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राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े मामले पर सरकार को अकेले नहीं छोड़ेंगे – कांग्रेस

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कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो की ओर से खालिस्तानी आतंकवादी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या के लिए भारत को दोषी ठहराए जाने के मामले में केंद्र सरकार को कांग्रेस का साथ मिला है. कांग्रेस ने कहा है कि अंतरराष्ट्रीय मामलों पर देश को सर्वोपरि रखा जाएगा और इस मुद्दे पर केंद्र को कांग्रेस का समर्थन है. खालिस्तानी आतंकी निज्जर की हत्या में भारतीय खुफिया एजेंसी रॉ (RAW) के शामिल होने का आरोप लगाते हुए कनाडा ने भारतीय राजनयिक को निष्कासित कर दिया है. इसके जवाब में भारत ने भी ऐसा ही किया है.
कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर मंगलवार (19 सितंबर) को लिखा, “कांग्रेस का हमेशा से यह मानना है कि जब देश पर आतंकवाद का खतरा हो तो एकजुटता बनी रहनी चाहिए. खासकर ऐसी घटनाएं जिनसे भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता के लिए खतरा हो, कांग्रेस केंद्र के साथ मजबूती से खड़ी है.’
अभिषेक मनु सिंघवी ने भी उठाए सवाल
कांग्रेस के एक और सांसद अभिषेक मनु सिंह सिंघवी ने कनाडा के प्रधानमंत्री की आलोचना की. उन्होंने कहा कि भारत के लिए जितने खतरनाक दूसरे दुश्मन हैं, उतना ही जस्टिन ट्रूडो भी हैं. सिंघवी ने ट्रूडो की तुलना जोकर से करते हुए कहा कि धरती पर उनसे बड़ा जोकर कोई नहीं है. एक्स पर उन्होंने लिखा कि भारत को भी तुरंत कनाडा के हाई कमिशन की सुरक्षा घटा देनी चाहिए. ट्रूडो भी उन दूसरे लोगों की तरह खतरनाक है जो भारत के खिलाफ हैं.
कनाडाई पीएम जस्टिन टुडो ने आरोप लगाया है कि खालिस्तानी आतंकवादी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या के पीछे रॉ के एजेंट का हाथ रहा है. उनके इस आरोप को भारत ने खारिज कर दिया और कहा कि ट्रूडो निराधार और उकसावे वाला बयान दे रहे हैं. इसके पीछे उनका अपने देश में राजनीतिक लाभ लेना है.
कनाडा की विदेश मंत्री मेलिना जोली ने घोषणा की कि एक शीर्ष भारतीय राजनयिक को निष्कासित कर दिया गया. उनका नाम पवन कुमार राय है. आरोप लगाया गया है कि वह रॉ के एजेंट हैं.
भारत ने भी दिया है कड़ा संदेश 
इस मामले में भारत में भी तत्काल कार्रवाई की और कनाडा के उच्चायुक्त कैमरून मैके को बुलाकर एक सीनियर कनेडियन राजनयिक को निष्कासित करने की सूचना दी गई. उसका नाम ओलिवियर सिल्वेस्टर है. भारतीय विदेश मंत्रालय ने स्पष्ट कर दिया है कि केनेडियन राजनयिक का निष्कासन इसलिए किया गया है, क्योंकि वह भारत के आंतरिक मामलों और एंटी इंडिया गतिविधियों में शामिल रहा है.

एक्शन थ्रिलर ‘गणपथ–राइज ऑफ द हीरो’ का पोस्टर जारी, 20 अक्टूबर को रिलीज होगी फिल्म

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 गुड कंपनी के सहयोग से पूजा एंटरटेनमेंट द्वारा प्रस्तुत और विकास बहल द्वारा निर्देशित फ्यूचरिस्टिक एक्शन थ्रिलर ‘गणपथ-राइज ऑफ द हीरो’ का पोस्टर गणेश चतुर्थी के अवसर पर जारी कर दिया गया है। टाइगर श्रॉफ, कृति सेनन और दिग्गज अमिताभ बच्चन की गतिशील तिकड़ी के साथ यह पैन इंडिया मास एंटरटेनर दर्शकों को फ्यूचर की दुनिया में ले जाने का वादा करता है। यह फिल्म एक शानदार विजुअल अनुभव है, जो दीवाना कर देने वाले म्यूजिक स्कोर के साथ हाई-ऑक्टेन एक्शन सीक्वेंसों का बढ़िया मेल है जो दर्शकों को एक एपिक यात्रा पर ले जाने का वादा करती है।
इस रोमांचकारी कहानी में एक सेनानी का उदय होता है जो एक अनजान जगह पर अपने भाग्य की खोज के लिए निकलता है। वाशु भगनानी, जैकी भगनानी, दीपशिखा देशमुख और विकास बहल द्वारा संयुक्तरूप से निर्मित यह फिल्म 20 अक्टूबर को हिंदी, तमिल, तेलुगु, मलयालम और कन्नड़ में एक साथ रिलीज होगी।
प्रस्तुति : काली दास पाण्डेय

नए संसद भवन के प्रथम भाषण में – मेरी तरफ से मिच्छामी दुक्कड़म – पीएम मोदी

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नई दिल्ली: देश ने एक और नया इतिहास बनते देख लिया है। पुरानी संसद को विदा देकर सभी सांसद नई संसद में प्रवेश कर चुके हैं। इस मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आह्वान किया कि नई भवन है तो भाव भी नया होना चाहिए, भावना भी नई होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि गणेश चतुर्थी और संवत्सरी के अवसर पर नई संसद का गृह प्रवेश हुआ है, इसलिए हमें इन दोनों पर्वों की मूल भावनाओं को भी हमेशा के लिए आत्मसात कर लेना चाहिए। पीएम मोदी ने संवत्सरी के पर्व का हवाला देकर जाने-अनजाने में हुई अपनी किसी भी गलती के लिए सांसदों और देशवासियों से माफी भी मांगी। उन्होंने कहा, मेरी तरफ से सबको ‘मिच्छामी दुक्कड़म।’

नई संसद भवन से पीएम मोदी का मिच्छामी दुक्कड़म

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नई संसद में अपने पहले संबोधन में जैन धर्म से संबंधित भाव ‘मिच्छामि दुक्कड़म’ का जिक्र किया। उन्होंने कहा, ‘आज संवत्सरी का भी पर्व है। ये अपने आप में एक अद्भुत परंपरा है। इस दिन को एक प्रकार से क्षमा वाणी का भी पर्व कहते हैं। आज मिच्छामी दुक्कड़म कहने का दिन है। ये पर्व मन से, कर्म से, वचन से अगर जाने-अनजाने किसी को भी दुख पहुंचाया है तो उसकी क्षमा याचना का अवसर है। मेरी तरफ से भी पूरी विनम्रता के साथ, पूरे हृदय से आप सभी को, सभी संसद सदस्यों को और देशवासियों को मिच्छामी दुक्कड़म।’

उन्होंने आगे कहा, ‘आज जब हम एक नई शुरुआत कर रहे हैं तब हमें अतीत की हर कड़वाहट को भुलाकर आगे बढ़ना है। इस भावना के साथ हम यहां से हमारे आचरण, हमारी वाणी, हमारे संकल्पों से जो भी करेंगे, वो देश के लिए, राष्ट्र के एक-एक नागरिक के लिए प्रेरणा का कारण बनना चाहिए और हम सबको इस दायित्व को निभाने के लिए भरसक प्रयास भी करना चाहिए।’

