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एकनाथ शिंदे को केंद्रीय मंत्री के रूप में केंद्र में लाया जाना चाहिए – आठवले

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नई दिल्ली. बीजेपी के प्रमुख सहयोगी दल आरपीआई (ए) के नेता रामदास आठवले ने मंगलवार को महाराष्ट्र के अगले मुख्यमंत्री पर जल्द फैसला लेने की अपील की. उन्होंने सुझाव दिया कि मौजूदा मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे को केंद्रीय मंत्री के रूप में केंद्र में लाया जाना चाहिए. आठवले ने यहां संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए महाराष्ट्र के अगले मुख्यमंत्री के रूप में भाजपा के वरिष्ठ नेता देवेंद्र फडणवीस का समर्थन किया और कहा कि भाजपा ने 288 सदस्यीय विधानसभा में अधिकतम सीट जीती हैं और राज्य में मुख्यमंत्री पद पर उसका अधिकार होना चाहिए.

उन्होंने कहा कि महाराष्ट्र में एक अजीब स्थिति पैदा हो गई है जहां भाजपा के नेता फडणवीस को मुख्यमंत्री के रूप में चाहते हैं जबकि शिवसेना के नेता चाहते हैं कि शिंदे इस पद पर बने रहें. केंद्रीय सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता राज्य मंत्री आठवले ने कहा कि राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) नेता एवं उपमुख्यमंत्री अजित पवार ने घोषणा की है कि वह मुख्यमंत्री पद की दौड़ में नहीं हैं.

आठवले ने कहा कि ‘हमें बिना किसी देरी के इस मामले को सुलझाने की जरूरत है. चुनाव के नतीजे 23 नवंबर को घोषित किए गए थे और नये मुख्यमंत्री को 26 नवंबर को संविधान दिवस पर शपथ लेनी चाहिए थी.’ मुख्यमंत्री पद के लिए फडणवीस का समर्थन करते हुए आठवले ने कहा कि शिंदे उपमुख्यमंत्री बन सकते हैं या केंद्र में जाकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार में शामिल हो सकते हैं.

गौरतलब है कि महायुति गठबंधन ने हाल में हुए विधानसभा चुनाव में शानदार प्रदर्शन किया. इसने 288 में से 235 सीट पर जीत दर्ज की. महायुति के घटक दलों भाजपा ने 132, शिंदे नीत शिवसेना ने 57 और अजित पवार नीत राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) ने 41 सीट हासिल की. गठबंधन में शामिल छोटे दलों ने पांच सीट जीतीं

जालंधर में गौ हत्या से मचा बवाल, 4 गौ माताओं का मिला शव

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जालंधर के आदमपुर गांव के पास नहर की पटरी पर  बड़ी संख्या में गौ माता की हत्या की जा रही है। इस बात की जानकारी मिलने पर गौ रक्षा दल के कार्यकर्ता सोमवार को मौके पर पहुंचे। इस दौरान  कार्यकर्तोओं की कार पर फायरिंग भी की गई।

हालांकि, कार्यकर्ताओं के पहुंचने के बाद गायों की हत्या करने वाले मौजूद सभी लोग फरार हो गए। इस घटना में करीब 4 कटी हुई गौ मिली। इसके बाद गौ रक्षादल ने इस घटना की सूचना पुलिस को दी। जिसके बाद पुलिस बल घटना की जांच कर रही है।

मौके पर पहुंची फॉरेंसिक टीम

घटना की जानकारी मिलने के बाद पशु चिकित्सकों और फोरेंसिक टीम को भी मौके पर बुलाया गया है। जिसके बाद उन्होंने जांच के लिए सैम्पल एकत्र किए हैं। घटना के विरोध में गौ रक्षा दल ने पंजाब बंद का आह्वान किया है। अन्य संगठनों से चर्चा कर तारीख की घोषणा आज ही कर दी  जाएगी।

पंजाब बंद के लिए बुलाई गई बैठक

आपकी जानकारी के लिए बता दें कि, इस जिले में गोकशी से जुड़ी यह दूसरी घटना है। कुछ समय पहले मंडी गोबिंदगढ़ में गौमांस से भरा ट्रक पकड़ा गया था। इस संबंध में आज शाम 4 बजे काली माता मंदिर पटियाला में धार्मिक संगठनों की बैठक बुलाई गई है। जिसमें पंजाब बंद और संघर्ष पर चर्चा की जाएगी।

जन्मदिवस 27 नवंबर पर विशेष लेख- बने रहे यह पीने वाले, बनी रहे यह मधुशाला*

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(डॉ. मुकेश “कबीर”-विनायक फीचर्स)
हरिवंश राय बच्चन उन गिने चुने कवियों में से हैं जिनका गद्य भी उतना ही सशक्त था जितना कि पद्य। उनके बारे में हुल्लड़ मुरादाबादी का दोहा भी इसी तरह का है-

*गद्य पद्य में एक सी जो भी कलम चलाए*,
*इस दुनिया में वोही शख्स हरिवंश कहलाए।*

हुल्लड़ जी की यह पंक्तियां बिल्कुल सही भी हैं ,यही कारण है कि बच्चन एकमात्र ऐसे साहित्यकार हैं जिनको पद्य और गद्य दोनों रचनाओं के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार मिले। उनके कविता संग्रह *दो चट्टानें* को साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला और गद्य रचना *दशद्वार से सोपान तक* को सरस्वती सम्मान मिला।

*दशद्वार से सोपान तक* उनकी आत्मकथा है जो बहुत रोचक है और एक तरह से आत्मकथा लिखने वालों के लिए स्कूल की तरह है । यह कृति सच्चाई,मर्यादा और सरलता का अद्भुत संगम है।आमतौर पर लोग आत्मकथा लिखने में या तो बहुत विनम्र,बेचारे हो जाते हैं या फिर जरूरत से ज्यादा साहसी लेकिन बच्चन जी की आत्मकथा में संतुलन है और घटनाओं का वर्णन भी ऐसा बिन्दुवार और रोचक है कि यह गद्य भी कविता की लय और गहराई तक पहुंच जाता है,और कोई भी पढ़ने वाला बोर नहीं होता । यही बच्चन की कलम की ताकत है। यही प्रभाव उनकी कविताओं का भी है ।

 

उन्होंने बहुत सरलता से गहरी बातें कहीं हैं । यही कारण है कि उनकी रचनाएं आज भी प्रासंगिक हैं बल्कि उनके कई टाइटल तो आज आम जीवन के मुहावरे बन चुके हैं । जैसे *बीत गई सो बात गई* या *नीड का निर्माण* या फिर *मधुशाला*। मधुशाला उनकी सबसे चर्चित कृति है , मधुशाला और बच्चन जी एक दूसरे के पर्याय बन चुके हैं,हालांकि जब यह लिखी गई थी तब इसका विरोध भी हुआ था लेकिन बाद में यह एक क्लासिक रचना मानी जाने लगी।

उन्होंने मधुशाला का पहली बार पाठ बनारस हिंदू विश्व विद्यालय में किया था,जहां वो प्राध्यापक थे। जिस दिन मधुशाला उन्होंने सुनाई तब छात्र और श्रोताओं की संख्या कम थी इसलिए ज्यादा लोगों तक पहुंच नहीं पाई लेकिन जिन गिने चुने छात्र और स्टॉफ ने यह रचना सुनी थी उन्होंने इसकी इतनी तारीफें कर दीं कि पूरे विश्वविद्यालय में यह बात फैल गई और उस वक्त के छात्र संघ अध्यक्ष ने एक आयोजन सिर्फ बच्चन को सुनने के लिए ही किया। पब्लिसिटी खूब हो चुकी थी इसलिए हॉल खचाखच भरा था।

