एक सूर्य, एक चंद्रमा और एक ही थी लता मंगेशकर।दुनिया के सात आश्चर्य तो जमीन पर सदा मौजूद रहेंगे, मगर आठवां आश्चर्य बनकर धरती पर उतरने वाली लता मंगेशकर सदा के लिए अनंत में विलीन हो गईं।जरा सोचिए अगर लता जी ने ‘ऐ मेरे वतन के लोगो….’ न गाया होता तो क्या शहीदों के सम्मान और महत्ता को इतनी संजीदगी से हम महसूस कर पाते? यह एकमात्र गीत उन्हें अमर बनाने के लिए काफी है,मगर लता जी ने फिल्मों में जो हजारों गीत गाए हैं, उनमें से अनेक गीत ऐसे हैं जो क्लासिक बन चुके हैं और जिनके बिना भारतीय सिने संगीत की चर्चा ही नहीं हो सकती.गंभीर दर्शन और उच्च साहित्यिक मूल्यों वाली रचनाओं के साथ-साथ उन्होंने हंसी ठिठोली वाले हल्के फुलके गीत भी गाए हैं, जिन्हें लोगों ने खूब पसंद किया। कुछ गीतों की शुरुआत या मध्य में उनकी गुनगुनाहट या हल्का सा आलाप भी ऐसा है कि मन होता है उसे बार-बार सुनते ही रहें….जैसे रेशमा और शेरा में ….तू चंदा मैं चांदनी…..सोलह बरस की बाली की उमर को सलाम या रंगीला रे….अमिताभ बच्चन कहते हैं कि उनके पिता हरिवंशराय बच्चन कहते थे कि लता जी की गायकी शहद की तरह है जो मीठी और मधुर तो है ही,उसकी धार कभी टूटती नहीं।

गायन में सम को साधने में जो महारत लता जी को हासिल थी, वह विरले ही किसी को नसीब होती है. कोई भी गीत सम से ही शुरू होता है और सम पर ही खत्म होता है,गायक संपूर्ण लयकारी का का प्रदर्शन करते हुए यहीं आकर रुकता है,इस प्रक्रिया में बहुत लोग बेसुरे हो जाते हैं, हूं ..हां…रे रे रे…. जैसी आवाजों की आड़ में सामान्य श्रोताओं की पकड़ से बच जाते हैं,मगर संगीत के सुधी श्रोताओं और समीक्षकों द्वारा पकड़े जाते हैं.

उन्होंने हिंदी के साथ-साथ क्षेत्रीय भाषाओं में भी हजारों गीत गाए हैं और किसी भी भाषा में उनके उच्चारण को लेकर कभी कोई शिकायत नहीं हुई.मेरी मातृभाषा भोजपुरी है.जो सुख और सुकून भोजपुरी में मुझे लता जी को सुनकर मिलता है,उसका कोई अन्य विकल्प कभी नहीं मिला. भोजपुरी फिल्मों में उनके गाये गीत एक अनमोल धरोहर हैं जो मील के पत्थरों की तरफ सर्वदा आदर्श बने रहेंगे. ‘हे गंगा मैया तोहें पियरी चढ़इबो ….या तलत महमूद के साथ युगल गीत ‘लाले लाले होठवा से चुवेला ललइया’ उन्होंने इस भावुक अंदाज में गाया है कि उनकीआवाज कलेजे को चीरती हुई चली जाती है. भोजपुरी में हजारों फिल्में बन चुकी हैं मगर उनके गीतों के मुकाबले दूसरे गीत कहीं नहीं ठहरते.

लता जी का मन शास्त्रीय संगीत में खूब रमता था. रजत शर्मा को दिए एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा भी था कि मैं शास्त्रीय संगीत को साधना चाहती थी मगर मेरी यह साध पूरी नहीं हो सकी,ज़िंदगी ने उतना वक्त नहीं दिया.वे अपने पिताजी की बरसी पर भीमसेन जोशी और कुमार गंधर्व जैसे शास्त्रीय गायकों की ही प्रस्तुति रखती थीं.

Late Lata Mangeshkar Ji

उनके प्रति हीरो हीरोइनों की दीवानगी का आलम यह था कि वे प्रोड्यूसरों से शर्त के तौर पर कहा करते थे कि आप कांट्रेक्ट में यह लिखिए कि हमारे लिए लता मंगेशकर प्लेबैक करेंगी.

लता जी का सेंस ऑफ ह्यूमर कमाल का था. एक बार किसी संगीतकार ने किसी गायिका से इश्क होने के बाद उसे सर्वश्रेष्ठ गायिका घोषित कर दिया.इस पर लता जी की टिप्पणी थी कि इश्क में आदमी अंधा हो जाता है,यह तो कई बार देखा है, लेकिन बहरा भी हो जाता है,ऐसा पहली बार देख रही हूं.

मुगले आजम, पाकीजा, गाइड, मदर इंडिया,चित्रलेखा,सिलसिला,चांदनी,अभिमान… जैसी क्लासिक फिल्में क्या लता की आवाज के बिना वह जादू जगा पातीं जिसके लिए दुनिया भर में हर दिन लोग उन्हें याद करते हैं?

राज सिंह डूंगरपुर से उनकी नजदीकियां जगजाहिर थीं,देश-विदेश में होने वाले लता जी के तमाम लाइव कंसर्ट के लिए राजसिंह डूंगरपुर से ही बातचीत करनी होती थी.राज सिंह के पिता अगर सहमत हो जाते तो शायद वे जयपुर राजघराने की बहू होतीं, मगर विधि के विधान में शायद यह नहीं था.

हो सकता है वक्त के साथ ताजमहल की चमक कभी फीकी पड़ जाए, मगर लता जी अपने सुरों से साहित्य और संगीत की जो अनमोल धरोहर हमें सौंपकर गई हैं उसकी चमक युगों युगों तक कभी फीकी नहीं होगी.

भारत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न और सिनेमा का सर्वोच्च सम्मान दादा साहब फाल्के के साथ-साथ उन्हें अनगिनत सम्मान और पुरस्कार दिए गए बावजूद इसके ऐसा लगता है कि लता जी ने देश और समाज को जो दिया उसके मुकाबले हम उन्हें कुछ भी नहीं दे सके. उनके दिवंगत होने के बाद महाराष्ट्र सरकार का नैतिक कर्तव्य बनता है जिस ‘प्रभु कुंज’ में उन्होंने अपना तमाम जीवन बिताया उसे लता मंगेशकर संग्रहालय के रूप में विकसित करे , जहां देश और दुनिया से आने वाले तमाम लोग अपना सर झुका सकें.यही उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी

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-रासबिहारी पाण्डेय

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