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सांसदों से राष्ट्रहित में दलगत भावना से ऊपर उठकर व्यवहार करने की अपील की है। उन्होंने कहा, ‘यत भावो, तत भवति। यानी हम जैसी भावना करते हैं, वैसा ही घटित होता है। हमारी भावना जैसी होगी, हम वैसे ही बनते जाएंगे। भवन बदला है, मैं चाहूंगा- भाव भी बदलना चाहिए, भावना भी बदलनी चाहिए। यह संसद दलहित के लिए नहीं है। हमारे संविधान निर्माताओं ने इतने पवित्र संस्थान का निर्माण दलहित के लिए नहीं, सिर्फ और सिर्फ देशहित के लिए किया।’

 

 

25 सितम्बर : जन्मदिवस विशेष – भारतीय लोकतंत्र के साधक – पं. दीनदयाल उपाध्याय

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अंजनी सक्सेना
 
भारत एक ऐसा विशिष्ट देश है जहां ऋषि समान व्यक्तित्व वाली विभूतियों ने राजनीति में भी अपना योगदान दिया
है। प्राचीन राजर्षियों से लेकर स्वामी विवेकानंद और स्वामी दयानंद भी इस परम्परा की कड़ी रहे हैं। इसी परंपरा की
एक कड़ी पं. दीनदयाल उपाध्याय को माना जाये तो कोई अतिश्योक्ति न होगी। पं. दीनदयाल उपाध्याय का 
व्यक्तित्व राजनीतिक होते हुये भी ऋषि व्यक्तित्व था। पं. दीनदयाल उपाध्याय मेधा सम्पन्न पुरुष तो थे ही साथ ही वे आजीवन ब्रह्मचारी, महान चिन्तक, कर्मयोगी, सिद्धांतवादी तथा एक तपस्वी के समान जीवन जीने वाले पुरुष
थे।

आमतौर पर अधिकांश महापुरुषों को अपने जीवन के आरंभिक दिनों में- कष्टों का सामना करना पड़ता है, तथा कष्टों
के इस दावानल पर चलकर ही महापुरूष कुंदन बनकर निखर उठते है। यही सब कुछ दीनदयाल जी के साथ भी हुआ।
25 सितम्बर 1916 को नाना के गांव नगला चन्द्रभान (मथुरा जिला) में दीनदयाल जी का जन्म हुआ, लेकिन वे ढाई
वर्ष की अवस्था में पितृविहीन तथा सात वर्ष की अवस्था में मातृविहीन हो गये। नौ वर्ष की अवस्था में ही पालक नाना
भी स्वर्गारोहण कर गये। अब दीनदयाल जी का पालन-पोषण मामा-मामी के आश्रय पर होने लगा। पन्द्रह वर्ष की
आयु तक पहुंचते-पहुँचने मामा-मामी की भी मृत्यु हो गयी। विधाता शायद दीनदयाल जी की अभी और भी परीक्षा
लेना चाहना था। तभी तो तीन वर्ष बाद ही पंडित जी के छोटे भाई शिवदयाल की भी मृत्यु हो गयी, उसके ही अगले वर्ष
नानी की भी मृत्यु हो गयी। दीनदयान उपाध्याय को विधाता की क्रूर परीक्षा के चलते अपने प्रियजनों की मृत्यु का
गहरा अनुभव हुआ, शायद यही उनके सन्यासी समान जीवन के पीछे का रहस्य था क्योंकि मृत्यु की इस अनवरता ने
उन्हें जीवन की क्षणभंगुरता का स्पष्ट अहसास करा दिया था।

बचपन के इन घोर पीड़ादायी अनुभवों के बाद भी उनकी पढ़ाई अनवरत चलती रही, यद्यपि नियमित रूप से पढऩा वे
नौ वर्ष की उम्र में आरंभ कर पाये थे। दसवीं और इंटरमीडियेट की बोर्ड की परीक्षा सर्वाधिक अंकों के साथ उत्तीर्ण करने
पर उन्हें सीकर के महाराजा तथा घनश्याम दास बिड़ला ने स्वर्ण पदक, मासिक छात्रवृत्ति तथा पुस्तकों की खरीदी के
लिये नगद पारितोषिक भी दिया था।

कानपुर में बी. ए. के अध्ययन के दौरान ही पंडित जी का सम्पर्क राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से हुआ। यहां से उनका
सामाजिक जीवन भी प्रारंभ हुआ। संघ द्वारा आयोजित बौद्धिक परीक्षा में पंडित जी ने प्रथम स्थान प्राप्त किया था।
बाद में वे प्रशासनिक परीक्षा में भी बैठे, प्रशासनिक सेवा हेतु उनका चयन भी कर लिया गया. लेकिन तपस्वी मना इस
व्यक्तित्व को भला अंग्रेजों की नौकरी कैसे पसन्द आती इसलिये वे बी. टी. करने प्रयाग (वर्तमान इलाहाबाद) चले
गये।

आगे चलकर यही व्यक्तित्व न केवल एक महान चिंतक, कर्मयोगी और एकात्म मानववाद के प्रणेता के रूप में उभरा
बल्कि यह भारतीय लोकतंत्र के पुरोधा महापुरूष के रूप में भी उभरकर सामने आया। पंडित उपाध्याय श्री केशवराम
बलिराम हेडगेवार के विचारों से प्रभावित होकर लोक सेवा और आत्मपरिष्कार के पथ पर बढ़े थे। डॉ. हेडगेवार ने
उनके त्याग और कर्तव्यनिष्ठा को देखकर ही उन्हें राजनीति के पथ पर अग्रेषित किया। आगे चलकर अपनी
अध्ययनशीलता और चिन्तन मनन के आधार पर उपाध्याय जी ने एकात्म मानववाद के विचार सूत्र का प्रादुर्भाव
किया उनके इसी एकात्म मानववाद ने उन्हें भारत के महान मनीषियों की श्रेणी में ला दिया है।

एकात्म मानववाद के सिद्धांत के प्रचार-प्रसार में उन्होंने गांवों की उन्नति पर सर्वाधिक कार्य किया, इसके लिये
उन्होंने अंत्योदय की योजना भी बनायी। इस योजना के द्वारा उन्होंने गांव के सबसे निर्धन व्यक्ति को समर्थ बनाने
के प्रयास किये। उनका यह विचार था कि राष्ट्र निर्माण के लिये जीवन मूल्यों की प्रतिष्ठा अनिवार्य है तथा राष्ट्र
निर्माण में राष्ट्र के प्रत्येक व्यक्ति का उपयोग होना चाहिये, इसके लिये प्रत्येक राष्ट्रवासी को काम मिलना ही
चाहिये।

पं. दीनदयाल उपाध्याय जहां एकात्म मानववाद के प्रणेता थे, वहीं ये भारतीय लोकतंत्र के पुरोधा भी थे। लोकतंत्र की
खिल्ली उड़ाने वाले आज के तथाकथित नेताओं में पंडित जी के समान कोई नेता मिलना असंभव ही है। हमारा देश
यद्यपि विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र माना जाता है। लेकिन यहां चुनाव जीतने के लिये किस प्रकार के हथकंडों का