उस वक्त कविता सुनने का क्रेज था और कवि को वैसा ही सम्मान और लोकप्रियता हासिल थी जैसी आज किसी बड़े फिल्म स्टार को या क्रिकेट स्टार को हासिल है। तब नए कवि को सुनने की उत्सुकता ज़रा ज्यादा ही होती थी इसलिए लोग इतने थे कि पैर रखने की जगह भी नहीं बची। सीढ़ियों पर भी लोग बैठ गए थे। जब बच्चन जी मंच पर आए तो उनका तालियों की गड़गड़ाहट से गर्मजोशी के सादर स्वागत हुआ। तब वो युवा तो थे ही खूबसूरत भी बहुत थे इसलिए पहला इंप्रेशन तो बहुत अच्छा पड़ा और फिर जब उन्होंने मधुशाला सुनाई तो छात्रों में अथाह उत्साह और उमंग की लहरें दौड़ने लगीं, तब छात्रों ने इसको शराब तक ही सीमित समझा, तो कई पीने वालों को तो बच्चन जी में अपना मसीहा दिखने लगा जो पीने पिलाने की सरेआम की वकालत कर रहा है।

करीब दो घंटे तक बच्चन जी सुनाते रहे और कोई भी टस से मस नहीं हुआ और जब यह रचना पूरी हुई तो तालियों की गड़गड़ाहट और एक बार और की फरमाइश और स्टैंडिंग ओबेशन कुल मिलाकर सुपर हिट आयोजन और बस दो घंटे में ही बच्चन जी हीरो बन गए बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में। खास बात यह कि उस ज़माने में जो बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में प्रसिद्ध हो जाता था उसकी चर्चा पूरे देश के साहित्य जगत में पहुंच जाती थी,यही बच्चन जी के साथ हुआ। वे बहुत ही जल्दी पूर्वांचल फिर अवध और जल्दी ही दिल्ली तक ख्यात हो गए और कवि सम्मेलनों में आमंत्रित किए जाने लगे। कवि सम्मेलन में बच्चन जी जल्दी ही इतने प्रसिद्ध हो गए कि वे कवि सम्मेलन की अनिवार्यता बन गए। उनको कवि सम्मेलनों का पहला सुपर स्टार कहा जा सकता है,क्योंकि लोग इनका इंतजार करते थे और कुछ लोग तो ढोलक,मजीरे लेकर भी आते थे ताकि बच्चन के साथ बजा सकें। बच्चन ने मधुशाला जितनी अच्छी लिखी थी उतना ही अच्छा उनका प्रस्तुतीकरण भी था,मधुर आवाज और सुरीली गायकी से ऐसा समां बंध जाता था कि पूरी पूरी रात लोग बैठकर सुनते थे । यह वह दौर था जब भारत में मनोरंजन का सर्वश्रेष्ठ साधन कवि सम्मेलन ही हुआ करते थे । तब गाने वाले कवि भी बहुत कम थे ।

आजादी का नशा खत्म नहीं हुआ था इसलिए ज्यादातर कवि ओज सुनाते थे । तब बुलंद आवाज़ और जोश कवियों की खासियत मानी जाती थी । ऐसे दौर में बच्चन जब मधुर गायकी लेकर मंच पर आए तो पूरा माहौल ही बदल गया । इसका फायदा कवि सम्मेलनों को भी हुआ और बच्चन जी को भी,दोनों ने एक दूसरे को लोकप्रियता दिलाई। तब बच्चन जी युवाओं में सबसे ज्यादा पॉपुलर थे और युवा उनकी तरह बनना चाहते थे । उन्होंने कई युवा कवियों को प्रेरित किया जो आगे जाकर बड़े कवि बने उनमें से नीरज जी भी एक हैं।

नीरज ने खुद इस बात को स्वीकार किया कि बच्चन को देखकर ही मैं मंच की तरफ आकर्षित हुआ और उनको देखकर ही मैने मंच पर गीत और गाना शुरू किया,बाद की कहानी तो हम सब जानते हैं कि नीरज जी अपने गुरु से भी आगे निकल गए।नीरज जी को पहली बार मंच पर भी बच्चन जी ही लेकर गए थे,उस दिन बस में भीड़ बहुत थी बच्चन जी को तो सीट मिल गई लेकिन युवा नीरज खड़े रहे तब बच्चन जी ने युवा नीरज को अपनी गोद में बैठा लिया और तभी नीरज ने घोषणा कर दी कि मै बड़ा कवि बनूंगा ,इसका कारण पूछने पर बोले कि जो आपकी गोद में बैठ चुका हो जिसके सर पर आपका हाथ रखा जा चुका हो वो नहीं तो कौन बनेगा बड़ा कवि ? और यह बात सच साबित हुई। बहरहाल बच्चन की बात करें तो उनकी मधुशाला की लोकप्रियता देखकर उनके ही एक कलीग ने मधुशाला की पैरोडी ताड़ीशाला लिखी लेकिन वह ज्यादा पॉपुलर नहीं हो सकी । उसका सबसे बड़ा कारण यही था कि बच्चन का प्रस्तुतीकरण भी कमाल का था।

बच्चन जी जितने सशक्त मंच पर थे उनका साहित्य भी उतना ही सशक्त रहा है,यह भी एक बिरली बात है जो हर कवि में नहीं होती । बच्चन जी की रचनाएं बहुत प्रेरणादायी होती हैं और साथ ही उनका मनोवैज्ञानिक और दार्शनिक पक्ष भी बहुत मजबूत है। मधुशाला भी शुरू में भले ही किसी कारण से लोकप्रिय हुई हो लेकिन बाद में जब इसका दार्शनिक पक्ष लोगों को समझ आया तो फिर यह पुस्तकालयों की अनिवार्यता बन गई । यहां तक कि पेरेंट्स खुद अपने बच्चों को मधुशाला पढ़ने के लिए देने लगे।आज नब्बे साल बाद भी मधुशाला की बहुत सी बातें सही प्रतीत होती हैं- जैसे राह पकड़ तू एक चलाचल पा जायेगा मधुशाला,यह पंक्ति दुविधा और दोराहे की स्थिति में अच्छा समाधान देती है कि कोई भी एक निर्णय लेकर काम शुरू कर दो मंजिल मिल ही जाएगी। उनकी “बीत गई सो बात गई” तो अब एक कहावत बन चुकी है । जब भी कोई अतीत के कारण दुखी होता है तो हम उसको यही कहकर समझाते हैं, यह बच्चन जी की सरल भाषा का ही कमाल है। साहित्य में एक कहावत है कि सरल लिखना ही सबसे कठिन है और यह काम बच्चन जी ने बखूबी किया है। अपनी इसी सरलता के कारण ही वे इतने सफल भी हुए हैं क्योंकि वे जिस दौर के रचनाकार थे वह दौर ऐसे छायावादी कवियों का दौर था , जिनकी भाषा कठिन और विशुद्ध हिन्दी होती थी,जिसे आम लोग आसानी से नहीं समझ पाते थे ।

ऐसे दौर में बच्चन जी जब आम बोलचाल की भाषा को साहित्य में लेकर आए तो हाथों हाथ बिकने लगे और नए लोग बहुत तेजी से कविता की ओर खिंचने लगे । यह बच्चन जी की बड़ी सफलता थी कि उन्होंने आम लोगों को भी कविता और साहित्य से जोड़ दिया। बच्चन जी बहुत आधुनिक विचारों के धनी थे ।अपने वक्त से सौ साल आगे । यही कारण है कि उनके बेटे अमिताभ फिल्मों में आ सके जबकि अमिताभ बहुत पढ़े लिखे और एक्जीक्यूटिव थे लेकिन जॉब छोड़कर फिल्मों में आने का निर्णय वो भी साठ के दशक में बहुत दूरदर्शी और समय से पहले का निर्णय था । तब बच्चन जी ने न केवल इस निर्णय का स्वागत किया बल्कि अमिताभ की मदद के लिए मुंबई भी आए और अपने फिल्मी मित्रों से अमिताभ को मिलवाया भी। तब फिल्म इंडस्टी में भी बच्चन जी को जानने और चाहने वाले बहुत लोग थे।अमिताभ को उनका बेटा होने का निश्चित रूप से फायदा हुआ ।

