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गाय को रोटी खिला रहा काशी का रोटी एटीएम

धार्मिक नगरी वाराणसी में सनातनी धार्मिक परंपरा के तहत भोजन की पहली रोटी गाय को और आखिरी रोटी कुत्ते को खिलाने की सुविधा के लिए कुछ युवाओं ने एक रोटी एटीएम की शुरुआत की है.

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गाय को पहला और कुत्ते को अंतिम ग्रास खिला रहा काशी का रोटी एटीएम

धार्मिक नगरी वाराणसी में सनातनी धार्मिक परंपरा के तहत भोजन की पहली रोटी गाय को और आखिरी रोटी कुत्ते को खिलाने की सुविधा के लिए कुछ युवाओं ने एक रोटी एटीएम की शुरुआत की है.

आपने पैसा निकलने वाली एटीएम के बारे में तो बहुत सुना होगा, लेकिन क्या रोटी एटीएम के बारे में जानते हैं? भगवान शंकर के त्रिशूल पर बसे काशी में एक रोटी एटीएम है. इसको चलाने वाली संस्था ग्रूट गार्जियंस ने इसे केवल आपकी सहूलियत के लिए चला रखा है. भोजन बनाते समय पहली रोटी का ग्रास गाय तक पहुंचा रही है. अंतिम रोटी के रूप में श्वान (कुत्ता) को खिलाया जाने वाला ग्रास भी उस तक पहुंचाने में यह आपकी मदद कर रहा है.

‘ग्रूट गार्जियंस’ संस्था चला रही है रोटी एटीएम

प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र वाराणसी के कुछ नौजवानों का मानना है कि सनातनी परंपरा के साथ बेजुबानों का पेट भरा जाए. इसीलिए गौरव राय ने अपने पांच साथियों के साथ मिलकर ‘ग्रूट गार्जियंस’ नामक संस्था बनाई ताकि गली में घूम रहे कुत्तों और आवारा भूखे पशुओं का पेट भर सकें. यह कारवां बढ़ कर अब 40 नवयुवकों तक पहुंच गया है.

शिवपुर में लगने जा रहा है अगला रोटी एटीएम

संस्था के अध्यक्ष गौरव राय ने बताया कि उन्हें यह प्रेरणा उनके मित्र सिद्धार्थ सिंह से मिली जो कि एक रोड ऐक्सिडेंट में इस दुनिया से विदा हो गए. वो पशु प्रेमी थे. भूखे जानवरों को जहां देखते उन्हें बिस्किट और गुड़ आदि खिलाते थे. उनके अचानक निधन के बाद हम और हमारे मित्रों ने एक रोटी एटीएम शुरू किया. जिसमें एकत्रित भोजन को हम गली के कुत्तों और निराश्रित गायों को खिलाते हैं. अभी पहली रोटी एटीएम पंडयेपुर के बांके बिहारी की एक सोसाइटी में लगाया है. जिसमें तकरीबन 100-150 रोटी जमा हो रही है. अब अगला एटीएम शिवपुर में लगाने जा रहे हैं.

अब 40 से अधिक स्वयंसेवक कर रहे काम 

उन्होंने बताया कि आगे चलकर इसे बारात घरों, स्कूलों, होटलों और मंदिर में लगाया जाएगा, जिससे अन्न की बरबादी न हो और बेजुबानों को भोजन मिल सके. इस कार्य में हमारा सहयोग कर रहे हैं. प्रज्वल, हर्ष, अमन, मृत्युंजय, विकास, कविश, सदास, अविनाश, शिवानी, तूलिका, अक्षरा, कृतिका, हिमालय, निहाल समेत 40 से अधिक स्वयंसेवक हैं जो इस काम में पूरी तरह लगे हुए हैं.

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