प्रयोग किया जाता है। हम सभी उनसे भलीभांति परिचित हैं। इन्हीं परिस्थितियों में पंडित दीनदयाल उपाध्याय ने
लोकतंत्र की प्रतिष्ठा को अक्षुण्ण रखने के अनेक प्रयास किये। कश्मीर के मुद्दे पर उनका आंदोलन और सत्याग्रह,
गोवा की मुक्ति के लिये संघर्ष तथा कच्छ सत्याग्रह के लिये दिल्ली में प्रदर्शन उनकी कुशल नेतृत्व क्षमता के कारण
ही सफल हो सके थे। बाद में यही मुद्दे भारतीय जनसंघ की पहचान बन गये थे।

पं. दीनदयाल राजनीति में होते हुये भी संत पुरुष थे, इसीलिये उन्होंने पहले तो कोई चुनाव ही नहीं लड़ा लेकिन चीनी
आक्रमण में भारत की दुखद पराजय के बाद सम्पूर्ण विपक्ष के जोर देने पर वे उसके संयुक्त क्षेत्र से चुनाव मैदान में
उतरे। यहां भी उनके आदर्श और सिद्धांत ही सर्वोपरि रहे। जाति के आधार पर चुनावी सभा को संबोधित करने के
प्रस्ताव को कठोरतापूर्वक ठुकराकर वे चुनावी मैदान में तो पराजित हो गये लेकिन नैतिक धरातल पर वे एक अद्भुत
मिसाल कायम कर गये। चुनाव हारने के बाद जीतने वाले व्यक्ति को माला पहनाने वाले वे पहले व्यक्ति थे। ऐसा
करना तो पंडित दीनदयाल उपाध्याय जैसे विनम्र एवं कोमल व्यक्तित्व के लिये ही संभव था।

पं. दीनदयाल उपाध्याय राजनीति के अलावा भारतीय संस्कृति और अर्थशास्त्र के भी प्रकांड विद्वान थे। साहित्य के
क्षेत्र में भी पंडित जी लगातार सक्रिय रहे। राष्ट्रधर्म (मासिक पत्रिका) तथा पांचजन्य (समाचार पत्र) में पंडित जी ने
साहित्य एवं पत्रकारिता दोनों का ही सामंजस्य किया। बाद में भले ही ये दोनों पत्र एवं पत्रिका जनसंघ के मुखपत्र बन
गये, लेकिन भारतीय संस्कृति के प्रचार-प्रसार में राष्ट्रधर्म के योगदान को नकारा नहीं जा सकता है।
आज जबकि भारतीय संस्कृति पर चारों ओर से हमले हो रहे है तब राष्ट्रीय संस्कृति पर वर्षों पूर्व कहे गये पंडित जी के
कुछ वाक्य हमें आज भी प्रासंगिक लगते है।

पंडित जी का कथन था कि आज स्वतंत्र होने पर आवश्यक है कि हमारे प्रवाह की संपूर्ण बाधायें दूर हों तथा हम अपनी
प्रतिभा के अनुरूप राष्ट्र के सम्पूर्ण क्षेत्रों में विकास कर सकें। राष्ट्र भक्ति की भावना का निर्माण करने और उसको
साकार स्वरूप देने का श्रेय भी राष्ट्र की संस्कृति को ही है तथा वही राष्ट्र की संकुचित सीमाओं को तोड़कर मानव की
एकात्मता का अनुभव कराती है अत: संस्कृति की स्वतंत्रता परम आवश्यक है। बिना उसके राष्ट्र की स्वतंत्रता
निरर्थक ही नहीं टिकाऊ भी नहीं रह सकेगी।

पंडित दीनदयाल उपाध्याय अपने जीवनकाल में ही जिस स्तर पर पहुंच गये थे वहां वर्ण, जाति, धर्म या संप्रदाय सभी
की सीमायें टूट चुकी थी। वे ऐसे विराट पुरुष थे जो चुपचाप ज्ञात भाव से स्वयं ही मौत की गोद में समा गए। उनकी
मृत्यु का कारण आज भी अज्ञात है। कहा जाता है कि ग्यारह फरवरी 1968 को रेलयात्रा के दौरान ही उनकी हत्या कर
दी गयी थी। जीवन भर वे मानव मात्र के बीच स्नेह का, सौहाद्र्र का और सर्वधर्म समभाव का संदेश प्रसारित करते
रहे।

एकात्म मानववाद का उनका संदेश आज भी प्रासंगिक है। आज भी उनके संदेश को और अधिक प्रसारित तथा
कार्यान्वित करने की आवश्यकता है और यही उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि होगी। (विभूति फीचर्स)

डायबिटीज के रोगी को सावधानी आवश्यक

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सुभाष आनंद –

डायबिटीज अर्थात मधुमेह अर्थात शुगर का रोग भारत में बड़ी तेजी से फैल रहा है। यदि डायबिटीज को लेकर रोगी
सावधानी नहीं बरतता तो कई बार यह रोग घातक सिद्ध हो जाताहै। यदि इसे नियंत्रण में न रखा जाए तो शरीर में
कई प्रकार के अन्य विकार पैदा हो सकते हैं। फिरोजपुर शहर के जाने-माने हृदय रोग विशेषज्ञ एवं शहीद डॉक्टर
अनिल बागी मल्ट्री स्पेशलिस्ट हास्पिटल के डायरेक्टर डॉ. कमल बागी (एमडी मेडिसिन) का कहना है कि यदि इसे
नियंत्रण में न रखा जाए तो इससे अनेक अन्य शारीरिक पेचीदगियां पैदा हो सकती हैं। ऐसा होना कई अन्य घातक
एवं कष्टदायक रोगों को निमंत्रण देता है, यह निश्चित ही जटिल रोग है।

डॉ. कमल बागी से जब पूछा गया कि आखिर यह रोग क्या है? उनका कहना था कि जब शरीर मेंरक्त में सामान्य
स्तर से शक्कर की मात्रा बढ़ जाती है तो पेशाब के साथ शक्कर आनी शुरू हो जाती है। डॉक्टरी भाषा में इस डायबिटीज  कहा जाता है।

एक एडाक्राइनल ग्रंथि से यह रोग होता है। हमारे पेट के ऊपरी भाग में पीछे पैनक्रियाज ग्रंथि होती है जो हमारे शरीर
के अंदर की शुगर की मात्रा को ठीक रखने के लिए हार्मोन पैदा करती है जिसे इंसुलिन भी कहा जाता है। यह इंसुलिन
ही शरीर के शुगर को कंट्रोल में रखती हैं, जब पैनाक्रियाज यह इंसुलिन कम मात्रा में पैदा करें तो डायबिटीज रोग हो
जाता है। जब बच्चों में बढ़ती इस बीमारी के बारे में बातचीत की तो डॉ. कमल बागी ने बताया कि डायबिटीज दो प्रकार
की होती है, प्रथम बचपन ही से हो जाती है, दूसरी बढ़ती आयु में। उन्होंने बताया कि यह रोग अल्पायु बच्चों में भी हो
सकता है और इसकी चिकित्सा इंसुलिन देने से की जाती है। हमारी डॉक्टरी भाषा में इसे इंसुलिन डिपेंडेट डायबिटीज
कहा जाता है। दूसरी प्रकार की शुगर 40-45 साल की आयु से अधिक लोगों को होती है, क्योंकि इस आयु में इंसुलिन
पैदा करने वाले सैल पैदा करने की क्षमता कम होने लगती है, ऐसे रोगियों को नान इंसुलिन डिपेटेंट डायबिटीज कहा
जाता है। डायबिटीज को खानपान में सुधार, गोलियों और इंसुलिन के टीके से लगातार कंट्रोल में रखा जा सकता है।
जब हमने डॉक्टर कमल बागी से इस रोग के कारणों के बारे में पूछा तो उन्होंने उत्तर दिया कि पहाड़ी क्षेत्र में रहने वाले
लोगों में यह रोग कम पाया जाता है, जबकि पिछले दिनों में पंजाब हरियाणा, दिल्ली को इस रोग ने अपने घेरे में ले