उन्हें फिल्में मिलने में भी आसानी हुई और दर्शकों तक पहुंचने में भी। बाद में अमिताभ इतने बड़े स्टार बने कि बच्चन जी खुद अमिताभ के कारण जाने गए लेकिन बच्चन जी की परवरिश का ही नतीजा था कि अमिताभ इतने सफल हुए। अमिताभ के संस्कार उनकी सबसे बड़ी ताकत है जो उनको अन्य हीरोज से अलग बनाती है। बच्चन जी ने दोनों बच्चों को उस वक्त के सबसे बड़े स्कूल शेरवुड नैनीताल में पढ़ाया जहां आज भी पहुंचना आसान नहीं है। शेरवुड की शिक्षा ने अमिताभ को अभिजात्य वर्ग में आसानी से शामिल कराया। शेरवुड में पढ़ाने का निर्णय बच्चन जी की दूरदर्शिता और महत्वाकांक्षा को दर्शाता है । वे जानते थे कि अच्छी शिक्षा का महत्व क्या है। खुद बच्चन जी भी बहुत एजुकेटेड थे,ऑक्सफोर्ड में पढ़े थे इसलिए उन्हें पूरब और पश्चिम दोनों सभ्यताओं की पहचान थी । संस्कारों के मामले में बच्चन जी पूरे भारतीय थे तो व्यावसायिकता के मामले में अंग्रेज।

 

बच्चन जी बहुत मेहनती थे,काम को पूरा किए बिना विश्राम नहीं करते थे,यही गुण अमिताभ में भी देखा जा सकता है। बच्चन जी असल में जो लिखते थे वैसा ही उनका जीवन भी था । वे आदर्श की सिर्फ बातें नहीं करते थे बल्कि खुद भी अमल करते थे इसीलिए उनके पास मानव जीवन की हर समस्या का समाधान भी होता था इसका जिक्र अमिताभ ने कई बार किया है अमिताभ अपने भाषणों में अक्सर बच्चन जी का एक वाक्य दोहराया करते हैं *मन का हो तो अच्छा न हो तो और भी अच्छा* , अब तो यह वाक्य देश के हर घर में पहुंच चुका है। उनका साहित्य आज भी उतना ही प्रेरक है जितना पहले था, अमिताभ तो खुद भी कहते हैं कि जब भी मैं किसी दुविधा में होता हूं तो बाबूजी की किताबें पढ़ने बैठ जाता हूं फिर मुझे समाधान भी मिल जाता है और शांति भी।बच्चन जी का साहित्य है भी ऐसा ही इसीलिए आज भी बच्चन जी उतने ही प्रासंगिक हैं। आज बच्चन जी का एक सौ पच्चीसवां जन्मदिन है । आज वे हमारे बीच नहीं है लेकिन कोई भी साहित्यकार अपने साहित्य के कारण सदैव मौजूद होता ।

यही कारण है कि आज सवा सौ साल बाद भी बच्चन जी उतने ही तरोताजा हैं,आज भी कहीं न कहीं उनकी रचनाओं का जिक्र जरूर होता है।उनकी रचनाओं में ताकत और गहराई बहुत है क्योंकि वे अथाह संघर्ष और त्याग का परिणाम है,,उन्होंने खुद लिखा भी है*कितने मन के महल ढहे तब खड़ी हुई यह मधुशाला* और हम भी यही चाहते हैं कि यह मधुशाला हमेशा खड़ी रहे और दुनिया को प्रेरित करती रहे,उन्ही के शब्दों में उनको श्रद्धांजलि *बनें रहें यह पीने वाले बनी रहे यह मधुशाला*। (विनायक फीचर्स)(लेखक गीतकार हैं।)

युवक ने 4 साल में जहर देकर मार दिए गांव के 80 गाय-बैल

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Andhra Pradesh News Today: आंध्र प्रदेश के नांदयाल जिले के डोन मंडल के कमलापुरम गांव में एक ऐसा मामला सामने आया जिसने हर किसी को हिला कर रख दिया है. यहां एक शख्‍स ने पिछले चार सालों में गांव की करीब 80 गाय-बैल को जहर देकर मौत के घाट उतार दिया. वो चुपचाप लोगों के घर में मौजूद पशुघर में प्रवेश करता और गाय-बैल को जहर देकर वहां से फरार हो जाता. शुरुआत में लोग यह समझते रहे कि गांव में गाय से जुड़ी कोई महामारी फैली हुई है. जिसके कारण एक-एक कर गाय-बैल मर रहे हैं. इस पूरे घटनाक्रम का भेद तब खुला जब एक किसान के घर में मौजूद सीसीटीवी कैमरे की फुटेज में अज्ञात शख्‍स नजर आया.

उस वक्‍त किसान ने ज्‍यादा गौर नहीं किया, अगले दिन जब उसके मवेशी जहर की वजह से मर गए तो फिर उसने पुलिस से संपर्क कर इस घटनाक्रम के बारे में बताया. पुलिस ने मुकदमा दर्ज कर आरोपी युवक शंकराचार्य को धर दबोचा. जांच हुई तो उसने पिछले चार सालों में 80 गाय-बैलों की हत्‍या करने की बात कबूल कर ली. पुलिस ने जब इस शख्‍स ने गाय-बैल की हत्‍या करने का कारण पूछा तो जवाब जानकार हर कोई हैरान रह गया.

पुलिस ने की सीसीटीव की जांच
किसान बुग्गना शिवरामी रेड्डी ने अपनी गाय की मौत के बाद सीसीटीवी फुटेज का विश्लेषण किया और पाया कि शंकराचार्य चुपके से परिसर में घुसकर मवेशियों के बाड़े में जा रहा था. शिवरामी और कई अन्य किसान, जिनके मवेशी पिछले चार वर्षों में संदिग्ध रूप से मर गए थे, सभी एक साथ डोन पुलिस स्टेशन पहुंचे और शिकायत दर्ज कराई. उन्होंने सीसीटीवी फुटेज भी पुलिस को सौंप दी.

हत्‍या की वजह खौफनाक
पुलिस ने सीसीटीवी फुटेज की जांच की और प्रारंभिक जांच के बाद इस निष्कर्ष पर पहुंची कि गायों की मौत के पीछे शंकराचार्य ही दोषी है. पुलिस ने कहा कि शंकराचार्य ने कमलापुरम की गायों और बैलों को मारने की योजना बनाई थी. उसने ऐसा इसलिए किया ताकि गांव में गाय-बैल की कमी हो जाए और सभी कृषि से जुड़े कामों के लिए उसके गाय-बैल का इस्‍तेमाल करें.

