👉🏻 चीता के मुंह से जान बचाकर गौ माता ने 11 दिन के अबोध बालक की बचाई जान
👉🏻 गौ हत्या के लिए जितना दोषी दूसरे समुदाय के हैं, उससे कहीं अधिक दोषी हम और आप
👉🏻 त्यौहारों के मौसम में अन्य बेजुबान पशुओं की भी दी जाती है बलि, इस प्रथा पर भी रोक जरूरी
👉🏻 बिडम्बना है कि मनुष्य का शरीर प्राण निकलने के बाद मृत घोषित होता है, पर पशु का लाश पवित्र बन त्योहारों में व्यंजन बन जाता है।

मुम्बई में मेरी मुलाक़ात गउ भारत भारती पत्रिका के संपादक आदरणीय संजय शर्मा अमान जी से 30 सितम्बर को अंधेरी स्थित श्रीजी नामक एक होटल में मेरे परम मित्र विशाल विजय भगत जी के माध्यम से हुई। इस क्रम में उन्होंने मुझे गऊ भारत भारती की अख़बार तथा मैगज़ीन भेंट की। श्री शर्मा जी ने बातचीत के दौरान बताया कि हमलोग गौ माता के ऊपर कार्य कर रहे है तथा समाज में जागरूकता ला रहें है। उनके इस सराहनीय कार्य पर मै भावुक हुआ। मै भी बचपन से ही जीव हत्या का खिलाफ हूं। मुझे ऐसा लगा कि जिसकी तलाश मुझे थी, वह मिल गया है। क्योंकि जीव हत्या का विरोध करना मतलब लोगों से दुश्मनी झेलना है। जब इसकी आवाज उठाने वाला मिल जाये तो अपने आपको ऊर्जा मिलती है।

मेरा जन्म एक मध्यमवर्ग परिवार में हुआ है। मेरे पिता श्री नर बहादुर सोनार और माता श्रीमती राज कुमारी की गोद से 1973 में डिब्रुगढ़, आसाम में स्थित दिनजान सैनिक अस्पताल में जन्म हुआ। मेरी मां बताती है कि मै मां का दूध बिल्कुल ही नहीं पिया है। मां का स्तन में दूध जमा होने से काफी दर्द सहती थी। दूध को निकाल कर फेंकना पड़ता था। मेरे पिता को काफी चिंता हो गई कि पहला संतान माँ का दूध नहीं पी रहा है, तब पिताजी वायु सेना के एमईएस में कार्यरत थे। मुझे गाय का दूध पिलाया गया। गौ माता का दूध पीकर आज मै आधी उम्र गुजार चुका हुं। मेरे पिताजी बताते हैं कि बाहर का दूध से बेटा को क्या खुराक मिलेगा। मै खुद गाय पालकर बेटा को दूध पिलाऊंगा। पिताजी सरकारी जागीर में थे। गाय पालना संभव नहीं था, फिर भी पिताजी ने वहां के उच्च अधिकारी और वायु सेना के सीईओ साहब से अनुमति मांगी कि मेरा पहला संतान बेटा माँ का दूध नहीं पी रहा है। मुझे एक गाय पालने की अनुमति दीजिये। पिताजी को अनुमति मिल गई।

दरअसल मैं गौ माता का दूध पीकर अब बड़ा हो गया हूं। उस गौ माता का दूध पिया है, जो मेरे पिताजी आगे बताते हैं कि वायु सेना के जंगल में गाय को घास चरने के लिए छोड़ दिया था, तभी एक चीता ने गाय पर आक्रमण कर दिया। गौ माता अपनी जान बचाने के लिए पूरी ताकत लगा दी। चीता के साथ जीवन और मौत का संघर्ष चल रहा। गौ माता लहू लुहान हो गई और चीता हार मानकर वापस जंगल चला गया। फिर वह गौ माता जो मुझे दूध पिलाती थी, वापस लहू लुहान होकर घर वापस लौटी। उस गौ माता का नाम भुंती रखा गया था। भुंती नेपाली शब्द है भूंती का अर्थ गोल-मटोल को कहा जाता है। इस घटना को वायु सेना के कर्मचारियों ने आँखो से देखी तथा मेरे पिता को सूचना दिया। मेरा पिताजी उस गाय को वापस घर लेकर आये। गाय काफी जख्मी हो गयी थी, गर्दन से खून बह रहा था। गाय का सिंग भी लहू-लुहान हो गया था। पूरे शरीर में चीता के पंजे का चीथड़ा हुआ निशान था। मेरे पिता ने गौ माता का इलाज कराया। इलाज के दौरान बाद में घाव भर गया और वह स्वस्थ्य हो गयी। यह घटना मेरे जन्मदिन से 11वें दिन फरवरी 16 तारीख की घटना है। उस दिन मेरे घर में खुशी का माहौल था, जिस दिन मेरा नामांकरण हो रहा था। इस खुशी के माहौल में एका-एक खबर आयी की गाय को चीता ने घायल कर दिया है और उसी गाय का दूध पी नामांकरण होने वाला बालक पी रहा था। इन शब्दों को लिखते हुए मेरे आँखों में आंसू भर आया। मेरे जीवन में जन्म देने वाली माँ और दूध पिलाने वाली गौ माता है। इन दोनो माँ का सदैव ऋणी हूं।