लिया है, इसका मुख्य कारण पंजाब में शराब का प्रचलन है। कई लोगों को यह रोग विरासत में भी मिलता है, अर्थात
यदि मां-बाप इस रोग से पीडि़त हैं तो बच्चों में भी होने की पूरी संभावना है। मोटापा इसका मुख्य कारण है। जितने भी
मोटे आदमी हैं, उनको मधुमेह की बीमारी ज्यादा पनपने का खतरा बना रहता है, क्योंकि उनकी पैनक्रियाज ग्रंथियों
को आम आदमी की बजाय अधिक काम करना पड़ता है। अच्छा खानपान, बढिय़ा खाना-पीना, वसायुक्त भोजन
मोटापा पैदा करता है। कई प्रकार की दवाइयों का प्रयोग करने से यह रोग मोटे लोगों को अपने जाल में फंसा लेता है।
दवाइयों का प्रयोग करने वाले लोगों में (जिसमें स्टीरायड) का प्रयोग किया जाता है, कट्रोसेप्टिक हार्मोंस
(गर्भनिरोधक गोलियां) खाने वाली महिलाओं, डायजोरोब्टिस (बार-बार पेशाब करने वाली) गोलियां खाने से भी यह
रोग तेजी से पनपने लगता है। जब हमने पूछा कि कितना ब्लड शुगर होना चाहिए? डॉ. कमल बागी का कहना था कि
यह उम्र पर डिपेंड करता है। 50 वर्ष की आयु में शुगर लेवल 85 से 110 के बीच होना चाहिए, जबकि 60-70 वर्ष की
आयु के लोगों में ब्लड शुगर लेवल 100 से 120 के बीच होना चाहिए, इसके लक्षणों के बारे में डॉ. बागी का कहना था
ज्यादा पसीना आना, पेशाब ज्यादा आना, भूख बढऩे लगे, वजन लगातार घटना आदि इसके लक्षण हैं। उन्होंने कहा
कि कई बार मेरे पास विचित्र केस भी आए हैं कि उनके पास कोई ऊपर लिखित कोई लक्षण नहीं होता, फिर भी वह
हाईशुगर से पीडि़त होते हैं। कई बार ऐसे रोगियों को बेहोशी की स्थिति में मेरे पास लाया जाता है।
डॉ. कमल बागी से इस बात को आगे बढ़ाते हुए कहा कि शुगर कम होने के कारण (हाइपोम्लाक्सीमिक) परेशानी भी
होती है जो काफी घातक साबित हो सकती है। कई लोगों की डायबिटीज बार्डर लाईन पर होती है उन्हें दवाई से परहेज
करना चाहिए और लंबी सैर और चीनी खाने से परहेज करना चाहिए। डिप्रेशन में चल रही गर्भवती महिलाओं की खून
और पेशाब टेस्ट पता चल जाता है कि आखिर उनको यह समस्या क्यों है। मानसिक दबाव और इंफेक्शन के कारण
गर्भवती महिलाओं में यह लक्षण ज्यादा पाए जाते हैं। डॉ. बागी का कहना है कि यदि रोगी इस बीमारी को लेकर
लापरवाही करता है तो उसके शरीर के विभिन्न -विभिन्न अंगों में कुप्रभाव पड़ता है। शरीर में हर प्रकार की धमनियों
को यह रोग प्रभावित करता है। नाडिय़ां सिकुडऩे लगती है, दिल की धमनियां सिकुडऩे से दिल का दौरा पडऩे की
संभावनाएं बढऩे लगती है। आंखों की रोशनी शनै-शनै कम हो जाती है, कोई समय ऐसा भी आता है कि आंखों की
रोशनी भी चली जाती है। गुर्दों पर भी इसका कुप्रभाव पड़ता है।

डॉ. बागी ने कहा कि शुगर रोगियों को अगर चोट लग जाए तो वह शीघ्र ठीक नहीं होती, कई बार अंगों को भी काटना
पड़ता है। कई बार शुगर के रोगियों की पेशाब में चर्बी आने लगती है। कई बार डायबेटिक न्यूरोपैथी अर्थात टांगे, बाजू
और पैर सुन हो जाते हैं। पैर की उंगलियां वगैरह गलने लगती है।

पैरों के नाखून नीले हो जाते हैं, कई बार पैरों में गैग्रीन होने का भी खतरा बना रहता है। ग्रैगीन आगे न बढ़े इसीलिए
कई बार पैरों की उंगलियों को काटना भी पड़ता है, जो रोगी के लिए काफी कष्टदायक साबित होता है। डॉ. बागी ने
बताया कि यह एक जटिल रोग है, जिसे हम दवाओं से नियंत्रण में रख सकते हैं, लेकिन यह कभी समाप्त नहीं होता।
हां पैनाक्रियाटिक ट्रांसप्लांट करने या फिर बीटा सेल्स पैनक्रियाज में डालकर कुछ समय तक इस रोग को स्थगित
किया जा सकता है परंतु यह सामान्य रोगियों के बस की बात नहीं। इस इलाज के लिए भारी राशि खर्च होती है। कई
बार इस रोग से पीडि़त लोगों को छाती में भी इंफेक्शन होने का डर बना रहता है, जिसके कारण क्षय रोग होने का भी
खतरा होता है। डॉ. बागी ने कहा कि अधिक शुगर होने पर बेहोशी की स्थिति को डायबिटिक कोमा कहते हैं, अगर
शुगर कम हो जाए उसे हाइपोग्लाइसीमिक कोमा की स्थिति पैदा हो जाती है। यह दोनों स्थितियां खतरनाक है, जो
लोग परहेज नहीं करते वह मृत्यु को निमंत्रण देते हैं।

डॉ. बागी ने कहा कि इस रोग से बचने के लिए कुछ सावधानियां अपनाने की जरूरत है। सबसे पहले अपने खान-पान
में सावधानियां अपनानी चाहिए। जहां तक हो सके कम खाएं, चीनी से कोसों दूर रहें। मीठे फल आम, चीकू, केला,
नाशपाती, लीची, अंगूर, और मिठाइयों से दूरी बनाएं रखें। शुगर के रोगी को आलू-चावल से परहेज करना चाहिए।
शुगर फ्री आइस्क्रीम, बेसन की रोटी, सतरंगी आटे का प्रयोग करने से शुगर कंट्रोल में रहती है। लंबी सैर, जोगिंग,
व्यायाम इत्यादि मधुमेह रोगियों के लिए लाभदायक साबित हो सकते हैं। मधुमेह रोगियों को पैरों की सफाई
नियमित करनी चाहिए, जहां तक हो सके गर्म पानी में नमक डालकर उसे साफ करें ताकि पैरों में जमें जर्म साफ हो
जायें। डॉ. बागी ने कहा कि मधुमेह रोगियों को 15 दिनों के पश्चात अपने खून-पेशाब की जांच अवश्य करानी चाहिए
ताकि उन्हें पता चल सके कि उन्हें आगे क्या सावधानियां बरतनी है।