संभल की हिंसा पर उठते सवाल* 

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– मनोज कुमार अग्रवाल
संभल की स्थानीय अदालत के आदेश पर जामा मस्जिद में सर्वे शुरू होते ही लोग उग्र हो उठे। मस्जिद के बाहर भीड़ ने जमकर पथराव किया व पुलिसकर्मियों के वाहन जला दिए। उपद्रवियों को नियंत्रित करने के लिए पुलिस को गोलियां चलानी पड़ी। आमने-सामने की फायरिंग में चार लोगों की मौत हुई। 
इस हिंसा के बाद अब सवाल उठने लगे हैं कि कौन लोग हैं जो अदालत के आदेश पर अमल करने में बाधा उत्पन्न करना अपना अधिकार समझते हैं और सीधे पुलिस से टकराने के लिए पत्थरबाजी, गोलीबारी और आगजनी की तैयारी रखते हैं। संभल में पुलिस पर बरसाए गए सात ट्राली ईंट के टुकड़े चीख चीख कर कह रहे हैं कि देश के भीतर आतंक फैलाने की साजिश और तैयारी जारी है। आखिर ये सात ट्राली ईंट के टुकड़े (करीब सात हज़ार पांच सौ ईंट) कहाँ और क्यों जमा कर रखीं गयीं थीं? 
रिपोर्ट्स के अनुसार पथराव में एसडीएम, सीओ, एसपी के पीआरओ समेत 30 से ज्यादा पुलिसकर्मी घायल हैं। डेढ़ दर्जन उपद्रवियों को हिरासत में लिया है। संभल बाजार बंद है । अफवाहें रोकने के लिए इंटरनेट सेवा बंद कर दी गई है। कमिश्नर व डीआईजी संभल में ही कैंप किए हुए हैं। कमिश्नर के अनुसार नखासा क्षेत्र में भी पथराव हुआ। वहां से महिलाओं व कुछ लोगों को हिरासत में  लिया गया है।
         वरिष्ठ अधिवक्ता विष्णु जैन (अयोध्या मामले के चर्चित वकील ) ने 19 नवंबर को शाही जामा मस्जिद में हरिहर मंदिर होने का दावा सिविल जज सीनियर डिवीजन की अदालत में पेश किया था। अदालत ने सर्वे कराने का आदेश दिया था। उस दिन वीडियोग्राफी के बाद टीम चली गई थी। दूसरे चरण का सर्वे करने रविवार सुबह सात बजे एडवोकेट कमिश्नर रमेश राघव एवं अधिवक्ता विष्णु जैन व अन्य मस्जिद में पहुंचे। क्षेत्र की नाकेबंदी कर एडवोकेट कमिश्नर डीएम और एसपी की मौजूदगी में मस्जिद की वीडियोग्राफी करा ही रहे थे कि बाहर भीड़ जुटने लगी। कुछ लोगों ने मस्जिद में घुसने का प्रयास किया। पुलिस के रोकने पर हालात बेकाबू हो गए। साढ़े आठ बजे भीड़ ने पथराव शुरू कर दिया। पुलिस बल प्रयोग कर भीड़ को खदेड़ने लगी ।
तभी भीड़ में से फायरिंग होने लगी। उपद्रवियों ने धार्मिक नारे लगाकर एक एसएचओ की कार व दो एसएचओ की मोटरसाइकिल समेत कई वाहन जला दिए। इसके बाद पुलिस फोर्स और भीड़ आमने-सामने आ गई। रबर बुलेट,आंसू गैस के गोले छोड़ने पर भी हालात काबू में नहीं आए तब पुलिस ने भी फायरिंग की। उत्तर प्रदेश के डीजीपी प्रशांत कुमार के अनुसार पुलिस पत्थरबाजी करने वालों की पहचान कर रही है। आरोपितों की पहचान के बाद कानूनी कार्रवाई की जाएगी। वहीं डीएम ने जिले में बाहरी लोगों के प्रवेश पर रोक लगा दी है।
संभल हिंसा मामले में डीएम राजेंद्र पेंसिया ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि जामा मस्जिद के सदर जफर अली साहब का भ्रामक बयान आया इसलिए हमें पीसी करनी पड़ी। उनके बयानों की डिटेलिंग हो रही है। एसपी बिश्नोई ने कहा कि जफर साहब को ना हिरासत में लिया गया , ना ही अरेस्ट किया गया । इस मामले में लगातार अधिकारियों को जिम्मेदार ठहराने के बयान सामने आ रहे हैं। अब जामा मस्जिद सदर के वकील जफर अहमद ने कहा कि पुलिस ने गाड़ियां जलाई थीं। एसडीएम ने जबरदस्ती हौद का पानी खुलवाया। जफर ने कहा कि, लोग समझे मंदिर में खुदाई हो रही है।
इतना ही नहीं बल्कि जफर अहमद ने उपद्रव में मारे गए युवकों को शहीद तक कह डाला। साथ ही परिजनों के लिए मुआवजे की मांग की है। उनका आरोप है कि पूरा घटनाक्रम पुलिस प्रशासन का प्रायोजित प्रोग्राम था। संभल में मस्जिद के बाहर हुई हिंसा के मामले में समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव समेत समाजवादी पार्टी के सांसदों ने  लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला से मुलाकात की है। जिसमें उन्होंने मामले की जांच की बात की है।
यूपी पुलिस ताबड़तोड़ एक्शन करती नजर आ रही है। अब पुलिस ने शाही जामा मस्जिद कमेटी के अध्यक्ष जफर अली को हिरासत में ले लिया है। जफर अली ने ही प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान संभल डीएम को रविवार को हुई हिंसा का जिम्मेदार बताया था। जफर अली को हिरासत में लेकर पूछताछ की जा रही है। संभल जिले में हुई हिंसा के बाद से पुलिस का एक्शन लगातार जारी है। पुलिस ने अब तक 25 लोगों को गिरफ्तार किया है और 2500 अज्ञात के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई है। ड्रोन के फुटेज से उपद्रवियों की पहचान की जा रही है। इस बीच सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने कहा कि संभल में हिंसा जानबूझकर भड़काई गई है। वहीं सपा के सांसद पर भी एफआईआर दर्ज की गई है। संभल के विधायक के बेटे पर भी दंगा भड़काने का आरोप लगा है।
उत्तर प्रदेश के संभल जिले में शाही जामा मस्जिद के सर्वे के दौरान हुई हिंसा में अब तक चार लोगों की मौत हो चुकी है। हिंसा के मामले में चार एफआईआर दर्ज की गई है और 25 लोगों को हिरासत में लिया गया है। हिंसा के दोषियों के खिलाफ एनएसए के तहत कार्रवाई की जाएगी। इलाके में हिंसा का असर भी देखने को मिल रहा है। शहर में एक-दो दुकानें ही खुली हुई हैं । एहतियात के तौर पर जिले में इंटरनेट सेवा ठप कर दी गई है। 
उत्तर प्रदेश के संभल जिले में हुए बवाल को लेकर पुलिस अब सख्त कार्रवाई कर रही है । पुलिस ने दो महिलाओं सहित 21 लोगों को हिरासत में ले लिया है। वहीं एहतियात के तौर पर जिले में 24 घंटे के लिए इंटरनेट सेवा बंद कर दी गई है । स्कूल-कॉलेजों को भी बंद कर दिया गया है। जिले में भारी संख्या में पुलिस फोर्स की तैनाती की गई है ।
संभल के आसपास के जिलों में भी सुरक्षा की कड़ी व्यवस्था की गई है। इस घटना में तीन युवकों की मौत हो गई । मृतकों की पहचान नईम और बिलाल के रूप में की गई है। बरेली, अमरोहा, रामपुर और मुरादाबाद में भी पुलिस की तैनाती की गई है।
सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव व अन्य विपक्षी दल इस स्थिति के लिए सरकार को दोषी ठहरा रहे हैं। मुस्लिम धर्म गुरू और नेता भी प्रदेश की सरकार पर ही निशाना साध रहे हैं। विपक्षी दलों के नेताओं को पता है कि पुलिस या प्रशासन जो कुछ कर रहा है वह न्यायालय के आदेश पर कर रहा है। इसका प्रदेश की सरकार का प्रत्यक्ष रूप से कोई लेना देना नहीं है। लेकिन तुष्टिकरण की राजनीति के कारण उपद्रवियों को अप्रत्यक्ष समर्थन दिया जा रहा है।
 देश संविधान द्वारा स्थापित कानून व्यवस्था के अन्तर्गत चल रहा है। यह बात सभी नेताओं सहित आम जन को समझनी होगी। अगर किसी को लगता है कि कुछ गलत है तो उसे न्यायालय में चुनौती देनी चाहिए न कि बवाल करना चाहिए।
वैसे अदालत के आदेश को अदालत में ही चुनौती दी जानी चाहिए। सड़कों पर उतरना और पत्थरबाजी करना, पुलिस से दो-दो हाथ करना गलत है। जिन परिवारों के बच्चे  भावनाएं भड़काए जाने के कारण अपना जीवन खो बैठे हैं उन परिवारों की स्थिति शब्दों में बयां करना मुश्किल है।
कानून को अपने हाथ लेने की प्रवृत्ति को रोकने का काम समाज व सरकार दोनों को मिलकर करना चाहिए। बवाल करना देशहित में नहीं। सबका साथ सबका विकास के थीम पर चलने वाली केंद्र व राज्य सरकार को  अल्पसंख्यकों का भरोसा और विश्वास बनाए रखना भी जरूरी है। कहीं न कहीं प्रशासन की चूक रही कि उसने एक संवेदनशील कार्रवाई से पहले पर्याप्त एहतियाती इंतजाम नहीं किए।  यदि सरकार पहले से एहतियात बरतती तो संभल में टकराव की स्थिति नहीं बनती।
सवाल उठता है कि क्या प्रशासन को सर्वे से पहले मस्जिद पक्ष को विश्वास में नहीं लेना चाहिए था? क्या कुछ लोग दंगा कर सरकार को मुस्लिम विरोधी बताने की साजिश रच रहे थे? क्या कुछ राजनीतिक दल इस मामले में राजनीतिक रोटियां सेंकने के इच्छुक हैं? इन सब सवालों का जवाब जांच का विषय है। सरकार और प्रशासन दोनों को इन सवालों के जवाब तो देना ही होंगे। (विभूति फीचर्स)

नवजोत सिंह सिद्धू पर क्यों बरसीं अभिनेत्री रोजलिन खान!

