पशुओं में लम्पि बीमारी (एल० एस० डी० ) के रोकथाम हेतु उत्तर प्रदेश पशुचिकित्सा विज्ञानं विश्वविद्यालय द्वारा पशुपालकहित में जारी अनुदेश
लम्पि बीमारी गाय, भैस में होने वाला एक संकामक रोग है । राजस्थान, हरयाणा, पंजाब, उत्तराखंड राज्यों में मवेशियों में लंपी बीमारी का संक्रमण तेजी से फैल रहा है, जिससे भारी तादाद में पशु बीमारी की चपेट में आ रहे हैं । इस बीमारी से मवेशियों की सभी उम्र और नस्लें प्रभावित होती हैं, लेकिन विशेष रूप से कम उमर के दुधारू मवेशी अधिक प्रभावित होती हैं। इस रोग से पशुधन उत्पादन में भारी कमी आती है । ऐसे में यह अनुदेश प्रदेश के पशुपालकों को, समय रहते बीमारी की पहचान एवं बचने के उपायों से अवगत कराने में सहायक सिद्ध होगी।
लक्षण
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तेज बुखार (41 डिग्री सेल्सियस ) ।
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आँख एवं नाक से पानी गिरना ।
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पैरों में सूजन।
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वायरल संक्रमण के 7 से 19 दिनों के बाद पूरे शरीर में , कठोर, चपटे गांठ उभर आना।
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गाभिन पशुओं के गर्भपात।
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दुधारू गायों में दुग्ध उत्पादन काफी कम।
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पशुओं में वजन घटना , शारीरिक कमजोरी।
रोग संचरण
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रोग के विषाणु बीमार पशु के लार, नासिका स्राव, दूध, वीर्य में भारी मात्रा में पाए जाते हैं।
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स्वस्थ पशु के बीमार पशु के सीधे संपर्क में आने से।
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रोग ग्रसित पशु के स्राव से संदूषित चारा पानी खाने से ।
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बछड़ों में रोग ग्रसित पशु के दूध से।
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मच्छरों, काटने वाली मक्खियों, चमोकन/किलनी आदि जैसे खून चूसने वाली कीड़ोंके काटने से।
उपचार
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यह एक विषाणुजनित रोग है जिसका कोई उचित अनुशंसित उपचार नहीं है। चिकित्सक के परामर्श से लक्षणात्मक उपचार किया जा सकता है।
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बुखार की स्थिति में ज्वरनाशक का प्रयोग ।
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सूजन एवं चर्म रोग की स्थिति में पशु चिकित्सक की सलाह से दवाईयां तथा द्वितीयक जीवाणु संक्रमण को रोकने हेतु 3-5 दिनों तक एन्टीबायोटिक दवाईयों का प्रयोग ।
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घावों को मक्खियों से बचाने हेतु नीम की पत्ती, मेहंदी पत्ती, लहसुन, हल्दी पाउडर को नारियल या सीसेम तेल में लेह बनाकर घाओं पर लेप का प्रयोग ।
निवारण :
बीमारी की रोकथाम के लिए टीकाकरण सबसे अच्छा तरीका है। इंडियन इम्युनोलॉजिकल अथवा हेस्टर बायोसाइंस द्वारा निर्मित गॉटपॉक्स टिका पशुओं को बीमारी से बचाने में अत्यंत कारगर है। इस टिके को ३-५ मी ली मात्रा चमड़े में दिए जाने से एक वर्ष तक प्रभावी प्रतिरक्षा प्रदान करता है।
रोग प्रकोप के समय क्या करें, क्या नहीं करें ?
क्या करें,
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निकटतम सरकारी पशुचिकित्सा अधिकारी को सूचित करें।
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प्रभावित पशुओं को स्वस्थ पशुओं से अलग करें ।
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प्रभावित पशुओं की आवाजाही को प्रतिबंधित करें ।
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रक्त-आश्रित की कीट के काटने से बचने के लिए पशुओं के शरीर पर कीट निवारक का प्रयोग करें.
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स्वस्थ पशुओं को दाना चारा देने दूध निकलने के बाद ही रोग-ग्रसित पशुओं को देखभाल करें।
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बीमारी को फैलने से बचाने के लिए परिवेश और पशु खलिहान की फिनोल (2%/15 मिनट), सोडियम हाइपोक्लोराइट (2–3%), आयोडीन यौगिकों (1:33), चतुर्धातुक अमोनियम यौगिकों (0.5%) और ईथर (20%) इत्यादि का छिड़काव कर उचित कीटाणुशोधन करें।
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रोग प्रकोप फैलने पर पशु मेला एवं प्रदर्शनी पर रोक लगा देनी चाहिए ।
क्या नहीं करें
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सामुहिक चराई के लिए अपने पशुओं को नहीं भेजें ।
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पशुओं को पानी पीने के लिए आम स्रोत जैसेकि तालाब, धाराओं, नदियों से सीधे उपयोग नहीं करना चाहिए, इससे बीमारी फैल सकती है |
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प्रभावित क्षेत्र से पशुओं की खरीदी न करें।
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मृत पशुओं के शव को खुले में न फेंके ।
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लंपि रोग का विषाणु मनुष्यों को प्रभावित नहीं करता अतः रोगी पशु के दूध को उबाल कर पीने या रोगी पशु के संपर्क में आने से मनुष्यों में रोग फैलने की कोई आशंका नहीं है।अवांछित अफवाहों से खुद को बचाएं।