उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद हाईकोर्ट में बीजेपी के एक कार्यकर्ता ने ताजमहल को लेकर एक याचिका दायर की है. इस याचिका में ताजमहल की जगह तेजो महालय या शिव मंदिर होने का दावा किया गया है. इस दावे के साथ ताजमहल के तहखाने में जो 22 कमरे है. उसमें से 20 कमरे खोलने की मांग की गई है. याचिका दायर करने वाले बीजेपी के कार्यकर्ता डॉ. रजनीश का कहना है कि ताजमहल की सच्चाई क्या है. क्या ये तेजो महालय है या ये मकबरा है. इस भ्रम से पर्दा उठाने के लिए ये 20 कमरे खुलने जरुरी है ताकि सच्चाई दुनिया के सामने आ सके.

याचिका में क्या दावा किया गया ?
याचिका में कई किताबों का जिक्र करते हुए कहा गया है कि यहां 1212 AD में राजा परमारदी देव ने तेजो महालय का निर्माण करवाया था. ये तेजोमहालय बाद में विरासत के रुप में जयपुर के राजा मानसिंह को मिला था. बाद में यही विरासत राजा जयसिंह को भी मिली. लेकिन कालांतर में शाहजहां ने इसे तुड़वाकर यहां मकबरा बनवा दिया. याचिका में दावा किया गया है कि किसी भी मुगल कोर्ट पेपर या मुगल वृतांत में औरंगजेब के कालखंड में ताजमहल का जिक्र नहीं है. और यहां तक की मुस्लिम महल शब्द का इस्तेमाल भी नहीं करते है.

याचिका में इस बात पर भी सवाल उठाए गए है कि ये मकबरा शाहजहां के समय का नहीं है. याचिका में कहा गया है कि ओरंगजेब के समय में साल 1652 में औरंगजेब ने मुमताज के मकबरे की मरम्मत के निर्देश दिए थे. औरंगजेब ने अपने निर्देशों में साफ कहा था कि मकबरे के हाल अच्छे नहीं है. कई जगहों पर दरारें पड़ चुकी है तो कई जगहों से रिस रहा है. ऐसे में सवाल उठता है कि अगर शाहजहां ने इसका निर्माण कराया, तो औरंगजेब के कालखंड तक, इतने कम समय में ये मकबरा जर्जर हालात में कैसे हो गया. याचिका में ये भी कहा गया है कि किसी भी कब्र को बनाने में 22 साल का वक्त नहीं लग सकता है. जबकि इसका निर्माण 1631 में शुरु किया और 1653 में ये पूरी तरह से बनकर तैयार हुआ.

कैसे बंद हुए ये 20 कमरे ?
साल 1972 से ताजमहल के तहखाने के इन कमरों को बंद कर दिया गया था. आम पर्यटकों का यहां प्रवेश प्रतिबंधित कर दिया गया. इसकी वजहों को लेकर आम लोगों में भ्रम है. कुछ इतिहासकारों का कहना है कि 1980 के दशक में ताजमहल की इन दीवारों में दरारें आ गई थी. इन कमरों से होकर मीनारों की ओर रास्ता जाता है. जिसकी वजह से कई लोग यहां से आत्महत्या जैसे कदम भी उठाते थे. दीवारों और फर्श में आए कई दूसरे बदलावों की वजह से भी सुरक्षा कारणों से इसे बंद कर दिया गया.

साल 2006 में इन कमरों की दीवारें काफी जर्जर हुई तो इसकी मरम्मत का काम भी किया गया. दीवारों में आई दरारों की प्वाइंटिंग और प्लास्टर का काम किया गया. साथ ही सीलन से दीवारों को होने वाले नुकसान को लेकर भी संरक्षण के उपाय किए गए.

क्या है ASI का दावा ?
फरवरी 2008 में एएसआई ने इस मामले को लेकर उत्तर प्रदेश के आगरा कोर्ट में एक एफिडेविट भी दायर किया था. जिसमें एएसआई ने कहा कि ताजमहल में तेजो महालय या शिव मंदिर होने का जो दावा है, वो पूरी तरह से काल्पनिक दावा है. एएसआई का कहना है कि ताजमहल में केवल सुरक्षा कारणों से ही नीचे के बीस कमरों को बंद किया गया है. एएसआई के एफिडेविट के हिसाब से ही सुप्रीम कोर्ट ने ये तय किया है कि ताजमहल के किन हिस्सों को खोला जाए और किनको नहीं.

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