डॉ. बागी ने आगे बताया कि विदेशों में रिश्ते तय करते समय डायबिटीज का खास ध्यान रखा जाता है, ड्रेनमार्क,
इटली, अमेरिका के कुछ प्रांतों में कनाडा, ब्रिटेन में रिश्तों के लिए विज्ञापन देते समय स्पष्ट लिखा जाता है कि
परिवार शुगर से पीडि़त है, लेकिन भारत में ऐसा नहीं होता, दो डायबैटिक परिवारों में रिश्ता करने से संकोच करना
चाहिए, क्योंकि संतानों में मधुमेह रोग पनपने की संभावनाएं ज्यादा रहती है। उन्होंने कहा कि यह एक ऐसा रोग है
जिसे काबू में रखा जा सकता है परंतु समाप्त नहीं किया जा सकता। समय-समय पर डॉक्टर की सलाह लेनी जरूरी है।
दवाई घटाने अथवा बढ़ाने के लिए अपने डॉक्टर से परामर्श अवश्य लें। समय-समय पर लैब से खून एवं पेशाब के
टेस्ट भी करवाएं। परहेज ही इस बीमारी का सबसे अच्छा इलाज है। (विभूति फीचर्स)

भावनाओं को अभिव्यक्ति देते रहें –

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उषा जैन शीरीं – 

अगर जीवन को गहराई से, पूरी शिद्दत से जीना चाहते हैं तो इमोशन ब्लॉक्स को हटाना जरूरी है। भावुक प्रवृति के लोग स्नेह करने योग्य होते हैं। भावुक होना मानव होने की पहचान है।

साइना पांच बहनों में सबसे बड़ी थी। सब बहनों पर उसका खूब रौब चलता था। अपनी कठोर इमेज बनाए रखने के
लिये वह बड़ी सफाई से अपनी कोमल भावनाओं को छुपा जाती। ऐसा बार-बार करते रहने से अब यह उसकी आदत

बन गई थी, लेकिन अपनी कोमल भावनाओं को दबाने से वह बेहद रूखी और चिड़चिड़ी हो गई थी। हंसना तो मानो वह
भूल ही गई थी।

अमेरिकन मनोवैज्ञानिक जेम्स मेसन के मतानुसार भावनात्मक दुर्बलता से कोई व्यक्ति अछूता नहीं रह सकता।
बाहरी मुखौटे पर मत जाइए। अक्सर होता यही है कि हम बाहरी रूप को ही सच समझ लेते हैं। जब कोई भी शख्स
अपने प्यार, भय या किसी भावनात्मक सदमे या चोट को भीतर दबाकर सबसे छुपाए रखता है तब इस तरह ओढ़े हुए
मुखौटे से परिचितों मित्रों को यह गलतफहमी हो सकती है कि यह शख्स संवेदनहीन है, मगरूर है, इसके पास
भावनाएं हैं ही नहीं। यह किसी के सुख-दु:ख को क्या समझेगा।

अपनी भावनाओं को प्रगट करते रहने से मानसिक संतुलन बना रहता है। अपनी इमेज बनाए रखने के फेर में अगर
आप बनावटी जिंदगी जीते रहेंगे, सुपर वुमन या सुपरमैन की छवि में कैद होकर रहेंगे तो आप न सिर्फ जिन्दगी के
लुत्फ से महरूम रह जाएंगे, बल्कि कई मानसिक रोगों की चपेट में आ जाएंगे। अपने साथ अपनों का जीवन भी
मुश्किल कर देंगे।

जो मजा सरल स्वाभाविक रूप से जीने में है उसकी तुलना नहीं। इसके लिए न आपको ऊंची डिग्रियों की आवश्यकता
है न धन-दौलत की। धरती से जुड़े (डाउन टू अर्थ) लोग ही सच्चे मायने में मानवीय हैं, क्योंकि वे कुदरती है,
स्वाभाविक हैं। मुझमें भी मानवीय कमजोरियां हैं, मेरी भावनाओं को भी ठेस लगती है, डर मुझे भी लगता है, मौत का
ख्याल मुझमें भी दहशत जगाता है। ये सब बातें आपको तुरंत औरों से जोड़ देती हैं। औरों को लगता है आप भी उन्हीं
की तरह हैं। आप दिल खोलकर बात कर रहे हैं आपके दुराव-छुपाव में अपने को खास दिखाने जैसा भाव नहीं है। आप
उन पर विश्वास कर उन्हें समान समझते हैं। भावनात्मक सरलता से उत्पन्न विश्वास दूसरों को भी मुखर करता है
उनमें सहानुभूति का जज्बा पैदा कर आपके बीच तादात्म्य स्थापित करता है, रेपो बनाता है। आपको जो 'एट ईजÓ  महसूस कराता है जिसकी कंपनी में आप कंफर्टेबल महसूस करते हैं, आप उन्हीं का साथ पसंद करते हैं। यहां विश्वास  है, सहानुभूति है। यहां आपको न भावनाओं को छुपाने की मजबूरी है न किसी डिप्लोमेसी की जरूरत। यहां
सकारात्मक वाइव्स होती है हवाओं में। यहां आप निडर, बेखौफ होकर अपने मन का बोझ हल्का कर सकते हैं अपनी
भावनात्मक कमजोरियों को अभिव्यक्ति दे सकते हैं।

यह एक कटुसत्य है कि दुनिया में हमेशा मनचाहा नहीं होता। रंग-बिरंगी दुनिया में लोग भी रंग-बिरंगे मिलते हैं।
अगर ईमानदार सच्चे निश्छल उसूल वाले लोग हैं तो बेईमान झूठे अवसरवादी, मतलबी, सेडिस्ट खलनायकी की
प्रवृत्ति वाले लोगों की भी कमी नहीं। इनसे बचने के लिए ही सीधे सरल लोगों को भी कभी-कभी सुरक्षा कवच धारण
करना पड़ता है, जिसमें छेद करने में दुष्टï प्रवृत्ति के लोग अक्सर कामयाब हो भी जाते हैं। कमजोर कड़ी हाथ में आते
ही दुष्टï प्रवृत्ति के सेडिस्ट, सीधे सरल लोगों की निजता पर धावा बोलते हुए कभी उनके रिश्तों को टटोलते हैं, कभी
उनके सुख दु:ख-सुख से जलते हैं और दु:ख का मजा लेते हैं। रिश्तों में कुछ दु:ख नाराजगी जानकर संबंधित व्यक्ति के
पास जाकर लगाई बुझाई कर सरल व्यक्ति की मुश्किलें बढ़ा देते हैं।

पहले की भारतीय स्त्रियां ज्यादातर अतिभावुक हुआ करती थीं। इसमें कुछ उनकी परवरिश का भी हाथ था कि उन्हें
दब्बू बनाकर रखा जाता था, इससे अक्सर विवाहोपरांत पति भी उन पर हावी होकर तंग करते थे, लेकिन अब स्थिति
ऐसी नहीं है, लेकिन फिर भी नारी आखिर नारी ही है।

आज हर क्षेत्र में सफलता की बुलंदियों को छू लेने के बावजूद यह नहीं कहा जा सकता कि वह हाड़-मांस के बजाय लोहे
की मशीन जैसी निस्पृह बन गई है। भीतर से वह आज भी कहीं न कहीं असुरक्षित, सशंंकित है।

जो कुटिलता में निपुण होते हैं वे अपने कमजोरी भी बड़ी सफाई से छिपाकर किसी सरल भावुक व्यक्ति से अपना
मनोरंजन कर लेते हैं। मुसीबतों को झेलने के लिए उसे आगे धकेल देते हैं। ऐसे लोग सतही जीवन जीते हैं, जिसमें
सच्ची खुशी तथा उन्मुक्त हंसी शामिल नहीं होती। आप दुनिया से भावनात्मक संबंध तभी स्थापित कर पाते हैं, जब
आप उसे अपनी वास्तविक भावना तक पहुंचने देते हैं। दुराव-छिपाव नहीं रखते। भावनाओं को दबाकर नहीं रखते।