इसलिए शायद मैं बचपन से शाकाहारी जीवन जी रहा हूं। जब किसी भी पशु को काटा जाता है तो मेरा दिल झकझोर देता है। अनुभव करता हूं कि बेजुवान पशुओं का कब तक क़त्लेआम होता रहेगा। अब विज्ञान का युग आ गया है। तब जाकर लोगों को अपना संस्कृति याद आ जाती है। अब आवाज उठने लगी है कि गाय हमारी माता है। उसकी हत्या बंद करनी चाहिए। जाति संप्रदाय में आरोप-प्रत्यारोप चल रहा है कि गौ हत्या बंद हो। ऐसे में हिंदू समाज काफी अग्रसर है और गौ माता की रक्षा के लिए कार्य भी कर रहा है। मेरा अपना निजी विचार है कि गौ हत्या करने में जितना दोषी अन्य समुदाय है, उतना दोषी मैं समझता हूं कि हिंदू समाज भी है। हो सकता है कि कट्टर हिंदू को मेरा इन शब्दों से बुरा लग सकता है। दरअसल बात मैं यह बताना चाहता हूं कि अन्य समुदाय से अधिक संख्या में गाय पालने वाले हिन्दू समाज से ही हैं। इसका बड़ा कारण है कि जब तक गाय दूध देती है, तब तक गौ माता कहते हैं। जब गाय बुढ़ी हो जाती है या दूध देना बंद करती है तो चंद पैसों की लालच में कसाई को बेच देते हैं। ऐसा खरीद-बिक्री मैंने अपने जीवन में कई बार देखा है। अब बताइये इसमें दोषी ज्यादा कौन है। अगर हमलोग गौ माता के सेवक हैं तो उसे कसाई के हाथों क्यो बेच रहे हैं। इसे रोकने के तौर तरीके को सख्त रूप अपनाना होगा। आरोप लगाने से पहले अपने आप को सजग होकर गौ माता की रक्षा करनी होगी। हम हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, जैन, पारसी आदि होने से पहले मानव हैं। इसमे हमारा वास्तविक धर्म क्या है। धर्म जाति आपस में लड़कर कुछ हसील होने वाला नहीं है।

आज हम गाय सेवा की काफी चर्चा करते हैं। इसके लिए देश में विभिन्न क्षेत्रों में कई संगठन काम कर रहे हैं। अब सोचने वाली बात यह है कि जब ऊपर लिखे गये मेरे जीवन का उदाहरण पेश किया है, ठीक इसी तरह किसी समाज में व्यक्ति को बकरी का दूध सेवन करने से नया जीवन मिला हो। भले बकरी को माता का दर्जा न मिल पाया हो।