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मुंबई (अनिल बेदाग) : अभिनेत्री रोजलिन खान एक साहसी और साहसी अभिनेत्री हैं जो एक कुदाल को ‘कुदाल’ कहना जानती हैं। उन्होंने कभी भी खुद को खुले में सच कहने से नहीं रोका और यह निश्चित रूप से एक व्यक्ति के रूप में उनके सबसे पसंदीदा गुणों में से एक रहा है। एक अभिनेत्री और सार्वजनिक व्यक्ति के रूप में, जिनके पास दिमाग और दिलों को प्रभावित करने की शक्ति है, रोजलिन हमेशा किसी भी विषय के लिए एक स्टैंड लेने के लिए बहुत मुखर लेकिन सामाजिक रूप से जिम्मेदार रही हैं। इस बार भी, सभी की खुशी के लिए, वह नवजोत सिंह सिद्धू और उनकी पत्नी के कैंसर के इलाज के कारण के हालिया दावों पर अपना विचार साझा करने के लिए खुलकर सामने आई हैं। 
ऐसे समय में जब अधिकांश हस्तियों ने इस मामले पर चुप रहने का विकल्प चुना है, रोजलिन इस मामले पर नवजोत सिंह सिद्धू और उनकी अनौपचारिक टिप्पणियों की आलोचना करने के लिए खुले तौर पर सामने आई हैं। इस तथ्य को देखते हुए कि उसने खुद देखा है कि कैंसर का चरण 4 किस तरह का दिखता है, वह इस तथ्य के बारे में निश्चित है कि हल्दी और नीम के साथ कैंसर को वास्तव में कभी भी उलट नहीं किया जा सकता है, इसके विपरीत सिद्धू द्वारा अपनी पत्नी के इलाज के बारे में किए गए सनसनीखेज दावे।
वास्तव में रोजलिन के अलावा, टाटा मेमोरियल अस्पताल के 262 ऑन्कोलॉजिस्टों ने भी अस्पताल द्वारा जारी एक चेतावनी पत्र पर हस्ताक्षर किए हैं, जिसमें रोगियों से तुरंत डॉक्टर से परामर्श करने और अप्रमाणित घरेलू उपचार के साथ आगे नहीं बढ़ने का आग्रह किया गया है। रोजलिन ने जनहित में इस विषय पर एक वीडियो साझा करने के लिए अपने सोशल मीडिया हैंडल का सहारा लिया और कुछ ही समय में वीडियो वायरल होने लगा, जिससे उनके प्रशंसकों और शुभचिंतकों की सराहना की गई कि वे एक स्टैंड लेने में सक्षम हैं जहां यह मायने रखता है।

महाराष्ट्र में वोट जिहाद की थी तैयारी, पर RSS ने हिंदुओं को बँटने नहीं दिया

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आप इण्डिया से सुधीर गहलोत की रिपोर्ट

महाराष्ट्र में भाजपा के नेतृत्व वाली महायुति गठबंधन ने जो ऐतिहासिक जीत हासिल की है, उसकी चौतरफा चर्चा हो रही है। इसमें सबसे अधिक चर्चा उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की ‘बँटेंगे तो कटेंगे’, ‘एक रहेंगे तो नेक रहेंगे’ और उनकी महाराष्ट्र में 11 रैलियों की चर्चा हो रही है। महाराष्ट्र में उन्होंने 17 उम्मीदवारों के लिए प्रचार किया। इनमें से 15 उम्मीदवारों की जीत हुई। इनमें से एक सीट अकोला पश्चिम पर भाजपा सिर्फ 1283 वोटों से हारी है। वहीं, झारखंड में सीएम योगी ने कुल 18 सीटों पर चुनाव प्रचार किया। इनमें से 8 सीटों पर जीत मिलीं। वहीं, कई ऐसी सीटें रहीं, जहाँ विपक्षी सिर्फ कुछ हजार वोटों से जीते।

इसके अलावा, पीएम मोदी की ताबड़-तोड़ रैली और ‘एक हैं तो सेफ हैं’ जैसे नारे, ‘लाडली बहना योजना’, भाजपा सरकार की विकासवादी नीति और विपक्ष की तुष्टिकरण की राजनीति महायुति के जीत के प्रमुख कारक रहे। अगर इन सबको प्रमुख कारकों को एक तरफ रख दें और महाराष्ट्र चुनाव के दौरान राजनीतिक दलों की रणनीति पर गहन नजर डालें तो इसके पीछे एक प्रमुख कारण विपक्ष का ‘वोट जिहाद’ को समर्थन और इसके खिलाफ बना माहौल भी था। वोट जिहाद के असर को कम करने में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने बड़ी भूमिका निभाई।

हाल ही में हुए लोकसभा चुनावों में महाविकास अघाड़ी (MVA) को बड़ी सफलता मिली थी। राज्य की कुल 48 सीटों में से 14 पर इनके उम्मीदवारों ने जीत हासिल की थी। भाजपा ने इसे वोट जिहाद बताया था। भाजपा नेताओं ने आरोप लगाया था कि लोकसभा में इन 14 हिंदू उम्मीदवारों को हराने के लिए विशेष समुदाय (मुस्लिम) के लोगों ने एकजुट होकर वोट दिया था। अक्टूबर में देवेंद्र फडणवीस ने कहा था कि कुछ लोग सोचते हैं कि वे संगठित होकर हिंदुत्व को नीचे गिरा सकते हैं। इसके बाद राज्य में ‘वोट जिहाद बनाम धर्मयुद्ध’ का नारा निकल चला पड़ा।

दरअसल, भाजपा ने वोट जिहाद की जिस बात को उठाया था, वो अकारण नहीं था। इसकी सत्यता की पुष्टि करने चुनाव के दौरान कई तरह घटनाएँ सामने आईं। महाराष्ट्र के मालेगाँव में 12 लड़कों के खातों में 90 करोड़ रुपए आ गए। ये खाते धोखे से खुलवाए गए थे। भाजपा ने कहा कि इन पैसों को वोट जिहाद में इस्तेमाल में करने कि लिए भेजा गया था। मामले की जाँच हुई तो पैसे भेजने वाला व्यक्ति महाराष्ट्र का एक मुस्लिम व्यापारी सिराज अहमद निकला। बाद में ED ने उसके यहाँ छापेमारी की और 125 करोड़ रुपए की गड़बड़ी सामने आई।

भाजपा नेताओं ने आरोप लगाए कि वोट जिहाद के बड़े पैमाने पर पैसों का इस्तेमाल किया गया। इसके अलावा, अवैध रूप से महाराष्ट्र में रहने वाले बांग्लादेशी और रोहिंग्या मुस्लिमों को वोटर कार्ड बनवाए गए और उन्हें महायुति के खिलाफ वोट डालने के लिए कहा गया। महाराष्ट्र में विधानसभा चुनावों से पहले मुस्लिम वोटों को बीजेपी के खिलाफ लामबंद करने के लिए 180 से ज्यादा एनजीओ काम कर रहे थे। इन एनजीओ ने केवल मुंबई में 9 लाख मुस्लिम मतदाताओं को जोड़ा।