विभूति फीचर्स

महिला जगत – गर्दन की सुंदरता का भी ध्यान रखिए

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अंजनी सक्सेना – 

भारत ही नहीं बल्कि विश्व के हर देश में लंबी और पतली गर्दन सौन्दर्य का प्रतीक मानी जाती है। भारत में लंबी,
पतली और खूबसूरत गर्दन को सुराहीदार गर्दन की उपाधि प्रदान की गयी है। आजकल महिलायें चेहरे की सुंदरता पर
तो भरपूर ध्यान देती हैं, लेकिन गर्दन काली भद्दी और बदसूरत। ऐसी स्थिति से बचने के लिये चेहरे के साथ-साथ
गर्दन पर भी ध्यान देना चाहिये।

ग्रीवा सौंदर्य उचित साफ-सफाई, खानपान और व्यायाम के द्वारा बढ़ाया जा सकता है। इसके लिये बस थोड़ी सी
मेहनत करना होती है। आप भी जानिये अपनी ग्रीवा को स्वस्थ, सुंदर, सुडौल और सुराहीदार बनाने के कुछ आसान से
उपाय-
– प्रतिदिन सुबह-शाम गर्दन को चारों तरफ आगे-पीछे दांयें-बांये घुमाये, इस प्रकार के व्यायाम से गर्दन में
लचीलापन बना रहेगा।
– फेस पेक जब भी लगायें तो चेहरे के साथ-साथ गर्दन पर भी अवश्य लगायें।
– फेशियल करवाते समय भी ध्यान रखें कि आपकी ब्यूटीशियन जितना ध्यान चेहरे का रख रही है उतना ही
गर्दन का भी रखें।
– यदि गर्दन काली हो, तो प्रतिदिन दही, बेसन और हल्दी का मिश्रण अच्छी तरह फेंटकर गर्दन पर लगायें,
सूखने पर हाथ से मलकर निकाल दें। कुछ ही दिनों में गर्दन साफ-सुथरी दिखाई देने लगेगी।
– नहाने से पहले गर्दन पर तेल मालिश करें और नहाते समय अच्छी तरह साबुन लगाकर तेल और मैल
निकाल दें।
– कोशिश करें कि बाल ज्यादा देर तक गर्दन पर न बिखरे रहें। जूड़ा या पोनीटेल बनाकर बालों को ऊपर रख
सकती हैं।
– भारी ज्वेलरी ज्यादा समय तक पहने रहने से भी गर्दन काली पड़ जाती है। इसलिये छोटे गहने दैनिक
उपयोग में लें। बाहर आते-जाते समय भारी ज्वेलरी पहन सकती हैं।
– कृत्रिम गहने भी त्वचा पर बुरा असर डालते हैं इसलिये इनका उपयोग भी कम से कम करें।
– गर्दन को सुडौल रखने के लिये सख्त बिस्तर पर सोयें तथा तकिये का उपयोग न करें।
यदि आप इन सब उपायों को आजमाती हैं तो आप भी पा सकती हैं खूबसूरत और आकर्षक गर्दन जो सबकी नजरों की
प्रशंसा का केंद्र बनेगी।
गर्दन शरीर का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। मनुष्य के सिर की खोपड़ी गर्दन पर ही टिकी होती है। रीढ़ की हड्डी में 33
मनके होते हैं, जिनमें से सात मनके गर्दन में होते हैं। ये सर्वाइकल वर्टिब्रा कहलाते हैं। पहला मनका एटलस कहलाता
है, जिसके द्वारा सिर 180 डिग्री तक घूम सकता है। दूसरा एक्सिस होता है, जो सिर और गर्दन को जोड़ता है। इन्हीं के
बीच से सुष्मना नाड़ी निकलकर मस्तिष्क और सारे शरीर का आपस में सम्बबन्ध जोड़ती है।
गर्दन के अग्र भाग पर स्वर यंत्र होता है, जो मनुष्य को बोलने में सहायता देता है।
लंबी गर्दन हर जगह सौंदर्य का प्रतीक मानी जाती है। गर्दन को लंबा करने के लिये हर जगह उपाय किये जाते हैं,
लेकिन कई देशों में लंबी गर्दन करने के लिये इतने अमानवीय उपाय किये जाते हैं कि सुनने वालों के रोंगटे खड़े हो
जायें।
अफ्रीका के कुछ देशों में लड़की के छह वर्ष के होते ही उसके गले में छल्ले डाल दिये जाते हैं। जैसे-जैसे लड़की की उम्र
बढ़ती जाती है वैसे-वैसे गले के छल्लों की संख्या में भी वृद्धि कर दी जाती है।
बढ़ते-बढ़ते छल्लों की संख्या 24-25 तथा गर्दन की लंबाई 18 इंच तक हो जाती है। ऐसी स्थिति में महिला को हर
समय इन छल्लों को पहने रहना होता है। छल्ले निकाल देने की स्थिति में उस महिला की मौत हो जाती है। स्थिति
यह होती है कि निरंतर खिंचाव के कारण गर्दन तो लंबी हो जाती है लेकिन गर्दन की पेशियां और मनके इतने कमजोर
हो जाते हैं कि वे बगैर किसी सहारे के खोपड़ी का भार सहन नहीं कर पाते और अंतत: वह महिला मौत के मुंह में समा

जाती है। जीवित रहते हुये भी ये महिलायें कम यंत्रणा नहीं भोगती है, इन्हें हर समय ये छल्ले पहने रहने होते हैं। सोते-
जागते, उठते-बैठते हर समय ये छल्ले इनके गले में कसे रहते है।
खूबसूरत, सुडौल, आकर्षक व सुराहीदार गर्दन पाने के लिए भारतीय महिलाओं को तो इतने अमानवीय उपाय करने
की आवश्यता ही नहीं है क्योंकि यहां की महिलाओं की गर्दन तो प्राकृतिक तौर पर ही थोड़ी तो लंबी होती ही है। आगे
निरंतर देखभाल उचित पोषण और सही व्यायाम द्वारा आप भी 18 इंच लंबी न सही तो भी स्वस्थ और सुंदर गर्दन तो
पा ही सकती हैं।
भले ही आपकी गर्दन लंबी न हो, लेकिन साफ और स्वस्थ हो, साथ ही आपका व्यवहार शिष्ट, सौम्य हो, आवाज में
प्यार और अपनापन हो, तो फिर आपको तो ऐसे अमानवीय उपाय अपनाने की कोई आवश्यकता ही नहीं है, देखने
वालों की नजरें अपने आप ही आपकी प्रशंसा करने लगेगी। तब सब आपके गले पडऩा और गले लगना चाहेंगे।

विभूति फीचर्स

आलेख – मनुष्य के लिए मनुष्य से भी जरूरी पशु पक्षी

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मनुष्य के लिए मनुष्य से भी जरूरी पशु पक्षी
अंकुश्री –

