यज्ञ में काम लिया जाने वाला घृत केवल और केवल गो-घृत ही होना चाहिये, तभी देवता उसको ग्रहण करेंगे। बाजारू घृत जो कि चर्बीयुक्त हो सकता है या फिर अन्य पशुओं का घृत जो कि अशुद्ध माना जाता है, देवता नहीं दानव ग्रहण करेंगे। उससे देव शक्ति की बजाय दानवी शक्ति का पोषण होगा। परिणाम हमारे लिये निश्चित उल्टा ही होगा। अतः यज्ञ में केवल गो-गव्यों का ही प्रयोग करना चाहिये। शास्त्र विरुद्ध किया गया कार्य पूरी सृष्टि के लिये हानिकारक होता है। शास्त्र में जहाँ भी दूध, दही, छाछ, मक्खन, घृत आदि उल्लेख किया गया है वो केवल गाय के गव्य ही हैं, क्योंकि उस समय भैंस, जर्सी, हॉलिस्टीयन जैसे पशुओं का व्यवहार कहीं भी शास्त्र में आया ही नहीं है।
बीमारियों से बहुत दुःखी होने के बाद भी आम आदमी में यहाँ तक कि बुद्धिजीवियों और बड़े-बड़े कई साधु-संतों में भी सजगता देखने में नहीं आ रही है। दूध और घी के विषय में तो वे बिल्कुल लापरवाह या अनभिज्ञ से नजर आ रहे हैं। हृदयघात और ब्लोकेज में कॉलेस्ट्राल मुख्यतः गोघृत के अलावा खाया गया घृत है, जिससे हमारा पाचन तंत्र पचा नहीं पाया।
इसके अलावा गुणों में गाय का दूध सात्विक, भैस का राजसी व जर्सी-हॉलिस्टीयन का तामसी होता है। इनको खाने से इनके जैसा ही हमारा मन मस्तिष्क और हृदय बनता है। सफेद रंग का हरेक पदार्थ दूध नहीं होता है।
वर्तमान में गाय का जो त्याग और तिरस्कार है वो मुख्यरूप से दूध की मात्रा को लेकर किया जा रहा है। वजह केवल व्यापार। बेचने वाला तो रुपये कमाने के लिये ऐसा कर रहा है, पर खरीददार दूध के प्रति शिक्षित नहीं होने के कारण शुद्ध गाय के दूध की माँग नहीं कर रहे हैं।
लगातार अनदेखी से हमारे देश में गायों की नस्ल में भारी गिरावट आई है, जिससे वे कम दूध दे रही है। देश में दूध की माँग केवल दो फालतू के कार्यों हेतु है- 1. चाय और 2. मिठाई। अगर लोग चाय पीना छोड़ दें, जो कि जीवन निर्वाह हेतु कतई आवश्यक नहीं है, तो दूध की खपत एकदम गिर जायेगी। जो मिठाई वर्तमान में लोग खा रहे हैं, उससे स्वास्थ्य को लाभ की बजाय हानि अधिक हो रही है, केवल जीभ का स्वाद लेने के लिये बीमारी का घर खा रहे हैं। ऐसी मिठाई का भी यदि त्याग कर दें तो दूध की खपत और घट जायेगी। ऐसे लोगों की संख्या बहुत कम रह गयी है जो स्वास्थ्य के लिये दूध पीते हैं। बच्चे अभी भी दूध जरूर पीते हैं।
जब माँग कम होगी तो उसकी पूर्ति केवल गायों से हो जायेगी। इससे लाभ यह होगा कि हमें वाकई में पीने को दूध मिलेगा। हमारा स्वास्थ्य और करोड़ों का खर्च बच जायेगा। चाय और मिठाई के लिये अधिक दूध की माँग ने गाय को घर से बाहर कर दिया और उसे बूचड़खानों की और धकेल दिया।
कुछ सज्जन मेरे यहाँ से गाय का शुद्ध दूध ले गये और अपने बच्चों को पिलाया। मैंने 10 दिन बाद उन बच्चों को पूछा कि गाय का दूध कैसा लग रहा है? उनका उत्तर थ कि अंकलजी हमने जीवन में व्हाइट दूध ही पहली बार पीया है। अब तक स्वाद न होने के कारण हम बोर्नवीटा मिलाकर कलर्ड (रंगीन) दूध ही पी पाते थे। अब तो वे गाय के दूध के अलावा दूध पीने को तैयार ही नहीं हैं।
अकबर ने एक बार बीरबल को पूछा कि सबसे अच्छा दूध किसका होता है। हाजिर जवाब बीरबल ने तपाक से उत्तर दिया भैंस का। अकबर को बीरबल से यह उम्मीद कतई नहीं थी। वो उसे हिन्दूवादी और गाय का प्रबल पक्षधर समझता था, इसलिये बीरबल के इस उत्तर से वह आश्चर्यचकित था। अकबर यह अच्छी तरह जानता था कि बीरबल कभी गलत उत्तर नहीं दे सकता, पर आज ऐसा कैसे हुआ? अकबर ने अगला प्रश्न किया कि- कैसे और क्यों?
बीरबल ने उत्तर दिया -जहाँपनाह, दूध तो केवल दो ही जानवर देते हैं। एक भैंस और दूसरी बकरी। इनमें भैंस का ठीक है। महाराज गाय दूध नहीं, साक्षात् अमृत देती है। मैं उसे दूध की श्रेणी में नहीं गिना सकता।
अतः मित्रों, मात्रा नहीं दूध की गुणवत्ता देखें। सफेद जहर से बचें।