ये एनजीओ के लोग मुस्लिम समुदाय के बीच जाते हैं, उन्हें समझाते हैं और फिर इनका इस्तेमाल वोटिंग टर्नआउट बढ़ाने के लिए किया जाता है। इस्लामी संगठनों ने पिछले कुछ महीनों में मुस्लिम समुदाय के लोगों के बीच पहुँच बनाने के लिए कई अभियान चलाए हैं। इस दौरान इन्होंने सैंकड़ों बैठकें की, सूचना सत्र आयोजित किए और सामुदायिक कार्यक्रम किए…। हाल ही में सामने आई TISS की रिपोर्ट में कहा गया कि अवैध आप्रवासियों झुग्गी क्षेत्रों में बसाया जा रहा है। इनका राजनीतिक इस्तेमाल करने के लिए वोटर कार्ड दिलाए जा रहे हैं

रिपोर्ट में कहा गया है कि मुंबई में अवैध मुस्लिम आप्रवासियों की संख्या तेजी से बढ़ी है। मुंबई में 1961 में हिंदुओं की आबादी 88% थी, जो 2011 में घटकर 66% रह गई। इस दौरान मुस्लिम जनसंख्या 8% से बढ़कर 21% तक पहुँच गई। यदि यह प्रवृत्ति जारी रही तो अनुमान है कि 2051 तक हिंदू आबादी 54% से कम हो जाएगी और मुस्लिम आबादी लगभग 30% तक बढ़ सकती है। ये सब कुछ वोट जिहाद के तहत एक सोची-समझी साजिश के तहत जनसांख्यिकीय बदलाव के लिए किया जा रहा है। ये काम कमोबेश पूरे देश में जारी है।

लोकसभा की तरह ही इस बार भी विधानसभा चुनाव से पहले फतवे निकाले गए। विभिन्न मुस्लिम संगठनों ने क़ॉन्ग्रेस की अगुवाई वाली MVA को वोट देने की अपील की। इस फतवे को मुस्लिमों के घर-घर तक पहुँचाने के लिए जगह-जगह बैठक की गई। रैलियाँ निकाली गईं। एनजीओ को लगाया गया। ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के प्रवक्ता मौलाना खलीलुर रहमान सज्जाद नोमानी ने तो यहाँ तक कहा था कि ‘जो बीजेपी का साथ दे, ऐसे लोगों का हुक्का-पानी बंद होना चाहिए।’

इसके पहले मौलाना सज्जाद नोमानी ने तो एक कार्यक्रम में कहा था कि आज वोट देने वाले हर मुसलमान को अपने समुदाय के पक्ष में अपने अधिकार का इस्तेमाल करना चाहिए। उन्होंने मुसलमानों के मन में यह डर भी भर दिया कि अगर मोदी सत्ता में आए तो सभी मज़ार और मदरसे जमींदोज कर दिए जाएँगे। मुंबई में शिवसेना (यूबीटी) द्वारा आयोजित रैली में इस्लामी झंडे भी लहराए गए। इन सब कारणों से महाराष्ट्र के मुस्लिम बहुल इलाकों में मुस्लिमों ने भारी वोटिंग की और परिणाम सामने रहा।

हालाँकि, लोकसभा चुनाव वाला खेल ही विपक्षी दलों ने विधानसभा चुनावों में भी खेलने की कोशिश की। मुस्लिमों के हक में समर्थन लेने के बाद ऑल इंडिया उलेमा बोर्ड ने अपना समर्थन कॉन्ग्रेस के नेतृत्व में बने महाविकास अघाड़ी (MVA) गठबंधन को दिया था। अपने आधिकारिक पत्र में उलेमा बोर्ड ने 17 शर्तों के साथ ये समर्थन देने की बात ही है। इनमें वक्फ बोर्ड को 1000 करोड़ रुपए देने, आरएसएस पर प्रतिबंध लगाने जैसी माँग की गई थी, पैगंबर मुहम्मद के खिलाफ बोलने वाले व्यक्ति के खिलाफ कानून लागू करने जैसी बातें शामिल हैं।

इनके अलावा, जो अन्य माँगें थीं वो हैं- वक्फ संशोधन विधेयक का विरोध करने और इसे निरस्त करना, वक्फ संपत्तियों से अतिक्रमण हटाने के लिए महाराष्ट्र विधानसभा में कानून बनाना, महाराष्ट्र बोर्ड में मुसलमानों के लिए 10% आरक्षण, राज्य में पुलिस भर्ती में शिक्षित मुसलमानों को प्राथमिकता, भाजपा नेता नीतेश राणे और रामगिरी महाराज को जेल में डालना, मौलवी सलमान अझेरी को रिहा करना, राज्य के मस्जिदों के मौलानाओं और इमामों को 15,000 रुपए प्रति माह देना।

महाविकास विकास अघाड़ी ने उलेमा बोर्ड की माँगें मान लीं और इसके आधार पर महायुति गठबंधन के लिए वोट जिहाद की रणनीति पर काम शुरू हो गया। हालाँकि, बँटेेंगे तो कटेंगे नारे के साथ राजनीति आक्रामक होती गई तो अंदर ही अंदर आरएसएस ने मोहरे बिछाने शुरू कर दिए। वोट जिहाद को लेकर किए जा रहे सारे कामों को छोटी-छोटी बैठकों के जरिए लोगों तक पहुँचाया जाने लगा। इनमें जमीनी स्तर के RSS वर्कर ने अपने काम को अद्भुत तरीके से अंजाम दिया। इसका नेतृत्व किया RSS के पश्चिम प्रांत के प्रमुख एवं सह सरकार्यवाह अतुल लिमये ने।

मुस्लिम संगठनों और नेताओं द्वारा हिंदुओं के खिलाफ दिए जाने भड़काऊ नारों का काट तैयार किया जाने लगा। इस चुनाव को वोट जिहाद बनाम धर्मयुद्ध बना दिया गया। इसे कुछ ऐसे पेश किया गया कि अगर विधानसभा चुनावों में विपक्ष की जीत के बाद हिंदुओं के मुश्किलों के पहाड़ टूट पड़ेंगे। TISS की रिपोर्ट की चर्चा की गई। जमीनी स्तर पर स्वयंसेवकों ने बताया कि विपक्षी सरकार बनते ही बांग्लादेश-रोहिंग्या की देश में आमद बढ़ जाएगी। सोशल मीडिया से लेकर अखबारों में लेख, पार्टी नेताओं के बयान और मीडिया में बहस के जरिए इन बातों को आम जनमानस तक पहुँचाया गया।

अतुल लिमये ने दीर्घकालिक पहलों में शोध दल, शोध समूह और थिंक टैंक की स्थापना की। इनमें धार्मिक अल्पसंख्यकों के जनसांख्यिकीय अध्ययन और उसके कारण नीति-निर्धारण में पड़ने वाले असर जैसे विषयों के बारे में बताया गया। उन्होंने मराठा आंदोलन जैसे मुद्दों को बेअसर कर दिया। उन्होंने मराठा समुदाय के नेताओं को विश्वास में लिया, ओबीसी मतदाताओं को पार्टी से फिर जोड़ा। इसके लिए उन्होंने हिंदुत्व के मुद्दे को आधार बनाया। सीएम योगी के ‘बँटेंगे तो कटेंगे’ का जीतना विरोध MVA के नेता करते, उतना ही जमीनी स्तर पर हिंदुओं को अपने पाले में खिंचने में RSS को सफलता मिलती।

इसका परिणाम ये हुआ कि खुद को प्रगतिशील होने का स्वांग रचने वाली बॉलीवुड अभिनेत्री स्वरा भास्कर के शौहर और शरद पवार की एनसीपी के उम्मीदवार फहाद अहमद तक चुनाव हार गए। AIMIM मालेगाँव सेंट्रल जैसी मुस्लिम बहुल सीट तक सिमट कर रह गई। यहाँ से AIMIM के मुफ्ती इस्माइल सिर्फ 162 वोटों से जीते। पार्टी ने 16 जगहों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे। इस बार खड़े 420 मुस्लिम उम्मीदवारों में सिर्फ 13 मुस्लिम विधायक बने हैं। हारने वालों में कई बड़े चेहरे शामिल हैं। ये सब भाजपा की रणनीति का कमाल है।