मौर्यवंश के तृतीय राजा अशोक को भारत का महानतम शासक कहा गया है। कलिंग विजय उनकी प्रथम और अंतिम
लड़ाई थी। लड़ाई से प्रभावित महिलाओं और ब'चों का क्लेश देख कर उन्हें अपार दुख हुआ था, जिससे उन्होंने
आजीवन युद्ध नहीं करने का संकल्प ले लिया था। उसके बाद वे जीवनपर्यंत धर्म प्रचार एवं शांति की स्थापना के
लिये प्रयत्नशील रहे। उन्हें न केवल युद्ध से घृणा हो गयी, बल्कि उन्हें पशु-पक्षियों से भी बेहद प्यार हो गया। उन्होंने
बैल, हाथी, सिंह, घोड़ा आदि जानवरों की आकृतियां अपने उपदेश वाली स्तंभ-शिलाओं पर लगवाई। वे चाहते थे कि
लोग मांस नहीं खायें। मौर्यवंश की परम्परानुसार उनकी रसोई में प्रति दिन राजा के लिये दो मोर और एक हिरण
पकाये जाते थे। अशोक ने उस पर रोक लगवा दी। यह तीसरी शताब्दी के उत्तराद्र्ध की बात है।
भारत भगवान् बुद्ध और महावीर की भूमि है। ''जीओ और जीने दोÓÓ की वाणी को महात्मा गांधी ने भी अहिंसा के रूप में अपनाया हुआ था। यह वह भूमि है जहां एक कपोत के प्राण रक्षार्थ राजा शिवि ने अपने को अर्पित कर दिया था।

गौ-रक्षक रघुवंशी राजा दिलीप को हम भूल नहीं सकतें।
अब जब पर्यावरण छिन्न-भिन्न होने को आया है तो हम पशु-पक्षियों और वनों के संरक्षण के लिये चिंतित हो गये हैं।
एक बार फिर उनकी चर्चा हर तरफ होने लगी है। लेकिन हमारे प्राचीन साहित्यकारों ने पशु-पक्षियों और पेड़-पौधों की
चर्चा अपने साहित्य में की है, जो उनकी दूरदर्शिता का परिचायक है। विश्व का कोई भी ऐसा प्राचीन साहित्य शायद ही
हो जिसमें पशु-पक्षियों और पेड़-पौधों या वनों की कमोवेश चर्चा न हो।

रामायण के रयचिता वाल्मीकि ने क्रौचवध की चर्चा की है। वे पक्षी मिथुनरत थे, जब उन्हें वाण लगा। मुत्यु के समय
क्रौंच ने श्राप दिया,''हे बहेलिये! तूने कामोन्मत्त क्रोंच पक्षी को मारा है। इसलिये तुझे चिर काल तक सुख-शांति नहीं
मिलेगी।ÓÓ पक्षी की हत्या का यह चित्रण देख कर किसका मन विचलित नहीं हो जाता! कौन पक्षियों के संरक्षण की
बात नहीं सोचने लगता!

रावण पंचवटी से सीता का हरण करके ले जा रहा था। रास्ते में जटायु नामक एक गिद्ध सीता को बचाने के लिये
अपनी अंतिम सांस तक लड़ा था। लेकिन रावण ने अपनी तेज तलवार से उसके पंख कुतर दिये तो वह लाचार होकर
जमीन पर गिर पड़ा। बाद में सीता की खोज में उधर से गुजरते हुए राम ने उस पक्षी का अंतिम संस्कार किया। इससे
पक्षियों के प्रति राम के स्नेह का पता चलता है। पालतू पशु-पक्षियों के मरने पर उनके कुछ पालकों द्वारा आज भी
उनके अंतिम संस्कार करने के उदाहरण देखने-सुनने को मिल जाते हैं। इससे पशु-पक्षियों के प्रति मानवीय सम्वेदना
का आभास मिलता है।

रामायण में तुलसीदास द्वारा राम के वन गमन के समय घोड़े की हिनहिनाहट का चित्रण पशु-पक्षियों के मानवीय
संबंधों की पराकाष्ठा है। महाभारत में एक दृश्य वर्णित है। युघिष्ठिर को समझ में नहीं आ रहा था कि वे अब क्या करें।
तभी कहीं से एक नेवला आकर उन्हें उपदेश देता है। इस तरह महाभारत में एक नेवला को युधिष्ठिर के गुरु के रूप में
प्रतिष्ठापित किया गया है।
जातक कथाओं और पंचतंत्र की कथाओं में पशु-पक्षियों को ही पात्र बनाया गया है. दुनिया भर की बातें जितनी
कुशलतापूर्वक इन कथाओं में वर्णित हो पायी हैं, इसका एक मात्र प्रमुख कारण है उन कथाओं में पशु-पक्षियों का पात्र
होना है।
वस्तुत: सृष्टि की शुरूआत ही पशु-पक्षियों से हुई है। डार्विन महोदय के अनुसार मनुष्य के पूर्वज बंदर थे। जो वनों के
अंदर पेड़ की मोटी-पतली टहनियों पर उछला करते थे। बंदर से मनुष्य बनने का क्रम भी स्वाभाविक रूप से पशु-
पक्षियों के साथ बीता। और तो और, जब मनुष्य सभ्य होकर अपनी आदिम प्रवृतियों और स्थानों को छोड़ कर जंगल
से बाहर आ गया तब भी वह पशु-पक्षियों के सह-अस्तित्व के बिना कभी न रह सका।
राम-रावण युद्ध में मनुष्य रूपी राम को बंदर, हनुमान, भालू, गिलहरी, हिरण, गिद्ध आदि अनेक पशु-पक्षियों ने
सहायता की थी।

स्वयं भगवान भी पशु-पक्षी की योनि में जन्म लेते रहे हैं। मछली, वराह कछुआ, आदि अनेक रूपों में भगवान के
अवतार का वर्णन मिलता है। अवतार सर्वथा सोद्देश्य होता है. मान्यता है कि जो काम मनुष्य के रूप में नहीं हो पाता,
उसे पूरा करने के लिये भगवान विभिन्न पशु-पक्षियों के रूप में अवतार लेते हैं।
पशु-पक्षियों को महत्व प्रदान करने के लिये उनसे संबंधित अनेक पर्व-त्योहार बनाये गये हैं। जैसे गाय के लिये
गोपाष्टमी, नाग के लिये नागपंचमी आदि। कार्तिक महीने में एक जाति विशेष द्वारा घोड़ा की पूजा की जाती है। देवी-
देवताओं के वाहन एवं धार्मिक प्रतीकों के रूप में भी अनेक पशु-पक्षियों को अपनाया गया है। ये सारे प्रावधान पशु-
पक्षियों को धार्मिक संरक्षण प्रदान करने की व्यवस्था है।

आज वन्यप्राणियों को पर्यटनीय महत्व दिया जाने लगा है। खजुराहो, ताजमहल, कुतुबमीनार, आदि स्थलों की तरह
वन और वन्यप्राणी भी दर्शनीय जीव साबित हो गये हैं। मनुष्य जब औद्योगीकरण और शहरीकरण से उब जाता है
तब वह वनों की ओर भागता है। विदेशों में तो इसका प्रचलन-सा हो गया है। अमेरिका और यूरोप के लोग छुट्टियों में
अफ्रीका के राष्ट्रीय उद्यानों में पहुंच जाते हैं। वन और वन्यप्राणियों का पर्यटन आज एक उद्योग साबित हो रहा है।

