयार होगी गौशाला

ग्रामीण यांत्रिकी विभाग द्वारा लगभग 15 करोड़ रुपए की लागत की गौ-शाला का निर्माण कार्य कराया जाएगा, नगर निगम एवं पशुपालन विभाग नोडल एजेंसी होंगे. गौ-शाला को स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट और जिला पंचायत द्वारा फंड प्रदान किया जाएगा. गौ-शाला का संचालन नगर निगम द्वारा किया जाएगा. गौ-शाला का निर्माण तीन चरणों में होगा, जिसमें प्रथम चरण में लगभग 2 हजार पशु क्षमता का निर्माण किया जाएगा.

भोपाल के बरखेड़ी अब्दुल्ला क्षेत्र में प्रस्तावित अत्याधुनिक गौशाला निर्माण के संबंध में कलेक्टर ने समीक्षा बैठक की है. जिसम बताया गया है कि प्रथम चरण में 2,000 गायों की क्षमता वाले क्षेत्र का निर्माण कार्य तेजी से प्रारंभ करने की योजना बनाई गई है.