अतुल लिमये को उनके सहयोगी फोकस और जमीनी स्तर पर काम करने वाले नेता के रूप में जानते हैं। महाराष्ट्र के चितपावन ब्राह्मण समाज से आने वाले 54 वर्षीय अतुल लिमये ने इंजीनियरिंग की पढ़ाई की और बहुराष्ट्रीय कंपनी में इंजीनियर रहे हैं। वे साल 2000 के शुरुआत में नौकरी छोड़कर संघ के पूर्णकालिक प्रचारक बन गए। इस तरह उन्होंने रणनीति एवं समाजसेवा की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम रखा। मूल रूप से नासिक के रहने वाले लिमये ‘पश्चिमी महाराष्ट्र के प्रांत प्रचारक रहे और जल्दी ही क्षेत्र प्रचारक बन गए। उनके क्षेत्र में महाराष्ट्र, गुजरात और गोवा शामिल हैं। वे संघ में सह सरकार्यवाह हैं।

सुधीर गहलोत 

चिकन बिरयानी में गोमांस मिलाकर बेचता था गुवाहाटी के रेस्टोरेंट का मालिक

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असम के गुवाहाटी में एक रेस्टोरेंट पर चिकन बिरयानी के नाम पर धोखे से गोमांस खिलने का आरोप लगाया गया है। रेस्टोरेंट पर आरोप है कि उसने एक हिन्दू छात्र को यह बिरयानी परोसी और इसके भीतर बीफ होने की जानकारी नहीं दी। इसको लेकर पुलिस को शिकायत दी गई है।

इंडिया टुडे नार्थईस्ट की एक रिपोर्ट के अनुसार, यह रेस्टोरेंट ‘लजीज सयेम’ नाम से खोला गया था। इस मामले में बीर लछित सेना ने पुलिस को शिकायत दी है। लछित सेना ने आरोप लगाया है कि इस रेस्टोरेंट का मालिक मेघालय से है और वह बिरयानी में गोमांस मिलकर बेचता था। बीर लछित सेना ने खाद्य सुरक्षा और भावनाएँ आहत होने की बात कही है।

*न हिंदुत्व न दल और न नेता ,जीती तो केवल लाड़ली बहना*

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( डॉ.मुकेश “कबीर”-विनायक फीचर्स )

महाराष्ट्र और झारखंड के रिज़ल्ट और इसके पहले हरियाणा के रिजल्ट से यह बात साफ हो गई कि अब देश में मुफ्त की योजनाएं ही चुनाव का आधार बन चुकी हैं । फिर चाहे मुफ्त बिजली पानी हो या फिर लाडली बहना जैसी योजनाओं द्वारा पैसा बांटना हो,लोग अब इसी के आधार पर वोट देते हैं।

महाराष्ट्र के बारे में कहा यह जा रहा है कि हिंदुत्व की जीत हुई लेकिन झारखंड या अन्य राज्यों के परिणाम देखें तो हिंदुत्व कहीं दिखाई नहीं दिया,बल्कि जहां जिस जाति की संख्या ज्यादा थी या जिसकी सरकार थी उनके कैंडिडेट ही जीते। बंगाल में पूरी छह सीट ममता की पार्टी जीती तो वायनाड में प्रियंका को बड़ी जीत मिली,कुल मिलाकर राज्य सरकार का प्रभाव दिखाई दिया।

वैसे महाराष्ट्र की बात करें तो कहा जा रहा है कि वहां हिंदुत्व की सुनामी थी लेकिन यदि वहां हिंदुत्व होता तो लाडली बहना योजना शुरू नहीं करना पड़ती। महाराष्ट्र की सरकार और स्थानीय नेता अच्छे से जानते हैं कि महाराष्ट्र में हिंदुत्व कभी चुनाव जिताऊ मुद्दा नहीं रहा,यही कारण है कि योगी आदित्यनाथ के”बटेंगे तो कटेंगे” का सबसे पहले विरोध महायुति के नेताओं ने ही किया। अजीत पंवार और पंकजा मुंडे दोनों ने इस नारे का विरोध किया। दोनों का कहना था कि महाराष्ट्र में यह नारा व्यर्थ है ।

शिंदे भी पहले ही समझ चुके थे इसीलिए उन्होंने लाडली बहना जैसी लुभावनी योजना शुरू की और सिर्फ शुरू ही नहीं की बल्कि पांच महीने का एडवांस भी दे दिया,हर घर में साढ़े सात हजार मुफ्त में आए तो महिलाओं को महायुति की सरकार भाने लगी वरना लाडली बहना से पहले जितने भी सर्वे आए थे उनमें महायुति की स्थिति कोई खास अच्छी नहीं थी । यदि स्थिति अच्छी होती तो कम से कम महाराष्ट्र में तो लाडली योजना लांच नहीं की जाती लेकिन यह योजना शुरू की गई और एक महीने बाद ही फिजा बदल गई ।

खासकर जो लेबर क्लास की महिलाएं हैं,जो घरों में काम करने वाली मौशीयां हैं उनमें जबरजस्त उत्साह देखा गया और फिर बीजेपी यह नरेटिव सेट करने में भी सफल रही की यदि महायुति की सरकार चली गई तो आघाड़ी इस योजना को बंद कर देगी,जबकि आघाड़ी ने इस योजना का पैसा डबल करने का वादा किया था ।

यहां महिलाओं का भरोसा महायुति के साथ रहा । बहरहाल हिंदुत्व का नारा यहां नहीं चला,यदि हिंदुत्व का नारा चलता तो उद्धव ठाकरे से ज्यादा सीटें राज ठाकरे की आना चाहिए थी क्योंकि राज ठाकरे बीजेपी के साथ थे और उनके भाषणों में भी हिंदुत्व और राष्ट्र के मुद्दे ज्यादा थे साथ ही वे मुस्लिमों पर कड़े शाब्दिक प्रहार भी कर रहे थे,बिल्कुल बाला साहेब की ही तरह लेकिन उनके सवा सौ उम्मीदवारों में से एक भी नहीं जीता ।

उनके खुद के बेटे भी नहीं जीत सके। इसका सबसे बड़ा कारण यही है कि राज ठाकरे लगातार लाडली बहना योजना का विरोध कर रहे थे । शायद इसीलिए उनकी सभा में आने वाली भीड़ वोट में तब्दील नहीं हो सकी। हालांकि राज ठाकरे की हार पर अभी मीडिया में चर्चा ज्यादा नहीं है बल्कि सारे देश में चर्चा सिर्फ उद्धव की हार ही हो रही है। खासकर हिंदूवादी पार्टियों के समर्थक उद्धव की हार का कारण बीजेपी का साथ छोड़ना ही बता रहे हैं। वैसे यह भी पूरी तरह सच नहीं है क्योंकि उद्धव की इमेज महाराष्ट्र में आज भी हिंदूवादी नेता की है।

उनके बारे में नरेटिव सेट किया जा रहा था कि उन्होंने अपनी हिंदू वादी विचारधारा छोड़ दी है। लोकसभा में वक्फ बिल के मुद्दे पर बॉयकॉट करने से ही उद्धव के मुस्लिम वोटर्स नाराज हो गए थे और मातोश्री के सामने धरना प्रदर्शन भी करने लगे।मातोश्री (बाल ठाकरे का घर) के सामने इतनी बड़ी संख्या में मुस्लिम्स पहली बार देखे गए ,खैर उद्धव को बॉयकॉट का नुकसान हुआ वरना मुस्लिम वोट उनको मिलते तो कुछ सीटें ज्यादा बढ़ जाती ।