दरअसल पशु-पक्षियों में जो प्राकृतिक सौंदर्य एवं निश्छल व्यवहार पाया जाता है वह अन्यत्र दुर्लभ है। आकाश में
स्वाभाविक रूप से उड़ते हुए पक्षी और वनों में कुलांचे भरते हिरण, मधुर कूक वाली कोयल और काले मेघ के साथ
थिरकते मोर को देख कर भला किसका मन-मयूर नहीं नाचने लगेगा? उद्यान में रंग-बिरंगे फूलों की ओट से जब
नन्ही चिडिय़ाओं की मधुर आवाज सुनाई पड़ती है तो लगता है कि सुगंधित फूल चहकने लगे हों।
सभ्यता के विकास और आधुनिकता के दौर के कारण हमारे पशु-पक्षियों को विशेष कष्ट झेलने पड़े हैं। यदि पशु-पक्षी
हमारी तरह बोल पाने में समर्थ होते तो हमें पता चलता कि उनका करूण-क्रंदन हमारे कानों को फाड़ देगा और हम
अपने कुकृत्य की क्षमा मांगने के लिये उन्हें वन-वन ढूंढ़ते फिरते। मगर अफसोस! हम उनकी भाषा नहीं समझ पातें।
उनकी भाषा मनुष्य से भले भिन्न हो, मगर उनकी उपादेयता और धरती पर उनके रहने की अनिवार्यता मनुष्य से
किसी भी मायने में कम नहीं है। बल्कि धरती पर भरपूर पशु-पक्षियों का होना मनुष्य के लिये मनुष्य से अधिक जरूरी
है। (विभूति फीचर्स)

मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी 19 से 21 सितम्बर, 2023 तक रहेंगे मध्य प्रदेश व राजस्थान के भ्रमण पर

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मुख्यमंत्री श्री पुष्कर सिंह धामी 19 से 21 सितम्बर, 2023 को मध्य प्रदेश व राजस्थान के भ्रमण पर रहेंगे। मंगलवार 19 सितम्बर, 2023 को 02 बजे मुख्यमंत्री मध्य प्रदेश के नवोदय विद्यालय मैदान, खुरई, तथा अपराह्न 04 बजे बीना में आयोजित जनसभा में प्रतिभाग करेंगे तथा रात्रि विश्राम सर्किट हाउस, सागर (म०प्र०) में करेंगे।

मुख्यमंत्री बुधवार दिनांक 20 सितम्बर, 2023 को पूर्वाह्न 10.30 बजे सर्किट हाऊस, झालावाड़, राजस्थान में प्रेस कांफ्रेस कर यात्रा का शुभारम्भ करेंगे तथा 11.30 बजे पिपलिया डाग विधानसभा क्षेत्र डाग में, अपराह्न 12.30 बजे रामगंज मण्डी विधानसभा क्षेत्र रामगंज मण्डी में, 02.30 बजे मोडक विधानसभा क्षेत्र रामगंज मण्डी में, 03.00 बजे ढाबा डेह चौराहा विधानसभा क्षेत्र रामगंज मण्डी में, सांय 05.00 बजे कनवास वाया दर्रा विधानसभा क्षेत्र सांगोद में, 06.00 बजे सांगोद विधानसभा क्षेत्र सांगोद में, रात्रि 08.00 बजे देवली विधानसभा क्षेत्र सांगोद में, 09.00 बजे कैथून विधानसभा क्षेत्र लडपुरा में आयोजित स्वागत सभा मेें प्रतिभाग करेंगे।

मुख्यमंत्री डी०सी०एम० गेस्ट हाऊस, कोटा, राजस्थान में रात्रि विश्राम के पश्चात गुरूवार 21 सितम्बर, 2023 को अपराह्न 01 बजे देहरादून ….

संजय बलोदी प्रखर

शाहरुख खान से लेकर राजकुमार राव तक स्क्रीन पर बने एंटी-हीरो

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सौरभ सिंह -

हम अक्सर खुद को ऐसे किरदारों की ओर आकर्षित पाते हैं, जो अच्छे और बुरे के बीच की रेखा पर चलते हैं। इन एंटी- हीरोज के पास अपने जटिल व्यक्तित्व और आश्चर्यजनक अभिनय से हमारे दिलों को चुराने की उनकी क्षमता का  एक कला है, जिससे वह हमारे पसंदीदा कैरेक्टर्स बन जाते हैं। आईये नजर डालते हैं पाँच ऐसे अविस्मरणीय एंटी-  हीरोज पर, जो अपने चार्म से दर्शकों के जेहन में उतर गए।


डॉन में अमिताभ बच्चन- अमिताभ बच्चन की डॉन में एक शक्तिशाली अपराधी की भूमिका थी, जिसे पुलिस मार
देती है और उसकी जगह उसका हमशक्ल विजय ले लेता है। डॉन एक अभूतपूर्व भूमिका थी। अमिताभ बच्चन इस
फिल्म से बॉलीवुड के ओरिजिनल एंटी-हीरो बन गए। यही नहीं डॉन साल 1978 की सबसे ज्यादा कमाई करने वाली
फिल्मों में से एक बन गई।
डर में शाहरुख खान- फिल्म डर ने बॉलीवुड में एक महत्वपूर्ण समय को अंकित किया जब शाहरुख खान ने जुनूनी
और मानसिक खलनायक राहुल की भूमिका निभाई। विरोधी नायक की भूमिका के बावजूद खान के चरित्र चित्रण ने
दर्शकों को भय और सहानुभूति का एक असामान्य मिश्रण महसूस कराया, जिससे एक प्रतिष्ठित एंटी-हीरो के रूप में
उनकी स्थिति मजबूत हो गई।

गन्स एंड गुलाब्स में राजकुमार राव- गन्स एंड गुलाब्स में राजकुमार राव ने पाना टीपू नामक एक आकर्षक मैकेनिक
का किरदार निभाया था, जो एक गैंगस्टर भी है। जिस चीज़ ने टीपू को सबसे अलग पेश किया वह सिर्फ उसके
आपराधिक प्रयास नहीं थे बल्कि राव द्वारा उसे चित्रित करने का हास्यपूर्ण तरीका भी था। हालाँकि, टीपू एक
सामान्य नायक नहीं था फिर भी उसने अपनी विचित्र हरकतों और कठिन परिस्थितियों से फैंस का दिल जीत लिया।
ओमकारा में सैफ अली खान- सैफ अली खान ने इसे निभाने के लिए अपनी सामान्य रोमांटिक हीरो वाली भूमिकाओं
से हटकर एक साहसिक कदम उठाया। ओमकारा में लंगड़ा त्यागी के धूर्त किरदार में उनका परिवर्तन आश्चर्यजनक
था। एंटी-हीरो के रूप में खान के प्रदर्शन ने दर्शकों पर अमिट प्रभाव छोड़ा, जिससे लंगड़ा त्यागी भारतीय सिनेमा के
सबसे यादगार एंटी-हीरो में से एक बन गए।


2.0 में अक्षय कुमार- अक्षय कुमार ने तमिल फिल्म 2.0 के हिंदी डब वर्जन 2.0 में एंटी-हीरो की भूमिका निभाई। उनके
चरित्र में प्रोस्थेटिक मेकअप और एनिमेट्रॉनिक्स की आवश्यकता पड़ी, जिससे उनके करियर में एक नया आयाम जुड़
गया।
धूम 2 में रितिक रोशन- ऋतिक रोशन ने धूम 2 में सौम्य और चालाक चोर आर्यन सिंह की भूमिका निभाई। उनके
विभिन्न भेष और बेहतरीन डांस सीक्वेंस ने दर्शकों को आर्यन का दीवाना बना दिया, जिससे सही और गलत के बीच
की रेखा धुंधली हो गई। (विभूति फीचर्स)