आख़िरकार अपने बच्चे या किसी इंसान के बच्चों को दूध तो पिलाया होगा। हो सकता है कि दूध पिलाने में रेगिस्तान का ऊट भी शामिल हो। फिर भी मानव को देखिये इसके विपरीत पशु को लोग काटकर मांस को बड़े चाव से खाते हैं। अब त्योहारों का मौसम आ रहा है। देश के अन्य भागों में सहित मुम्बई राज्य में धूमधाम से गणेश उत्सव मनाया गया, अब पितृ पक्ष के बाद महालया, नवरात्रि, दुर्गा पूजा, लक्ष्मी पूजा, भैया दूज आदि त्योहार मनाया जायेगा। अब त्योहारों के मौसम में चिकन-मटन आदि का सेवन करेंगे। जैसे ही अन्य समुदाय का त्योहार आयेगा तो गौ माता याद आ जाती है।
मैं इसमें किसी समुदाय विशेष का पक्ष नहीं ले रहा हूं। मेरा कहने का अभिप्राय यह है कि बूढ़ी हो जाने के बाद या दूध देना बंद करने के बाद गाय ना बेचें। इसका सख्त विरोध होना चाहिए। इसके साथ ही पशु हत्या भी बंद होनी चाहिए। यह इसलिए कि मेरा विचार संसार के उन लोगों के विचार से भिन्न हैं, जो पशुओं में विभाजन लाते है। यह बात अगर मै व्यक्तिगत बोलूं तो हो सकता है, कोई आहत हों। कसाई के यहां जाकर आपलोग प्राय सभी लोग देखते होंगे बकरी, मुर्गा इत्यादि काटते हैं तो कतार में दूसरा पशु देख रहा होता है। उसी के सामने शरीर के चमड़े को उखाड़ दिया जाता है। वही कतार पर खड़ा होकर अपनी मौत की बारी आने का इंतज़ार में प्रतीक्षा कर रहा होता है। फिर भी सर्वश्रेष्ठ प्राणी मनुष्य इस दर्द को नहीं समझ सकता है। बस त्योहारों पर समुदाय के बीच भेदभाव में अपना आक्रोश जाहिर करते हैं। मेरा बस चले तो जीव हत्या ही बंद होना चाहिए। अब इस बात को लोगों के समक्ष किस तरह से समझाया जाये, जिसके मुँह में मांस का स्वाद मिल चुका है। इसमे हो सकता है की लोग मांस का स्वाद का भक्षण का आनंद लेने वाले व्यक्ति मेरा पुरजोर विरोध करेंगे। मैं एक दलित परिवार से हूं फिर भी शाकाहारी जीवन आनंद के साथ जी रहा हूं। मेरी धर्म पत्नी, बेटी, बेटा बिल्कुल ही शाकाहारी जीवन यापन कर रहे है। मैं अपनी दिमागी सोच इस तरह रखता हूं कि इंसान की जब मौत होती है तो डॉक्टर सांस चेक करता है। सांस नहीं चल रहा होता है तो उसे मृत घोषित किया जाता है। उसे अंग्रेजी भाषा में डेथ बॉडी कहते हैं मतलब मृत शरीर। अब लोग अपने-अपने धर्म और रीति-रीवाज से उनकी अंतिम विदाई देते है। हिंदू हो या अन्य धर्म समाज के लोग, मृत शरीर को अछूत मानते हैं। मनुष्य का मृत शरीर छूने से अपवित्र मानते है और श्मशान तथा कब्रिस्तान से घर वापस लौटने के बाद कुछ न कुछ नियम (शुद्धिकरण) करके घर के अंदर प्रवेश करते हैं।

अब देखिये सोचने और विचारने का समय है कि प्राणी में सर्वश्रेष्ठ मानव चोला का प्राण निकलने के बाद अपवित्र होता है, तो पशुओं का प्राण निकलने के बाद अपवित्र कैसे नहीं हुआ। वह पशु इतना शुद्ध है कि मानव जाति मांस का भक्षण कर रहा है। यह कैसी बिडम्बना है कि मानव लाश को छूता है तो अपवित्र और पशु के लाश से कोई मतलब नहीं। बल्कि शानदार आहार बन जाता है जो छोटे-मोटे होटलों से लेकर फाइव स्टार होटल तक में बिकता है। उस मांस के लिए होटालों में सेफ नाना प्रकार से स्वादिष्ट व्यंजन बनाकर तैयार करते है। भाई, दुनिया में ऐसा कौन सा विज्ञान है कि मनुष्य को मृत घोषित करती है और पशुओं को नही। अगर पशुओं को मृत घोषित करती है तो उसे शमशान के बजाये अपना आहार में भक्षण क्यों किया जाता है?

मेरा मानना है कि मनुष्य का मृत शरीर को श्मशान या कब्रिस्तान में जलाया या दफनाया जाता है। वहां अगर मध्य रात्रि को अकेले जाने के लिए कहा जाये तो लोग सोचेंगे की कैसे जाये, क्योकि वहां किसका निवास स्थान है। प्रायः यही सुनने को आएगा कि भूत का निवास होता है। डरावनी आवाज निकलती है, यही न? अब मेरा इस बात को ध्यान से मनन और चिंतन करिये कि प्राणीयों में सर्वश्रेष्ठ मनुष्य है, फिर भी शमशान में मध्य रात को जाने से लोग डरते हैं। वहीं जिन पशुओं को मार कर नाना प्रकार का व्यंजन बना कर खाते है तो उसे कौन सा शमशान में पहुंचाया जाता है वह है मनुष्य का पेट। उस शमशान रूपी पेट में किसका वास होगा? डरावने भूत पिचाश ही तो उत्पन्न होंगे। पशु का मृत शरीर पेट में जायेगा तो भूतों का असर तो होना ही होना है। इसलिए कहा भी गया है कि जैसा खायेगा अन्न, वैसा होगा मन। जैसा पिएंगे पानी, वैसा होगा वाणी ।

हिम बहादुर सोनार।
सिलीगुड़ी जिला दार्जीलिंग
पश्चिम बंगाल
मोबाइल नम्बर : 7602719190
Email: himbahadur.ghimire@gmail.com

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