यह सॉफ्ट हिंदुत्व ही उद्धव को भारी पड़ा। महाराष्ट्र के बारे में पूरे देश में चर्चा हो रही है और सोशल मीडिया ने तो इसको हिंदुत्व की जीत मान लिया है लेकिन झारखंड में हिंदुत्व क्यों नहीं चला जबकि वहां असम के मुख्यमंती हेमंत विश्वा शर्मा और केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने खुलकर हिंदुत्व की बात की थी।शर्मा तो मिशनरी और मदरसों के खिलाफ खूब बोले थे और हिंदुओं को एकजुट होकर वोट करने की अपील की थी, लेकिन वहां भी हेमंत सोरेन की मईयां सम्मान योजना ने शायद सोरेन को बचा लिया ।

सोरेन ने लाड़ली बहना की ही तरह मईयां सम्मान योजना झारखंड में पहले ही शुरू कर दी थी। महिलाओं को लुभाने वाली योजनाएं बीजेपी का ट्रंप कार्ड रही है लेकिन यह कार्ड सोरेन पहले ही चल चुके तो बीजेपी के पास कुछ रहा नहीं लुभाने के लिए वरना हरियाणा में भी बीजेपी ने अपने घोषणा पत्र में लाडो लक्ष्मी योजना के तहत 2100 रुपए महिलाओं को देने का वादा और प्रचार किया था इसलिए आखिरी के तीन महीने में बीजेपी का माहौल तेजी से बन गया जबकि पहले हरियाणा में भी स्थिति अच्छी नहीं बताई जा रही थी।लगभग यही हाल मध्यप्रदेश का था लेकिन मध्यप्रदेश में शिवराज सिंह चौहान ने चुनाव से ठीक पहले लाडली बहना योजना शुरू की तो बीजेपी की बंपर वापसी हुई और नतीजे बिल्कुल वैसे ही एकतरफा निकले जैसे आज महाराष्ट्र में निकले हैं। बहरहाल हार जीत तो चुनाव का एक हिस्सा है और उसके बाद समीक्षा भी एक परंपरा है ।

जिसमें सब अपनी अपनी भड़ास निकालते हैं और अलग अलग कारण गिनाए जाते हैं लेकिन एक बात पक्की है कि जीत हार के कारण जो भी हों लेकिन यह मुफ्त की योजनाएं अब हमारे चुनाव का हिस्सा बन चुकी हैं । यह देशहित में तो नहीं कही जा सकतीं लेकिन राजनीतिक दलों के लिए सौ फीसदी फायदे का सौदा है। इसलिए सारी पार्टियां आजकल इसी फार्मूले पर काम कर रही हैं।

यह बात अलग है कि इसी मुद्दे पर वो एक दूसरे की आलोचना भी करती हैं । जब केजरीवाल दिल्ली में मुफ्त की योजनाएं लाए तो बीजेपी ने काफी आलोचना की लेकिन अब बीजेपी ने भी ऐसी ही कई योजनाएं शुरू कर दी हैं। उनको भी समझ आ गया है कि जनता को क्या चाहिए इसलिए बीजेपी ने पहले मध्यप्रदेश फिर हरियाणा और अब महाराष्ट्र लाड़ली बहना के सहारे जीता और सोरेन ने लाड़ली बहना के भरोसे झारखंड में सत्ता में वापसी की। अब महत्वपूर्ण सवाल यह है कि इतना पैसा लाएंगे कहां से ? महाराष्ट्र में करोड़ों रुपए दिए गए इनकी रिकवरी कैसे होगी,क्योंकि जिन राज्यों में इस तरह की योजनाएं चल रही हैं वहां की सरकारें परेशान हैं।

पैसा देने के लिए पैसा होना भी तो चाहिए और आखिर में पैसा जनता से ही वसूला जाता है,लाड़ली बहना के लिए लाड़ले भाईयों की जेब खाली की जाती है । मध्यप्रदेश में बीस साल पहले ही जनता इसका दुष्परिणाम भुगत चुकी है,जब दिग्विजय सिंह ने पहले तो बिजली मुफ्त की थी लेकिन बाद में बिजली के बिल इतने महंगे कर दिए कि बिजली के कारण ही दिग्विजय की राजनीति फ्यूज हो गई और फिर कभी नहीं चमके।

अब ऐसी योजनाओं का बंद होना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन भी है क्योंकि अब चुनाव जीतने का ट्रंप कार्ड ऐसी योजनाएं ही हैं। वर्तमान चुनाव परिणामों से तो अब ऐसा लगता है कि जिस स्टेट में जिसकी सरकार है वही बार बार रिपीट होगी क्योंकि मुफ्त की योजनाओं की चाबी तो सत्ताधारी दल के पास ही होती है। फिर चाहे वह दिल्ली में आम आदमी हो या महाराष्ट्र में खास आदमी । बहरहाल जो जीते उनको बधाई,आखिर जो जीते वही तो सिकंदर हैं,जो हारा वो अब आलोचना कर सकता है पांच साल तक…(विनायक फीचर्स)

जशपुर में गौ मांस खाने के आरोप में 14 आदिवासी गिरफ्तार

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छत्तीसगढ़ के जशपुर जिले में गौवंश की हत्या कर उसके मांस का सेवन करने के आरोप में पुलिस ने 14 आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया है. ये सभी आरोपी आदिवासी समजा से हैं. आरोप है कि आरोपियों के पास से भारी मात्रा में गोमांस, हथियार और अन्य आपत्तिजनक सामग्री बरामद की गई है.

सूचना पर तत्काल कार्रवाई

जशपुर एसपी शशिमोहन सिंह ने बताया कि नारायणपुर थाना प्रभारी सतीश सोनवानी को मुखबिर से सूचना मिली थी कि बहेराखार गांव के निवासी आश्विन कुजूर अपने घर में चोरी-छिपे गौवंश की हत्या कर मांस पकाकर खा रहे हैं. इसके बाद पुलिस की टीम ने मौके पर पहुंचकर कार्रवाई की. इस दौरान घटनास्थल पर 10 किलो गोमांस और 2 कड़ाही में पकता मांस भी बरामद हुआ. इसके अलावा, एक टांगी, 2 बैठी, और सफेद प्लास्टिक बोरे में गौवंश का अवशेष भी जब्त किया गया.इसके बाद पुलिस ने सभी आरोपियों को मौके पर ही गिरफ्तार कर लिया.

सख्त धाराओं में की गई कार्रवाई

गिरफ्तार किए गए 14 आरोपियों के खिलाफ छत्तीसगढ़ पशु क्रूरता अधिनियम 2004 की धारा 4, 6, 10 और BNS की धारा 325, 3(5) के तहत मामला दर्ज कर उन्हें न्यायिक अभिरक्षा में जेल भेज दिया गया है.

गिरफ्तार आरोपियों की सूची

  1. रोहित कुजूर (28 साल)
  2. संजय कुजूर (32 साल)
  3. आश्विन कुजूर (32 साल)
  4. अनुरंजन कुजूर (25 साल)
  5. दीप कुमार तिर्की (25 साल)
  6. बरथोलुयिस लकड़ा (50 साल)
  7. प्रकाश तिर्की (45 साल)
  8. पोलडेक लकड़ा (35 साल)
  9. रानू कुजूर (31 साल)
  10. अजमेस लकड़ा (25 साल)
  11. संदीप कुजूर (35 साल)
  12. तेलेस्फोर कुजूर (57 साल), सभी निवासी बहेराखार.
  13. नवीन मिंज (30 साल), निवासी जुड़वाईन चौकी, दोकड़ा थाना कांसाबेल.
  14. आशीष टोप्पो (28 साल), निवासी जुड़वाईन चौकी, दोकड़ा थाना कांसाबेल.

अवैध गतिविधियों पर सख्त कार्रवाई की चेतावनी

एसपी शशिमोहन सिंह ने साफ शब्दों में कहा कि जिले में किसी भी प्रकार के अवैध कारोबार और गौवंश तस्करी में शामिल व्यक्तियों को बख्शा नहीं जाएगा. पुलिस की ओर से ऐसी गतिविधियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई जारी रहेगी. इसके साथ ही  एसपी ने जनता से अपील की है कि इस तरह की गतिविधियों की सूचना तुरंत पुलिस को दें ताकि समय पर कार्रवाई की जा सके.